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कैसायपाहुडसुत्तं 120) प्रतिपात कितने प्रकार का है तथा वह किस कषाय में होता है । वह प्रतिपात
होते हुए भी किन-किन कर्माशों का बंधक होता है ? । 121) प्रतिपात दो प्रकार का है एक प्रतिपात भव भय से, दूसरा उपशमकाल के
क्षय से होता है। वह प्रतिपात सूक्ष्मसांपराय तथा बादर राग (लोभ) नामक
गुणस्थान में होता है, ऐसा जानना चाहिए। 122) उपशामना काल के क्षय होने पर सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान में प्रतिपात होता
है । भवक्षय से होनेवाला प्रतिपात नियम से बादर राग में होता है। 123) उपशामना काल के समाप्त होने पर गिरने वाला जीव यथानुपूर्वी से कर्मों
को बांधता है। इसी प्रकार वह आनुपूर्वी क्रम से कर्मप्रकृतियों का वेदन
करता है। 124) संक्रमण-प्रस्थापक के पूर्वबद्ध कर्म किस स्थिति वाले हैं ? वे किस अनुभाग में
वर्तमान हैं और उस समय कौन कर्म संक्रान्त हैं और कौन कर्म असंक्रान्त हैं ? 125) संक्रमण-प्रस्थापक के मोहनीय की दो स्थितियाँ होती हैं-एक प्रथम स्थिति
और दूसरी द्वितीय स्थिति । इनका प्रमाण कुछ न्यून मुहूर्त है। तत्पश्चात्
नियम से अन्तर होता है । 126) जो उदय या अनुदयरूप कर्मप्रकृतियाँ परिक्षीण स्थितिवाली हैं, उन्हें उपर्युक्त
जीव दोनों ही स्थितियों में वेदन करता है। किन्तु जिन कर्माशों को वेदन
नहीं करता है, उन्हें तो द्वितीय स्थिति में ही जानना चाहिए । 127) संक्रमण प्रस्थापक के पूर्व बद्ध कर्म मध्यम स्थितियों में पाये जाते हैं तथा
अनुभागों में सातावेदनीय, शुभनाम तथा उच्चगोत्र उत्कृष्ट रूप से पाये जाते हैं। 128) आठ मध्यम कषायों की क्षपणा के पश्चात् स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा तथा
प्रचलाप्रचला तथा नरकगति सम्बन्धी त्रयोदश नामकर्म की प्रकृतियाँ संक्रमण प्रस्थापक के द्वारा अन्तर्मुहूर्त पूर्व ही सर्वसंक्रमण आदि में क्षीण की जा
चुकी हैं। 129) (हास्यादि छह नोकषाय के पुरुषवेद के चिरन्तन सत्त्व के साथ) संक्रामक होने
पर नियम से नाम, गोत्र और बेदनीय असंख्यात वर्षप्रमाण अपने-अपने स्थिति सत्व में प्रवृत्त होते हैं। शेष ज्ञानावरणादि घातिया कर्म संख्यात वर्षप्रमाण स्थिति सत्त्व वाले होते हैं।
संकाय-पत्रिका-२
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