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श्रमणविद्या 241) बंध से उदय अधिक होता है और उदय से संक्रमण अधिक होता है। इस
प्रकार प्रदेशाग्र की अपेक्षा गुणश्रेणी असंख्यात गुणी जानना चाहिए । 242) अनुभाग की अपेक्षा साम्प्रतिक-बंध से साम्प्रतिक-उदय अनंतगुणा है। इसके
अनन्तर काल में होनेवाले उदय से साम्प्रतिक बंध अनन्तगुणा है। 243) चरमसमयवर्ती बादर सांपरायिक क्षपक नाम, गोत्र एवं वेदनीय को वर्ष के
अन्तर्गत बाँधता है। शेष (ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय रूप घातिया
कर्मों) को एक दिवस के अन्तर्गत बाँधता है । - 244) जिस कृष्टि को भी संक्रमण करता हुआ क्षय करता है, उसका वह बंध नहीं
करता है। सूक्ष्मसांपरायिक कृष्टि के वेदन काल में वह उसका अबन्धक रहता है, किन्तु इतर कृष्टयों के वेदन वा क्षपण काल में वह उनका बन्ध
करता है। 245) जब तक वह छद्मस्थ रहता है तब तक ज्ञानावरणादि तीन घातिया कर्मों का
वेदक रहता है । इसके अनन्तर क्षण में उनका क्षय करके सर्वज्ञ तथा सर्वदर्शी बनता है।
संकाय-पत्रिका-२
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