Book Title: Shatrunjay Mahatirthoddhar Prabandh Author(s): Jinvijay Publisher: Jain Atmanand Sabha View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपोद्घात mmswwwmammam mvasanaww. यह पर्वत, बम्बई ईलाखे के काठियावाड प्रदेश के गोहेलवाड प्रांत में, पालीताणा नामक एक छोटीसी देशी रियासत की राजधानी के पास है । इस का स्थान, भूगोल में, २१ अंश, ३१ कला, १० विकला उत्तर अक्षांश और ७१ अंश, ५३ कला, २० विकला पूर्व देशान्तर, हैं । पालीताणा एक कस्बा है जिस में सन् १८९१ * की मनुष्य गणना के समय १०४४२ मनुष्य बसते थे; जिन में ६५८६ हिन्दू, १९५७ जैन १८७८ मुसलमान २० कृस्तान और १ पारसी था । कस्बे में राजकीय कुछ मकानों को छोड कर शेष सब जितने बड़े बड़े मकान हैं वे सब जैनसमाज के हैं। शहर में सब मिला कर कोई ४० के लग भग तो यात्रियों के ठहरने की धर्मशालायें हैं जिनमें लाखो यात्री आनंद पूर्वक ठहर सकते हैं । इन धर्मशालाओं में से कितनी ही तो लाखों रुपये की लागत की है और देखने में बड़े बड़े राजमहालयों सरीखी लगती हैं । विद्यालय, पुस्तकालय, औषधालय, आश्रम, उपाश्रय और मंदिर आदि और भी अनेक जैन संस्थायें शहर में बनी हुई है जिन के कारण यह छोटासा स्थान भी एक रमणीय शहर लगता है । यात्रियों के सतत आवागमन के कारण सदा ही एक मेला सा बना रहता है । जैनसमाज अपने धार्मिक कार्यों में कितना धन व्यय करती है यह जिसे जानना हों उसे एक सप्ताह इस शहर में बिताना चाहिए जिससे जैन लोकों की उदारता का ठीक ठीक खयाल आ जायगा । यहां पर प्रतिवर्ष न जाने कितने ही लाख रुपये, धर्मनिमित्त खर्च होते होंगे। ___पालीताणा शहर से भील डेढ मील के फासले पर, पश्चिम की तरफ सुप्रसिद्ध शत्रुजय नामक पर्वत है । शहर से पर्वत की उपत्यका तक * सन् १९११ की मनुष्य-गणना के संख्यांक न मिलने के कारण यहां पर १८९१ के सन् के दिये हैं। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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