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स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा
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कहा जाता है कि जब तैमूरलंग दिल्ली पहुंचा और चांदनी चौक में खड़ा था तो एक बच्चे ने पत्थर उठा कर उस पर फेंक दिया। तैमूरलंग क्रोध से भर गया और अपने सिपाहियों को आज्ञा दी कि यहाँ मार काट मचा दो। पूरा चांदनी चौक हाहाकार कर उठा। एक घंटे के अन्दर पन्द्रह हजार से भी अधिक लोग कत्ल कर दिये गये। वहीं दूसरी ओर राजा रणजीतसिंह चले जा रहे थे कि एक पत्थर आकर उन्हें लगा। राजा के सिपाहियों ने उस व्यक्ति को पकड़ लिया जिसने पत्थर फेंका था। दरबार में उसकी पेशी हुई। वह तो एक बालक था ! राजा ने पूछा, 'तुमने पत्थर क्यों मारा ?' उसने कहा, 'मैं तो आम के वृक्ष पर फल तोड़ने के लिए पत्थर मार रहा था। आपका उधर से निकलना हुआ और वह पत्थर आपको लग गया।' राजा रणजीतसिंह ने उस बालक को दंड देने के बजाय अपने गले से हार निकाला और उसे दे दिया। उन्होंने कहा, 'जब पेड़ को पत्थर मारो तो वह फल देता है तो क्या रणजीतसिंह पत्थर मारने वाले को दंड देगा?'
चंगेज खान जब भारत आया तो उसके पास बहुत-सा सैन्य साजोसामान था। वह ऊटी की पहाड़ियों से अपने सैन्य-दल के साथ गुजर रहा था। जब वह कुनूर, नीलगिरी की घाटियों से गुजर रहा था तो एक हाथी का पैर फिसल गया और वह लुढ़कता हुआ खाइयों में जा गिरा। लेकिन उसकी चिंघाड़ इतनी भयंकर थी कि पूरा इलाका दहल गया। चंगेज खाँ ने पूछा, 'यह आवाज किसकी है ?' बताया गया कि हाथी खाई में जा गिरा है और वही चिंघाड़ रहा है। 'अरे, यह तो मेरे खून को जगाने जैसा हो गया।' चंगेज खाँ बोला, 'अरे, तुम एक हाथी और गिराओ।' इतिहास गवाह है कि एक-एक कर सौ हाथी खाई में धकेल दिये गये उनके चीत्कार की, चिंघाड़ की आवाज का आनन्द उठाने के लिए। ऐसे लोग कृष्ण लेश्यायुक्त होते हैं। यह मन की निकृष्टतम स्थिति है। क्रूरता ही कृष्ण लेश्या का लक्षण है।
बेहतर होगा कि हम आकाश में उड़ने वाली बुलबुल और कबूतर को गोली का शिकार बनाने के बजाय उनकी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का आनन्द लें। तितलियों का अचार बनाने के बजाय उन्हें फूलों पर मंडराते हुए देखने का
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