Book Title: Sambodhi 1978 Vol 07
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 34
________________ V.M. Kulkarni अहिसारणठ-पत्थिए चिर-गमणुव्वाअ-णीसहाण समअणं ।। वीसमिउं पढम-गअंण देइ जुवईण सुरअ-तुरिअं हिअ । अभिसारणार्थ-प्रस्थिते चिर-गमन-खिन्न-निःसहामा समदनम् । विश्रमतुं प्रथम-गतं न ददाति युवतीनां सुरत-श्वरितं हृदयम् ॥ (54-55) Priyajanāhvānāya sakhyāpti-sampresanam duti-visarjanam yatha - Nivasasi dukka-sahāā...... (Vol. IV p. 1200) (1) णिवससि दुक्ख-सहाआ मह हिअए सो पिओ तहिं चेअ। सहि सुणह दो वि तुम्हे परमत्थं कीस संदिसिमो ।। [निवससि दुःख-सहाया मम हृदये स प्रियस्तत्रैव । सखि शृणुत द्वावपि युवां परमार्थ कस्मात् संदिशामः ॥] (ii) अहि समागमाओ वि पिअअमसंदेसिआहि दुईहि । सोक्खं बहुणंदअरा सीसंता देति संदेसा ॥ [अधिकं समागमादपि प्रियतम-संदिष्टाभिर्दूतीभिः । सौख्यं बहु-नन्द-करा कथ्यमाना ददति संदेशाः ॥] (56-57) Nimitta-visesāt priyānam gamane svayam vā tatra gacched iti svayam vā gamanam yathā - (i) Vicchindijjai dhiram .. .. .. (Vol. IV p. 1200) विञ्छिदिज्जइ धीरं दारगआ पडिवहं ण णिज्जइ दिट्ठी । . गम्मइ दहअम्मि गए पिआण गअ-दूइ-मग्गउ दइभ-वसहिं ॥ [विच्छिद्यते धैर्य द्वारगता प्रतिपथं न नीयते दृष्टिः । गम्यते दयिते गते प्रियाणां गत-दूती-मार्गतः दयितवसतिम् ॥ (ii) Padhamapahā .. .. .. .(Vol. IV p. 1200) For this verse vide No. 16 supra. (58-60) Prāptasyabhyutthānādi-pratipattirāgatopacārah | Yatha - Jania-harisana .. .. .. (Vol. IV p. 1200) (i) जणिअ-हरिसाण तक्खण-हिअआपडि पि पिअअमन्भुट्ठाण । अंगेहि कामिणीणं संभावे मआलसे हिं ण चअइ ॥ बिनित-हर्षाणां तत्क्षण-हृदयापतितम प प्रियतमाभ्युत्थानम् । अगः कामिनीनां संभावयितुं मदालसने शक्यते ॥1 m कामिणी-जणस्स सहसा पिअ-दसण-वित्थरंत-हरिस-विमुहिआ । दिअसगुणिआ वि हिअए ण होंति पडिवत्ति-भर-सहा उल्लावा ॥ [कामिनी-जनस्य सहसा प्रिय-दर्शन-विस्तीर्यमाण-हर्ष-विमुखिताः (विमुग्धा) वा । दिवस-गुणिता अपि हृदये न भवन्ति प्रतिपत्ति-भर-सहा उल्लापाः ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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