Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 161
________________ १४२ श्रविद्य 91 ) दर्शनमोह के उपशामक का परिणाम किस प्रकार का होता है, किस योग, कषाय और उपयोग में वर्तमान, किस लेश्या और वेदयुक्त जीव दर्शनमोह का उपशामक होता है ? 92 ) दर्शनमोह का उपशम करनेवाले के कौन-कौन कर्म पूर्वबद्ध हैं तथा वर्तमान में कौन-कौन कर्मों को बांधता है ? कौन कौन प्रकृतियाँ उदयावली में प्रवेश करती हैं तथा कौन-कौन प्रकृतियों का यह प्रवेशक है, (अर्थात् किन-किन प्रकृतियों की यह उदीरणा करता है ?) 93 ) दर्शनमोह के उपशम के पूर्व बन्ध अथवा उदय की अपेक्षा कौन-कौन से कर्माश क्षीण होते हैं ? कहाँ पर अन्तर को करता है ? कहाँ पर किन किन कर्मों का उपशामक होता है ? 94 ) दर्शनमोह का उपशामक किस स्थिति तथा अनुभाग सहित किन-किन कर्मों का अपवर्तन करके किस स्थान को प्राप्त करता है और शेष कर्म किस स्थिति और अनुभाग को प्राप्त होते हैं ? 95 ) दर्शनमोह का उपशम करनेवाला जीव चारों ही गतियों में जानना चाहिए । वह नियम से पञ्चेन्द्रिय, संज्ञी और पर्याप्तक होता है । 96) सभी नरकों में, भवनवासियों, द्वीप समुद्रों, गुह्यों (व्यंतरों) ज्योतिषियों, मानिकों, आभियोग्यों और अनभियोग्यों में दर्शनमोह का उपशम होता है, ऐसा जानना चाहिए । 97 ) दर्शनमोह के उपशामक सर्वजीव निर्व्याघात तथा निरासान होते हैं । दर्शनमोह के उपशान्त होने पर सासादन भाव भजनीय है, किन्तु क्षीण होने पर निरासान ही रहता है | साकारोपयोग स्थित जीव ही दर्शनमोह के उपशमन का किन्तु उसका निष्ठापक तथा मध्यम अवस्था वाला जीव आदि योगों में से किसी एक योग तथा तेजोलेश्या के जीव दर्शनमोह का उपशमन करता है । उपशामक के मिथ्यात्व वेदनीय कर्म का उदय जानना चाहिए। किन्तु उपशान्त अवस्था के विनाश होने पर उस मिथ्यात्व का उदय भजितव्य है । 100) दर्शनमोह के तीनों (मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व प्रकृति) कमश दर्शन मोह की उपशान्त अवस्था में सर्वस्थिति में विशेषों के साथ उपशान्त संकाय पत्रिका - २ 98) 99) Jain Education International For Private & Personal Use Only प्रस्थापक होता है, भजितव्य है । मन जघन्य अंश को प्राप्त www.jainelibrary.org

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