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स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा
मैं इस घटना से प्रेरित और प्रभावित हुआ। मेरे जीवन का शास्त्र ऐसी ही घटनाएँ होती हैं जिनमें जीवन के रहस्य छुपे रहते हैं। मैं मन के उस घेरे के प्रति सतत जागरूक रहता हूँ जहाँ से बाहर आने के लिए पुरुषार्थ करते रहना है। कई बार सोचता हूँ कि मौन ही रख लूँ, क्या होगा इतना अधिक बोलने से क्योंकि जब तक व्यक्ति को स्वयं को ही अहसास न हो कि वह अपने ही घेरे में घिरा हुआ है, तब तक वह बाहर निकलने का मार्ग न खोजेगा। अगर ये घेरे टूट सकें तो कहने-बोलने - बताने का कोई अर्थ है । संन्यास लेना तो आसान होता है लेकिन विचारों के, विकारों के, कषायों के घेरे से निकलना बहुत मुश्किल होता है।
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आत्मबोध और ज्ञान वहीं है जहाँ आदमी घेरे से बाहर निकले। भगवान ने चेतना का यही विज्ञान दिया कि व्यक्ति जिस घेरे में उलझा हुआ है वही लेश्या है। लेश्या पारिभाषिक शब्द है । लेश्या का अर्थ यही है कि व्यक्ति जिससे घिर जाय। व्यक्ति शुभ धाराओं से भी घिर सकता है और अशुभ धाराओं से भी। दो दिन पूर्व एक महानुभाव मुझसे कह रहे थे कि उन्हें तीव्र ज्वर था। उनमें उठने-बैठने की भी ताकत न थी, लेकिन जैसे ही सुबह के साढ़े आठ बजे, वे उठे और प्रवचन-सभा में आ पहुँचे। लोग उनसे बात न करें इसलिए वे थोड़ी दूरी पर शान्त भाव से लेट गये। एक घंटे तक वे प्रवचन सुनते रहे। उन्हें अपनी पीड़ा का अहसास जाता रहा और जब वे उठे तो उन्होंने पाया कि उन्हें ज्वर नहीं था अपितु उनके मन में, शरीर में शांति थी । यह शुभ धारा है। यह शुभ भाव से घिरना हुआ। घेरे तो घेरे ही होते हैं, चाहे शुभ हों या अशुभ। व्यक्ति का मन कैसे काम करता है, इसे समझें ।
छः पथिक किसी जंगल से गुजर रहे थे । वे चलते रहे। भूख-प्यास से पीड़ित होते हुए भी वे चले जा रहे थे। तभी उन्हें फलों से लदा हुआ आम्रवृक्ष दिखाई दिया। एक पथिक बोला, 'देखो, वह आम्रवृक्ष फलों से लदा हुआ है। मैं शीघ्र ही वहाँ पहुँचकर उसे जड़ मूल से काट दूंगा ताकि सारे फल, सारी लकड़ी और टहनियाँ मेरी हो जाएँगी ।' दूसरे पथिक के मन में विचार उठा, 'मैं उस आम्रवृक्ष को तने से कारूँगा । मुझे सारे फल और लकड़ियाँ तो मिलेंगी
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