Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ कसायपाहुडसुत्तं १५७ 232) कषायों के क्षीण होने पर शेष ज्ञानावरणादि कर्मों के कौन-कौन क्रिया विशेषरूप विचार होते हैं ? क्षपणा, अक्षपणा, बन्ध, उदय तथा निर्जरा किन-किन कर्मों को कैसी होती है ? 233) मोहनीय के क्षीण होने पर्यन्त मोहनीय की संक्रमणता, अपवर्तना तथा कृष्टि क्षपणा रूप क्षपणाएँ आनुपूर्वी से जानना चाहिए। 234) अनन्तानुबन्धी चार, मिथ्यात्व, मिश्र-सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व प्रकृति, इन सात प्रकृतियों को क्षपक श्रेणी चढ़ने के पूर्व ही क्षपण करता है। फिर क्षपक श्रेणी चढ़ते हुए अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में अन्तरकरण से पूर्व ही आठ मध्यम कषायों का क्षय करता है । इसके बाद नपुंसक, स्त्रीवेद, हास्यादि छह नोकषाय और पुरुषवेद का क्षय करता है। तदनन्तर संज्वलन क्रोधादि का क्षय करता है। 235) आठ मध्यम कषायों के क्षय करने के अनन्तर स्त्यानगृद्धि कर्म, निद्रानिद्रा और प्रचलाप्रचला इन तीन दर्शनावरणीय प्रकृतियों को, तथा नरक और तिर्यग्गति नाम कर्म को तेरह प्रकृतियों को संक्रमणादि करते हुए क्षीण करता है। 236) मोहनीय की सम्पूर्ण प्रकृतियों का आनुपूर्वी से संक्रमण होता है। किन्तु लोभकषाय का संक्रमण नहीं होता है, ऐसा नियम है । 237) वह क्षपक स्त्रीवेद तथा नपुंसक वेद का पुरुषवेद में संक्रमण करता है। पुरुषवेद तथा हास्यादि छह नोकषायों का नियम से क्रोध में संक्रमण करता है। 238) संज्वलन क्रोध का मान में, मान का माया में तथा माया का लोभ में नियम से संक्रमण करता है। इनका प्रतिलोम संक्रमण नहीं होता। 239) जो जिस बंधने वाली प्रकृति में संक्रमण करता है, वह नियम से बंध सदृश ही प्रकृति में संक्रमण करता है; अथवा बन्ध की अपेक्षा हीनतर स्थितिवाली प्रकृति में संक्रमण करता है, किन्तु बन्ध की अपेक्षा अधिक स्थितिवाली प्रकृति में संक्रमण नहीं होता है। 240) बंध से उदय अधिक होता है। उदय से संक्रमण अधिक होता है। इस प्रकार अनुभाग के विषय में गुणश्रेणी अनन्त गुणी जानना चाहिए । संकाय-पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262