Book Title: Shramanvidya Part 2
Author(s): Gokulchandra Jain
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi

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Page 38
________________ परिचय १८८७ में जे० पी० मिनायेफ J. P. MINAYEFF ने 'सीमा-विवाद-विनिच्छया-कथा' का सम्पादन किया था तथा रोमन लिपि में उसका प्रकाशन पालि टेक्स्ट सोसायटी की पत्रिका में हुआ था। श्री विनायेफ ने यह सम्पादन अपने श्रीलंका प्रवास काल में प्रसिद्ध विद्वान् भदन्त सुभूति उन्नान्स से प्राप्त सिंहली लिपि में कागज पर लिखित एक मात्र प्रति से किया था। उनका अनुमान है कि संभवतया यह वही लघुकृति है जिसका उल्लेख भदन्त धम्मालंकार थेर द्वारा अपनी महत्त्वपूर्ण पुस्तक 'सीमा-नय. दप्पण' के प्राक्कथन में किया गया है। इस कृति में बौद्धविनय के नव इतिहास विषयक कतिपय ऐसे तथ्य उपलब्ध हैं जो पालि साहित्य के अध्येताओं के लिए रोचक सिद्ध होंगे। श्री मिनायेफ ने जो सूचना दी है वह इस प्रकार है "The present edition is made from a single Simhalese MS. on paper, received by me from Subhūti Unnānse some years ago, during my stay in Ceylon. I take this opportunity of thanking the well-known learned priest for much valuable assistance. The little treatise is probably the one refered to by Rev. Dammā. laikara Thera in the preface (p. xx) to his valuable Sima-Naya Dappana. It contains some facts in the modern history of the Buddhist Church which no doubt, will be of intrest to the student of Pāli literature." देवनागरी लिपि में इस प्रस्तुत संस्करण का आधार उक्त रोमन संस्करण है, जिसके लिए सम्पादक एवं प्रकाशकों के प्रति आभार व्यक्त करना मेरा पुनीत कर्तव्य है । 'सीमा-विवाद-विनिच्छया-कथा' के प्रारम्भ तथा अन्त में इसके रचयिता का स्पष्ट उल्लेख है। अन्त में निम्नप्रकार उल्लेख है "इति नेय्यधम्माभिमुनिवरजानकित्तिसिरिधजधम्मसेनापतिमहाथेरेन रचिता सीमाविवादविनिच्छयाकथा।" संकाय पत्रिका-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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