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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
लुत्फ़ उठाइये। सागर में तैरती हुई मछलियों को खाने के बजाय उन्हें कलाबाजी खाते हुए तैरने का दृश्य देखिए । वे भी आपसे प्यार की, जीवन की और अभय की अपेक्षा रखती हैं। मानवता को चाहिए कि कत्ल करने के बजाय, क्रूरता दिखाने की बजाय अपनी विचारधारा में निर्मलता लाने का प्रयास करे। औरों की गलतियों के प्रति क्षमा और करुणा की भावना रखना, औरों के प्रति सहयोग और समानता की प्रेम भरी दृष्टि रखना कृष्ण लेश्या पर विजय प्राप्त करने का आधार - सूत्र है ।
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इसके बाद है नील लेश्या । नील लेश्या वाले व्यक्ति का 'ऑटो' नीले रंग का होता है। नील लेश्या का प्रधान लक्षण है- लोलुपता, विषयों के प्रति लोलुपता । उसमें धन, पत्नी, जमीन सभी के प्रति लोलुपता भरी रहती है। हम देखें और पहचानें कि हमारे भीतर कहीं लोलुपता तो नहीं है। गरीब व्यक्ति धन पाने के लिए मेहनत करता है तो उचित है लेकिन अमीर आदमी भी केवल पैसा-पैसा कर रहा है तो जान लीजिए कि वह नील लेश्या से घिरा है । व्यक्ति ने न जाने स्वयं की जीवन-शैली कैसी बना ली है कि सुबह से लेकर रात तक उसका पैसा-पैसा, धन्धा -धन्धा जारी है। माना कि जीवन जीने के लिए, सुखसाधन के लिए धन जरूरी है, पर इतना भी धंधे में क्या लगे रहना कि तुम अन्य किसी भी कर्तव्य के प्रति ध्यान ही न दे पाओ । आखिर तुम्हारे माता-पिता हैं, पत्नी, बच्चे भी हैं, धर्म और समाज भी हैं, उनके प्रति भी आपके दायित्व बनते हैं, उन्हें भी आपकी जरूरत है । जीवन को कुछ ऐसी व्यवस्था दीजिए कि जीवन लोलुपता नहीं अपितु दायित्वों का पुरुषार्थ बने ।
जब मैं लोलुपता की बात कर रहा हूँ तो ध्यान रखें कि विषयों की लोलुपता भी लोलुपता है । जिह्वा का इतना अधिक उपयोग मत करो कि दिनभर खाते-पीते ही रहें। भोजन अवश्य किया जाए, पर संयमित | बोलो, पर इतना भी नहीं कि जबान दर्जी की कैंची बन जाए। देखो, पर दृष्टि - मोह से बचकर। सुनो, पर किसी की निंदा - आलोचना नहीं । इन्द्रियों का संयमित संतुलित सकारात्मक उपयोग होना चाहिए। पतंगा जब दीपक के प्रति मूर्च्छित होता है तभी उसके पास आता है और जलता है। हिरण भी अपने संगीत - प्रेम के कारण
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