Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 179
________________ १६० श्रमणविद्या 28 203 74 81 198 99 101 49 51 54 66 उवसामणाखयेण दु उवसामगे च खवगे उवसातय अद्धा उवसातय अद्धा उवसंते आसाणे उसंते आसाणे उवसंते भजियधा - [ए] एइंदियकाएसु च एइंदियभवग्गहणेहि एकसमयपबद्धाणं एक्कम्हि य अणुभागे एक्कम्हि टिदिविसेसे एक्कम्हि य अणुभागे एक्कम्मि य उवजोगे एक्कम्मि टिदिविसेसे एक्कम्मि भवग्गहणे एक्का संगहणीए एक्केकेण समाणय एक्केक्कम्हि य ठाणे एकेक्काए संकमो एक्वेक्कम्हि कसाए एक्कं च द्विदिविसेसं एक्कं च टिदिविसे सं एगसमयप्पबद्धा एगादेगुत्तरियं एगाधिगाए वीसाए एगुत्तरमेगादि एत्तो अगाणपुन्वी एत्तो अवसेसा एदाओ सुत्तगाहाओ एदाणि पुधबद्धाणि एदे खलु मोत्तूणं 123 एदे खलु मोतण 39 एदेण अंतरेण दु 18 एदेसि हाणाणं 20 एदेसि ट्राणाणं एदे समयपबद्धा एदे सुण्णट्टाणा 97 एदे सुण्णट्ठाणा एदे सुण्णट्टाणा 183 एदे सुण्णट्टाणा 184 एदे सुण्णढाणा 199 एदे सुण्णट्ठाणा 100 एमेव य वेदयते 200 एयं जस्स दु कम्म एवं दधे खेत्ते 64 एसा ट्ठिदीसु जहण्णा 202 एसो कमो य माणे 64 एसो कमो य कोधे [ओ] ओकडुदि जे असे ओकड्ड दि जे अंसे ओड्डिदे च पुवं 163 ओरालिये सरीरे 155 ओवट्टण च णियमा 156 ओवट्टणमुबट्टण 194 ओवट्टणा जहण्णा 184 ओवट्टणाए तिणि दु 33 ओवट्टेदूण सेसाणि 201 ओवट्टेदि टिदिं पुण [क] 34 कदरिस्से च गदीए कदि आवलियं पवेसेइ 193 कदि आवलियं पविसंति 27 कदि कम्हि होंति ठाणा 123 106 58 152 80 174 25 154 221 221 188 161 161 152 7 19 10 2 संकाय पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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