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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
व्यवस्था है, पर सोच! यह तो आपके हाथ में है। गंदी सोच को अच्छी सोच में बदलना, सोच की बदसूरती को खूबसूरती में बदलना आपके हाथ में है। भला जो चीज हमारे हाथ में है, उसे हम पूरा क्यों न करें ? सोच को बदलने के लिए हम अपनी बुद्धि का, समझ का, विवेक का उपयोग करें। बुरी और दूषित सोच से, विचार से स्वयं को ही वैसे ही ऊपर कर लें जैसे कमल का फूल जल से अथवा दलदल से ऊपर उठता है। ____ आप मंदिर जाते हैं, अच्छी बात है। मस्जिद में इबादत करते हैं तो सौभाग्य है आपका। चर्च या गुरुद्वारे में अरदास करते हैं तो आपकी सद्भावना है, पर मैं यह सच अवश्य उजागर करूँगा कि जीवन के मंदिर और गुरुद्वारे की पहली सीढ़ी, पहला सोपान तो सकारात्मक सोच ही है।
हम समझें कि व्यक्ति की सोच कैसे विकसित होती है ? व्यक्ति की सोच और विचारधारा विभिन्न तत्वों से प्रभावित होती है। पहली चीज है, 'व्यक्ति की शिक्षा।' व्यक्ति जिस स्तर की शिक्षा प्राप्त करता है, उसकी सोच भी उतनी ही विकसित होगी। शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यवसाय या आजीविका तक ही सीमित नहीं है। उच्च शिक्षा विचारों, संस्कारों को भी पोषित करती है। हमारे यहाँ जो साक्षरता का अभियान चल रहा है, वह स्वागत-योग्य है, लेकिन साक्षरता से भी जरूरी शिक्षा का स्तरीय होना है। अगर हम शिक्षा के उच्च स्तर, शिक्षा के अनुशासन, शिक्षा और व्यावहारिक जीवन की व्यवस्था के साथ तालमेल स्थापित कर पाते तो निश्चय ही कोई निरक्षर न होता और न ही सोच नकारात्मक और दूषित होती। शायद तब हमें आतंक और उग्रवाद के साये तले न रहना पड़ता।
आतंकवाद, उग्रवाद, भ्रष्टाचार और अनैतिकता आदि जो सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याएँ हैं, मैं समझता हूँ कि इन सबके पीछे नकारात्मक सोच ही हावी रही है। नकारात्मक और स्वार्थपूर्ण सोच ही मनुष्य को गलत काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। अशिक्षा आतंकवाद को बढ़ावा देती है और स्वार्थान्धता भ्रष्टाचार को।
हर व्यक्ति को शिक्षित होना चाहिए, यह सत्य है, लेकिन यदि उसने
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