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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए लेता है। यदि वह चिन्ता पर विजय पा ले तो तन और मन के हजार रोगों पर विजय पाने में सफल हो जाता है। चिन्ता से घिरे हुए व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता। वह अपने होशो-हवाश खो देता है। उसे विवेक भी नहीं रहता कि वह क्या बोल रहा है और क्या कर रहा है ? उसकी निर्णय-क्षमता भी क्षीण हो जाती है। उसे कभी भूतकाल सताता है तो कभी भविष्य की चिन्ताएँ। ___अज्ञानी लोग सातवीं पीढ़ी की चिन्ता करते हैं। नि:स्पृह लोग कल के भोजन की भी चिन्ता नहीं पालते। जो लोग चिन्ता से लड़ना नहीं जानते, उन्हें अकाल-मृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है।
मुर्दे को भी मिलत है, लकड़ी कपड़ा आग। .
जीवित हो चिन्ता करे, ताको बड़ो अभाग। गरीब को चिन्ता रहती है कि कल रोटी मिलेगी या नहीं, अमीर को चिन्ता रहती है कि मेरे पोते और पड़पोते के लिए नई फैक्ट्री बन पाएगी या नहीं। अशिक्षित को चिन्ता रहती है कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ, अत: मुझे काम मिलेगा या नहीं। शिक्षित को चिन्ता रहती है कि पढ़-लिख जाने के बाद भी नौकरी न मिली तो क्या होगा ? खाली बैठा आदमी ये ही सब सोचेगा। पुरुषार्थ करना तुम्हारा काम है, फल की आकांक्षा करना नहीं। तुम श्रम करो, कर्मयोग करो तो तुम्हारा बेहतर कर्म स्वत: ही तुम्हें शुभ परिणाम देगा। चिन्ता करने से तो तुम्हारी ऊर्जा और उमंग में घुन लग जाएगी। मस्त रहने की आदत डालो। भले ही आग लगे बस्ती में, पर हम तो रहेंगे मस्ती में। हम चिन्ता क्यों करें ? हमारी चिन्ता तो वह करेगा जिसने हमें पैदा किया है। कृपया स्वयं को चिन्ता में डालकर अपने मन को दुःखी मत करो। अपनी मानसिकता को चिन्ता से मुक्त करो । ‘समझौता गमों से कर लो', दर्द से भी समझौता कर लो और खुशमिजाजी का रास्ता चुन लो। जेब में सदा ऐसा ही सिक्का रखो जिसके दोनों ओर खुशी ही खुशी हो। चित पड़े तो भी खुश और पुट हुए तो भी खुश!
चौथी लेश्या है - तेजोलेश्या। कृष्ण, नील और कपोत ये तीन अशुभ लेश्याएँ हैं और तेजस्, पद्म, शुक्ल - ये तीन शुभ लेश्याएँ हैं। तेजोलेश्या का
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