Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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१६६
सादेण असादेण च
सासदपत्यणलालस
सुहमे च संपराए
सुमम्हि संपराए
सुमम्हि संपराए
से काले उदयादो
से काले उदयादो
से काले से काले
से काले से काले
से काले से काले
सेलघणअट्टिदारुअ
सेसा कमेण अहिया
सेसा कमेण होणा
सेसा भवबद्धा खलु
सासु खीणमोहा
सेसाणं कम्माणं
सेसो अनंतभागो
सेसो असंखेज्जदिमो
सोलसग बारसट्ठग सोलस य ऊणवीसा
सोलस य चट्टा
संक्रमणपट्टवस संकमपडिग्गहो वा कम पडिग्गहविहो
संकम उवक्कमविही
संकमणयं णयविद्
कामण ओव
संक्रामण ओट्ट
सकाय पत्रिका ०२
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भ्रमण विद्या
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काम मोट्टण कामग
संकामे कदि वा
संकामेदि व के के
संकामेदि च के के
संका मेदि उदीरेदि
संकामणपट्टवगस्स
संकामयपट्ठवगस्स
मेदुवडुदि संकामगपगो
संकामगोच को
संकेत म्हि य नियमा
संखेज्जदिभागेण दु
संखेज्जा च मणुस्से सु
छुहृदि अण्णकट्टि
संछुहृदि भवेदेतो
छुहृदि पुरिसवेदे संदिपुरिसवेदे संधीदो संधी पुण
सांतरणिरंतरं वा
हरसेदिकदिसु एवं
[ह]
हालिद्दवत्सममो
होणा च पदेसग्गे
हीणा च पदेसग्गे
हेट्ठा देसावरणं
होहिति च उवजुत्ता
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