Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 213
________________ अवचूरिजुदो दन्वसंगहो पञ्च परमेष्ठी-अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु के स्वरूप का ध्यान और उनके वाचक णवकार तथा अन्य मन्त्रों का जप बताया गया है । ध्यान का चरमोत्कर्ष सर्वथा विकल्प रहित होकर आत्मा का आत्मा में रमण है। यही उत्कृष्ट ध्यान है"अप्पा अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवइ झाणं ।" मोक्ष प्राप्ति का यही उपाय है। __ इस प्रकार मोक्षमार्ग के प्रतिपादन के बाद अन्तिम गाथा में कहा गया है कि निर्दोष पूर्ण सुत्तधारक मुनिश्रेष्ठ, अल्पसुत्तधर नेमिचन्द मुनि द्वारा कथित इस द्रव्य संग्रह का संशोधन कर लें। ___ द्रव्यसंग्रह का विवेचन कुन्दकुन्द के पंचत्थियसंगहो की पद्धति तथा क्रम के अनुसार है। संक्षेप में इतना व्यवस्थित और स्पष्ट विवेचन अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। द्रव्यसंग्रह अवचूरि द्रव्यसंग्रह की प्राकृत गाथाओं पर ब्रह्मदेव की विस्तृत संस्कृत टीका प्रसिद्ध है। प्रस्तुत अवचूरि का प्रकाशन प्रथम बार हो रहा है । अवचूरि का अर्थ निचोड़ है। इस टीका में गाथाओं के अर्थ को संक्षेप में सार या निचोड़ रूप में प्रस्तुत किया गया है । प्रारम्भ की १४ गाथाओं की टीका अपेक्षाकृत विस्तृत है। उसमें ग्रन्थान्तरों के उद्धरण भी यत्र तत्र दिये गये हैं। बाद की टीका गाथा के अर्थ को अपेक्षाकृत संक्षेप में स्पष्ट करती है। टीका में गाथा के प्राकृत प्रतीक देकर उनका संस्कृत अर्थ दिया गया है। मूल गाथा देकर उसकी अवचूरि लिखी गयी है। इससे गाथाओं का वह पाठ भी सुरक्षित हो गया है, जो अवचूरिकार को उपलब्ध था। संस्कृत के माध्यम से पठन-पाठन के लिए यह टीका विशेष उपयोगी है। टीका में कहीं भी टीकाकार का नामोल्लेख नहीं है, किन्तु टीका से ज्ञात होता है कि टीकाकार को जैन सिद्धान्तों की विस्तृत जानकारी थी, तभी वे गाथाओं के शास्त्रीय अर्थ को सरलतापूर्वक स्पष्ट कर सके। शब्दार्थ की दृष्टि से गाथाएँ सरल हैं, किन्तु उनमें प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावलि को सिद्धान्त ग्रन्थों का विशेष अध्येता ही समझ सकता है । अवचूरिकार ने गाथाओं का अर्थ पारम्परिक सैद्धान्तिक आधार पर स्पष्ट किया है। प्रारम्भ की १४ गाथाओं की टीका में १० गाथाएँ ग्रन्थान्तरों की उद्धृत हैं। सिद्धान्त गाथाओं को परम्परा द्रव्यसंग्रह की प्राकृत गाथाओं में महत्त्वपूर्ण पारम्परिक सिद्धान्तों का समावेश है । आचार्य परम्परा द्वारा मौखिक रूप से चला आ रहा सैद्धान्तिक ज्ञान समय संकाय-पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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