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श्रमण विद्या
206) मोह के कृष्टिकरण करने पर वह क्षपक सातावेदनीय, यशःकीर्ति नामक शुभनामकर्म और उच्चगोत्र कर्म संख्यात शतसहस्र वर्ष प्रमाण स्थिति बाँधता है । इनके योग्य उत्कृष्ट अनुभाग को बाँधता है ।
207) मोह के कृष्टि रूप होने पर कौन-कौन कर्म को बाँधता है तथा कौन-कौन कर्मांशों का वेन करता है ? किन किन कर्मों का संक्रमण करता है और किन किन कर्मो में असंक्रामक रहता है ?
208) क्रोध - प्रथम कृष्टिवेदक के घातिया कर्मों की नियम से करता है । घातिया कर्मों में रूप से ही बन्ध करता है ।
चरम समय में मोहनीय को अन्तर्मुहूर्त कम दश वर्ष प्रमाण जिनकी अपवर्तना सम्भव है
209) चरम समयवर्ती बादर सांपरायिक क्षपक नाम, गोत्र और वेदनीय को वर्ष के अन्तर्गत बाँधता है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय रूप घातिया को दिवस के अन्तर्गत बाँधता है ।
(210) चरम समयवर्ती सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवाला क्षपक नाम, गोत्र, वेदनीय को दिवस के अन्तर्गत बाँधता है तथा शेष घातिया त्रयको भिन्न मुहूर्त प्रमाण बाँधता है।
(211) मतिज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरण कर्मों में जिनकी लब्धि ( क्षयोपशम) का वेदन करता है, उनके देशघाति आवरण रूप अनुभाग का वेदन करता है । जिनकी अलब्धि है, उनके सर्वावरणरूप अनुभाग का वेदन करता है । अन्तराय का देशघाति रूप अनुभाग वेदन करता है ।
212) कृष्टिवेदक क्षपक यशःकीर्ति नाम तथा उच्चगोत्र के अनुभाग का नियम से वेदन करता है । अन्तराय के अनुभाग का वेदन करता है । अनन्तर समय में भजनीय हैं ।
छोड़कर शेष तीन स्थिति का बन्ध उनका देशघाती
संकाय पत्रिका - २
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213) संज्वलन कषाय के कृष्टि रूप से परिणत होने पर
मोहनीय के कौन कौन
विचार ( स्थिति घातादि लक्षण क्रिया विशेष ) होते हैं ? इसी प्रकार ज्ञानावरणादि शेष कर्मों के भी कौन कौन वीचार होते हैं ?
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अनन्तगुणित वृद्धिरूप अनन्तगुणित हानिरूप शेष कर्मों के अनुभाग
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