________________
१४०
श्रमणविद्या
69 ) कितनी उपयोग वर्गणाओं के द्वारा कौन सा स्थान अविरहित और कौन विरहित पाया जाता है ? प्रथम समय में उपयुक्त जीवों के द्वारा और इसी प्रकार अन्तिम समय में उपयुक्त जीवों के द्वारा स्थानों को जानना चाहिए ।
70) क्रोध चार प्रकार का कहा गया है। मान भी चार प्रकार का होता है । माया चार प्रकार की कही गयी है और लोभ भी चार प्रकार का है ।
71) क्रोध चार प्रकार का है-नगराजिसदृश - पर्वत की रेखा के समान, पृथिवी - राजिसदृश - पृथिवी की रेखा के समान, बालुकाराजिसदृश - धूल की रेखा के समान, और उदकराजिसदृश - जल की रेखा के समान । मान के भी चार भेद हैं- शैलघन (शिला स्तम्भ) समान, अस्थिसमान, दारु (लकड़ी) समान तथा लता के समान ।
72)
73) लोभ भी चार प्रकार का कहा गया है— कृमिराग के रंग समान, अक्षमल (गाड़ी का गन) के समान, पांशुलेप ( धूलि ) के समान तथा हरिद्रा (हल्दी) से रंगे वस्त्र के समान ।
74)
75)
माया भी चार प्रकार की कही गई है - बांस की जड़ के समान, मेंढे के सींग के सदृश, गोमूत्र के समान तथा अवलेखनी (दातौन या जीभी) के समान ।
76)
इन अनंतर-निर्दिष्ट चारों कषायों सम्बन्धी सोलहों स्थानों में स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों की अपेक्षा कौन स्थान किससे अधिक होता है ( अथवा कौन स्थान किससे हीन होता है ) ?
लता समान मान में उत्कृष्ट वर्गणा ( अन्तिम स्पर्धक की अन्तिम वर्गणा) जघन्यवर्गणा से ( प्रथम स्पर्धक की प्रथम वर्गणा से) प्रदेशों की अपेक्षा नियम
अनन्तगुणी हीन है । ( किन्तु अनुभाग की अपेक्षा जघन्य वर्गणा से उत्कृष्ट वर्गणा निश्चय से अनन्तगुणी अधिक जानना चाहिए ।)
लता समान मान से दारु समान मान प्रदेशों की अपेक्षा नियम से अनन्तगुणित हीन है । इसी क्रम से शेष अर्थात् दारु समान मान से अस्थि समान मान और अस्थि समान मान से शैल समान मान नियम से अनन्तगुणित होन है |
77)
लता समान मान से शेष स्थानीय मान अनुभागाग्र ( अनुभाग समुदाय) और वर्गणाग्र ( वर्गणा समूह ) की अपेक्षा क्रमशः नियम से अनन्तगुणित अधिक होते हैं ।
संकाय पत्रिका - २
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org