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कसायपाहुडसुतं
१३९ 60) कौन किस स्थिति में प्रवेशक है ? कौन किस अनुभाग में प्रवेश कराता है ?
इनका सांतर तथा निरन्तरकाल कितने समय प्रमाण जानना चाहिए ? 61) विवक्षित समय से अनन्तरवर्ती समय में कौन जीव बहुत की अर्थात् अधिक से
अधिकतर कर्मों की, और कौन जीव स्तोक से स्तोकतर कर्मों की उदीरणा करता है ? प्रतिसमय उदीरणा करता हुआ यह जीव कितने समय तक
निरन्तर उदीरणा करता रहता है ? 62) जो जीव स्थिति, अनुभाग और प्रदेशाग्र में जिसे संक्रमण करता है, जिसे
बाँधता है, जिसकी उदीरणा करता है, वह द्रव्य किससे अधिक होता है (और
किससे कम होता है ?)। 63) किस कषाय में एक जीव का उपयोग कितने काल तक होता है ? कौन उप
योग काल किससे अधिक है और कौन जीव किस कषाय में निरन्तर एक
सदृश उपयोग से उपयुक्त रहता है ? 64) एक भव के ग्रहण-काल में और एक कषाय में कितने उपयोग होते हैं, तथा
एक उपयोग तथा एक कषाय में कितने भव होते हैं ? 65) किस कषाय में उपयोग सम्बन्धी वर्गणाएँ कितनी होती हैं ? किस गति में
कितनी वर्गणाएँ होती हैं ? 66) एक अनुभाग में और एक कषाय में एक काल की अपेक्षा कौन सी गति
सदृश रूप से उपयुक्त होती है ? कौन सी गति विसदृश रूप से उपयुक्त होती है ? सदृश कषाय-उपयोग वर्गणाओं में कितने जीव उपयुक्त हैं, तथा चारों कषायों से उपयुक्त सर्वजीवों का कौन सा भाग एक-एक कषाय में उपयुक्त है ? किस किस कषाय से उपयुक्त जीव कौन-कौन सी कषायों से उपयुक्त जीवराशि के साथ गुणाकार और भागहार की अपेक्षा हीन अथवा अधिक होते हैं ? जो जो जीव वर्तमान समय में जिस जिस कषाय में उपयुक्त पाये जाते हैं, वे क्या अतीत काल में उसी कषाय के उपयोग से उपयुक्त थे अथवा क्या वे आगामी काल में उसी कषाय रूप उपयोग से उपयुक्त होंगे? इसी प्रकार सर्वत्र मार्गणाओं में जानना चाहिए ।
संकाय-पत्रिका-२
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