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भ्रमण विद्या-२
अन्त में दी गयी ग्रन्थ प्रशस्ति में इसके रचना काल का भी स्पष्ट उल्लेख किया. गया है।
ग्रन्थ में अट्ठकथा की कई टीकाओं का उल्लेख प्राप्त होता है । सिंहलद्वीप निवासी भिक्षुओं के लिए सीमाविवादविनिश्चय का स्पष्ट तथा रोचक वर्णन इस लघुकृति में किया गया है।
उपर्युक्त तथ्यों से इस कृति का महत्त्व प्रमाणित होता है। आशा है प्रस्तुत देवनागरी संस्करण पालि साहित्य के अध्येताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। कालान्तर में इसका स्वतन्त्र रूप से सुसम्पादित संस्करण प्रकाशित होना अपेक्षित है, जिसमें ग्रन्थ और ग्रन्थकार के साथ ही इसकी विषयवस्तु पर भी विस्तार से विचार किया जाये ।
-ब्रह्मदेव नारायण शर्मा
संकाय पत्रिका-२
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