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कसायपाहुडसुत्त 23) कितनी प्रकृतियों को बाँधता है ? कितनी स्थिति, अनुभाग एवं जघन्य और
उत्कृष्ट परिणाम सहित कर्म प्रदेशों को बाँधता है ? कितनी प्रकृतियों का संक्रमण करता है, कितनी स्थिति और अनुभाग का संक्रमण करता है तथा
कितने गुण-हीन या गुणविशिष्ट जघन्य-उत्कृष्ट प्रदेशों का संक्रमण करता है ? 24- संक्रम की उपक्रम विधि पाँच प्रकार की है, निक्षेप चार प्रकार का है। नय 25) विधि प्रकृत है और प्रकृत में निर्गम भी आठ प्रकार का है। प्रकृति संक्रम
दो प्रकार का है-एकैक प्रकृति संक्रम अर्थात् एक एक प्रकृति में संक्रम और प्रकृतिस्थानसंक्रम अर्थात् प्रकृति में संक्रम विधि | संक्रम में प्रतिग्रह विधि
होती है और वह उत्तम-उत्कृष्ट तथा जघन्य भेद सहित है। 26) संक्रम के दो भेद हैं-प्रकृति संक्रम, प्रकृतिस्थान संक्रम । असंक्रम भी दो
प्रकार का है-१. प्रकृति असंक्रम और २. प्रकृतिस्थान असंक्रम । इसी प्रकार अप्रतिग्रहविधि दो प्रकार की होती है-प्रकृति अप्रतिग्रह और प्रकृतिस्थान
अप्रतिग्रह । इस तरह निर्गम के आठ भेद होते हैं। __ अट्ठाईस, चौबीस, सत्तरह, सोलह और पन्द्रह इन पाँचों प्रकृतिक स्थानों को
छोड़कर शेष तेईस स्थानों का संक्रम होता है । 28) सोलह, बारह, आठ, बीस और तीन को लेकर एक-एक अधिक बीस अर्थात्
तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिरूप स्थानों
को छोड़कर शेष अठारह प्रतिग्रह स्थान होते हैं। 29) बाईस, पन्द्रह, एकादश और उन्नीस प्रकृतिक चार प्रतिग्रह स्थानों में ही
छब्बीस और सत्ताईस-प्रकृतिक स्थानों का नियम से संक्रम होता है। 30) सत्तरह एवं इक्कीस प्रकृतिक दो प्रतिग्रह स्थानों में पच्चीस प्रकृतिक स्थान का
नियम से संक्रमण होता है। यह पच्चीस-प्रकृतिक संक्रम स्थान नियम से चारों गतिओं में होता है तथा दृष्टिगत अर्थात् दृष्टि पद है अन्त में जिनके, ऐसे मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यमिथ्यादृष्टि, इन तीनों ही
गुणस्थानों में वह पच्चीस प्रकृतिक संक्रम स्थान नियम से पाया जाता है। 31) तेईस-प्रकृतिक स्थान का संक्रम बाईस, पन्द्रह, सत्तरह, ग्यारह और उन्नीस
प्रकृतिक इन पाँच प्रतिग्रह स्थानों में होता है। यह स्थान संज्ञी पंचेन्द्रियों में ही होता है।
संकाय-पत्रिका-२
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