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नमस्कार सिद्धोंको दुसरा भगवान वीरप्रभुकों तीसरा · अपना धर्माचार्य अभ्याडको दे'के अठारा पापस्थान और चार प्रकारके आहारका प्रत्याख्यान कर पादुगमन संस्थारा करा जो कि यह शरीर इप्टकांत था उन्होंके श्वासोश्वासको बोसिराते हुवे । वह बहुतसे भक्त अनसन कर अंतिम आलोचना कर समाधिसे काल कर पंचवा देवलोकमें दश सागरोपमकि स्थितिमें देवपणे उत्पन्न हू । परमवके आराधी हवे।
(प्रश्न) हे मगवान । बहुतसे लोक कहते है कि अम्बड परिवर्जिक सो-सो घरोंमें पारण करता है यह केसे है।
(उ०) हे गौतम । यह बात सची है । मैं भी एसा ही कहता हूं। - (प्रश्न) हे भगवान । यह बात केसे है कि सो- सो घर पारण करे।
(उ०) हे गौतम-अम्बड ५० प्रकृतिका भद्रीक विनयवान है । छट छट पारणा और तपश्चर्यमें आतापना लेतों एक रोन शुभाध्यवशाय प्रसस्थ लेश्या होनेसे कर्मोंका क्षोपशम होते हि अम्बड को वीर्यलब्धि, वेक्रियलब्धि अवधिज्ञानलब्धि, प्राप्ति हुई थी उन्ही लब्धिके प्रभाव विम्होंसेसौ-सौ घरमें पारणा करते है ।
(प्र) हे भगवान् । अम्बड श्रावक आपके पास दीक्षा लेगा। (उ) हे गौतम ! अम्बड मेरे पासे दीक्षा तो नही लेगा।
हे गौतम यह अम्बड परिवार्नक श्रावक है इन्होंने जाना हैं जीवाजीव पुन्य पाप आश्रव संवर बन्ध निर्जरा मोक्षत था अधिकरणादि क्रियावोंका ज्ञाता है। सुत्रार्थकों ग्रहन किया है निग्रंथके