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पाठालोचन पूर्वक संस्कृत टीका व्संगहो के कर्ता के विषय में
का निराकरण होना चाहिए ।
इस संस्करण के तैयार करने में जिनका भी प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग प्राप्त हुआ, उन सबके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए हम आशा करते हैं कि इसके प्रकाशन से प्राचीन ग्रन्थों के सम्पादन प्रकाशन में श्रीवृद्धि होगी ।
संकाय पत्रिका - २
अवचूरिजुद दव्वसंगहो
और हिन्दी अनुवाद के साथ किया जाना चाहिए । हमने जो विचार किया है, उससे भ्रान्त धारणाओं
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डॉ० गोकुलचन्द्र जैन
अध्यक्ष
प्राकृत एवं जैनागम विभाग सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी
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