Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
View full book text
________________
परिशिष्ट-1
उद्धृत पद्यानुक्रमणिका अंडेसु पवड्ढंता गब्भत्था माणुसा य मुच्छगया। जारिसया तारिसया जीवा एगेंदिया णेया ।।
[गाथा 12 ] गइ इंदियेसु काये, जोगे वेदे कसायणाणे य । संजमदंसणलेस्सा भविया सम्मत्तसण्णि आहारे ।।
[गाथा 13 ] णिज्जियसासो णिप्फंदलोयणो मुक्क सयलवावारो। जोण्हा वच्छगओ सो जोई णस्थित्ति संदेहो ।।
[गाथा 46, 55] तब्रूयात्परान्पृच्छेत्तदिच्छेत्तत्परो भवेत् । येनाविद्यामयं रूपं त्यक्त्वा विद्यामयं व्रजेश ॥
[गाथा 56 ] दाणे लाहे भोए उवभोए वीरिए य सम्मत्ते ।। दसणणाणचरित्ते एदे णव जीव सब्भावा ।।
[ गाथा 131 पंचवि इंदियपाणा मणवचिकायेण तिण्णि बलपाणा । आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण हुंति दह पाणा ।।
[गाथा 1] मूलसरीरमछंडिय उत्तरदेहस्स जीवपिंडस्स । णिग्गमणं देहादो हवदि समुग्घाद यं णाम ।। वेयणकसायविउव्वण तह मारणंतिओ समुग्घाओ । तेजाहारो छट्ठो सत्तमओ केवलीणं तु ॥
गाथा 10] सम्मत्तणाणदसण-वीरिय-सुहमं तहेव अवगहणं । अगुरुलहुमन्वावाहं अट्ठ गुणा हुंति सिद्धाणं ॥
__ [ गाथा 14 ] सूक्ष्मद्रव्यादभिन्नाश्च व्यावृत्ताश्च परस्परम् । उत्पद्यन्ते विपद्यन्ते जलकल्लोलवज्जले ।।
[ गाथा 14 ] णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ॥
__ [गाथा 49 ]
संकाय पत्रिका-२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262