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कसायपाहुडसुतं
क्रम तथा शब्दानुक्रम दिया गया है। प्रस्तावना में ग्रन्थ और ग्रन्थकार से सम्बद्ध महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर संक्षेप में विचार किया गया है।
कसायपाहुड की जयधवला टोका को आधार मानकर परम्परा से जितनी 'सुत्तगाहा' कसायपाहुड का अंग मानी जाती हैं, उन्हें चूर्णि तथा टीका से अलग करके मूल रूप में यहाँ प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत संस्करण में कुल २४५ प्राकृत गाथाएँ दी गयी हैं। इन गाथाओं में से कुछ को टीका में 'सुत्तगाहा' तथा कुछ को 'भासगाहा' कहा गया है। १२ गाथाएँ 'चूलिया' कही गयी हैं। 'चूलिया' की दस गाथाएँ किंचित् पाठ-भेद के साथ पूर्व की गाथाओं में भी आयी हैं।
टीका में जिन्हें भासगाहा कहा गया है, वे सुतगाहा के कथ्य से जुड़ी हुई हैं। स्व० पं० होरालाल शास्त्री ने सुत्तगाहा तथा भासगाहा को मूल ग्रन्थ का अंग माना है । वर्तमान के अध्ययन ग्रन्थों के परिशिष्ट की तरह विषय से सम्बद्ध अवशिष्ट सामग्री को ग्रन्थान्त में 'चूलिया' के नाम से देने की प्राचीन परम्परा रही है। यह अनुसन्धान का विषय है कि इन गाथाओं में से कितनी गाथाएँ मूल कसायपाहुडसुत्त की हैं। कसायपाहुडसुत्तं का परिमाण
___ दूसरी गाथा में पन्द्रह अर्थों में विभक्त १८० गाथाओं का कथन है । इस आधार पर मूल ग्रन्थ का परिमाण १८० गाथा माना जाता रहा है। जयधवला टीका में कहा गया है कि सोलह हजार पद प्रमाण 'पेज्जपाहुड' को गुणधर ने १८० गाथाओं में उपसंहृत किया“पेज्जदोसपाहुडं सोलहपदसहस्सपमाणं होतं असीदिशतगाहाहि उपसंघारिदं ।"५ वीरसेनाचार्य को परम्परा से २३३ गाथाएँ उपलब्ध हुईं। जयधवला में उन्होंने स्वयं यह प्रश्न उठाया है कि जब कसायपाहुड की गाथा संख्या २३३ थी तो गुणधराचार्य ने ग्रन्थ के आरम्भ में १८० गाथाओं का ही निर्देश क्यों किया । प्रश्न का स्वयं ही समाधान करते हुए लिखा है कि पन्द्रह अधिकारों में विभक्त गाथाओं का निर्देश करने की दृष्टि से गुणधराचार्य ने १८० गाथा संख्या का निर्देश किया है, किन्तु बारह सम्बन्ध गाथाएँ और अद्धापरिमाण का निर्देश करने वाली छह गाथाएँ पन्द्रह अधिकारों में से किसी भी अधिकार से बद्ध नहीं, अतः उनको छोड़ दिया गया है। २३३ गाथाओं की संगति निम्न प्रकार बैठायी जाती है
५. कसा० पा., भाग १, पृ० ८७ । ६. कसा० पा० भाग १, पृ० १८२, १८३ ।
संकाय-पत्रिका-२
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