Book Title: Sakaratmak Sochie Safalta Paie
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चन्द्रप्रभ सकारात्मक सोचिए सफलता पाइए साधारण सोच से ऊपर उठाकर असाधारण सोच का मालिक बनाने वाली बेहतरीन पुस्तक For Resonal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सृजन में जुटे हाथ For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइये सोच प्रकृति का महानतम पुरस्कार है, पर प्रश्न है कैसे सोचें कि सोच स्वयं शांति, समृद्धि और विकास का आधार बन जाए। स्वस्थ सोच और सफल जीवन का द्वार खोलती पुस्तक श्री चन्द्रप्रभ For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइए श्री चन्द्रप्रभ प्रकाशन वर्ष : अगस्त, 2012 प्रकाशक : श्री जितयशा फाउंडेशन बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम. आई. रोड, जयपुर (राज.) आशीष : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी म. मुद्रक : बबबू ऑफसेट, जोधपुर मूल्य : 30/ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुरूआत सकारात्मक सोच जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। व्यक्ति की सोच उसके रोजाना के क्रिया-कलाप, आचार-व्यवहार को सीधे प्रभावित करती है। सकारात्मक सोचने की शुरुआत मात्र आगे बढ़ने की दिशा में रखा गया ठोस कदम है। सकारात्मक सोच मनुष्य का मित्र है। जीवन के इस अमूल्य उपहार का लाभ क्यों न लिया जाए... इस सफलता के सागर की लहरों में क्यों न उतरा जाए। केवल सोचकर किनारे खड़े रहने वालों ने कभी सात समंदर पार जाकर अनुभवों की दुनिया नहीं देखी... आइये हम आपको ले चलते हैं एक ऐसी यात्रा पर जहाँ सिर्फ सफलता है, सिर्फ सफलता, और कुछ भी नहीं। प्रश्न उठ सकता है, क्या अकेले ही होगी यह यात्रा ? हाँ, प्रत्येक को अपनी यात्रा की शुरुआत अकेले ही करनी पड़ती है, परन्तु यहाँ उस यात्रा में एक ‘प्रकाश-दीप' निरन्तर साथ चलेगा। यह रोशनी का पुंज है-महान् चिन्तक एवं दार्शनिक संत पूज्य श्री चन्द्रप्रभ ! स्वयं सकारात्मक सोच के मालिक श्री For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चन्द्रप्रभ ने सोच और सफलता को अनुभवों की आँच में तपाकर ऐसी कसौटी पर कसा है कि उनमें विफलता के लिए कोई स्थान ही नहीं रहा। ध्यान-योगचिन्तन के स्वामी श्री चन्द्रप्रभ ने सकारात्मक सोच के अनगिनत अनुभव पाए हैं और इन अनुभवों को वे प्रदान कर रहे हैं हमारी युवा पीढ़ी को, जिसे तलाश है, सही रास्ते की। धर्म को केवल किताबों तक सीमित न रखकर पूज्यवर ने महलों में रहने वालों तक के लिए नहीं, अपितु झोंपड़ी में आश्रय पाने वालों के लिए भी सरल और सहज बना दिया है। वे कहते हैं - ‘क्या हुआ मुरझा गया जो एक फूल, फूल ये सभी एक-एक कर मुरझा जाएँगे, यह तो प्रकृति का नियम है, नए आयेंगे, पुराने जायेंगे।' तो आप भी अब तक अपने भीतर छिपाकर रखे नकारात्मक विचारों को निकाल बाहर करें, भीतर प्रवेश करने में सकारात्मक भावों को। व्यग्रता से नहीं समग्रता से विचार करते हुए आगे बढ़ें - लक्ष्य की ओर, आत्मविश्वास के साथ। प्रस्तुत पुस्तक पूज्यश्री की जीवन-दृष्टि पर आधारित प्रवचनों का एक सूचीबद्ध रूप है। ‘सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए' मात्र एक पुस्तक नहीं है। इसके प्रत्येक पृष्ठ की प्रत्येक पंक्ति और उसके एक-एक अक्षर करोड़ों के हैं। जिसके भीतर प्यास है, आगे बढ़ने की चाह है, उत्कंठा है, उसके लिए तो यह ऐसा खजाना है जो कौड़ियों में सहज ही उपलब्ध हो रहा है। आइए, शुरू करें यात्रा उस मंजिल की जो सकारात्मक सोच के मील के पत्थरों से होकर गुजरती है। श्रीचरणों में अहोभाव-सहित प्रणाम। - मीरा For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइये स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर जीवन जीने का पहला और आखिरी मंत्र है : सकारात्मक सोच! यह वह दिव्य मंत्र है जो आपकी व्यक्तिगत और पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय तथा समस्त विश्व की समस्याओं को सुलझा सकता है। मानसिक शांति और तनावमुक्ति के लिए सकारात्मक सोच सबसे बेहतरीन कीमिया दवा है । यह सर्वकल्याणकारी महामंत्र है। मैंने इस मंत्र का अनगिनत लोगों पर प्रयोग किया है और चमत्कारी परिणाम प्राप्त किए हैं। यह मंत्र आज तक निष्फल नहीं हुआ है। जीवन में जिन्होंने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किए हैं, उनका प्रमुख कारक तत्त्व सकारात्मक सोच ही रहा है। जीवन में निष्फलता/असफलता का कारण भी सकारात्मक सोच का अभाव ही रहा है। मेरी शांति, संतुष्टि और प्रगति का प्रथम पहलू सकारात्मक सोच ही है। सकारात्मक सोच, धरती पर रहने वाले हर इन्सान का पहला धर्म हो और यही उसके जीवन की आराधना का बीजमंत्र भी। सकारात्मक सोच का स्वामी सदा धार्मिक ही होता है। जीवन For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए में उपस्थित विपरीत वातावरण में भी जो अपने चित्त को अपने जीवन के अनुकूल बना सकता है, स्वयं पर नियंत्रण रखता है और विपरीत धाराओं के बावजूद सार्थक व्यवहार करता है, वही धार्मिक है। सकारात्मक सोच जीवन का पुण्य पथ है और नकारात्मक सोच ही पाप का मार्ग है। सकारात्मक सोच ही धर्म है और नकारात्मक सोच ही विधर्म है । सकारात्मक सोच यानी स्वर्ग दिखाने वाली प्रकाश-रेखा और नकारात्मक सोच यानी नरक की गहरी खाई में उतारने वाली फिसलन- पट्टी । सकारात्मक सोच में जीना स्वर्ग - पथ पर अनुसरण करने के समान है और नकारात्मक पथ का अनुगमन करना खुद को पाप की, नरक की घाटी में धकेलना है। जब धरती पर ऐसा दिव्य मंत्र आविष्कृत हो चुका है तो मनुष्य अपने जीवन में अवसाद, तनाव, घुटन या अन्य मानसिक त्रासदियों से क्यों गुजरे ? जिसने जीवन में सकारात्मक सोच के चिराग को थाम लिया है या इस सोच को जीवन का संबल और मील का पत्थर बना लिया है, मैं कहूँगा कि उसने अपने जीवन की निन्यानवें प्रतिशत समस्याओं को सुलझाने का सामर्थ्य प्राप्त कर लिया है। क्या आप कभी किसी न्यूरोफिजिशियन डॉक्टर से मिले हैं? यदि हाँ, तो वह बताएगा कि मानसिक रोगों का कारण क्या है ? आत्महत्या के पीछे मूलतः कौन - सी सोच रही है ? जवाब होगा- 'नकारात्मक सोच ।' वहीं किसी सफल / श्रेष्ठ व्यक्ति से मिलिए। उससे पूछिए कि तुम्हारी सफलता का राज़ क्या है? वह जो जवाब देगा, उसमें पहला जवाब होगा- 'सकारात्मक सोच' । सकारात्मक सोच यानी फूल तथा नकारात्मक सोच यानी काँटे । सकारात्मक सोच संसार की वह कीमिया है जो काँटों के बीच भी गुलाब के फूल की तरह खिले हुए, महके हुए रहने का जीवन-दर्शन सिखाती है। मानव जाति के लिए संजीवनी का काम करने वाला यह सकारात्मक सोच अन्ततः क्या है? 'What is the positive thinking' ? कुदरत ने मनुष्य को जो सबसे बड़ी क्षमता प्रदान की है वह है सोचने की क्षमता । मनुष्य एक विकसित मस्तिष्क का प्राणी है, इसलिए वह सोच सकता है । सोच सकने के कारण ही वह मनुष्य है। अगर मनुष्य में से उसके सोचने की क्षमता निकाल दी 1 For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए जाय तो वह मनुष्य न रहकर ‘दोपाया' जानवर हो जाएगा। मनुष्य जब अपने जीवन में उदासीनता, निराशा या अकर्मण्यता को अपनाता है तो वह अपनी सोच के प्रति नकारात्मक हो जाता है। शरीर के स्नान से पहले विचारों का स्नान होना चाहिए। पानी उबालकर पीएँ, यह ठीक है, लेकिन किसी के विचारों को प्रासुक (फिल्टर) करके ग्रहण करना उबला पानी पीने से भी श्रेष्ठ होता है। जो तत्त्व दिन-रात सतत जारी रहता है, उसी के प्रति मनुष्य अगर निर्मूल्य भाव अपना बैठे तो उसकी बुद्धिमत्ता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। मनुष्य की सारी शक्ति और सबलता मस्तिष्क में निहित है। शारीरिक दृष्टि से मूल्यांकन करने पर हम पाते हैं कि न तो वह पक्षी की तरह आकाश में उड़ सकता है, न ही बंदर की तरह पेड़ों पर इधर से उधर छलांग लगा सकता है, न ही तितली की तरह पुष्पों पर मँडरा कर मधुपान कर सकता है, न ही उसके पास बाज़ की तरह तीक्ष्ण नजर है, न ही बाघ की तरह नुकीले नाखून हैं, न ही चीते की तरह फुर्तीलापन। मनुष्य में ऐसा है ही क्या जिस पर वह गर्व कर सके? अरे, उसकी छः फुटी काया को तो डेढ़ इंच का बिच्छू भी धूल-धूसरित करने में समर्थ है। मनुष्य शरीर से इतना सबल नहीं है कि उस पर गर्व कर सके। लेकिन फिर भी प्रकृति ने मनुष्य को वह संपदा और शक्ति प्रदान की है जिस पर मनुष्य गर्व और गौरव कर सकता है। वह शक्ति और संपदा है ‘सोचने की क्षमता'। किसी को भी समझने की शक्ति, किसी भी बिन्दु पर विवेकपूर्वक निर्णय करने की शक्ति ही 'सोचने की क्षमता' कहलाती है। __ मनुष्य सोचता है, इसीलिए वह मनुष्य है। मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ। आप सोचते हैं, इसलिए आप हैं। सोचने की क्षमता ही हमें पशुओं से अलग करती है। यह सोचने की ही क्षमता है जिसके बल पर मनुष्य सुपरसॉनिक जेट विमान बना सका। फैक्स, टी.वी. और चन्द्रलोक की यात्रा आदि में मानवीय सोच के ही परिणाम निहित हैं। सोच यदि सकारात्मक हो तो निश्चित ही उसका परिणाम चिन्तन और सृजन है; सोच यदि नकारात्मक हो तो यह मानकर चलें कि उसका परिणाम चिंता और अवमूल्यन है। नकारात्मक सोच के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती। For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए वह तो जंगली घास की तरह खुद ही उग आया करती है। प्रयास की जो जरूरत है, जागरूकता की जो आवश्यकता है, वह सब सकारात्मक सोच के लिए ही है। ध्यान रखो, दुनिया का जो सबसे कम विकसित द्वीप है, वह आपकी टोपी के नीचे है। यदि सोच को श्रेष्ठ और बेहतर, सकारात्मक और रचनात्मक बना लिया जाए तो सोच स्वयं ही इंसान के लिए दुनियां का सबसे बेहतरीन वरदान साबित हो सकता है। मनुष्य अपने सोच-विचार को बदलने में समर्थ है। वह अपने मस्तिष्क का मार्गदर्शन करने और नकारात्मक भावों को निकालने में भी समर्थ है। मनोविज्ञान का यह निष्कर्ष है कि मनुष्य का स्वभाव किसी पशु की तरह तय नहीं होता। अगर वह चाहे तो अपने विचार और सोच को बदलकर अपने जीवन को नए आयाम दे सकता है तथा अपने जीवन में फिर से नई सुबह का प्रारम्भ कर सकता है। व्यक्ति के जीवन में सफलता का मापदंड उसकी सोच, उसका नजरिया, उसका दृष्टिकोण और उसकी जीवन-शैली पर निर्भर करता है। जो व्यक्ति अपने बाहरी सौन्दर्य के प्रति जागरूक है, मैं उससे पूछना चाहूँगा कि क्या वह अपने विचारों के सौन्दर्य के प्रति भी सचेत है ? माना कि शारीरिक सौन्दर्य का प्रभाव होता है, लेकिन किसी की कामयाबी में पिच्चासी प्रतिशत प्रभाव सकारात्मक सोच, शैली और व्यवहार का होता है जबकि शेष पन्द्रह प्रतिशत अन्य बातों का। यह आदमी की नासमझी है कि जिस पर पन्द्रह प्रतिशत ध्यान देना चाहिए, उस पर पिच्चासी प्रतिशत ध्यान देता है और जिस पर पिच्चासी प्रतिशत ध्यान देना चाहिए उस पर वह केवल पन्द्रह प्रतिशत ध्यान दे रहा है। आपके जीवन में अगर निराशा है, तनाव है, चिंता और घुटन है, अव्यवस्था है या लोग आपसे वैर-विरोध और वैमनस्य रखते हैं तो यह स्पष्ट है कि आप अपने जीवन को सकारात्मक, रचनात्मक और गुणात्मक रूप दे पाने में सफल नहीं रहे हैं। जो मनुष्य के हाथ में है, उसे वह क्यों न कर डाले ? माना कि रंग हमारा जैसा भी है, हम उसे बदल नहीं सकते। काला या गोरा रंग प्रकृति का परिणाम है। हम अपनी जाति नहीं बदल सकते। वह जन्म से जुड़ी हुई For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए व्यवस्था है, पर सोच! यह तो आपके हाथ में है। गंदी सोच को अच्छी सोच में बदलना, सोच की बदसूरती को खूबसूरती में बदलना आपके हाथ में है। भला जो चीज हमारे हाथ में है, उसे हम पूरा क्यों न करें ? सोच को बदलने के लिए हम अपनी बुद्धि का, समझ का, विवेक का उपयोग करें। बुरी और दूषित सोच से, विचार से स्वयं को ही वैसे ही ऊपर कर लें जैसे कमल का फूल जल से अथवा दलदल से ऊपर उठता है। ____ आप मंदिर जाते हैं, अच्छी बात है। मस्जिद में इबादत करते हैं तो सौभाग्य है आपका। चर्च या गुरुद्वारे में अरदास करते हैं तो आपकी सद्भावना है, पर मैं यह सच अवश्य उजागर करूँगा कि जीवन के मंदिर और गुरुद्वारे की पहली सीढ़ी, पहला सोपान तो सकारात्मक सोच ही है। हम समझें कि व्यक्ति की सोच कैसे विकसित होती है ? व्यक्ति की सोच और विचारधारा विभिन्न तत्वों से प्रभावित होती है। पहली चीज है, 'व्यक्ति की शिक्षा।' व्यक्ति जिस स्तर की शिक्षा प्राप्त करता है, उसकी सोच भी उतनी ही विकसित होगी। शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यवसाय या आजीविका तक ही सीमित नहीं है। उच्च शिक्षा विचारों, संस्कारों को भी पोषित करती है। हमारे यहाँ जो साक्षरता का अभियान चल रहा है, वह स्वागत-योग्य है, लेकिन साक्षरता से भी जरूरी शिक्षा का स्तरीय होना है। अगर हम शिक्षा के उच्च स्तर, शिक्षा के अनुशासन, शिक्षा और व्यावहारिक जीवन की व्यवस्था के साथ तालमेल स्थापित कर पाते तो निश्चय ही कोई निरक्षर न होता और न ही सोच नकारात्मक और दूषित होती। शायद तब हमें आतंक और उग्रवाद के साये तले न रहना पड़ता। आतंकवाद, उग्रवाद, भ्रष्टाचार और अनैतिकता आदि जो सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याएँ हैं, मैं समझता हूँ कि इन सबके पीछे नकारात्मक सोच ही हावी रही है। नकारात्मक और स्वार्थपूर्ण सोच ही मनुष्य को गलत काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। अशिक्षा आतंकवाद को बढ़ावा देती है और स्वार्थान्धता भ्रष्टाचार को। हर व्यक्ति को शिक्षित होना चाहिए, यह सत्य है, लेकिन यदि उसने For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए स्तरीय शिक्षा पाई है तो वह अपने जीवन में कभी बदी के रास्ते नहीं अपनायेगा। वह गलत राहों पर नहीं चलेगा, वह शराब, तम्बाकू, मांस आदि असेव्य पदार्थों को कदापि ग्रहण न करेगा। इसके विपरीत यदि कोई इन्हें ग्रहण करता है तो मेरी दृष्टि में वह अशिक्षित ही है। तुम कितनी भी शिक्षा प्राप्त क्यों न कर लो, अगर शिक्षा के साथ जीवन के संस्कारों की दीक्षा न हो पाई तो सारी शिक्षा निरर्थक ही रह जाएगी। तुम्हारा स्तर एम.ए. होने से नहीं एम.ए.एन. (मैन, मनुष्य) होने से बढ़ता है। शिक्षा के स्तर के साथ ही व्यक्ति की सोच, उसके विचार, उसकी जीवन-शैली भी ऊँची उठती है। हमारी सोच और मानसिकता को प्रभावित करने वाला दूसरा तत्व है : 'वातावरण।' जिस माहौल या वातावरण में हम रहते हैं, वही हमारी सोच का कारक होता है। बच्चे को जैसा वातावरण मिलेगा, उसका वैसा ही विकास होगा। हर बीज को व्यक्त होने के लिए वांछित परिवेश चाहिए। बच्चा तो गीले प्लास्टर की तरह है। हम उस पर जैसे निशान छोड़ेंगे, उसके भोले मन पर वे वैसे ही अंकित हो जाएगे। अच्छा पिता वह नहीं है जो संतान को जन्म दे, महान् वह भी नहीं है जो अपनी संतति को सम्पत्ति दे। महान् पिता वह है जो अपनी संतान को अच्छे संस्कार दे, उसे बेहतर जीवन जीने का अच्छा वातावरण दे। बच्चों पर निवेश करने के लिए यदि सबसे श्रेष्ठ कोई चीज है तो वह आपका बेशकीमती समय है, संस्कार है। आपके वे विचार हैं जो आप अपने आने वाले भविष्य में अपनी ओर से अपनी संतति की ओर से पुष्पित और पल्लवित करना चाहते हैं। कहा जाता है न कि डाकू के खेमे में अगर तोता रहेगा तो; वह अपने खेमे की तरह आते हुए किसी राहगीर को देखकर कहेगा 'लूटो-लूटो, कोई माल आया है। यदि संत की कुटीर में रहने वाला तोता जब किसी राहगीर को वहाँ से गुजरते हुए देखेगा तो कहेगा, 'राम-राम, स्वागतम् - स्वागतम्, कोई अतिथि आया'। जिस वातावरण में तोता रहेगा, वही सीखेगा। फिर मनुष्य तो विकसित मस्तिष्क का स्वामी है। उसे जैसा माहौल, वातावरण मिलेगा, वह वैसा ही होता जाएगा। For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए 'जीवन में अर्जित होने वाला अनुभव' वह तीसरा तत्त्व है जो मनुष्य की सोच को प्रभावित करता है। जीवन में लगने वाली ठोकरें ही आदमी को जगाती हैं। शायद मृत्यु भी आदमी को नहीं जगा पाती, लेकिन अनुभवों से आदमी सीखता है। इन्हीं से वह जीवन में कुछ बदलता है। लेकिन बार-बार ठोकर खाने पर भी जो नहीं सीखता या नहीं बदलता, वह मूर्ख की श्रेणी में आता है। मूर्ख ही बार-बार गलती को दोहराता है। एक बार गिरकर न सँभले, बार-बार गिरता रहे, यही मनुष्य की नासमझी है। बार-बार के दोहराव से आपकी नासमझी और जीवन के प्रति अजागरूकता नजर आने लगती है। अनुभव आदमी की सोच और विचारधाराओं पर प्रभाव डालता है। हम अनुभवी का सम्मान करते हैं। बाल सफेद हो जाना ही परिपक्वता की निशानी नहीं है। व्यक्ति की सोच, उसकी विचारधारा उसकी शिक्षा और अनुभवों से प्रभावित होती है। हम सही सोच, सही सोहबत और सही अनुभवों का उपयोग करते हुए अपनी सोच को सार्थक दिशा प्रदान कर सकते हैं। ___ मनुष्य जैसा सोचेगा, वैसा ही उसके जीवन में घटित होगा। विचार के अनुसार ही व्यक्तित्व निर्मित होगा। विचार व्यक्तित्व की नींव है और व्यक्तित्व विचारों का ही विस्तार है। कोई भी चीज पहले बीज के रूप में आरोपित होती है, फिर वही बीज बढ़ते-बढ़ते बबूल या कैक्टस का रूप धारण कर लेती है। आदमी जैसा सोचता है, वैसा ही मुँह से अभिव्यक्त होता है, जैसा अभिव्यक्त होता है वैसी ही उसकी गतिविधियाँ होती हैं जैसी गतिविधियाँ होती हैं, वैसा ही चरित्र बनता है, जैसा चरित्र होता है, वैसी ही आदतें बना करती हैं। अगर आदतों और चरित्र को सुधारना है तो व्यक्ति अपनी सोच और विचारधारा को सुधार डाले। ___ हम बाहर दीप सजाएँ यह अच्छी बात है, पर रास्ते में दीप सजे हों और घर के भीतर अंधेरा हो तो बाहर के दीप हास्यास्पद ही हैं। एकमात्र सोच को सुधार कर ही वाणी, व्यवहार, आदत और चरित्र इत्यादि को सुधारा जा सकता है। इसलिए कि जो आज सोच है, जो आज विचार है, वही हमारे स्वप्न बनेंगे। उन्हीं से लक्ष्य बनता है और उन्हीं से पुरुषार्थ प्रेरित और प्रभावित होता है। बुरी For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए सोच और बलिष्ठ शरीर-जरा बताइये कि उसका क्या परिणाम होगा? या तो किसी के दांत टूंटेंगे या किसी की हड्डी-पसलियाँ गोल होंगी। अच्छी सोच, कमजोर शरीर तब भी असंतुलन ही कहलाएगा। जीवन के लिए सदाबहार मंत्र है: अच्छी सोच, अच्छा शरीर, स्वस्थ सोच, स्वस्थ शरीर। ‘सादा जीवन उच्च विचार', सफल जीवन का पहला आध्यात्मिक मंत्र है। गांधीजी ने कभी कहा था, 'बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो'। सम्पूर्ण विश्व में प्रतीक रूप में गांधी जी के तीन बंदर ये संदेश पहुँचाते हैं। मैं भी इन तीन बंदरों को प्रतीकात्मक रूप में धर्म और अध्यात्म के संदेश के लिए स्थापित करना चाहता हूँ। लेकिन इन तीन बंदरों के साथ एक बंदर और जोड़ना चाहूँगा। इसे इन तीनों से पहले भी रखूगा जिसकी एक अँगुली दिमाग पर हो। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो लेकिन उससे भी पहले बुरा मत सोचो। अगर तुम बुरा नहीं सोचोगे तो बुरा नहीं बोल पाओगे। जब बुरा सोचने वाला उपस्थित है तो तुम रस ले-लेकर बुरा सुनोगे। आज तुम्हारे अंदर भगवान का 'वासा' नहीं है। भगवान उस दिन तुम्हारे भीतर आएँगे जिस दिन तुम अपने भीतर बैठे हुए बुरा सोचने वाले शैतान को बाहर निकाल दोगे। तब तुम कह सकोगे, ‘घट-घट में भगवान है।'... अभी तो शैतान ही विराजित जब सोच विपरीत होती है तो परिणाम भी उल्टे आयेंगे। मस्तिष्क में जैसा डालोगे, यह वापस वही देगा। कम्प्यूटर का एक चर्चित सिद्धान्त है ‘गी गो'। कम्प्यूटर चलाने वाले 'गी गो' का अर्थ जानते हैं कि जैसा कम्प्यूटर में ‘फीड' करेंगे, कम्प्यूटर वैसा ही रिजल्ट देगा। Good in good out, wrong in wrong out. अगर सही चीज भीतर डालोगे तो सही परिणाम आएगा और बुरी चीज अंदर डालोगे तो परिणाम भी गलत ही आएगा। आपको लगता है कि आपके जीवन में आपकी सोच-विचार-शैली-शब्द गलत परिणाम दे रहे हैं तो मैं कहूँगा कि 'गी गो' का सिद्धान्त हर व्यक्ति अपने जीवन से जोड़े। अगर आप चाहते हैं कि परिणाम अच्छा निकले तो अच्छी चीजें ही ग्रहण करें। अच्छे परिणामों के लिए अच्छे बीज बोइए। For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए यह प्रकृति ध्वनि और प्रतिध्वनि के सिद्धान्त पर आधारित है। जैसा बिम्ब होगा, वैसा ही प्रतिबिम्ब बनेगा । प्रकृति की व्यवस्था तो ऐसी है कि वह एक वस्तु को कई गुना करके वापस लौटाती है। एक बीज के बदले लाखों फल वापस लौटते हैं। आपके एक क्रोध की प्रतिक्रिया भी कई गुना होकर वापस क्रोध के रूप में आती है । अगर आप एक मधुर गीत गाते हैं या मुस्कान का एक फूल बिखेरते हैं तो वह दस गुना होकर ही लौटेगा। स्वयं के द्वारा सद्व्यवहार करना दूसरों की ओर से सद्व्यवहार पाने का अमृत मार्ग है। किसने आपके साथ क्या किया, यह कोई मायने नहीं रखता। आप अपनी ओर से कैसा व्यवहार और सलूक करते हैं, यह मूल्यवान है । कोई आप पर अँगुली न उठा सके, इस बात का ख्याल रखें। अपनी ओर से इतना शालीन व्यवहार करें कि आपके अधीनस्थ, आपके समकक्ष, आपका परिवार, मित्र और अन्य सभी आप पर गर्व कर सकें। ऐसा अवसर ही क्यों आये कि कोई आपके साथ बदतमीजी करे । अरे, दूसरा बदतमीजी भी तभी करता है जब आप अपनी तमीज छोड़ देते हैं वरना किसे फुर्सत है कि वह जानबूझकर किसी से टकराये ? चूक स्वयं से ही होती है। जीवन को ऐसा बनायें कि जिस रास्ते से गुजरो, वहाँ हजार-हजार हाथ आपके स्वागत-समर्थन में उठ जायें। तुम अपने जीवन को ऊँचा उठाओ। अपने विचार, जीवन शैली, व्यवहार और कर्तव्य को आदर्शमय बनाओ। अभी तो तुम्हें चुनाव लड़कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करनी पड़ती है। अरे, स्वयं को इतना योग्य बनाओ कि समाज तुम्हारे घर आये और कहे कि तुम समाज के लीडर बनो। इसमें तो मजा है, इसमें तुम्हारे जीवन का आदर्श है। लौटकर वही आता है जो आप परोसते हैं । दूसरे के बुरे व्यवहार को स्वीकार ही मत करो । जैसे ही आप उसे स्वीकार करते हैं, वह आपके दिमाग पर हावी हो जाता है और क्रिया की प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है। 9 एक सुन्दर सी मनोवैज्ञानिक घटना है। किसी समय घर में माँ-बेटा झगड़ पड़े। बेटे ने कोई गलती की थी कि माँ ने डाँट दिया। बेटे को माँ के प्रति इतना गुस्सा आ गया कि वह माँ से नाराज हो गया। कहने लगा, 'माँ, तुमने मुझे For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए डाँटा है, मारा है, मैं तुमसे नहीं बोलूंगा। मेरे मन में तुम्हारे लिए घृणा हो गई है, मुझे तुमसे नफरत हो गई है, मैं तुमसे किसी प्रकार की बात न करूँगा।' 'तू मुझसे नफरत करता है, घृणा करता है', कहती हुई माँ बच्चे को पकड़ने के लिए खड़ी हुई। लेकिन बच्चा माँ से छिटककर दौड़ता हुआ जंगल की ओर चला गया। वहाँ पहुँचकर भी उसका क्रोध ठंडा न हुआ। वहाँ भी वह कहने लगा, ‘हाँ-हाँ मैं सचमुच तुमसे नफरत करता हूँ, नफरत करता हूँ, नफरत करता सुनसान जंगल में वह आश्चर्य में पड़ गया जब चारों ओर से यही आवाजें आने लगी कि 'मैं तुमसे नफरत करता हूँ, नफरत करता हूँ, नफरत करता हूँ।' इन आवाजों को सुनकर बच्चा घबराया कि क्या वीरान सुनसान जंगल में भी ऐसे बच्चे रहते हैं जो मुझसे नफरत करते हैं ? उसे पता था कि जंगल में रहने वाले बच्चे तो देवदूत होते हैं, अगर वे ही मुझसे नफरत करने लगे तो क्या होगा ? वह सहमा, घबराया, डरा हुआ वापस घर की तरफ दौड़ पड़ा और आकर माँ के आँचल में छिपकर रोने लगा। माँ ने पूछा, 'बेटा तुझे क्या हुआ, इस तरह क्यों रो रहा है ?' बच्चे ने जंगल में जो कुछ हुआ, माँ को बताया, 'माँ मैं घबरा रहा हूँ। जंगल के बच्चे मुझसे नफरत कर रहे हैं।' माँ ने कहा, 'मैं समझ गई बेटा, क्या हुआ है। तुम डरो नहीं, घबराओ नहीं; अब एक बार फिर जंगल में जाओ और प्यार से मुस्कराते हुए कहो, ‘हाँ मैं तुमसे प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ।' बच्चा जंगल में पहुँचा। वहाँ उसने खुश होते हुए जोर से पुकार कर कहा, 'हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ, प्यार करता हूँ।' आश्चर्य! जंगल में रहने वाले उन अदृश्य बच्चों ने भी वही ध्वनि प्रतिध्वनित की। बच्चे को प्रसन्नता हुई कि वहाँ रहने वाले बच्चे अब उसे प्यार करते हैं। ___ जंगल में कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन अपनी ही आवाज गुंजित होकर लौट रही है। अगर आप चाहते हैं कि आपसे कोई नफरत न करे तो कृपा कर आप भी उससे नफरत न करें। प्यार और सम्मान चाहते हैं तो अपनी ओर से भी सम्मान और प्यार बाँटिये, दीजिये। जैसा डालेंगे, वैसा ही निकलेगा। मानव For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए मस्तिष्क तो बगीचे की तरह है। जैसा बोओगे, वैसा पाओगे। खरपतवारघास-फूस को काँट-छाँटकर निकाल दो। सावधान रहें, कचरा तो सभी डालते हैं पर आपका मस्तिष्क कचरा-पेटी नहीं है कि उसमें जिस-तिस के विचार भरते रहें। बहुत सोच-समझकर किसी के विचार ग्रहण करो। जैसे पानी छानकर पीते हो ऐसे ही विचारों को सजग होकर ग्रहण करो। अगर गलत चीज आरोपित हो गई तो बहुत कड़वे फल प्राप्त होंगे। ऐसे लोगों से बचकर रहें जिनकी संगत आपको दुष्प्रभावित करती हो। प्रकृति के सान्निध्य में रहें, प्रकृति से जुड़कर रहें, अच्छे लोगों से जुड़कर रहें। जब भी सोचें सकारात्मक सोचें और नकारात्मक सोच से बचें। आइये, देखें सकारात्मक सोच क्या है ? एक दफा मैं किसी सरोवर के किनारे बैठा था। उस सरोवर की लहरों को देख रहा था कि अचानक बारिश होने लगी। मैंने देखा कि कमल की पंखुरियों पर पानी गिर रहा है लेकिन जैसे ही पंखुरियों पर पानी गिरता है पंखुरियाँ विनम्रता से, कोमलता से स्वयं को झुका लेती हैं जिसके कारण पानी उन पर टिक नहीं पाता और उसी सरोवर में गिर जाता है। मैंने जाना कि इसे कहते हैं जीवन की सकारात्मकता। जिस परिवार में, जिस घर में, जिस माहौल में वह रहता है वहाँ से कमल की पंखुरियों की तरह ऊपर रहना चाहिए। अगर अन्य लोगों के द्वारा अनुकूल या प्रतिकूल वातावरण उपस्थित भी कर दिया जाय तब भी स्वयं को लचीला बना लिया जाय। इसे ही सकारात्मकता कहते हैं। जहाँ अपने चित्त पर किसी बात को हावी न होने देना और न ही अपनी ओर से किसी तरह की उग्र प्रतिक्रियाएँ करना वरन् अपनी ओर से जो सद्व्यवहार करना है उसमें कमी न आने देना। यही है सकारात्मक रवैया, सकारात्मक सोच। ____ भले ही दुनिया में तीन सौ साठ धर्म हों, लेकिन सत्य तो एक ही है। सत्य को एक मानना और अनेकानेक धर्मों को सत्य का प्रतिबिम्ब माननाजानना ही सकारात्मक सोच है। जब, 'यह मेरा पंथ', 'वह तेरा पंथ' शुरू होता है वहीं नकारात्मक सोच भी शुरू हो जाती है। जब व्यक्ति यह सोचता है कि दुनिया का हर पंथ अच्छा है, दुनिया के हर धर्म और मजहब में अच्छाइयाँ For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए निहित है तो उसे धर्म की अच्छाई नज़र आने लग जाती है। वह उसे ग्रहण करने को उत्सुक हो जाता है। जब व्यक्ति किसी भी धर्म के पास सकारात्मक होकर पहुँचेगा तो वह उसकी अच्छाइयाँ ज़रूर पा सकेगा और जब नकारात्मक रवैया लेकर उसके पास जाएंगे तो बुराइयाँ ही नज़र आएंगे। मुझे तो हर धर्म का पूजाघर एक जैसा ही लगता है । हर इंसान का रक्त लाल ही है फिर वह हिन्दु हो या मुसलमान, ईसाई हो या पारसी ! इसके बावज़ूद सोच और विचार में फ़र्क़ होने के कारण आदमी-आदमी के ख़ून का प्यासा हो जाता है। हमसे तो वे पशुपक्षी अच्छे हैं जो बिना किसी भेदभाव के यत्र-तत्र - सर्वत्र विचरते रहते हैं । उन्हें तो कहीं कोई फर्क नज़र नहीं आता । गुटरगूं करते हुए कबूतर कभी मंदिर के शिखर पर बैठ जाते हैं तो कभी गिरजा - गुरुद्वारे की छत पर । सूरज तो एक ही है, प्रतिबिम्ब अलग-अलग दिखाई दे सकते हैं। जब संसार से सारी नकारात्मक सोच विदा हो जाएगी तब एक ही धर्म होगा - इंसानियत का, मानवता का धर्म । सोचो, सकारात्मक सोचो - सास-बहू के बीच सकारात्मकता हो, एकदूसरे को स्वीकार करने का भाव हो । पिता-पुत्र के मध्य सकारात्मकता हो । पिता से भी गलती हो सकती है, पुत्र से भी । पिता बड़प्पन दिखाये कि पुत्र की गलतियों को माफ़ कर सके और पुत्र इतनी विनम्रता रखे कि पिता के द्वारा उचित - अनुचित शब्दों को धैर्यपूर्वक सुन सके। अपनी माँ को मैंने कभी गुस्सा करते हुए नहीं देखा। हम बचपन में बहुत शैतानी करते थे और मां को जरा भी चैन नहीं लेने देते थे । फिर भी वह हम पर नाराज नहीं होती थी । एक दिन मैंने माँ से पूछा, 'माँ तुम्हें ज़िंदगी में गुस्सा क्यों नहीं आया ? क्या तुम्हें कभी बड़ों ने डाँटा नहीं ? हम बच्चे जो गलती करते हैं उसका तुम्हें क्या अहसास नहीं हुआ ?' माँ ने कहा, 'बेटा, मुझे जीवन भर एक मंत्र याद रहा है और वही मंत्र मैं तुमसे कह देती हूँ। बेटा, जब बड़े लोग मुझे डाँटते तो मैं सोचती ये बड़े लोग हैं। अगर ये मुझे नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा मुझे गुस्सा नहीं आता था क्योंकि बड़ों को अधिकार है छोटों को उनकी गलती का अहसास कराने का और जब For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए छोटों से या बच्चों से गलती हो जाती तब भी गुस्सा नहीं आता था क्योंकि अगर बच्चों से या छोटों से गलती नहीं होगी तो किससे होगी? बस, मुझे तो ऐसा लगता है कि जो छोटे हैं उन्हें माफ कर देना चाहिए। उनकी बात पर क्यों ध्यान दें ?' यह थी मेरी माँ की सकारात्मक सोच। जहाँ दुश्मन को देखकर भी मैत्री-भाव जागृत हो, वहाँ होती है सकारात्मक सोच। राम-रावण के प्रसंग से हम सभी परिचित हैं कि युद्ध में रावण की मृत्यु हो जाने पर जब उसका शव राम के सम्मुख लाया गया तो राम रावण को सम्मान देते हुए खड़े हो गये। खड़े ही नहीं हुए अपितु अपना उत्तरीय भी रावण के शव पर डाल दिया। मुझे राम के जीवन के अनेकानेक प्रसंगों में यह प्रसंग सर्वाधिक प्रिय है। जिस व्यक्ति के जीवन में इतनी सकारात्मकता है कि वह हर प्रतिकूल परिस्थिति में भी अपने चित्त को विचलित नहीं होने देता है, यह राम के जीवन की सर्वोत्तम मंगलकारी प्रेरणा है। मित्र से प्रेम किया, कोई खास बात नहीं। उसने प्रेम दिया, हमने प्रेम दिया। खास बात यह है कि किसी ने हमें अपमान दिया, फिर भी हमने उसे आत्मीयता प्रदान की। जो खाना आता है, उसे खाया तो कौन-सी खास बात हुई ? जो खाना जीभ को स्वाद नहीं दे रहा है, फिर भी हमने उसे सहजता से स्वीकार कर लिया, यह जो दृष्टि है, उसे ही मैं सकारात्मकता कहता हूँ। इसी में ही सामयिक, समता, समरसता की कसौटी होती है। बुरे आदमी में भी अच्छाई को ढूँढ लेना, गलत और उग्र वातावरण में भी ‘संतुलन' की कीमिया को ढूँढ निकालना, यही है समझदारी की कसौटी। मेरे देखे, सकारात्मक सोच से निराशा, तनाव, घुटन, अनुत्साह और एक-दूसरे के प्रति रहने वाली दूरियाँ समाप्त हो सकती हैं। इंसान फिर इंसान के करीब आ सके। साथ-साथ चलो, साथ-साथ जियो, साथ-साथ रहो, यह सब केवल कहने के लिए नहीं है। हर इंसान जब एक-दूसरे के करीब आएगा तब यह मंत्र संसार में जीवित हो पाएगा। आप सभी के लिए मेरी सद्भावना है कि आप मिल-जुलकर हँसी-खुशीपूर्वक रहें, एक-दूसरे के काम आयें और अपनी सोच को सकारात्मक बनायें। For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए सोच को सकारात्मक बनाने के लिए दो-तीन सहायक पहलुओं पर अवश्य ध्यान दीजिए। उन्हें अपने व्यावहारिक जीवन में लागू करने की दृढ़ मानसिकता बनाइए। अपनी सोच और विचारों को व्यवस्थित करना खुद ही अपने आप में एक साधना है। हमारी थोड़ी-सी सजगता हमें इस साधना में सफलता दे सकती है। सकारात्मक सोच के लिए मेरा पहला अनुरोध है कि हम क्रोध की बजाए शांति को मूल्य दें। क्रोध हमारी समझदारी को बाहर निकालकर दिमाग के दरवाजे को चटकनी लगा देता है। क्रोध करना दूसरे के अपराधों का बदला स्वयं से लेना है। अच्छा होगा हम स्वयं तो क्रोध न ही करें, पर अगर कोई दूसरा हम पर क्रोध कर बैठे तो हम अपनी ओर से यह भरसक चेष्टा करें कि हम शान्त रहें। शांति से बढ़कर कोई सुख नहीं होता। शांति सुख का सृजन करती है। क्रोध अशांति को जन्म देता है और अशांति दु:ख को। सुभाष बाबू अपना भाषण दे रहे थे। किसी श्रोता को उनका भाषण न भाया। उसने तैश में आकर सुभाष बाबू की छाती पर एक जूता फेंका। स्वाभाविक है कि ऐसे क्षणों में व्यक्ति को गुस्सा आ जाए, पर जरा कल्पना कीजिए कि उस समय सुभाष बाबू गुस्सा कर बैठते तो रंग में भंग पड़ जाता। सुभाष बाबू गुस्सा करने की बजाय उस व्यक्ति को संबोधित करते हुए कहने लगे, 'भैया, जूता एक ही फेंका। हो सके तो दूसरा भी फेंक दो। अकेला जूता न मेरे काम आएगा, न तेरे। यदि तुम दूसरा जूता दोगे तो मेरे भी काम आ जाएगा और यदि नहीं फेंक सको तो अपना जूता ले जाओ ताकि तुम्हारे काम आ सके।' इसे मैं कहता हूँ शांति, क्रोध पर विजय, सकारात्मक सोच। क्रोध को जीतना कठिन होता है। बात-बे-बात में गुस्सा आ ही जाता है पर यदि हम हर हाल में शांति को मूल्य देंगे तो हम क्रोध में अपनी शक्ति को नष्ट होने से बचा लेंगे और अपनी मानसिकता को भी स्वस्थ रखने में सफल हो सकेंगे। सकारात्मक सोच के लिए जो दूसरा सहायक बिन्दु है, वह यह है कि हम औरों के प्रति सम्मान और सहानुभूति का नजरिया अपनाएँ। हम ईर्ष्या में न For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए __15 उलझें। ईर्ष्या में उलझकर अपनी मानसिकता को दूषित न करें। ईर्ष्या खुद को तो जलाती ही है, औरों से भी हमें काटती है। ईर्ष्या हमेशा औरों का नुकसान देखती है क्योंकि औरों की हानि में ही ईर्ष्या को मज़ा आता है। जब कोई छत से जमीन पर औंधे मुँह गिरता है तो ईर्ष्या इतनी खुश होती है मानो उसके लिए कोई सवा लाख की लॉटरी खुल गई हो। इन सबसे ईा को भले ही फायदा हो, पर जैसे ईर्ष्या में पड़कर हम औरों को नुकसान पहुंचाते हैं वैसे ही सावधान ! दूसरे लोग हमें भी उतना ही नुकसान पहुँचायेंगे। हम सबके प्रति सहानुभूति रखें, सम्मान की दृष्टि रखें। सहानुभूति के बदले में सहानुभूति लौटती है और नफरत के बदले नफरत। औरों को सम्मान देकर ही हम अपने सम्मान की व्यवस्था कर सकते हैं। ध्यान रखें, प्रकृति ने 'सम्मान' नाम का जीवन में जो तत्व बनाया है, वह हमेशा अपनी ओर से औरों को देने के लिए ही बनाया है। जो औरों को सम्मान देकर स्वयं को गौरवान्वित समझता है, वह अपनी सोच और नजरिये को अनायास सौम्य बना लेता है। सोच को सदा स्वस्थ और सकारात्मक बनाए रखने के लिए जो आखिरी बात निवेदन करूँगा वह यह है कि न तो कभी किसी की कमी को देखें और न ही अपने दिमाग में व्यर्थ की चिन्ता पालें। कमियों को देखना कमीनापन है और चिन्ता को पालना जीते जी चिता को सजाना है। बुद्धिमान लोग सदा गुणों को मूल्य देते हैं फिर चाहे वे अपने हों या किसी और के। दृष्टि गुणात्मक हो, सोच सकारात्मक हो। चिन्ता की बजाए खुशमिजाजी को मूल्य दीजिए। चिन्ता यानी यह कैसे हुआ या यह कैसे होगा, इस बात की जो उधेड़बुन है, उसी का नाम चिन्ता है। चिन्ता करना अपने पाँव पर कुल्हाड़ी चलाना है। चिन्ता या तो बीते की होती है या अनबीते की। जो बीत चुका, वह खो चुका और खोए का रोना क्या? जो अनबीता है वह अभी तक आया ही नहीं है और जो आया ही नहीं है, उसके बारे में सोचना क्या ! मस्त रहो, मस्त ! हर हाल में मस्त ! ऐसा हुआ। एक बूढ़ा आदमी अपने कंधे पर टमाटर के सूप की हंडी For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए लेकर जा रहा था। योग की बात कि हंडी फूट गई। बूढ़े आदमी ने हंडी को देखा भी। उसे सूप के बह जाने का पता भी चला, पर वह उससे बेखबर होकर अपनी यात्रा के लिए आगे चलता ही रहा। पीछे से आ रहे युवा राहगीर ने उसे आवाज लगाकर रोका और कहा, 'क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारा सारा सूप बह चुका है?' बुजुर्ग ने कहा, 'हाँ, मुझे पता है, पर जब वह बह चुका है तो मैं क्या करूँ ?' युवक ने कहा, ‘ताज्जुब ! सारा सूप बह गया और तुम कहते हो कि मैं क्या करूँ ?' बूढ़ा मुस्कराया और कहने लगा, ‘खोए का रोना क्या ?' यह कहते हुए उसने कंधे पर रखी फूटी हंडिया को भी उतारा और वहीं किसी पत्थर की आड़ में रखकर निश्चिंत और निर्भार होकर आगे की यात्रा के लिए निकल पड़ा। मेरे इस सूत्र को जीवन भर याद रखो कि खोए का रोना क्या ! चिन्ता से मुक्त होने के लिए हर समय व्यस्त रहो, मस्त रहो। फालतू दिमाग शैतान का घर होता है। तुम न तो निकम्मे रहो, न निठल्ले। हर समय व्यस्त भी रहो और मस्त भी। हर सुबह आँख खुलते ही मुस्कराओ। घर से ऑफिस जाने से पहले जब पहला कदम बढ़ाओ तो पहले मुस्कराओ। भोजन करने बैठो तो पहले मुस्कान का भोग लगा लो। साँझ को दुकान अथवा दफ्तर से घर लौटो तो पहले किसी कचरा-पेटी के पास जाकर अपने उस दिमाग को खाली कर लो जिसमें दिन भर की उठापटक और मेहनतकशी के कारण चाहा-अनचाहा कचरा आ गया है। संभव है, अब तुम सोने की सोच रहे हो, पर ठहरो ! पहले जरा मुस्करा लो, फिर बिस्तर के समर्पित हों। ये जो कुछ बातें हैं, इन्हें अपने मन में गाँठ बाँध लो। ये बेशकीमती रत्न हैं जो संकट की हर घड़ी में काम आयेंगे। इन रत्नों को अगर रोजाना पॉलिश करते रहो तो संभव है संकट आए ही नहीं। इन रत्नों का प्रकाश और मूल्य तुम्हें सदा सुख-सुकून देते रहेंगे। For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें, कामयाबी के लिए सफलता और कामयाबी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। यह व्यक्ति का जन्मसिद्ध और कर्मसिद्ध अधिकार है। धरती पर जितने भी लोग सफल हुए हैं, उनकी सफलता का मापदंड अवश्य ही यही रहा होगा। जिन लोगों को नाकामयाबी का सामना करना पड़ा है, उनकी असफलता के पीछे भी अवश्य ही उनके द्वारा होने वाली चूकें रही हैं। मनुष्य केवल किस्मत की बदौलत सफल नहीं होता और न ही बदकिस्मती के कारण असफल होता है। सच्चाई तो यह है कि किस्मत भी उन्हीं का साथ निभाती है जो पुरुषार्थ करते हैं। किसी भी मूल्यवान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला श्रम और संघर्ष ही व्यक्ति की हर सफलता का आधार होता है। जिन लोगों के चेहरों पर खुशियाँ और जीवन में आत्मविश्वास दिखाई देता है, उन्होंने निश्चय ही अपनी जिन्दगी में कोई-न-कोई विशिष्ट कामयाबी हासिल की हुई होती है। जिन चेहरों पर नैराश्य, तनाव, घुटन के चिह्न दिखाई देते हैं, वे अवश्य ही अंदर से टूटे हुए और अपने जीवन-क्षेत्र में नाकामयाब हो गए हैं। For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए हर सफलता अपने पीछे किसी-न-किसी असफलता को भी समेटे रहती है। यह जरूरी नहीं कि जो आज सफलता के शिखर पर दिखाई देते हैं, वे सदा से ही सफल रहे हों। हो सकता है, उन्हें भी कभी नाकामयाबी का सामना करना पड़ा हो। सफलता की मंजिल जिन रास्तों और सोपानों से गुजरती है, उसके हर सोपान पर विफलता का एक पड़ाव है। हो सकता है कि एक सफलता के नेपथ्य में सौ असफलताओं की कहानी छिपी हो । दुनिया में वे लोग कभी असफल नहीं होते जो सफल नहीं हो पाए । असफल तो वे हैं जिन्होंने सफलता के लिए कभी प्रयास ही नहीं किया। मुझे तो ऐसा भी लगता है कि जो असफल हुआ है, उसने कामयाबी के लिए केवल पन्द्रह प्रतिशत शक्ति ही लगाई है। जो अपनी जीवन-शक्ति का पचास प्रतिशत सफलता के लिए समर्पित करते हैं, वे ही सफल हो सकते हैं। सफलता के शिखर पुरुष तो वे ही होते हैं जो अपने जीवन की सौ प्रतिशत शक्ति अपनी सफलता की प्राप्ति के लिए समर्पित कर देते हैं। 18 अभी हाल ही में देश के एक महान् उद्योगपति धीरूभाई अंबानी का जब निधन हुआ तब लोगों को यह जानने को मिला कि जिस व्यक्ति ने मात्र पाँच सौ रुपये से अपने जीवन की शुरुआत की थी, वही व्यक्ति बढ़ते-बढ़ते सत्रह हजार करोड़ या उससे भी अधिक धनराशि का मालिक हो गया। जानने लायक बात यह है कि जिस दिन उसको दिल का दौरा पड़ा, उस दिन भी उन्होंने सत्रह घंटे कार्य किया था । मूल्यवान यह नहीं है कि कितने घंटे तक तुमने दिन या रात में काम किया ? मूल्यवान तो यह है कि कितने मनोयोगपूर्वक तुमने कितने घंटे काम किया ? फर्क यह है कि तुमने मेहनत की या न की । जो यह मानकर ही चलता है कि उसके लिए फलां कार्य असंभव है तो समझ लो कि वह जिन्दगी कुछ भी नहीं कर सकता । में जब नेपोलियन बोनापार्ट आल्प्स की चोटियों को पार करने के लिए तराई में पहुँचे तो वहाँ रहने वाली बूढ़ी स्त्री ने, जो राहगीरों को पानी पिलाया करती थी, नेपोलियन से कहा, 'बेटा आल्प्स पर्वत पार कर पाना तुम्हारे लिए संभव नहीं है।' उस बुढ़िया ने बताया कि अनगिनत लोगों ने इन दुर्गम पहाड़ियों For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें कामयाबी के लिए ? को पार करने का प्रयास किया, लेकिन वे इन्हें पार न कर सके। नेपोलियन को उसने सलाह दी कि वह दूसरा रास्ता खोज ले क्योंकि इन पहाड़ियों को पार करना मनुष्य के लिए असंभव है। नेपोलियन ने विश्वासभरे स्वर में कहा, 'माँ, नेपोलियन के लिए असंभव जैसा कुछ भी नहीं होता। वह आल्प्स की इन पहाड़ियों को अवश्य पार करेगा और फिर से विश्व-विजय का शंखनाद करेगा।' तब बूढ़ी माँ ने कहा, 'जिस व्यक्ति के जीवन में किसी भी कामयाबी के लिए इतना विश्वास है, वह आल्प्स की चोटियों को तो क्या, जिन्दगी की हर बड़ी से बड़ी बाधा को पार कर सकता है। और नेपोलियन द्वारा आल्प्स की पहाड़ियाँ पार की गईं। सफलता के लिए प्रयास न करना ही विफलता है। तुम पहले प्रयास करो। जब सफलता न मिले तो सोचो। जब तुम दुर्बल मन लेकर किसी काम के लिए प्रयास करते हो तो मैं कहूँगा कि तुमने पहला कदम ही गलत रख दिया। दुर्बल शरीर के लोग तो अपने जीवन में सफल हो जाया करते हैं किन्तु दुर्बल मन के लोग कभी कामयाब नहीं हुआ करते। दो पहलवान जो समान ताकत रखते हैं, फिर भी मल्लयुद्ध में जीतता तो एक ही है। जो जीतता है, वह अपनी शक्ति के बल के साथ अपने आंतरिक आत्मविश्वास और मजबूत मन से जीतता है। ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत'। अगर तुम जीत के लिए प्रतिबद्ध हो तो जीत अवश्य मिलेगी और यदि पहले ही यह सोच लो कि मैं हार भी सकता हूँ तो मान लो कि हार ही गये। तुमने अपनी किस्मत हार सकता हूँ इस वाक्य को सौंप दी कि हारोगे ही। रेस में सौ घोड़े दौड़ते हैं लेकिन जीतता वही है जिसमें जीत का जज्बा होता है। तुम जितना कठिन श्रम करके सफलता प्राप्त करते हो, वह उतनी ही मूल्यवान होती है। देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री गरीब घर में पैदा हुए थे। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन एक गरीब घर में पैदा हुए थे। राष्ट्रपति के. आर. नारायणन् भी अनुसूचित जाति के गरीब परिवार से आए थे। वर्तमान राष्ट्रपति मिसाइल मैन अब्दुल कलाम भी अपनी भीषण गरीबी के दौर से निकलकर आए हैं। वे इमली के बीजों को बेचकर अपनी पढ़ाई करते For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए थे। गरीब घर में पैदा होना अभिशाप नहीं है, लेकिन अपने मन को गरीब मान लेना ही अभिशाप है। विकलांग होना भी सफलता में आड़े नहीं आता। धरती पर ऐसे लोग भी हुए हैं जिन्होंने विकलांगता को भी चुनौती दे डाली थी। प्रकृति-प्रदत्त अभावों को चुनौती देकर वे प्रकृति पर भी विजय पाने में सफल रहे। शरीर भले ही विकलांग हो जाये, पर मन को विकलांग मत बनने दीजिए। हाथ-पाँव टूट जायें, चिंता न करें पर मन और मानसिकता नहीं टूटनी चाहिए। हम सभी ने संगीतकार रवीन्द्र जैन और बीथोवन का नाम सुना है। उनके द्वारा बनाई गई संगीत की धुनें अत्यन्त लोकप्रिय हुईं। आप जानते ही होंगे कि रवीन्द्र जैन दृष्टिहीन है और बीथोवन बधिर है। अगर मुझे कोई देश की बागडोर थमा दे तो मैं ऐसे ही लोगों को भारत-रत्न' का सम्मान देना चाहूँगा जो प्रकृति द्वारा तो अभावग्रस्त रहे लेकिन अपने पुरुषार्थ के बल पर उन्होंने कीर्तिमान स्थापित किये। आपने पं. सुखलाल जी का नाम शायद सुना हो। वे चौदह वर्ष की उम्र में अपने नेत्र गँवा बैठे थे। उनसे जब कोई मिलने आता तो उनका आग्रह होता कि कोई अच्छी किताब लाई जाए और उन्हें पढ़कर सुनाई जाए। दुनिया भर के शास्त्रों को पढ़कर उन्होंने जो प्रज्ञा प्राप्त की थी, वह शास्त्र. व्याख्या में प्रकट हुई जो आज भी अनुपम और अतुलनीय है। डॉ. रघुवंश सहाय के हाथ नहीं हैं। उन्होंने पैरों से अपनी किताबें लिखी हैं। प्रकृति ने तो अभाव दिये, लेकिन अपने आत्म-विश्वास और दृढ़-स्थिर-मन से भी लोगों ने कामयाबियाँ भी हासिल की हैं। मैं हेलन केलर का नाम बहुत श्रद्धा और आदर के साथ लेना चाहूँगा। प्रकृति ने उनके साथ बड़ा अन्याय किया था। वे जन्म से ही दृष्टिहीन, गूंगी और बहरी थीं लेकिन सम्पूर्ण विश्व उनके द्वारा दी गई सौगातों का ऋणी है। उन्होंने दृष्टिहीनों के हितार्थ पढ़ने के लिए लिपि का आविष्कार किया। हेलन केलर की सहयोगी एम. सलेवान जो उनकी मित्र और शिक्षिका थी, ने हेलन पर इतना श्रम किया कि आने वाले समय के लिए हेलन दृष्टिहीनों के लिए 'प्रकाश-स्तंभ' अथवा 'मील का पत्थर' साबित हुईं। विकलांग होना प्रकृति का अभिशाप हो सकता है, लेकिन जीवन में For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें कामयाबी के लिए? नाकामयाब होना बदकिस्मती का नहीं अपितु आपकी पौरुषहीनता का परिणाम है। इसलिए रग-रग में सफलता का जोश भर दिया जाना चाहिए। यदि कोई साधक अपनी साधना को सफल करना चाहता है, या कोई खिलाड़ी अपने खेल में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करना चाहता है या वैज्ञानिक नए आविष्कार करना चाहता है तो मैं यही कहूँगा कि वह अपनी रगों में ऐसा विश्वास और जोश जगा ले कि उसे हर राह पर सफलताएँ ही मिलें। मैं उल्लेख करना चाहूँगा थॉमस अल्वा एडीसन का, जिसने हजारों बार असफलता प्राप्त की, किन्तु वह लगातार सोलह वर्षों तक प्रयोग करता रहा। कोई भी व्यक्ति यदि किसी मिशन को प्राप्त करना चाहता है तो वह एक-दो माह या एक-दो साल मेहनत करता है और फिर ठंडा पड़ जाता है। लेकिन एडीसन ने पूरे सोलह सालों तक मेहनत की। उसे जुनून सवार था कि वह बिजली और उसके बल्ब का आविष्कार करके ही रहेगा। लोग उसे मूर्ख कहते थे। उसके साथ कार्य करने वाले लोगों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। उसकी पत्नी चिढ़ने लगीं, 'तुम्हें क्या भूत सवार है ? तुम आविष्कार न कर पाओगे।' लेकिन उसके अंदर गहन आत्म-विश्वास था कि वह जरूर सफल होगा। सतत सोलह वर्षों तक मेहनत करने के उपरान्त उसके आविष्कार का जो परिणाम आया, उससे सारी दुनिया रोशनी से नहा उठी। अतीत में आदमी ने कभी यह न सोचा होगा कि ऐसी भी दुनिया होगी जहाँ काँच के गोलों के भीतर कृत्रिम रूप से रोशनी को पैदा किया जा सकेगा। मनुष्य करना चाहे तो सब कुछ कर सकता है। मैं विश्व के महान् नेता लिंकन के बारे में जिक्र करना चाहूँगा जिसने अपनी आयु के इक्कीसवें वर्ष में वार्ड मेम्बर का चुनाव हारा, बाइसवें वर्ष में वह व्यवसाय में असफल हुआ, चौबीसवें वर्ष में उसने विवाह किया मगर वह सुख न पा सका, सत्ताइसवें वर्ष में तलाक हो गया, बत्तीसवें वर्ष में विधायक का चुनाव हारा, सैंतीसवें वर्ष में पुन: चुनाव में पराजित हुआ, बयालीसवें वर्ष में फिर चुनाव लड़ा और हारा, सैंतालीसवें वर्ष में उपराष्ट्रपति पद के लिए खड़ा हुआ तो पुन: उसे पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन वही व्यक्ति बावनवें वर्ष में राष्ट्रपति चुना गया। For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए जिसके अंत:करण में सफलता का उद्देश्य बन चुका है, वह निश्चित रूप से सफल होगा। जो व्यक्ति जिंदादिली और जिन्दगी की रवानी रखते हैं वे इस बात पर मनन करें कि उनकी नाकामयाबी के क्या कारण हैं? जो चूक हो जाती हैं, उससे सबक न ले पाने के कारण ही असफलताएँ हाथ लगती हैं। हम इस डर से ही कदम न उठा सके कि कहीं असफल हो गए तो ! कोई शहद तो पाना चाहता है लेकिन छत्ते के समीप इसलिए नहीं जाता कि कहीं मधुमक्खी ने उसे डंक मार दिया तो क्या होगा ! ऐसा आदमी कभी भी शहद न पा सकेगा। वह शहद के स्वाद और उसकी पौष्टिकता से सदा वंचित ही रहेगा। 22 जीवन में जोखिम तो उठानी पड़ेगी। अपने मूल्यवान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना ही होगा। लॉटरी खुलने की प्रतीक्षा में कहीं दिवाला ही न निकल जाय। जब तक सार्थक लक्ष्य न होगा और लक्ष्य के लिए सार्थक मार्ग न होगा और मार्ग के लिए सार्थक प्रयास न होंगे तब तक जीवन में किसी को परिणाम नहीं मिल सकता। इसलिए जो व्यक्ति अपने जीवन में सफलता का सूर्य उदित करना चाहते हैं, वे अपनी नजरें सूर्य की ओर रखें ताकि उन्हें अपनी परछाई भी न दिखाई दे। तुम्हें अपने प्रतिद्वंद्वी न दिखाई दें, तुम निरन्तर आगे बढ़ते रहो। तुम तब तक विश्राम न लो, जब तक उस लक्ष्य को अर्जित न कर लो। जिसने यह मान लिया कि आराम हराम है, उसके जीवन में फिर आराम ही आराम है। । कामयाबी पाने के लिए मैं आपको पाँच-सात सोपानों पर चढ़ने के लिए प्रेरित करूँगा । केवल इन पर चढ़ने और पार करने की ही तो बात है । उसके बाद जो परिणाम मिलता है वह मंजिल है, वह शिखर है। जीवन में कामयाबी पाने का पहला मंत्र है - 'अपनी इच्छा-शक्ति को जगाना।' सफल होने के लिए जब तक इच्छा-शक्ति जाग्रत न होगी, तब तक तुम सफल न हो पाओगे । इच्छा-शक्ति से आत्म-विश्वास जगता है। आत्म-विश्वास से ही तुम अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक बना सकोगे । सकारात्मक दृष्टिकोण होने पर जीवन में अभीष्ट पुरुषार्थ जगा सकोगे । इच्छाशक्ति का होना सफल होने के लिए अनिवार्य शर्त है। For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें कामयाबी के लिए ? विल्मा रोडॉल्फ एक महान एथलीट हुई है जिसे चार वर्ष की उम्र में लकवा हो गया था। उसके दोनों पैर बेकार हो गये थे । उसके कृत्रिम पैर लगाये गये तब वह चलने-फिरने लायक हुई। जब वह सोती तो सपने देखती कि वह विश्व की सर्वश्रेष्ठ धाविका बन सकती है लेकिन जब उसकी आँखें खुलतीं तो उसके आँसू आ जाते अपने कृत्रिम पाँवों को देखकर । उसके मन में धाविका बनने की इच्छा रह-रहकर जाग्रत हो जाती । अन्ततः विल्मा ने निर्णय लिया कि चाहे जो कुछ भी करना पड़े, वह धाविका जरूर बनेगी। नौ वर्ष की आयु में उसने नकली टांगों पर से जूते हटा दिये। जब वह सौ कदम चली तो दस बार गिरी किन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी। आदमी को केवल गिरना ही नहीं, गिरकर सँभलना भी आना चाहिए । विल्मा चलती रही और अभ्यास करती रही । एक वर्ष में उसकी टांगों में इतनी ताकत आ गई कि वह सौ मीटर धीरे-धीरे दौड़ने लगी । जिस दिन वह दौड़ी उस दिन उसका सोया हुआ आत्म-विश्वास जग गया। उसने जाना कि वह श्रेष्ठ धाविका जरूर बन सकती है। उसका अभ्यास और परिश्रम रंग लाया । वह ओलम्पिक में दौड़ने के लिए चुनी गई। दौड़ शुरू हुई। अन्य धावकों के साथ वह भी दौड़ी, जब वह दौड़ रही थी तो उसने महसूस किया कि उसकी कमर पर जो बेल्ट बँधा है तथा जिसके सहारे उसकी कृत्रिम टांगें सम्बद्ध हैं वह खुल रहा है। अन्य खिलाड़ी आगे निकल गये थे । वह झुकी। उसने बेल्ट कसा और ऐसी दौड़ लगाई कि सब देखते ही रह गये । उसने स्वयं को श्रेष्ठ ही नहीं सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया और तीन स्वर्ण पदक जीते। प्रकृति ने भले ही उसे वंचित किया हो लेकिन अपनी इच्छाशक्ति के बल पर उसने सफलता के शिखर को छू ही लिया । 23 यह जीवन का सच है कि अगर किसी के भीतर इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास जाग्रत हो जाय तो वह किन्हीं भी रास्तों पर चले, अवश्य सफल होगा। सुकरात से एक युवक ने सफलता का राज़ पूछा तो सुकरात ने उसे अपने साथ चलने को कहा। दोनों चलते-चलते नदी के किनारे पहुँचे। सुकरात ने कहा, 'बेटा, नदी में उतरो ।' युवक ने सोचा, 'क्या सफलता का मापदंड नदी से For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए सिखाया जाता है ?' युवक नदी में उतरने लगा। जैसे ही वह अंतिम सीढ़ी तक पहुँचा, सुकरात ने उसे सिर पर से दबाया और नदी में डुबा दिया। युवक ने बाहर आने की कोशिश की लेकिन सुकरात में ज्यादा ताकत थी। सो उन्होंने युवक को पानी में डुबाये रखा। लेकिन इस बार पुनः युवक ने जोरदार शक्ति लगाई और वह पानी से बाहर निकल ही आया। वह बोला, 'यह क्या बदतमीजी है।' सुकरात ने कहा, 'सफलता का मार्ग जानने का यही तरीका है। मैं पूछना चाहता हूँ कि जब मैंने तुम्हें डुबाया था तो तुम्हें वहाँ किस चीज की आवश्यकता थी? तुम्हें वहाँ किसने बचाया?' युवक ने कहा, 'मुझे हर हाल में साँस की जरूरत थी क्योंकि यदि जरा भी देर हो जाती तो मौत मेरे सामने खड़ी थी। मुझे मेरे जीने की इच्छा ने ही बचाया।' सुकरात ने कहा, 'जब सफलता तुम्हारे श्वास की तरह मूल्यवान हो जाय तभी तुम उसे अर्जित कर सकते हो।' हममें से जो व्यक्ति अपने सोये हुए पुरुषार्थ और आत्म-विश्वास को जगा सकता है, वही सफल होता है। खतरे भले ही जिन्दगी में आयें, बाधाएँ भले ही सामने खड़ी हों पर वे ही उन्हें पार करते हैं जो उनसे खेलते हैं। जो डरेंगे, वे कहीं नहीं पहुंचेंगे - जो डर गया सो मर गया। डर किस बात का ? जिन्दगी में मौत दो बार नहीं, एक ही बार आती है और मौत वक्त से पहले कभी नहीं आती, फिर उससे डरने का क्या काम ? कामयाबी का दूसरा सूत्र है : 'उन्नत लक्ष्य।' जीवन में क्या करना है ऐसा लक्ष्य अथवा उद्देश्य प्रारम्भ से ही बन जाना चाहिए। मरना तो अपने आप हो जाता है, जी भी जैसे-तैसे लेते हैं, लेकिन हम क्या साधना चाहते हैं ? उसका लक्ष्य बना लेना चाहिए। तुम यदि व्यवसाय करना चाहते हो, राजनीति में जाना चाहते हो अथवा जो भी करना चाहते हो, जिन्दगी में उसका लक्ष्य अवश्य बनाओ। तुम्हारे सामने लक्ष्य इतना स्पष्ट होना चाहिए कि तुम चाहे सोओ या जागो, रात हो या दिन तुम्हें अपने लक्ष्य का सतत स्मरण रहे। जब तक लक्ष्य पूर्ण न हो जाए, तुम चैन न लो। लक्ष्यहीन व्यक्ति जन्म और मौत के बीच ही अपनी जिन्दगी समाप्त कर देता है और वह किसी भी क्षेत्र का शिखरपुरुष नहीं बन पाता। For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 25 लक्ष्य अवश्य होना चाहिए। कल्पना कीजिए, किसी मैदान में दो फुटबॉल टीमों को भेज दिया जाय और उनसे कहें कि फुटबाल खेलो। वे कहेंगे, ‘कि खेलेंगे तो जरूर पर गोल कहाँ करेंगे?' जब तक गोल पोस्ट न हो, खिलाड़ी खेलना न चाहेंगे, क्योंकि जब तक लक्ष्य ही नहीं है जीतने का और किसी को पराजित करने का, तब तक खेल खेलने का मज़ा ही नहीं है। क्या आप ऐसी ट्रेन में बैठना पसंद करेंगे जिसके आने और जाने के गंतव्य का आपको पता ही न हो। मैं एक चौराहे पर खड़ा था। तभी एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा, 'यह रास्ता किधर जाता है ?' 'मैं तुम्हें यह बताऊँ कि यह रास्ता किधर जाता है इसके पहले तुम बताओ कि तुम्हें किधर जाना है ?' मैंने कहा। वह सकपकाते हुए बोला, 'मुझे नहीं पता कि मुझे किधर जाना है ?' 'जब तुम्हें यह भी नहीं मालूम कि तुम्हें किधर जाना है तो किसी भी रास्ते से जाओ। क्या फर्क पड़ता है! अरे, जब तुम्हारा कोई लक्ष्य ही नहीं है तो कहाँ पहुँचोगे? सुबह घर से निकलते हो, दिन भर इधर-उधर भटकते हो और शाम को वापस घर पहुँच जाते हो, यही तो लक्ष्यहीन व्यक्ति की दिनचर्या रहती है। ___जब तक जीवन में सार्थक लक्ष्य न होगा तब तक पुरुषार्थ सही पथ पर नियोजित नहीं हो पाएगा। बिना सार्थक लक्ष्य के किया गया तीरसंधान सदा व्यर्थ ही जाता है। हमें भलीभाँति याद है कि जब द्रोणाचार्य अपने सभी शिष्यों को एकत्र करके कहते हैं कि ‘बच्चो, तुम्हारी शिक्षा तो पूर्ण हो चुकी है। आओ, आज तुम्हारी परीक्षा है। देखो, वहाँ स्वागत-द्वार के समीप वृक्ष पर चिड़िया बैठी है। तुम्हें उसका संधान करना है।' दुर्योधन, भीम, युधिष्ठिर व अन्य सभी छात्र एक-एक कर आते हैं और अपना धनुष उठाते हैं। तभी द्रोणाचार्य पूछते हैं, 'वत्स, तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?' कोई कहता है, स्वागत-द्वार, कोई वृक्ष, कोई पत्ते कोई कुछ, कोई कुछ अन्य बताते हैं। द्रोणाचार्य सबको परे हटाते जाते हैं। सभी छात्र किनारे कर दिये गये। किसी को भी शर-संधान का मौका न मिला। जब अर्जुन आते हैं तब उनसे भी वही प्रश्न किया जाता है और अर्जुन का उत्तर होता है, 'मुझे केवल For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है।' द्रोणाचार्य ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, 'वत्स, परीक्षा की इस घड़ी में मेरा अंतिम उपदेश यही है कि जिसके जीवन में लक्ष्य पूर्णरूपेण साकार नहीं हो पाता, वह जिन्दगी में कभी सफल नहीं हो सकता। जिसे केवल चिड़िया की आँख की तरह प्रतिपल अपना लक्ष्य दिखाई देता है, वही जीवन में सफलता को प्राप्त करता है।' तुम सदैव ऊँचे लक्ष्य रखो। ऊँचे लक्ष्यों में जोश और आत्म-विश्वास कुछ अधिक ही होता है। तुम ऊँचे लक्ष्य तक भले ही न पहुँच सको, लेकिन जहाँ तक पहुँचोगे वह उतना ऊँचा स्थान होगा जहाँ तक शायद दूसरा कोई न पहुँच सका हो। __मैंने अपने जीवन से कामयाबी के लिए जो कुछ जाना है और दुनिया में जो लोग सफल हुए हैं, उन्हें देखकर, समझकर, पढ़कर, सुनकर जो कुछ समझा है, उन्हीं बातों का मैं जिक्र करता हूँ। पहली बात हमने यह जानी कि हमारे भीतर दृढ़ इच्छाशक्ति हो, दूसरी बात है उन्नत लक्ष्य हो और तीसरा बिन्दु है व्यक्ति जिस लक्ष्य को पाना चाहता है, उसकी विशिष्ट कार्य-योजना हो। योजना बनाकर ही हम लक्ष्य-भेद कर सकते हैं। लक्ष्य तो बना लिया, लेकिन हवाई कल्पनाएँ कर लेने मात्र से लक्ष्य पूर्ण नहीं होता। उसके लिए सुनियोजित कार्यप्रणाली होनी चाहिए। मनुष्य का जीवन बहुत व्यवस्थित और योजनाबद्ध होना चाहिए। हर क्षेत्र अनुशासित होना चाहिए। कार्य-योजना से मतलब है प्लानिंग। अक्सर हम अपने जीवन में योजना को उतना महत्त्व नहीं देते जितना दिया जाना चाहिए। इसीलिए हमारे काम कई मर्तबा बिगड़ जाया करते हैं। वे काम भी हमें तनाव और चिन्ता दे जाया करते हैं। अगर हम कार्य-शैली के लिए एक सिस्टम, एक योजना लागू करें तो आप पायेंगे कि न केवल आपका कार्य ही सफल होगा अपितु वह कार्य आपको पर्याप्त सुख-सुकून और संतोष भी देगा। यदि किसी काम की भलीभांति पूर्वयोजना बनाकर उसे किया जाए तो उस काम में सफलता मिलनी कुछ प्रतिशत तक सुनिश्चित हो जाती है। जैसे, यदि आप विद्यार्थी हैं और किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपको अपने For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें कामयाबी के लिए? पाठ्यक्रम और अपनी क्षमता को ध्यान में रखते हुए अपने अध्ययन की योजना बना लेनी चाहिए, ताकि आपको अपने लक्ष्य तक पहुँचने में आसानी रहेगी। बगैर किसी योजना के यदि आप पढ़ाई में लग जाते हैं तो उसका आपकी पढ़ाई पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। सिस्टेमेटिक पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी परीक्षा के वक्त की हड़बड़ाहट से बचे रहते हैं। वे निश्चिंत रहते हैं और उनका आत्मविश्वास भी प्रबल होता है जो उनकी सफलता का मूल आधार बनता है। योजनाबद्ध तरीके से जो कार्यों को सम्पादित करता है, वह सात दिनों का कार्य एक दिन में सम्पन्न कर लेता है। जिसके जीवन में कोई योजना नहीं है, कोई तैयारी नहीं है, वह एक दिन में दो कार्य भी नहीं कर पाता। हम ऊँचे क्षेत्रों को भले ही छोड़ दें पर दैनंदिनी जीवन में भी कुछ प्रयोग कर सकते हैं। प्रात:काल जब आप सोकर उठे तो सबसे पहले मुस्कराइये। भगवान का स्मरण बाद में करना किन्तु पहले पहल रग-रग से मुस्कराना। कुछ सामने हो या न हो तो भी मुस्कराना। अगर पहले बिल्ली भी दिखाई दे जाये तो उसे अपशकुन मत मानना, उसे देखकर भी मुस्कराना। दुनिया में शकुन और अपशकुन कुछ नहीं होता। हम ही मन को छोटा कर लेते हैं तो अपशकुन हो जाता है और हम ही मन को बड़ा कर लेते हैं तो शकुन हो जाता है। मैंने आज सुबह ही बिल्ली देखी किन्तु इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ाता। वह भी अन्यों की तरह एक जानवर ही होती है। अगर हम मान बैठे कि 'अरे, सुबह-सुबह बिल्ली देख ली अतः अब पूरा दिन बेकार बीतेगा' तो आप खुद ही अपशकुन कर बैठे। उस बिल्ली को देखो, उसे प्रणाम करो और दो मिनट तक मुस्कराओ। अपशकुन टल गया, शकुन हो गया। प्रात: उठकर दो मिनट मुस्कराने को ही हम अपनी पहली प्रार्थना बना लें और उसे जीवन का पहला धर्म समझें। तदुपरान्त दैनिक कर्म से निवृत्त होकर उस दिन किये जाने वाले कार्यों का स्वरूप तय करें। उनकी सूची बना लें। उन्हें सिलसिलेवार प्राथमिकता की दृष्टि से पुनः सूचीबद्ध कर लें। हो सकता है, आपकी सूची में आज के लिए पैंतीस कार्य हों लेकिन समयबद्धता और सूची होने से आपके सभी कार्य पूर्ण हो जायेंगे। अगर आप योजनाबद्ध तरीके से हर For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए दिन की शुरूआत करते हैं तो आप पायेंगे कि हर दिन आपके जीवन की नई शुरूआत है और आप कई कार्य निपटा चुके हैं। ___ यदि आपको लक्ष्य साधना है तो आप उसके लिए समय और स्थान नियत करें। लक्ष्य-साधना कैसे करनी है, इसकी आप जानकारी लें। उपयुक्त और उचित मार्गदर्शन से अपनी दिशा निर्धारित करें। अपने आसपास के वातावरण से तादात्म्य और अनुकूलता ग्रहण करें। मौन और शान्त रहने का अभ्यास करें। एतदर्थ साहित्य पढ़कर अपनी मानसिकता पहले तैयार करें। कोई लेखक अगर लिखना चाहता है तो पहले उसकी कार्य योजना बन जानी चाहिए। कोई सेनापति युद्ध करता है तो उसको भी युद्ध की तैयारी करनी होती है। अभी की ताजातरीन घटना देखें। अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया। अमेरिका के सामने अफगानिस्तान की सैन्य-शक्ति बहुत कम थी, लेकिन अमेरिका जानता था कि अफगानिस्तान तो वह देश है जिसने अमेरिका में घुसकर उसकी छाती पर छुरा घोंपा था। और वह आगे भी कुछ भी कर सकता था। इसलिए उसने एक माह तक विलंब किया। यह विलंब न था बल्कि यह उसकी योजनाबद्ध तैयारी थी। उसने अफगानिस्तान को चारों ओर से घेरा, विश्व जनमत बनाया और तब कहीं आक्रमण किया। योजनाबद्ध तरीके से चलो। थोड़ी शांति रखो, धैर्य रखो। तुम्हें अपना मापदंड ऊँचा करना है सो जरूर करो लेकिन दूसरों की टाँगें खींचकर नहीं। ____ योजना यानी प्लानिंग की बहुत अहमियत है जिन्दगी में। काम चाहे छोटा हो या बड़ा, आप हर काम की योजना बनाने की आदत डालें। छोटे कार्यों को, योजना को कागज पर उतारने की बजाय उसे मन-ही-मन तैयार कर लें और फिर वह काम पूरा होने पर उसे भुला दें। बड़े कामों की योजना कागज पर उतारें ताकि काम पूरा होने तक जरूरत पड़ने उसे पर देख सकें। कार्य-योजना बनाना अनिवार्य चरण है लेकिन अगला चरण है उसे मूर्त रूप देने के लिए कड़ी मेहनत अथवा लगनपूर्वक की गई मेहनत। जब तक व्यक्ति मनोयोगपूर्वक मेहनत नहीं करेगा तब तक उसे सार्थक परिणाम उपलब्ध For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें कामयाबी के लिए ? नहीं हो सकेंगे। योजनाएँ बनाने भर से क्या होगा ? सरकार कितनी योजनाएँ बनाती है किन्तु सारी योजनाएँ कागज पर ही रह जाती हैं। जब तक सरकार और प्रशासन उसे मूर्तरूप देने के लिए प्रतिबद्ध न होंगे तब तक योजनाएँ मात्र योजनाएँ ही रह जाएगी। कागज पर हिमालय का चित्र बना देने से हिमालय पर घूमने का आनंद न आ सकेगा। उसके लिए मेहनत करनी होगी, लगनपूर्वक कड़ी मेहनत करनी होगी । सफलता के लिए हम अपने सोये पुरुषार्थ को जगाएँ । गीता हमें पुरुषार्थ की प्रेरणा देती है। व्यक्ति अपने मन की कमजोरियों पर विजय प्राप्त करे । मन की नपुंसकता किस काम की ? अपने भाग्य का फल पाना है तो पुरुषार्थ को जगाएँ । निर्बल से लड़ाई बलवान की, की। यह कहानी है दीये की और तूफान 'प्रदीप' के ये बोल बड़े प्रेरणादायी हैं। निराश और हताश युवा पीढ़ी को ये शब्द परिस्थितियों से जूझने का साहस देती हैं । संघर्ष तो करना ही होगा । घर बैठे भाग्य नहीं फलता । हमें मंदिर में पुजारी के द्वारा जलाए जाने वाले दीपक की तरह निरन्तर जलना और जूझना होता है। आशा, विश्वास और उम्मीदों के चिराग आंधियों से नहीं बुझते। हालांकि यह सच है कि जिस तरह की परिस्थिति से युवा पीढ़ी को गुजरना पड़ रहा है, उसके चलते तो उसे अपनी उम्मीदों का दीया लड़खड़ाता नज़र आता है । दिन-रात की पढ़ाई और हजारों-लाखों रुपयों की कुर्बानी उसे चिन्तित और कुंठाग्रस्त कर रही है। मैं आप लोगों से कहूँगा कि आप सरकारी नौकरी पाने के लिए इतने लालायित न हों । उसकी एक सीमा है, वह सबको नहीं मिल सकती। आप निजी क्षेत्र में ही अपनी बुद्धि और प्रतिभा का उपयोग करें। शुरू में भले ही परेशानी या कठिनाई हो, पर ध्यान रखो कि शान्त समुद्र में कोई व्यक्ति कुशल नाविक नहीं बन सकता। श्रम करना होगा, संघर्ष करना होगा, असफल भी होंगे, पर आप अपनी दूरदृष्टि और कार्यकुशलता से सफलता अवश्य अर्जित कर लेंगे । 29 For Personal & Private Use Only - Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए मुझे याद है, कोई पच्चीस वर्ष पूर्व मैं 'निरमा' के मालिक को अहमदाबाद की सड़कों पर लिक्विड सोप बेचते हुए देखा करता था। उसने मेहनत की, दिल लगाकर मेहनत की और आज देख सकते हैं 'निरमा' कहाँ से कहाँ पहँच चुका है। साबुन के रूप में तो वह छाया ही है किन्तु उसके साथ शैक्षणिक, अनुसंधान व चिकित्सा के क्षेत्र में भी ‘निरमा' अग्रणी हो चुका है। अगर कोई कड़ी मेहनत करता है तो टाटा, बिरला या अंबानी बन सकता है। वह ऊँचाइयों को छु सकता है। प्रकृति तो सभी को देती है लेकिन मिलता उसे है जो पाने के लिए मेहनत करता है। मैं उस तकदीर में विश्वास करता हूँ जिसे पाने के लिए व्यक्ति मेहनत करे। किस्मत उसी को परिणाम देती है जिसने मेहनत की हो। आप देखिए, एक चिड़िया को चार दाने पाने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। दुनिया में कोई चीज मुफ्त नहीं मिलती। कुनकुने प्रयासों से काम न होगा। असफलता का मूल कारण आधे-अधूरे प्रयास हैं। जो लोग अपनी पूर्ण जीवन-शक्ति नहीं लगा पाते, वे असफल हो जाते हैं। पन्द्रह प्रतिशत जीवन-शक्ति का उपयोग करने वाले विफल होते हैं। हर व्यक्ति को अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा प्रत्येक लक्ष्य के लिए लगानी पड़ेगी। यदि तुम विद्यार्थी हो तो पढ़ाई में अपनी पूरी ऊर्जा लगा दो। तुम अवश्य ही प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होओ। तुम्हें सालभर मिला है पढ़ने के लिए, फिर केवल परीक्षा के दिनों में अपनी रातें क्यों खराब करते हो? पूरी मेहनत करो, परीक्षा तो तुम्हारे लिए कसौटी है यह जानने की कि तुमने क्या और कितनी पढ़ाई की? आप अपने-अपने कार्य-क्षेत्र का चयन कर लें। फिर उसमें तन-मन से लग जाएँ। आप जिसे भी चुनें, उसमें अपनी रवानगी, जोश इच्छाशक्ति को लगाकर तन्मय हो जायें। जो भी क्षेत्र हो साधना, शिक्षा, चिकित्सा, वकालत, वैज्ञानिक, व्यापार, नौकरी या अन्य, जब तक अपने क्षेत्र में सफल न हो जायें तब तक विश्राम न लें। आपका लक्ष्य प्रतिपल आपके सामने रहना चाहिए। इतना ही नहीं, अपना आदर्श भी ऊँचा रखें ताकि आप आगे बढ़ते रह सकें। आप जो कार्य कर रहे हैं, उसे सुधारते रहने का भी प्रयास कीजिये। निरन्तर For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या करें कामयाबी के लिए ? 31 सुधार करते रहना उस कार्य को श्रेष्ठ बनाने का तरीका है। जीवन भर विद्यार्थी बनकर रहें ताकि ज्ञान-प्राप्ति के द्वार निरन्तर खुले रहें। असफलता से निराश न हों बल्कि असफलता से प्रेरणा लेकर दुगने उत्साह से अपने कार्य में जुट जायें। लक्ष्य को पाने के लिए अंतिम श्वास तक प्रयास करें। हम यह भी देखें कि किस्मत आखिर कब तक हमारा साथ नहीं देगी या वह कब हमारा साथ निभायेगी ? जो सफलता पाने के लिए उद्यम करता है, सफलता के लिए सन्नद्ध होता है, प्रयत्नशील होता है सफलता उसका वरण करती है। आप अपनी मानसिक नपुंसकता त्यागें, हृदय की दुर्बलता त्यागें, कर्तव्य-पथ आपको निमंत्रण दे रहा है। ईश्वर और कुदरत आपके साथ हैं। प्रयत्न करना हमारा कर्तव्य है, अधिकार है, इसे प्राप्त करना ही चाहिए। मेरी ओर से आप सभी को यही प्रेरणा है कि आप उद्यम करें तो अवश्य सफल होंगे। अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार आज ही योजना बनाएँ, न केवल योजना बनाएँ, वरन् उस पर अमल करने के लिए लग जाएँ।, अंधेरा धीरे-धीरे स्वत: कटता जाएगा, उजियारा मुखर होता जाएगा। अच्छा नजरिया, अच्छी सोच, अच्छा श्रम, अच्छा लक्ष्य, अच्छी योजना, अच्छा विश्वास - ये सभी वे गुर हैं जो हमें हमारी मूल्यवान सफलता प्रदान करते हैं। For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा के दो दीप जलाएं मनुष्य का जीवन प्रकृति की ओर से मिला हुआ महान् वरदान है। यदि हम प्रसन्न और विश्वास भरे हृदय के साथ जीवन को निहारें तो जीवन हमें स्वर्ग का पवित्र हिस्सा नजर आता है। वहीं यदि खिन्न और विपन्न हृदय से जीवन को निहारा जाय तो जीवन नरक का नमूना नजर आता है। जीवन को स्वर्ग या नरक बनाना मनुष्य का खुद का फैसला है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने स्वर्ग जैसे जीवन को भी नरक बना लेते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो नरक जैसे जीवन को स्वर्ग बना लिया करते हैं। तीन और तीन छः भी हो सकते हैं, नौ भी हो सकते हैं, शून्य भी हो सकते हैं और तैंतीस भी हो सकते हैं। यह मनुष्य की व्यवस्था पर निर्भर है कि वह अपने जीवन के अंकों को दुगुना, तिगुना या शून्य का परिणाम देता है अथवा तैंतीस गुमा करता है। अगर कुदरत ने किसी को शक्ति प्रदान की है तो वह उसका उपयोग निर्माण या विध्वंस में करे यह उसी पर निर्भर है। प्रकृति-प्रदत्त वाणी का उपयोग मनुष्य सुमधुर वचनों के लिए करता है For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा के दो दीप जलाएँ ____33 या विषैले व्यंग्य बाणों के लिए, यह उपयोगकर्ता पर निर्भर है। 'ग' से 'गधा' और 'गणेश' दोनों बनते हैं, 'स' से 'सत्य' और 'सत्यानाश' दोनों होते हैं। हम अपनी जिह्वा से किस शब्द का किस भाव से, किस अर्थ में और किस प्रयोजन के लिए उपयोग करते हैं, यह उपयोग करने वाले पर अवलंबित है। मनुष्य का जीवन तो तानपूरे के तारों की तरह होता है जिसे वह साध ले तो मीराबाई के गीत, चैतन्य महाप्रभु का नृत्य या तुलसीदास के महाकाव्य को अपनी स्वरलहरियाँ दे सकता है। हाँ, अगर उसने तारों को साधने की बजाय अधिक कस दिया तो तानपूरा संगीत का आधार न बनेगा, अपितु वह किसी कौवे की कांव-कांव बन जायेगा। अगर तानपूरे के तारों को जरूरत से अधिक ढीला छोड़ दिया जाय तो तानपूरा संगीत की फुलवारियाँ बरसा न पायेगा। वह बेसुरा हो जायेगा। जिसे जीवन के तानपूरे को साधना आ गया, तारों को किस मात्रा में कसा या ढीला छोड़ा जाय, व्यक्ति को अगर यह कला आ गई तो ऐसा लगेगा मानो आम्र वृक्ष पर कलियाँ खिल गई हैं और कोयल कुहुक रही है। जो अपने जीवन को कोयल का संगीत दे सकता है, वह जीवन को आनन्द की फुलवारियों से महका सकता है। वह अपने जीवन को बेसुरे रागों में क्यों उलझायेगा ? मैं जानता हूँ कि अगर आपको जीने की कला मिल जाय तो धरती का नरक बदलने के लिए किसी धर्मराज या यमराज की जरूरत नहीं होगी। मुझे नहीं पता कि किस धर्मराज ने नरक को स्वर्ग बनाया हो या यमराज ने स्वर्ग में जाकर उसे नरक में तब्दील किया हो। लेकिन मैं भलीभाँति जानता हूँ कि जब-जब मनुष्य ने जीवन को जीवन का आयाम दिया तथा जीने की कला अपनाई, तब-तब उसने धरती को,जीवन को, जीवन की व्यवस्थाओं को स्वर्ग जैसा, बदरीवन जैसा आयाम और सौन्दर्य प्रदान किया है। धरती पर दिव्य पुरुषों को भी नरक का सामना करना पड़ा है। पृथ्वी से चले जाने के बाद भले ही उनके प्रयासों तथा कार्यों को अनुकरणीय माना जाय। यहाँ जीसस को सूली पर टांग दिया जाता है, मंसूर के हाथ-पाँव काट दिये जाते हैं, सुकरात को जहर पीना पड़ता है और महावीर के कानों में कीलें ठोंकी जाती है। जिसने अपने जीवन को स्वर्ग बनाने का स्वरूप जान लिया, For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए उसे अगर नरक में भी भेज दिया जाय तो वह उसे भी स्वर्ग में बदलने की कला जानता है। क्या कभी किसी को वैर का सामना नहीं करना पड़ता ? क्या किसी के क्रोध का उसे मुकाबला नहीं करना पड़ता ? क्या किसी की लाठी और शक्ति का सामना नहीं करना पड़ता ? जरूर करना पड़ता है, लेकिन यदि तुम जीने की कला जानते हो तो कोई तुम्हारे सम्मुख अंगारा बनकर आये और तुम सागर हो जाओ तो वह अंगारा निष्प्रभावी हो जाएगा। नरक तुम पर हावी न हो पायेगा। सम्भव है, तुम्हारा स्वर्ग उसे भी कहीं स्वर्ग बना दे। मैं चाहता हूँ, हर व्यक्ति को जीने की कला मिले। वह धार्मिक और आध्यात्मिक बने, उससे पहले उसे जीने की कला आ जाए। 34 जब तक व्यक्ति के मन में निश्चिंतता, शांति और सहजता नहीं हैं, उसके हृदय में सहज प्रसन्नता और प्रमोद भाव नहीं है तब तक वह धार्मिक कैसे हो पाएगा? वह आध्यात्मिक कैसे हो पाएगा? धर्म और अध्यात्म तो जीवन'शिखर के अगले सोपान हो सकते हैं, पहली सीढ़ी बिल्कुल नहीं। पहली सीढ़ी है व्यक्ति को जीना आये। जन्म तो हो गया है लेकिन मरे नहीं हैं, ऐसी अवस्था में जीवन जीना अपनी चलती-फिरती लाश को ढोना है। दुनिया के किसी भी व्यक्ति के जीवन में अगर तनाव है, मानसिक अवसाद है, अनिद्रा, ईर्ष्या, जलन है, दिन-रात किसी प्रकार का चैन नहीं है तो उसे हम किस प्रकार जीवित मान सकते हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि रोग कुछ है और दवा कुछ और दी जा रही है । देखें आप अपने जीवन को भी । कहीं आप भी तो इन्हीं रोगों से ग्रस्त तो नहीं हैं। कहीं हमारा हृदय, हमारा मन, हमारी आत्मा ऐसी स्थिति में तो नहीं पहुँच गई है कि सूखी मिट्टी की तरह हम दरार-दरार हो चुके हैं और हमारे भीतर इतने घाव लग चुके हैं कि हम बाहर से तो मुस्करा रहे हैं और रात में सोते समय आंसू ढुलका रहे हैं। हम सभी अपने मन को तलाशें । - मैं देखता हूँ कि व्यक्ति ऐसी बोझिल जिंदगी जी रहा है जहाँ वह बाहर से तो बेफिक्र लेकिन भीतर दबावों से भरा हुआ है । बोझा तो ढोना पड़ता है लेकिन उसे क्या कहेंगे जहाँ सामान तो कहीं नहीं ले जाना है फिर भी उसे ढोने की आदत पड़ जाती है। महिलाओं को देखें, उन्हें चांदी का झुमका चाहिये । For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा के दो दीप जलाएँ 35 उसमें दो-चार बड़ी-बड़ी चाबियाँ भी ! वे चाबियाँ चाहे किसी अलमारी या तिजोरी में न लगती हों फिर भी .....! वे तो उन्हें चाहिए ही। मैंने किसी घर में एक बंगाली महिला को देखा जो वहाँ घर का काम किया करती थी। मैंने देखा कि उसकी साड़ी के एक पल्ले में चार-पाँच बड़ीबड़ी चाबियाँ बंधी हैं। सोचा कि काम तो नौकरानी जैसे हैं पर चाबियाँ रईसों जैसी। वे तो किसी जवाहरात की दुकान या तिजोरी की मालूम होती थीं। मैंने उससे पूछा, ‘बहिन, तुम्हारे घर में क्या इतने बड़े-बड़े ताले हैं जो इतनी बड़ीबड़ी चाबियाँ रखती हों ?' वह सकपका गई, लेकिन मुस्कराते हुए आगे चली गई। मैंने उसे धन्यवाद दिया कि वह भी चाबियों की व्यर्थता जान गई है कि चाबियाँ केवल दिखाने के लिए होती हैं। यह मनुष्य की आदत है कि उसे बोझ के बिना जीवन बेकार लगता है। हमें इस बोझ की यंत्रणा से बाहर आना है। मैंने देखा है कि कुछ साधु-संत स्वयं को शारीरिक यंत्रणा देते हैं तो संसारी लोग मानसिक यातनाएँ ओढ़े रहते हैं। अगर वे अपने मन को स्वस्थ रखने का तरीका स्वयं जान लें तो आधी चिकित्सा स्वयं करने में समर्थ हो जाएँगे। तब उन्हें किसी न्यूरो-फिजिशियन के पास नहीं जाना पड़ेगा। प्रायः औषधियाँ तो मनुष्य के घटे हुए आत्मबल को बढ़ाने के लिए नहीं दी जाती हैं लेकिन अगर वह स्वयं ही अपना आत्मबल अथवा मनोबल जाग्रत कर ले तो जो काम दवा करेगी, वह खुद ही कर सकेगा। तुम्हारा संकल्प, साहस और शौर्य सब कुछ कर सकता है। आप प्रत्येक कार्य प्यार से करें, उदासीनता से नहीं। ___मैं हमेशा कहा करता हूँ कि कोई भी काम छोटा नहीं होता। छोटे होते हैं विचार। दान की रोटी खाने की अपेक्षा अपनी मेहनत की रूखी-सूखी रोटी खाना कहीं अधिक श्रेष्ठ है। जीवन में स्वावलम्बन को अपनाना अपने जीवन को और अधिक दस वर्ष का आयुष्य देना है। तुम किस मनोदशा से कार्य को सम्पादित करते हो, वही मूल्यवान है। अगर बोझिल मन से या बेमन से आप किसी कार्य को करेंगे तो वह कार्य आपके पाँव की बेड़ी बन जाएगा। वहीं आप यदि प्रसन्नचित्त होकर कोई कार्य करते हैं तो वही कार्य आपके पाँव की पाजेब बन जाएगा। जो For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए कार्य बंधन अथवा बेड़ी बनता है, वही कार्य मुक्ति का प्रथम द्वार भी बन सकता है बशर्ते तुम अपने कार्य से प्यार करना सीख जाओ। अगर तुम जिंदगी भर खुशियाँ चाहते हो, आनन्द और प्रसन्नता चाहते हो तो मैं कहूँगा कि आप अपने काम से प्यार करना सीखें। थोड़ी-सी खुशियाँ छोटे से कामों से मिल जाती हैं, लेकिन जीवन भर की खुशी केवल अपने काम के प्रति प्यार से ही मिलती है। तहजीब तथा सम्मान से आप अपना कार्य करें। जब भी मनोयोगपूर्वक आप अपना कार्य करेंगे, वह कभी भी भारभूत नहीं लगेगा। हर कार्य आपको सुख का सुकून दे जाएगा। अगर कार्य बोझ लगे तो उसे छोड़ें नहीं, बल्कि अपनी मनोदशा को बदलने की कोशिश करें जिसके कारण आपको काम बोझिल लगता है। आईने बदलने से सौन्दर्य नहीं बनता। आपकी जैसी शक्ल है आईना वैसी ही शक्ल प्रतिबिम्बित करता है। हाँ, उदास और गमगीन चेहरों को फूलों जैसा खिला लेने से अवश्य ही आपके आसपास सुवास फैल जाएगी। चेहरे की खुशहाली आईने में भी नजर आएगी। मनोदशा के बदलते ही सब सुरुचिपूर्ण हो जाता है। भोजन भी करें तो आनन्दपूर्वक, पूरा रस लेकर। यदि आप भाग-दौड़ की जिंदगी में तनिक दिल लगाकर भोजन करें तो आपको भोजन की सुस्वादुता का पता चलेगा। जीवन का प्रत्येक कार्य एक मन से सम्पादित होना चाहिए। जीवन में सफलता पाने का यही मूल मंत्र है। जीवन में जिस कार्य को करो, उस समय वैसा ही मन रखो। एक काम-एक मन जीवन की सफलता का राजमंत्र है। यह आपको उन सोपानों तक पहुँचाएगा जहाँ जाने की आपकी आकांक्षा है। बोझिलता को उतार फेंकना ही आपकी समझदारी है। तकिया रात में नींद के समय बहुत सुकून देता है लेकिन दिन में तो उसे साथ लेकर नहीं चला जा सकता। रात में जिसने सुख दिया, वह दिन में बोझ बन जाता है। दिन में जिसने सुख दिया, वह रात में बोझ बन जाता है इसलिए उसे किनारे कर देना ही ठीक है। जब तक सुख मिला ठीक है। अब उसे परे हटा ही दो। बोझ को उतार देने पर ही नवीनता का अनुभव कर सकोगे। जैसे साँप केंचुली उतार देता है, ठीक उसी तरह अपने दिल के बोझों को उतार दो। For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा के दो दीप जलाएँ 31 मन में सतत रहने वाली चिंताएँ व्यक्ति का पहला बोझ है। तुम चिंता से बाहर निकलो। चिंता आदमी के जीवन को वैसे ही चाट जाती है जैसे भ्रष्टाचार किसी देश को तथा आतंकवाद पूरे विश्व को। तुम प्रकृति पर विश्वास करो। प्रकृति की व्यवस्था पर आस्था रखो। जन्म भी प्रकृति की ही व्यवस्था का एक चरण है और मृत्यु भी ! संयोग-वियोग, हानि-लाभ, सबके पीछे प्रकृति की व्यवस्था-शैली काम कर रही है। यहाँ तक कि हमारी भाग्यरेखा तथा ग्रहगोचर के पीछे भी प्रकृति की शक्ति ही काम कर रही है। जो प्रकृति को, उसके गुणधर्म को धैर्यपूर्वक समझ लेता है, वह चिंता और जीवन की उठापटक से आंदोलित नहीं होता। यदि प्रकृति पर विश्वास करोगे तो प्रकृति भी तुम्हें सहयोग देगी और तुम्हारे लिए रास्ता खोलेगी। सूरज आज पश्चिम में डूब गया तो क्या हुआ ! धीरज धरो। प्रकृति पूरब की गोद में फिर सूरज का उपहार भर देगी। जो व्यक्ति प्रकृति के जितना करीब रहता है, वह उतना ही सहज और चिंतामुक्त जीवन जी लेता है। मैं आपको अपनी विचारधारा और मानसिकता को प्रकृति के अनुरूप बनाने की प्रेरणा दूंगा। मैं सुखी हूँ इसलिए कि मैं प्रकृति का पुजारी हूँ। प्रकृति मेरा हिस्सा है और मैं प्रकृति का। भला, जब जन्म उसी ने दिया है तो मृत्यु भी उसी के दिये आएगी। दोनों ही जब इतने सहज हैं तो जीवन को फिर हम असहज क्यों बनाएँ ? असहजता व्यक्ति को प्रपंची बनाती है और अन्तरमन का अन्तरद्वन्द्व देती है। तुम निश्चितता का कमल खिलाओ। तन-मन से तथा उसके गुणधर्मों से सदा कमल की तरह ऊपर उठने की, ऊपर खिलने की, ऊपर जीने की अलख जगाओ। तुम चिंता नहीं, चिंतन करो। चिंता अतीत की होती है और चिंतन वर्तमान का होता है। चिंतन का तो परिणाम निकलता है किन्तु चिंता स्वास्थ्य को, शरीर को खत्म कर देती है। चिंतन से समाधान होता है. चिंता मानसिक अवसाद देती है। चिंता का परिणाम घुटन, तनाव और अनिद्रा है। चिंता ऐसा लगता है जैसे किसी ने जीते जी चिता में डाल दिया हो। कहने को तो मात्र एक बिन्दु का ही फर्क है लेकिन यथार्थ में कोई फर्क नहीं है, क्योंकि आदमी दोनों में For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए ही जल रहा है। चिंता में व्यक्ति गीली लकड़ी की तरह धीरे-धीरे जलता ही रहता है जबकि चिता कम-से-कम एक ही बार में राख तो कर देती है। चिंता लिक्विड ऑक्सीजन में पड़े हुए व्यक्ति की तरह है। ऑक्सीजन मरने नहीं देता और लिक्विड जीने नहीं देता। मैं किसी शहर में मेहमान था। एक व्यक्ति हमारे रहने के स्थान पर ही आकर सोया करता था। उसकी उम्र साठ-पैंसठ के आसपास थी और उसकी पत्नी मर चुकी थी। वह रात में बहकता, 'अरे, तुम तो मर गई किन्तु मेरा जीना हराम कर गई।' चिंता के कारण सोच-सोच कर आदमी घुटता रहता है। नतीजतन न रात में चैन, न दिन में चैन। तुम अतीत-भविष्य की नहीं, आज की समस्याओं के बारे में सोचो ताकि उनका कुछ समाधान निकल सके। जो होना था, वह हो चुका। अनहोनी कभी होती नहीं है, होनी को कभी टाला नहीं जा सकता। जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है। सब कुछ संयोगाधीन है अच्छा होना भी, बुरा होना भी। किसी भी होनी को स्वयं पर हावी मत होने दो अन्यथा तुम चिंता और द्वंद्व के ऊहापोह से घिर उठोगे। यह खतरनाक व्यूह-चक्र है। इससे बचो। होनहार प्रबल होता है, होनहार को हो लेने दिया जाए। जो होना ही है, सो हो ले। एक प्यारी सी घटना है- एक संत हुए। वे अपने युवा शिष्य के साथ चले जा रहे थे। तभी न जाने कहाँ से उनका विरोधी व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और संत की पीठ पर लाठी मार दी। उसने इतनी जोर से मारा कि लाठी उसके हाथ से छूट गई। वह तो घबराया कि अब संत उसे भी लाठी से पीटेंगे। यह सोचते हुए वह उल्टे पांव तेजी से दौड़ गया। तभी संत नीचे झुके। उन्होंने लाठी उठाई और भागते हुए व्यक्ति को आवाज दी, 'अरे भाई, अपनी लाठी तो साथ में ले जाओ।' साथ चलने वाले युवा ने कहा ‘आश्चर्य है, आपको उसने मारा, क्या आपको गुस्सा नहीं आया?' संत ने कहा, 'गुस्सा तो आया और गुस्से के For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा के दो दीप जलाएँ कारण ही मैंने लाठी उठाई लेकिन लाठी उठाते-उठाते मन ने दूसरी दिशा बदल ली। उसने कहा, 'जिस पेड़ के नीचे से तुम गुजर रहे हो, अगर उसी पेड़ की टहनी गिरकर तुम्हारे कंधे या पीठ पर गिर जाती तो क्या तुम उसे पलट कर मारते? क्या तुम पेड़ को वापस गाली देते?' युवक ने कहा, 'महाराज, वह तो संयोग कहलाता।' 'बेटा, मुझे भी ऐसा ही लगा कि पेड़ से गिरने वाली शाखा को अगर संयोग कहा जा सकता है तो किसी के द्वारा मारी गई लाठी को भी संयोग क्यों नहीं माना जा सकता?' जीवन में होने वाली हानि को, जीवन में मिलने वाली विपरीत परिस्थिति को, विपरीत निमित्तों को अगर संयोग भर मान लिया जाय तो तुम पाओगे कि घटना घट गई, पर कमल का फूल वैसा का वैसा ही है। यही तो श्रावकत्व है, निर्लिप्तता है। ___चित्त के बोझों को उतारने के लिए हीन-भावना को निकाल फेंकिये। हीन-भावना से ग्रसित होने की बजाय आप अपने भीतर सफल होने का विश्वास अर्जित कीजिये। अपने भीतर सफलता की कामना संजोइये। आप यह न सोचें कि आप में क्षमता नहीं है। असल में आपके अन्दर असीम क्षमता है, आवश्यकता केवल उसके विकास की है। ऐसा कौन-सा कार्य है जिसे हम न कर सकें ? उद्यमशीलता से सब कुछ सम्भव है। स्वयं को हीन-भावना से मुक्त रखें। रूप, रंग, वर्ण, जाति, धन किसी भी कारण से स्वयं को हीन महसूस न करें। हीनता की ग्रंथि और अहंकार की ग्रंथि दोनों समान रूप से घातक हैं। विकलांगता भी सर्वांगीण विकास में बाधक नहीं बन सकती अगर आपके भीतर अदम्य उत्साह और कुछ कर गुजरने की आकांक्षा है। आज या किसी भी समय में जो शिखर-पुरुष हुए हैं या जिन्होंने कुछ कर दिखाया है, वे अपने जीवन के प्रारम्भिक काल में अत्यन्त संघर्षशील रहे हैं। सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है। लाल बहादुर शास्त्री गरीब किसान परिवार के पुत्र थे जो नदी तैरकर पढ़ने के लिए इलाहाबाद जाया करते थे, वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। अब्राहम लिंकन भी गरीत परिवार से थे किन्तु जीवन में बार-बार असफल For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए होने पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अंततः वे अमेरिका के राष्ट्रपति -पद पर आसीन हुए। हमारे देश के कवि सूरदास नेत्रहीन होते हुए भी अमर गीतों की रचना कर गये। आज के युग में, संगीतकार राजेन्द्र जैन ने नेत्रहीनता के उपरान्त श्रेष्ठ संगीत का सृजन किया है। डॉ. रघुवंश सहाय हाथों से विकलांग हैं किन्तु उन्होंने श्रेष्ठ साहित्य की रचना की है। तात्पर्य यह कि विकलांगता या निर्धनता किसी के विकास में बाधक नहीं है । बाधा तो यही है कि वह स्वयं को छोटा, नीच, हीन और गरीब मान लेता है। कृपया अपने विश्वास को छोटा मत होने दीजिए । रंग, जाति भले ही हलके हों, पर अपने हृदय को हीन मत होने दीजिए। मन को सुन्दर बनाइए । जीवन को श्रेष्ठ बनाइये । रोजगार कमाना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है जीवन को बेहतर बनाना, व्यक्तित्व को बेहतर बनाना । आखिर एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व अर्जित करना जीवन की सबसे बड़ी कमाई ही है। 40 मैं एक घर में मेहमान था, मैंने देखा कि पति तो काला और असुंदर है लेकिन पत्नी अत्यन्त गोरी, रूपवान व सुंदर है। पति इतना कुरूप कि कोई देखे तो शायद पसंद ही न करे, शादी करना तो दूर की बात । पत्नी इंजीनियर और पति डॉक्टर। मैंने उस महिला से पूछा, 'क्या बात है, आप लोगों में इतना फर्क है! क्या आपने अपनी पसंद से ही शादी की है या माता-पिता ने ?' कई बार ऐसा होता है लड़का-लड़की एक-दूसरे को देख नहीं पाते और माँ - बाप ही सम्बन्ध तय कर देते हैं। उसने कहा, 'शादी मैंने अपनी पसंद से ही की है।' मैंने कहा, 'आप तो इतनी सुंदर हैं और वह ?' 'मैंने इस व्यक्ति की सूरत से नहीं सीरत से शादी की है' - बीच में ही बात काटते हुए वह बोली, 'इस व्यक्ति का स्वभाव और प्रकृति इतनी सुंदर है कि मैंने इससे शादी कर ली ।' शाम को जब डॉक्टर घर पर आया तो मैंने उससे भी पूछा, 'आपका रंग काला है, चेहरे पर चेचक के दाग हैं। क्या आपको अपनी कुरूपता कभी अखरी नहीं?' ‘अखरी, बहुत अखरी । जब मैं छोटा था तब गली के लड़के मुझे कालू-कालू कहकर चिढ़ाते थे। मुझे बहुत गुस्सा आता था और मैं चाहता था कि इन्हें जवाब दूँगा। लेकिन जवाब क्या और कैसे देता? मैंने अपने बचपन For Personal & Private Use Only F Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा के दो दीप जलाएँ में ही, जब मैं कंचे खेला करता था तभी यह संकल्प कर लिया कि मैं अपनी जिंदगी में इतना सुंदर इंसान बनूँगा, अपने हृदय को इतना महान् बनाऊँगा कि शरीर की, चेहरे की कुरूपता ढक जाय। उसी दिन से मैंने स्वयं को शिक्षा से जोड़ लिया। मन लगाकर पढ़ाई की और गोल्ड-मेडल के साथ चिकित्सक की उपाधि प्राप्त की। मैं किसी के साथ भी कटु वचन नहीं बोलता हूँ, बदसलूकी नहीं करता हूँ। मैंने अपनी आँखों को हमेशा मुस्कराते हुए रखा और जबान से सदा मीठा बोला। मुझे याद नहीं कि मैंने कभी किसी को पीड़ा दी है।' जीवन-विकास के लिए यह घटना पर्याप्त है। हीनता की ग्रंथि को लेकर आप जीवन में कभी विकास नहीं कर सकते। कूप-मंडूक न बनें। सागर बहुत विशाल है, सागर की ओर से आप सबको निमंत्रण है कि हृदय की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करें। आएँ, कर्तव्य-मार्ग आप सभी को पुकार रहा है। आप अपने कर्तव्य-मार्ग के लिए सन्नद्ध हो जायें। ईश्वर आपका साथ निभाएगा। प्रकृति आपका साथ निभाएगी। जीवन में अगर कई मार्ग बंद भी हो गए हैं, तब भी चिंता न करें। जो कुदरत जीवन में एक द्वार बंद करती है वही कुदरत दूसरा द्वार खोल भी देती है। विश्वास रखो, जिसने तुम्हें जीवन दिया है वह जीवन की व्यवस्थाएँ भी देगा। जिसने तुम्हें पार लगने की नौका दी है, वह हवाएँ भी अनुकूल करेगा। अपनी चिंता को खुद छोड़ें और आत्मविश्वास का दीप दिल में जलाकर हीन-भावना पर विजय प्राप्त करें। हर सुबह उगता सूरज हमें यही तो प्रेरणा देता है कि विकास की सम्भावनाएँ अभी और भी हैं। तुम फिर से प्रयत्न करो, फिर से प्रयत्न करते रहो। अपने हर कार्य को और अधिक बेहतर बनाने के लिए प्रयत्नशील रहो। जो श्रेष्ठ को भी और अधिक श्रेष्ठ बनाने की जागरूकता और मानसिकता रखते हैं वे ही सफलता की ऊँचाइयों को हासिल किया करते हैं। उनमें से ही तब कोई महावीर या मैक्समूलर बनता है, बुद्ध या बिड़ला होता है, कृष्ण या कबीर होता है। __द्वार अभी और खुले हैं। अवसर की मात्र प्रतीक्षा मत करते रहो। चार कदम आगे बढाओ, सफलता का सूरज आपके रास्ते पर घोर अंधेरा और बाधाओं के बावजूद रोशनी बिछाने के लिए तत्पर है। For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए अंतरमन की शांति, समृद्धि और सुकून के लिए स्वयं को मानसिक तनाव से भी बचाएँ। चिंता और हीन-भावना की तरह ही तनाव भी हमारे मन को और जीवन को कतरे-कतरे में बांट देता है। मेरी समझ से चिंता, तनाव और हीन-भावना इन तीन तरह की कमजोरियों पर विजय प्राप्त करना ही सच्ची आत्मविजय है। मौसम के जलते पाँवों को मिली मेघ की छाँव। सूखी शाख सुआ के रंग में फिर से डूब गई। पथ के चेहरे पर दाढ़ी-सी ऊगी दूब नई। नाई-सा दे रहा निमंत्रण पवन हर गली गाँव। दादुर के बच्चों की टोली इंगलिश बाँच रही। मोर पंखिया मुकुट बांधकर सन्ध्या नाच रही। मस्ती भरी नर्मदा जैसी हुई जिन्दगी नाव.../ तनावमुक्त जीवन हो तो प्रेम और आह्लाद का रास्ता खुलता है। यह मैं जो कुछ कह रहा हूँ, यह बिलकुल ऐसा ही है जैसे गर्मी से जलते हुए पाँव को कोई मेघ की छाँव मिली हो। नर्मदा की धारा में कोई नाव मिली हो। यदि हम छोटी-छोटी बातों पर ध्यान न दें, उत्तेजित और उद्विग्न न हों, चिंता की चिंगारी न जलाएँ तो सहज ही मानसिक तनाव से बचा जा सकता है। तनाव निश्चित ही जीवन की बहुत बड़ी बाधा है। पर एक बात यह भी सच है कि मन की ऐसी कौन-सी कमजोरी है जिस पर जीतने का संकल्प और विश्वास हम अपने भीतर For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशा के दो दीप जलाएँ करें और जीत न पाएँ ? तनाव ही क्यों, जीवन की हर बाधा को आत्मविश्वास से दूर किया जा सकता है। अब तक हमने जीवन चाहे जैसा जीया हो पर अगर जीवन की सही समझ आ जाए तो सुबह का भूला सायं को घर लौटा हुआ ही कहलाएगा। समझ के अभाव में हम जीवन भर भटकते हैं और चेहरे पर मुखौटे ओढ़ते हैं । सुबह के भूले शाम को लौटे। गली-गली जीवन भर भटके, गुजरा सफर ट्रेन में लटके । संगी-साथी थे बहाव में, हम रह गए धार से कटके/ हर चेहरे पर चढ़े मुखौटे ।। आँधी-तूफानों के झोंके, किए प्रयास, रुके कब रोके । पर्वत से दुःख काँधे पर धर, चलते रहे, मगर रो-रो के । लोग मिले जैसे कजरौटे ॥ शूल हठीले, पथ रपटीले, गहरी खाई, ऊँचे टीले । खूब दिये धोखे पर धोखे, फूलों से तन, मन पथरीले । काट रही अब याद बकौटे। सुबह के भूले शाम को लौटे ॥ 43 हमेशा 'रिलेक्सेशन' को महत्त्व दीजिए । तन में भी रिलेक्स और मन में भी रिलेक्स। ऐसा कोई भी काम मत कीजिए जिससे टेंशन होता हो । फिर चाहे वह कितना भी जरूरी क्यों न हो। काम को कभी भी दबाव में मत कीजिए, प्रेम For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए से कीजिए। दबाव में किया गया काम ही काम को बोझिल बनाता है। प्रेम से करो तो वही काम हलका हो जाता है। बोझिल मन से सगे भाई को देखोगे तो वह भी भार महसूस होगा, वहीं अगर खुशमिजाजी के साथ अगर किसी दूर के रिश्तेदार से भी मिलोगे तब भी तुम्हें भाई जैसा ही सुकून मिल जाएगा। मैं फिर कहना चाहता हूँ कि हमेशा रिलेक्सेशन को मूल्य दो, टेंशन को नहीं। प्रकृति से मोहब्बत करो, प्रकृति के सान्निध्य में जीओ। प्रकृति की व्यवस्थाओं को अपनी आँखों में बसा लो यानी जीवन हो नैसर्गिक और प्राकृतिक। प्रकृति से जुड़कर ही जीवन के विकास में विश्वास रखो। कार्य हमेशा रचनात्मक हो और सोच सदा सकारात्मक हो। जफर क्या पूछता है राह, मुझसे उसके मिलने की। इरादा हो अगर तेरा तो हर जानिब से रस्ता है। अच्छी सोच रखो, अच्छा नजरिया रखो। जीवन को उत्साह और प्रेम से जीओ। जीवन चाहे चार दिन का हो या चालीस साल का। उसे ज़िन्दादिली के साथ जीया जाना चाहिए। जीवन में चाहे अभाव हो या प्रभाव, उसे खुश मिजाजी से जीओ। अगर आप कर्मशील हैं तो गलतियाँ तो होंगी ही। हो चुकी गलती का रोना रोने की बजाए उसे फिर न दोहराने की जागरूकता रखो। गलती केवल उसी से नहीं होती जिन्होंने जीवन में कुछ किया ही न हो। आशापूर्ण दृष्टिकोण अपनाइए। यदि अपनी मनोवृत्ति को बदलकर आत्मविश्वास की वृत्ति अपनाएँगे तो आपका रूप वैसा ही होगा, जैसे सूरजमुखी फूल का होता है। सूरजमुखी का पौधा अपनी परछाँई नहीं देखा करता, वह तो सूर्य की ओर मुँह करके खड़ा रहता है। आप भी शांति, विश्वास, आशा और उत्साह के साथ उगते हुए सूर्य को प्रणाम करें। आपका भविष्य सफलता की अद्भुत संभावनाएँ लिए हुए आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन ROICE जीवन का पहला अनुशासन समय का पालन है। जो महानुभाव सम का सर्वतोभावेन उपयोग और पालन करते हैं, वे समय के अनुचर नहीं वरन् समय के शासक हैं। जिन्होंने स्वयं को समय के साथ नियोजित कर लिया है और समय के अनुशासन को जीवन का अनुशासन स्वीकार कर लिया है, वे अपने जीवन में सदा व्यस्त और व्यवस्थित रहते हैं। अगर कोई व्यक्ति स्वयं को दुःखों से सदैव मुक्त रखना चाहता है तो मैं हर महानुभाव से अपने जीवन का यह अनुभव कहूँगा कि आप अपने आपको सदैव व्यस्त और व्यवस्थित रखिए। __ जो हर समय व्यस्त रहता है, वह व्यवस्थित होता है। वह जीवन के ऊहापोहों से मुक्त भी रहता है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। जो निकम्मे बैठे रहते हैं, वे निष्क्रिय बनकर समय का उपयोग करना नहीं जानते। मैं हर किसी महानुभाव को जीवन का जो पहला सोपान समर्पित करना चाहता हूँ वह समय का पालन ही है। For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए जिन्होंने समय का उपयोग करना जान लिया, वे अपने जीवन में एक ऐसा ‘सेविंग अकाउंट' खोल लेते हैं जिससे वे समय के हर क्षण का उपयोग और उनकी बचत कर लिया करते हैं। समय सबके लिए एक जैसा नहीं होता। समय के हजार-हजार रूप होते हैं। संसार में जितने भी प्राणी हैं, समय के भी उतने ही रूप हैं। ऐसे लगता है कि हर व्यक्ति अपने आप में समय का ही प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब है। समय ने तुम्हें जैसा बनाना चाहा, वैसा तुम बन चुके। अब तुम समय का जैसा उपयोग करना चाहोगे, समय तुम्हारे लिए वैसा ही अपना स्वरूप निर्धारित कर लेगा। हाथ में पहनी हुई घड़ी महज़ समय देखने के लिए नहीं होती। घड़ी तो सदा समय पर चलने के लिए होती है। अगर आप समय के आधार पर नहीं चल पाते हैं तो मैं कहूँगा कि आप अपने हाथ पर घड़ी का भार न ढोएँ। अगर समय पर चलने का मानस है तो आपके लिए घड़ी प्रकृति का एक महान् वरदान साबित हो जाएगी। आप समय के साथ चलेंगे तो समय भी आपके साथ चलेगा। आप समय के मित्र बनिए, समय आपका मित्र बनेगा। आप समय को निभाएँ, समय आपको निभाएगा। आपका हर कदम अगर समय के अनुरूप है तो स्वयं समय ही आपकी परछाँई बनेगा। संसार के सभी रहस्यमयी तत्त्वों में समय भी एक महत्वपूर्ण तत्त्व है। कल्पना करें, अगर धरती पर समय न होता तो शायद जो व्यक्ति जवान था, वह सदा जवान ही रहता और बूढ़ा होता तो हमेशा बूढ़ा ही रहता। समय ही कभी व्यक्ति को जन्म की ऋतु दे दिया करता है और कभी मरण का पतझड़ प्रदान कर दिया करता है। समय ही है जो कभी हर व्यक्ति के लिए संयोग का आधार बन जाता है और समय ही कभी वियोग का धरातल दे जाता है। यह समय ही है जो किसी बीज में से फूल को खिला देता है और किसी खिले हुए फूल को मुरझा भी देता है। यह समय ही है जो हमें दो पल पहले हँसी-खुशी और अठखेलियाँ प्रदान कर रहा था और दो मिनट बाद ही हमें शोकमग्न कर दिया करता है। समय ही संसार का सर्जक है, संसार का पालक है। संसार का विध्वंसक भी For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन समय ही है। हम भगवान ब्रह्मा की अर्चना इसलिए करते हैं कि वे संसार का सृजन करते हैं। समय ने हमारा सृजन किया इसलिए समय स्वयं ब्रह्मा स्वरूप है। भगवान विष्णु की हम इसलिए पूजा करते हैं कि विष्णु हम सब लोगों का पालन करते हैं। समय ही वह महामहिम है जो कि हम सब लोगों का पालन किया करता है। इसलिए समय में ही विष्णु का तत्त्व समाया हुआ है। महादेव की अर्चना हम इस भाव से करते हैं कि सृजन और विध्वंस के बीच भी शिवत्व का भाव बनाए रखा जा सके। शिव के बारे में जग जाहिर बात है कि जब शिव का तीसरा नेत्र खुलता है तो धरती पर प्रलय मच जाता है। फिर-फिर धरती का पुनरुद्धार होने लगता है। शिव व्यक्ति के लिए महाकाल-रूप हुआ करता है। सच तो यह है कि समय स्वयं मनुष्य की मृत्यु और निर्वाण का द्वार खोलता है। समय केवल बादल की रचना ही नहीं करता, अपितु वह ज्वालामुखी और भूकंप का भी कारण बनता है। समय तो सबके पीछे रहने वाली आत्मा है। किसी मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु की मूर्ति होती होगी, किसी में महादेव की। मैं आप लोगों को ऐसे मंदिर से मुखातिब करवा रहा हूँ जो मंदिर आपके साथ है और जिसकी आभा आपकी परछाँई के रूप में है। क्या आप जानते हैं कि जो आपके कानों से सुन रहा है वह कौन है? जो आपकी आँखों से देख रहा है उसका परिचय क्या है ? आपकी जिह्वा के द्वारा जो आपके हृदय और उदर तक पहुँच रहा है, उसकी पहचान क्या है ? मैं कहूँगा वह समय है। वह समय ही है जिसके अनुग्रह से हम लोग आँखों के द्वारा देख रहे हैं। अगर समय हमसे रूठ जाएगा तो आँखों की पुतलियाँ वहीं विद्यमान रहेंगी, पर आँखों के पास देखने की रोशनी न बच पाएगी। कान के पुर्जे तो वही रहेंगे मगर सुनने वाला भीतर न बच पायेगा। ये कलपुर्जे किसी मशीनरी के बेकार हो चुके कुलपुों की तरह पड़े रहेंगे। एक समय में तीन-तीन देव समाए हुए हैं। ब्रह्मा भी हैं, विष्णु भी हैं और महादेव भी हैं। जो व्यक्ति समय के मूल्य को समझ लेता है, उसने तीन-तीन देवों की इबादत अनायास ही कर ली है। तुम समय के साथ चलकर देखो तो सही, समय के तीनों देवता तुम्हारे साथ-साथ चलेंगे। समय ने अब तक न जाने For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए कितने युद्ध देखे होंगे। समय ने न जाने अब तक कितनी पराजयों का सामना भी किया होगा। समय ने न जाने अब तक कितनी संस्कृतियों का उत्थान और पतन देखा है। जो राजा-महाराजा अपने महलों को देखकर गुमान किया करते थे, उनके गुमान और गरूरों को भी समय ने नेस्तेनाबूद किया है। कल जो वैभव-सम्पन्न राजमहल कहलाते थे, आज उन्हीं के खंडहर हमारे सामने हैं। ___ समय ने राम का वनवास भी देखा है और द्रौपदी का चीर-हरण भी। समय ने सीता की आँखों में आँसू भी देखें हैं तथा चीर-हरण के समय द्रौपदी के हृदय की पुकार को भी सुना है। समय ने कभी महावीर के कानों में कीलों को भी ठुकते हुए देखा है और जीसस को सलीब पर चढ़ते हुए भी निहारा है। समय हर बात का साक्षी और सूत्रधार है जिसने सत्य को जीने वाले सुकरात को एक बार नहीं दो-दो बार विषपान करते हुए देखा है। यह समय ही है जिसने भक्त कवयित्री को भी ज़हर का प्याला पीते हुए देखा है। उसने यह भी देखा है कि अगर कोई सच्चे हृदय से अपने प्रियतम को याद करे तो ज़हर का प्याला भी अमृत का प्याला बन जाया करता है। समय तो सबका साक्षी है। पाप सार्वजनिक मंच पर आकर करो या अपने बंद कमरे में, समय भलीभाँति जानता है कि हर पाप एक ज़हर होता है और ज़हर चाहे खुले आम पिएं या बंद कमरे में, जहर तो अपना असर दिखाता ही है। समय सबका द्रष्टा है। हमारे हर पुण्य का भी और हर पाप का भी। हम अच्छा करते हैं तब भी समय जानता है; बुरा करते हैं तब भी समय उसका साक्षी है। समय हर किसी व्यक्ति को उतना लौटा देता है जितना हम अपनी ओर से समय-समय पर सम्पादित करते हैं। समय परिवर्तनशील है। समय का अर्थ ही परिवर्तन है। समय के अनेक रूप हैं, अनेक अर्थ हैं जिनमें ‘परिवर्तन' समय का मौलिक स्वभाव है। इस सृष्टि का हर तत्व परिवर्तित हो रहा है। अगर दुनिया में कोई चीज नहीं बदलती तो वह स्वयं परिवर्तन है। स्वयं के अतिरिक्त वह हर किसी को बदलता रहता है। क्या हमारे पास कोई ऐसा लेखा-जोखा है कि हमने अब तक कितने परिवर्तन देखे हैं? जिसके माथे पर सफेद बाल उग आए हैं, कभी वे काले ही For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन थे। हम बदल गए। हमारा तन बदल गया। हमारे बाल बदल गए। हमारे अंग बदल गए। हमारे हाथ में लाठी चली आई है। हमारी आँखें कमजोर हो चली हैं। सब बदल रहा है यहाँ। कल हम जवान थे, उससे पहले बच्चे थे, उससे पहले माँ की कोख में थे, उससे पहले शरीर के एक अणुभर, समय के एक कण भर थे। समय ने ही हमें कण से छ: फुट की काया दी। यही समय जब बदलना शुरू होता है, तो पुन: घटते-घटते हम सब लोग केवल एक मुट्ठी भर राख हो जाया करते हैं। समय सबको बदल ही देता है। जो नदिया की धार इस समय इधर आ रही है, वह धार आगे चली जाती है। लगता है, धार वही है पर पानी आगे बह गया है। हमारे जीवन का एक चरण आगे चला गया। किन्तु सातत्य तो बना हुआ है, निरन्तरता बनी हुई है जिससे लगता है कि जीवन एक ही है। ये जो पंखें चल रहे हैं, सबको भलीभाँति पता है कि पंखे में केवल तीन ही पंखुरियाँ हैं लेकिन जब वह चलता है तो ऐसा लगता है जैसे उसमें तीस पंखुरियाँ होंगी। यह इस तरह चल रहा है कि पता भी नहीं चल रहा है। पहली पंखुरी कब दूसरी बन गई और दूसरी कब तीसरी बन गई ? आदमी को बोध तो तब हो, समय और जीवन का बोध तो तब हो जब आदमी रात को सोए तो काले बाल का आदमी हो और सुबह उठे तो सफेद बाल का आदमी बन चुका हो। तब आदमी को लगता है कि कहीं कुछ परिवर्तन हो रहा है वरना हर रोज आदमी स्नानघर में जाकर नहा लेता है या गंगा में जाकर डुबकियाँ लगा लेता है और जब वह फिर-फिर आईने के सामने पहुँच कर देखता है तो वह टनाटन, बिल्कुल वैसा का वैसा लगता है। पर ऐसा नहीं है क्योंकि वह रोज-ब-रोज बदल रहा है। सृष्टि परिवर्तनशील है, समय परिवर्तनशील है। मैं खड़ा था एक बार महादेव के मंदिर में। वहाँ शिवलिंग पर एक कलश लटक रहा था। लोग आते हैं और जलेड़ी पर पानी ढुलकाते हैं, पानी गिरता है और बह जाता है। मैं जब महादेव के उस शिवलिंग को देख रहा था कि देखतेदेखते मेरी नजर उस कलश पर चली गई जिससे एक-एक बूंद पानी शिवलिंग पर चढ़ रहा था। मुझे जीवन की प्रेरणा मिल गई कि यह जो कलश रखा है, यह For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए किसी शिव पर चढ़ाया जाने वाला अभिषेक नहीं है वरन् यह तो जीवन की वह मंगल प्रेरणा है जो शिवलिंग पर जल चढ़ाने वाले हर आदमी को इस बात का बोध देती है कि जैसे कलश से एक-एक बूंद पानी रिस रहा है, तुम्हारा जीवन भी ऐसे ही रिस रहा है। एक-एक बूंद, एक-एक बूंद। सांझ को कलश भरा, किन्तु सुबह फिर खाली हो गया। सुबह फिर कलश भरा, सांझ को फिर खाली हो गया। जन्म-जन्म यों ही भरते चले जाते हैं। हर जन्म का जीवन यों ही खाली होता चला जाता है। समय के इतिहास में अब तक न जाने हमने कितनी बार अपनी चिताएँ जलाई हैं। समय सब देख रहा है। समय सबका साक्षी है। समय महाभारत के युद्ध को भी देख चुका है। त्रेता के राम की आँखों में, समय ने आँसू भी देखे हैं। त्रेता के राम की आँखों में, आँसू का निर्झर पलता था, सीता का आँचल इसीलिए, करुणा से भीगा लगता था। सारा द्वापर ही उलझ गया, नारी के बिखरे बालों में। ज्योति तो कम, पर धुआँ बहुत, उठता था जली मशालों में। समय ने द्वापर-युग को भी देखा है। समय ने यह भी देखा है कि नारी के बिखरे बालों में किस तरह पूरा का पूरा युग उलझ जाता है और महाभारत शुरू हो जाता है। उसने सतयुग भी देखा है। उसने त्रेता और द्वापर युग भी देखें हैं और वह कलियुग का भी द्रष्टा है। अच्छे लोग आज भी हैं, बुरे लोग तब भी थे। कलियुग कल भी था जिसे समय ने सतयुग कहा। अच्छे लोग आज भी हैं जिसे लोग कलियुग कहते हैं। For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन 51 सब बदल रहा है, सब परिवर्तन हो रहा है। महल खंडहर हो रहे हैं, खंडहर महल बन रहे हैं। अपने जिन मकानों और भवनों को देखकर हम गरूर करते हैं, वे किसके रहे हैं ? सौ साल के बाद हर मकान पुराना हो जाता है और हजार साल के बाद हर धर्म भी जीर्णशीर्ण हो जाया करता है। ऐसा कौन है जो समय के इस ‘परिवर्तन-धर्म' को समझे? जिसने समय के इस परिवर्तन के मर्म को समझ लिया, मैं समझता हूँ कि वह समयातीत और कालातीत हो गया। पृथ्वी घूम रही है, सूरज घूम रहा है, चाँद, सितारे, ग्रह, नक्षत्र सब कुछ बदल रहे हैं। किसमें परिवर्तन नहीं आ रहा है ? सूरज भी जो हमें दिखाई देता है धूप से चमकता हुआ; इसकी भी गर्माहट बढ़ रही है। ओजोन की पर्तों में छेद हो चुके हैं। पृथ्वी घूम रही है। ताज्जुब की बात तो यह है कि केवल पृथ्वी ही नहीं घूम रही है बल्कि सारा ब्रह्माण्ड घूम रहा है। यह दशहरा मैदान भी घूम रहा है। ये अपने मकान भी घूम रहे हैं। हम भी घूम रहे हैं। समय के धरातल पर सब कुछ बदल रहा है, किन्तु सातत्य के कारण दिखाई नहीं देता। लगता है कि कल भी दशहरा मैदान यहीं देखा था और आज भी यहीं देख रहे हैं। जब सारी पृथ्वी घूम रही है तो क्या दशहरा मैदान टिका हुआ है ? अरे, जब हमारे हाथ पर पहनी हुई घड़ी भी चल रही है, हमारे हृदय की धड़कन भी जब लगातार चल रही है, हमारी नसों में, हमारी नब्ज में चलने वाला खून भी लगातार बहता चला जा रहा है तो हम कौन से स्थिर हैं ? सब बदल रहा है। जिसे आज आप बेटा कहते हैं कल वह पापा बन जाएगा। एक दिन ऐसा आएगा कि आज आप दादा हैं किन्तु कल मिट्टी में चले जाओगे और पोता कल दादा बन जाएगा। कौन समझेगा समय को? महावीर ने बहुत गहरी बात कही है। उन्होंने तो सारी सृष्टि के संचालन में मूल आधार ही समय को खड़ा कर दिया है। वे कहते हैं कि दुनिया में एक तत्त्व ऐसा होता है जो संसार में सब चीजों को गति देता है, सहायता देता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो हर किसी को स्थिति पाने में मदद करता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो आदमी को गति और स्थित करने में अवकाश देता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो किसी भी तत्त्व के निर्माण में आधार प्रदान करता है। एक तत्त्व ऐसा होता For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए है जो उस हर तत्त्व को शक्ति प्रदान करता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो हर तत्त्व को परिवर्तन देता है। महावीर ने इन्हीं को धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकाश, काल, पुद्गल और जीव कहा है। इन छः द्रव्यों से ही यह संसार संचालित होता है। कोई कहता है, 'इस संसार को चलाने वाला ईश्वर है', कोई कहेगा कि अल्लाह है। होंगे, जरूर होंगे। वे जरूर इस संसार को चला रहे होंगे मगर उस चालक को हमने अभी तक देखा नहीं है। क्या. हम ऐसी गाड़ी में बैठना चाहेंगे जिसे हम देख न पा रहे हों। लेकिन अपने हाथ में पहनी हुई घड़ी हमें निरन्तर बता रही है कि पहले नौ बजे थे और अब साढ़े नौ और दस बज रहे हैं। समय तो हम सभी के हाथ में है और हम सभी समय के हाथ में हैं। आइंस्टीन ने इस सृष्टि के संचालन में जिन दो चीजों को स्वीकार किया है, उनमें एक 'टाइम' है और दूसरा 'स्पेस'। इसी को ही हम अपनी भाषा में 'समय' और 'आकाश' कहते हैं। टाइम और स्पेस ये दो ही ऐसे तत्त्व हैं जिनसे सम्पूर्ण संसार संचालित हो रहा है। परिवर्तन ! विज्ञान तो मानता है कि पुद्गल की, मिट्टी की तथा परमाणु की भी कभी मृत्यु नहीं होती, केवल परिवर्तन होता है। जब हम मर जायेंगे, हमारी लाश जला दी जाएगी। हम मरे नहीं अपितु केवल परिवर्तन हो गया। यह जो काया मिट्टी की बनी थी, वह पुन: मिट्टी में समा गई। यही मिट्टी फिर किसी खेत में चली गई। उसी से फिर कोई अनाज पैदा हो गया और वही अनाज फिर हमारे पेट में गया। फिर उससे कुछ तत्त्व बने, फिर एक शरीर का निर्माण हुआ। यह ‘लाइफ साइकिल' जीवन-चक्र यों ही चल रहा है। परिवर्तन होता है। मिट्टी फिर मिट्टी बनती है, मिट्टी फिर शरीर बनती है। यह क्रम यों ही चलता रहता है। इस गतिशील चक्र का नाम ही जीवन है, संसार है। ___केवल परिवर्तन ! सब कुछ यहाँ बदल रहा है अगर हम गरीब हैं तो चिन्ता न करें। यह गरीबी भी बदल जाएगी। अगर हम अमीर हैं तो गरूर न करें क्योंकि अमीरी भी बदल जाएगी। अगर हमारी टांग ठीक है, तो अभिमान मत For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन कीजिए। संभव है, कभी ठोकर लग जाए और हम टांग तुड़वा बैठें। अगर टांग नहीं है तो चिन्ता न करें क्योंकि जीवन में कोई न कोई सहारा मिल ही जाएगा। यदि आपके पाँव में जूते नहीं हैं तो अफसोस मत कीजिए क्योंकि दुनिया में कई लोगों के पास तो पाँव ही नहीं हैं। आपके पास पाँव हैं, यह वक्त की मेहरबानी है। जीवन में समय और वक्त का, उसकी प्रकृति और गुणधर्म का बोध रखना अहं, खेद और ग्लानि से बचने का मूल मंत्र है। हम सब नदिया की धाराएँ हैं। जिसको बोध होता है, वह व्यामोह से उपरत हो जाता है। जिसे बोध नहीं होता, वह उलझता चला जाता है। मेरे पास मेरे पिता बैठे हैं। मुझे भली-भाँति पता है कि वे भी कभी जवान थे। उनसे मैं पूलूंगा कि क्या वे कभी बच्चे भी थे? उनको बुढ़ापे में भी ऐसा लगता है कि वे अब भी जवान हैं। पर उन्हें यह भी लगना चाहिए कि समय परिवर्तनशील है। अगर आज वे बूढ़े नहीं हैं तो वे एक दिन अवश्य ही बूढ़े भी होंगे। मृत्यु के द्वार से भी उन्हें गुजरना पड़ेगा। सबको गुजरना पड़ेगा। उनको भी! मुझको भी ! अपन सब लोगों को भी ! ये स्वागत-द्वार देखते हैं न ! जब लगते हैं तब कितने रंग-रोगन, चकाचक होते हैं, पर समय बीतते-बीतते फीके-फीके रंग हो जाते हैं। सब उड़ रहा है, सब बदल रहा है। 'दिस टू विल पास' यह भी बीत जाएगा। एक महान सम्राट् ने अपनी ओर से इस बात की घोषणा की थी कि वह दुनिया के सारे शास्त्रों का सार-संदेश पाना चाहता है। उस सम्राट् को निचोड़ के रूप में जो बात मिलती है, वह है, 'दिस टू विल पास।' कभी वह भी सम्राट था। उस सम्राट् को और लोगों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। वह फिर फँस चुका। उसे फिर बोध हुआ - 'दिस टू विल पास।' यह भी बीत जाएगा! उसे लगा कि वह कल राजा था, वह समय भी बीत गया। आज यदि वह जंगल में फँस चुका है तो यह भी बीत जाएगा। जब वह वापस अपनी शक्ति को बटोर कर फिर शत्रु-राजाओं पर हमला करता है और उसका फिर राज्याभिषेक होने लगता है। वह फिर सोच बैठता है, 'दिस टू विल पास।' यह भी बीत जाएगा। जब वह न रहा तो क्या यह रह पाएगा ? सभी कुछ तो यहाँ पर बीत रहा है। For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए सभी कुछ तो यहाँ पर बदल रहा है। कौन-सी चीज हमेशा रही है। हम सुखी थे तो सुख न रहा। हम दुःखी थे तो दुःख भी न रहेगा। मैंने जाना है कि समय परिवर्तनशील है और मुझे हर पल समय का बोध रहता है। मेरे सामने कभी कोई अनुकूल-प्रतिकूल वातावरण बनता भी है तो भी जीवन का यही बोध रहता है कि कल का दिन आज न रहा तो आज का दिन क्या कल रहेगा? नहीं रहेगा। जिस व्यक्ति ने समय पर अपनी आस्था कायम कर ली है, जिसने समय को अपनी इबादत का चरण बना लिया है, उस व्यक्ति के लिए मैं यही कहँगा कि समय उसे जरूर निभाएगा। न जाने शरीर ने हमें कितनी खुशियाँ दी हैं और न जाने कितना हमें रुलाया होगा, पर फिर भी तो निभाया है ना। शुक्रिया अदा करो समय का जो अब भी हमें निभा रहा है। सूरज उगता है तो अस्त भी होता है। फूल खिलता है तो मुरझाता भी है। जहाँ लाभ है, वहाँ हानि भी है। जहाँ जन्म है, वहाँ मृत्यु भी है। मूल्य न उदय का है और न अस्त का। मूल्य न खिलने का है, न मुरझाने का। मूल्य है दोनों के बीच मिलने वाले समय के उपयोग करने का। जन्म देना समय का काम है और मृत्यु देना भी समय का परिणाम है, लेकिन दोनों के बीच मिले हुए समय का उपयोग करना मनुष्य की समझदारी और बुद्धिमानी का परिणाम है। जैसे बादल से बरसी पानी की बूंद अगर सर्प के मुँह में गिरती है तो ज़हर बनती है और अगर सीप के मुँह में गिरती है तो मोती बनती है। समय हम लोगों के साथ इसी तरह आता है। हम सीप की तरह जागरूक हों तो जीवन में प्राप्त होने वाले हर समय को मोती का रूप दे डालेंगे। यदि हम ही प्रमत्त हैं, आलसी हैं, कामचोर हैं और निकम्मे बने हुए हैं तो समय का आना साँप के मुंह में पानी का उतरना हुआ जिसका परिणाम ज़हर होता है। समय मूल्यवान है। यह जीवन समय से बनता है। हर व्यक्ति अपने जीवन में नियत समय को लेकर आता है और उतने समय तक जीवित रहता है। हममें से हर किसी का समय तय है। जिसका आयुष्य साठ साल का लिखा हुआ है, हम उसे इकसठ साल का नहीं कर सकते और न ही उसको हम उनसठ का कर For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन सकते हैं। जब सिकन्दर बीमार पड़ा तो चिकित्सकों ने कहा, 'अब तुम्हें बचाया न जा सकेगा। तुम कल की सुबह देख लो तब भी बहुत है ।' सिकन्दर ने कहा, 'तुम लोग अगर मुझे चौबीस घंटे का जीवन और दे दो तो मैं चाहता हूँ कि मैं मरने से पहले अपनी बूढ़ी माँ से मिल लूँ ।' हकीमों ने कहा, 'सिकन्दर, तुम्हारे जीवन को और न बढ़ाया जा सकेगा। यह हमारे हाथ में नहीं है । ' 55 सिकन्दर ने कहा, 'तुम लोग अगर मेरा चौबीस घंटे का जीवन और बढ़ा दो तो मैं तुम्हें मेरे शरीर के भार जितना सोना दूँगा ।' हकीमों ने कहा, 'यह संभव नहीं है।' बारह घंटे और बढ़ा दो तो मैं तुम्हें पूरे शहर का राजा बना दूँगा ।' 'संभव नहीं है सिकन्दर ! तुम यह समझते क्यों नहीं हो कि जीवन को बढ़ाना और घटाना आदमी के बस की बात नहीं है।' 'तुम मेरे जीवन को एक घंटा और बढ़ा तो मैं तुम्हें आधा साम्राज्य दे डालूँगा ।' सांसें उखड़ रही थीं सिकन्दर की। हकीमों ने कहा, 'सिकन्दर, तुम आधा राज्य क्या पूरे विश्व का साम्राज्य भी दे डालो तब भी समय ने अगर मौत का रूप ले लिया है तो उस रूप को कभी भी टाला न जा सकेगा।' जीवन को बढ़ाया नहीं जा सकता। जीवन तो हर किसी का तय है कि उसे कितना जीना है। हम अपने जीवन का अधिक से अधिक जितना निष्कर्ष निकाल सकते हैं, जरूर निकालें। जीवन के अंतिम क्षण तक भी जीवन को पूरी तरह से जिएँ। हम जीवन की अंतिम बूँद भी पूरी तरह से जिएँ भले ही हमारे सारे बाल पक गए हैं। अंतिम साँस निकल रही है तब भी हम उसे पूरे जीवट के साथ जी जाएँ। हम समय का जितना उपयोग करेंगे, जीवन का उतना ही उपयोग होगा । हम समय से निरपेक्ष होते जा रहे हैं और जीवन से भी उतने ही निरपेक्ष होते जा रहे हैं । रात-दिन केवल गप्पों को हाँकने में लगे हैं। हमें नहीं पता कि हम गप्पों को हाँक-हाँककर क्या हाँक रहे हैं ? लगता है कि हम समय काट रहे हैं। अरे भले मानुष ! हम समय को नहीं काट रहे हैं अपितु समय हमें काट रहा है । हम समय को क्या काटेंगे। हम लोग सोचते हैं समय 'पास' कर रहे हैं। For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए समय हम ‘पास' नहीं कर रहे हैं बल्कि समय हमें पास कर रहा है। लोग ताश खेलने में अपना समय बरबाद करते हैं। दिन भर ताश के पत्ते मारते रहते हैं। उनके पास कोई काम ही नहीं है। वे निट्ठले हैं। उनको कोई कह दे कि तुम फालतू हो तो वे चिढ़ जायेंगे। वे फालतू काम कर रहे हैं तब तो उन्हें चिढ़ नहीं लगती। हम लोग व्यर्थ के कामों में अपना बहुत समय व्यर्थ कर देते हैं। वह समय जिस समय में हम अपने जीवन के लिए काफी कुछ कर सकते थे, वह समय हम लोग बरबाद कर रहे हैं। मूल्यवान है समय। मूल्यवान है जीवन। समय का सार्थक उपयोग करना जीवन को मूल्यवान बनाने की ही पहल है। अगर इस्लाम और ईसाईयत की नज़र से देखें तब तो यही कहते हैं कि आदमी को केवल एक ही जन्म मिलता है अतः जो कुछ करना है, तुम्हें इसी जन्म में कर लेना होगा। हिन्दू, जैन और बौद्ध लोग पुनर्जन्म में आस्था रखते हैं। इसलिए अगले जन्म में भी, शायद इस जन्म में जो कुछ भी कमी रह गई है, उसे पूरा कर लेंगे। मगर इस्लाम-ईसाईयत को देखें तो वे कहते हैं कि अगला जन्म इतना जल्दी नहीं आएगा। अत: जो कुछ करना है इसे इसी जन्म में कर लो, फिर तो पता नहीं कयामत का दिन कब आएगा और अल्लाह अपना हंटर उठायेंगे और जो-जो फैसला देना होगा, वे देंगे। जिसको जन्नत में भेजना होगा उसे जन्नत में भेजेंगे। जिसे जहन्नुम में डालना होगा, उसे जहन्नुम में डालेंगे। वह तो जब होगा, तब होगा। कहते हैं : ‘जीवन छोटा है' पर मुझे लगता है जीवन बहुत बड़ा है। अरे साठ साल, सत्तर साल, सौ-सौ साल का जीवन ! एक साल में तीन सौ पैंसठ दिन, एक दिन में चौबीस घंटे, एक घंटे में साठ मिनट, एक मिनट में साठ सैकंड! अरे बाप रे! इतना बड़ा जीवन! कोई उपयोग करके जाने तो पता चले कि जीवन कितना विराट् है। एक जीवन में भी कितना कुछ किया जा सकता है। मगर जिन्हें कुछ बोध ही नहीं है, उन्हें लगता है कि कल तो पैदा हुए और आज मर जायेंगे। कोई चालीस साल की कच्ची उम्र में मर गया तो तुम्हें लगता है कि चालीस साल थोड़े थे। चालीस साल For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन: समय का पालन बहुत होते हैं। जो व्यक्ति एक-एक दिन का सार्थक उपयोग कर रहा है, वह जान रहा है कि एक जीवन में भी कितना क्या किया जा सकता है। 57 फालतू की बातों में आप लोग अपना कितना समय बर्बाद कर देते हैं। बैठ गए, बातें कर रहे हैं। अब दो घंटा भी वहाँ से नहीं हटेंगे। जाते हैं कहीं किसी के घर में और बैठ गए गप्पें लगाने। अरे भई, तुम तो फालतू हो, अगला फालतू थोड़े ही है। कहीं भी जाएँ, समय लेकर जाएँ कि मैं आपसे मिलना चाहता हूँ और निर्धारित समय पर पहुँच जाएँ । चार से पाँच बजे का समय लिया और हम उससे ज्यादा बैठ गए तो जरा सोचिए कि अगर उस बेचारे को कहीं जाना भी हो तो वह बार-बार घड़ी देखेगा किन्तु हम उठने का नाम ही नहीं लेते। समय पर जाएँ। हमारे समय का मूल्य हम समझ सकें तो बेहतर है, पर कम से कम अगले के समय का मूल्य तो अवश्य समझें। लोग जाते हैं और माथा खाने बैठ जाते हैं, लेना न कोई देना । ऐसे-ऐसे सवाल करते हैं जिन सवालों का हमारे जीवन से कोई सरोकार ही नहीं है । ऐसे सवाल करें जिनसे हमें कोई परिणाम भी मिले। तब ही तो फायदा भी है। नहीं तो हम हमारे में मस्त रहें और अगले को अपने में मस्त रहने दें। वह अपने समय का उपयोग सार्थक कार्यों में करे और हम अपने समय का । समय का हर कण बेशकीमती होता है। समय का हर क्षण स्वर्णकण की तरह मूल्यवान होता है। अगर हम समय को यों ही व्यर्थ बिता रहे हैं तो ऐसा करके हम अपने जीवन को यों ही व्यर्थ कर रहे हैं। बीता हुआ समय तो जैसा बीतना था, वैसा बीत गया लेकिन अब हमारे पास समय जो है, उसका तो हम पूरा-पूरा उपयोग कर ही सकते हैं। बीते हुए समय को लौटाना किसी के भी हाथ में नहीं है। जो समय बीत चुका, वह बीत चुका । एक बार कोई देवता रूठ जाए तो रूठा हुआ देवता तो शायद प्रसाद चढ़ाने पर राजी हो सकता है, मगर बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता है। स्वयं जिन्दगी को भी कुर्बान कर देने पर जो लौटकर नहीं आता, उसी का नाम समय है। For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए ईश्वर ने हमारे हाथ में समय के रूप में वरदान दिया है। हम अपने वरदान का पूरा-पूरा उपयोग करें। हम समय के साथ चलें। समय के अनुशासन को अपने जीवन के साथ जोड़ें। समय को अपना मित्र बनाएँ। समय के साथ अपनी मैत्री साधे। समय तो हमारे लिए एक अवसर के रूप में आता है। अगर कोई व्यक्ति समय का सही समय पर सही उपयोग कर ले तो अवसर अपना परिणाम दे देता है। अगर उपयोग न कर पाएँ तो अवसर व्यर्थ हो जाता है। छोटा-सा भी अवसर मिले तो उपयोग कर लें। यह प्रतीक्षा न हो कि बड़ा अवसर आएगा तब देखेंगे। छोटे-छोटे अवसरों का जो लोग उपयोग करते हैं, वे बड़े अवसरों का भी उपयोग कर लेते हैं और जो लोग छोटे-छोटे अवसरों का उपयोग करना नहीं जानते, वे बड़े से बड़े समय और अवसर के उपयोग से भी वंचित रह जाते हैं। हम समय को अपने लिए कसौटी समझें। वह आता है और हमारी कसावट करता है। अच्छे-बुरे कैसे हैं, इस बात की कसौटी करता है और फिर आगे निकल जाया करता है। समय आता है, अवसर बनकर आता है। उसका जो उपयोग कर ले, समय उसका है वरना समय फिर नदिया की धार की तरह आगे बढ़ जाता है। समय आता है और हम सोचते हैं कि अपना काम कल करेंगे, पर दुनिया में बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जिनको कल देखने को नहीं मिला करता है। अब यह तो हम पर है कि हम यह बोध पा लें कि कल आएगा या नहीं। आज को भी इतनी सार्थकता के साथ जी लें कि अगर कल भी हो तो कल भी हमारे आज की पुनरावृत्ति हो। कल की बातें छोड़ो, कल किसने देखा है, हमें तो आज पर भरोसा है। आज का हर क्षण अपना है। इस दो पल की जिन्दगी में, सबको गले लगाएँ। खूब हँसें, औरों को हँसाएँ। For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन 59 गमों को दिलों में दफना कर, होठों पर खुशी के तराने सजाएँ। आज इस चमन में जो बहार है, वह कल आए, न आए। न जाने कब समय की आँधी, हमारी पहुंच से दूर उड़ा ले जाए। क्या खबर कल खुदा, कौन-सी ढाये कयामत। कब लेने आ जाएँ, मौत के फरिश्ते अपनी अमानत। कल की बात को छोड़ना ही जीवन की सार्थकता है। कल के भरोसे रहने वाला सदा पछताता है और कभी-कभी तो उसे पछताने का भी अवसर नहीं मिल पाता है क्योंकि समय की आँधी हमें हमारी पहुँच से दूर उड़ा ले जाती है। आज अपना है। जो होना है, जो करना है, आज ही हो जाए, आज ही कर लें। कल हमारा अज्ञान है, आज हमारा बोध है।। मेरे लिए समय अगर मौत बनकर आता है तो आज ही आ जाए। अभी आ जाए तो भी पूरी तरह फिट हूँ। उसकी प्रतीक्षा है। इस समय भी इतना कुछ किए हुए हैं कि मौत आ भी जाए तो केवल काया को गिराएगी, हमें न गिरा पाएगी। मौत की ऐसी प्रतीक्षा नहीं है कि वह साठ साल बाद आएगी। अगर उसे साठ साल बाद आना है तो हमें कोई दिक्कत भी नहीं है। अगर आज भी आती है तो हमारी तरफ से आज भी इतनी तैयारी है कि आज मर जाएँ तो समाज को इकट्ठा होकर आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसलिए नहीं पड़ेगी क्योंकि आज की तारीख में भी आत्मा की सद्गति और शांति की व्यवस्था खुद कर चुके हैं। जो लोग अपनी आत्मा की सद्गति का प्रयास स्वयं नहीं कर पाते हैं, उन्हीं लोगों के लिए श्रद्धांजलि-सभाएँ आयोजित की जाती हैं और ईश्वर से मिन्नत की जाती है कि भगवान उसकी आत्मा को बैकुंठ दे। For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए किसी के प्रार्थना करने से किसी का कल्याण नहीं होता। हम ही हमारा कल्याण करेंगे, हम ही हमारी सद्गति के निर्माता बनेंगे। मरने के बाद किया गया दान-पुण्य व्यर्थ की इज्जत दिखाना है। जीते जी कुछ करना सार्थकता है। मरने के बाद करने में दिक्कत की बात नहीं है। पिंड-दान, तर्पण कर दें, कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन जीते जी कर लें तो उसमें सार्थकता जरूर है। समय के साथ चलें। समय के अनुसार व्यक्ति चलता चला जाए। हम समय के साथ चलें तो समय हमारे साथ चलेगा। घड़ी हाथ में केवल 'शो' बाजी के लिए न पहनें। समय के हर पल का अपने लिए उपयोग कर लेना चाहिए। आप समय के साथ चलिए। अपने समय को कभी भी कल पर मत टालिए। ऐसा मत सोचिए कि आज का काम कल करेंगे। जो करना है, वह आज ही कर लीजिए। अगर आप अपने कल के काम को भी आज ही कर सकते हैं तो जरूर आज ही कर लीजिए और यदि नहीं कर सकते हैं तो उसे कल-परसों पर मत टालिए। अगर कर सकते हैं तो उसे आज ही निपटा कर सोने की चेष्टा कीजिए। लोग कल, कल, कल पर टालते चले जाते हैं और कल को ही काल कहते हैं। काल का अर्थ समय भी होता है और काल का अर्थ मौत भी होता है। किसी के लिए काल समय बनकर आ जाता है तो किसी के लिए काल मौत बनकर आ जाता है। यह तो मैं नहीं कह सकता कि किसके लिए समय कैसा आएगा, लेकिन कल पर टालने की आदत से बचें। आदत ही पड़ चुकी है कल पर टालने की तो आप बुरे कामों को कल पर टालिए। शुभ काम आज कर लें, बुरे कामों को कल पर टालें। ____ गुस्सा करना है तो कल कीजिए। प्रेम करना है तो हाथों-हाथ कर लीजिए। सोचिए मत कि मेरा उससे वैर-विरोध है ? जब पर्युषण-पर्व आएगा, तब माफी माँगूगा। अरे, संवत्सरी की प्रतीक्षा कौन करे ? जैसे ही भाव उठ गया, जाएँ और हाथों-हाथ माफी मांग लें। आपका संवत्सरी पर्व उसी दिन हो गया। साल भर की कौन इंतजारी करे कि आए भी कि न आए। हाँ, किसी से बैर निकालना है तो चलो कल निकालेंगे। फिर किसी दस लक्षणी पर्व की इंतजारी करेंगे। गुस्सा कोई ऐसी वैसी चीज थोड़ी है कि जब चाहे तब निकाल दिया। अरे For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन जाओ किसी पंडित के पास। उसे कहें, ‘पंडित जी, मुझे गुस्सा करना है, जरा अच्छा-सा मुहूर्त निकाल दीजिए।' प्रेम तो 'काल-योग' में भी करोगे तो वह अमृत है और गुस्सा अमृत योग में भी करोगे, तब भी जहर है। अशुभ को कल, कल, कल पर टालते चले जाएँ। शुभ को आज, अभी करने की प्रवृत्ति बनाएँ, इसी क्षण। सत्कर्म की सजगता और भावना अपने भीतर संजोएँ। कल पर टालने का कोई अर्थ नहीं होता। ऐसा हुआ; एक महिला के पेट में अस्सी वर्ष का गर्भ ठहरा हुआ था। वह सौ वर्ष की हो गई। जितनी बार उसे पीड़ा होती, वह अस्पताल में जाती, मगर गर्भ में रहने वाले दोनों बच्चे बाहर ही नहीं निकलते। जैसे ही डॉक्टर उन्हें बाहर निकालने लगा तो दोनों एक दूसरे से कहते, ‘पहले आप पधारो', दूसरा कहता नहीं, ‘पहले आप।' पहले आप, पहले आप के चक्कर में अस्सी साल गुजर गए। अस्सी साल पहले निकल जाते तो उनकी उम्र अस्सी वर्ष की होती मगर अब वे अस्सी वर्ष के बच्चे हैं। बाल सफेद होने से कोई आदमी बड़ा नहीं हो जाता है। बालों के पकने से परिपक्वता नहीं आती अपितु जीवन के पकने से जीवन में परिपक्वता आया करती है। जो व्यक्ति समय का मूल्य समझ सकता हो तो वह जीवन के साथ जरूर इस मूल्य को जोड़े। आप अपने काम को बिल्कुल समय के अनुसार व्यवस्थित करके चलें तो समय खुद व्यवस्था देकर चलता है। हर कार्य समय-नियोजित हो। खाना-पीना, उठना-बैठना, सोना-जागना सब कुछ समय-नियोजित हो। समय पर जगें, समय पर सोएँ, समय पर घर पहँचे। घर पर नियम बना लें कि सायं का भोजन सब लोग साथ बैठकर एक साथ करेंगे। मेरे एक परिचित व्यक्ति हैं। मुझ पर वे बहुत स्नेह रखते हैं। उन्होंने अपने घर का एक उसूल बना रखा है कि 12.30 बजते ही सबके सब घर पहुँचेंगे और 12.35 होते ही घर के सभी सदस्य भोजन करने बैठेंगे। साथ बैठकर खाने का मजा कुछ अलग ही होता है। समय पर सारे लोग एक साथ बैठो, खाओ For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 - सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए पिओ, सब कुछ समय पर करो। नहाना-धोना, अखबार पढ़ना जो कुछ भी करते हैं सब अपने निश्चित समय पर। समय निर्धारित कर लीजिए कि अखबार आधा घंटा पदूंगा, जबकि लोग दिन भर पढ़ते रहते हैं जैसे अखबार ही उनकी जिन्दगी हो गई है। जैसे चिंचड़ गाय के थन में चिपक जाता है, ऐसे ही लोग अखबारों से चिपके रहते हैं। ग्राहक कोई है नहीं; चलो अखबार उठाओ और पढ़ लो। सुबह अलग अखबार, दोपहर में अलग अखबार, सांझ को अलग अखबार। अखबारों में आदमी की जिन्दगी पुलिंदा बन कर लिपटी रहती है। ___जीवन को एक व्यवस्था दें। सर्दियों के दिनों में लोग कितने आलसी हो जाते हैं। तीन-तीन दिन तक स्नान नहीं करते हैं। अरे भाई, ज्ञान-ध्यान-स्वाध्याय सभी चीजें समय पर नियोजित होनी चाहिए। महावीर ने बहुत प्यारी बात कही कि 'समयं गोयम मा पमायए ।' एक क्षण का भी प्रमाद मत करो। अगर यह दुनिया महावीर के संदेशों का सार सुनना चाहती है तो मैं कहूँगा कि महावीर ने अपने शिष्यों से हजार दफा यह बात कही है - 'समयं गोयम मा पमायए।' एक मिनट का भी प्रमाद मत करो। हम हर क्षण का उपयोग करते चले जाएँ। हमारी जिन्दगी जितनी भी है, अपने हर क्षण को सार्थकता प्रदान करें, अपने हर पल को धन्य करें। ‘समयं गोयम मा पमायए।' एक पल का भी आप प्रमाद मत कीजिए। कहीं ऐसा न हो कि घर में चोर घुस आएँ और आप प्रमाद के मारे सोए ही पड़े रह जाएँ। सावधान ! पहले भी किसी ने कहा था 'हम देखते हैं, हमने देखा है, हम देखेंगे।' आज भी हम देख रहे हैं, देखते रहेंगे। समय यों ही चलता चला जा रहा है। आदमी आलसी है, मूर्छित है। इसीलिए उस पर गरीबी और बेरोजगारी हावी है। हम अपने जीवन में अगर गाँठ बाँध सकते हैं तो जरूर बाँध लें कि हम समय का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे। सूत्र है : ‘हर समय व्यस्त रहो, हर हाल मस्त रहो।' हम समय पर चलें, समय पर पहुँचे। हमारे देश में जिसकी सबसे बड़ी कमी है कि आदमी यहाँ समय पर नहीं चलता। लोग यहाँ बैठक में समय पर For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला अनुशासन : समय का पालन 63 नहीं आते, मात्र उठावने पर ही समय पर आते हैं। हवाई जहाज में जाएँ, तो हवाई जहाज लेट। बस में चढ़ो तो बस लेट। और तो और, विवाह-समारोह में जाओ तो वह भी लेट। पूजा में जाएँ तो पूजा भी लेट। लोगों को लग चुका है कि कार्यक्रम शुरू होने का दो बजे का समय है तो तीन बजे शुरू होगा। चूंकि अपने यहाँ लेट-लतीफी नहीं चलती, इसलिए लोग अपने यहाँ समय के पाबंद रहते हैं। मेरी समझ से समय का पाबंद होना खुद को व्यवस्थित करने की सबसे सार्थक पहल है। यहाँ सब चीजें लेट-लतीफों में चलती हैं। ऐसा हुआ : एक आदमी जब मरने के लिए गया। लड़ाई हो गई बीवी से तो पति ने गुस्से में कहा, 'अब अगर ज्यादा किया तो मैं मर जाऊँगा।' पत्नी ने कहा, 'उसमें इतना क्या चिल्लाना, मर जाओ ना।' उसने कहा, 'ठीक है तुम्हारी अनुमति है तो जाता हूँ, मर जाता हूँ।' पर समस्या थी कि मरा कैसे जाए? आखिर तय किया कि ट्रेन के नीचे कटकर मरना सरल रहेगा। उसने पत्नी से कहा, 'मैं रवाना होने के लिए तैयार होकर आता हूँ, मगर मेरे लिए थोड़ा टिफिन तैयार कर दे।' वह बोली. 'क्या मतलब ? टिफिन तैयार कर दूं?' पति ने कहा, 'ट्रेन के नीचे आकर मरूँगा, मगर ट्रेन लेट हो गई तो!' मैं मरने जरूर जा रहा हूँ, पर भूखा मरने थोड़े ही जा रहा हूँ। हम लोग पाश्चात्य संस्कृति का बहुत अनुकरण करते हैं, बहुत अनुसरण करते हैं। उसकी हर चीज हम अंगीकार करते चले जा रहे हैं। मैं कहूँगा कि जब इतनी नकल की है तो एक नकल और करो, और वह है उनका समय पर चलने का नियम। जिस तरह से वे लोग समय पर चलते हैं, आप भी समय पर चलिए। दो बजे का समय है तो दो बजे पहुँच जाइए। चाहे सवा दो बजे वहाँ से निकल जाइए। विदेशों से केवल जींस ही पहनना क्यों सीखते हैं ? केवल हेयर स्टाइल क्यों सीखते हैं ? केवल बेल्ट बाँधना ही क्यों सीखते हैं ? उनमें समय पर चलने की जो प्रवृत्ति है उसे अपनाइए। यह जो समय की नजाकत है, उसको भी हर व्यक्ति को अनुसरण कर लेनी चाहिए। शायद हर संत पाश्चात्य For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए संस्कृति की किसी भी बात का विरोध करता होगा मगर मैं समर्थन करूँगा कि तुम भी वैसे ही समय पर चलो जैसे पूरा पाश्चात्य जगत चलता है। हम समय की पाबंदी का अनुसरण करें ताकि हमारे जीवन में भी व्यवस्थाएँ कायम हो सकें। गाँठ बाँध ले मन में कि समय पर चलेंगे, समय से चलेंगे। आज से समय हमारा मित्र होगा। हम भी समय के मित्र हों। समय पर चलें, समय के साथ चलें। जो चलेंगे, समय उनका होगा। जो नहीं चलते है, समय उन्हें किनारे कर देता है और समय खुद आगे बढ़ जाया करता है। पीछे केवल पछताना पड़ता है। For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ मेरे प्रिय आत्मन्! आम जनमानस की एक चर्चित मान्यता है कि जिसका जो स्वभाव पड़ जाता है, शमशान में पहुँचकर ही छूटता है। मैं इसी संदर्भ में अनुरोध करूँगा कि मनुष्य-स्वभाव जैसी कोई तय वस्तु दुनिया में नहीं है। आदमी जैसा अपनी ओर से बनना चाहता है, वैसा वह बन जाया करता है। स्वभाव का अर्थ है किसी भी कार्य को निरन्तर करते रहने पर मनुष्य के चित्त पर जो संस्कार हावी हो जाता है, उसी का नाम स्वभाव है। प्रकृति ने मनुष्य को कोई तय स्वभाव प्रदान नहीं किया है। वह जैसा बनना चाहता है उसे वैसा ही बनने की पूरी आजादी दी हुई है। पशुओं का स्वभाव अवश्य तय होता है, पर मनुष्य का नहीं। दुनिया के किसी एक कुत्ते का स्वभाव अगर भौंकना है तो दुनिया के सारे कुत्ते एक ही स्वभाव को लेकर पैदा होते हैं। बिल्ली का स्वभाव अपने आप में तय है, गाय का स्वभाव भी तय है, For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 66 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए सांड का स्वभाव भी तय है, पर मनुष्य का स्वभाव तय नहीं है। सौ तरह के मनुष्य होते हैं और सभी का स्वभाव अलग-अलग हुआ करता है। दुनिया का हर मनुष्य अपने आप में अद्वितीय है। किसी की तुलना अन्य के साथ नहीं की जा सकती। सब अपने-अपने स्वभाव को लिए हुए हैं। अगर हम यह मान लेंगे कि मनुष्य का स्वभाव तय है तो जो मनुष्य क्रोध करता है वह मनुष्य जिन्दगी भर क्रोध ही करता रहेगा, पर ऐसा नहीं होता, जैसे ही किसी ने गाली दी और उधर क्रोध पैदा हुआ। जैसे इधर किसी ने बटन दबाया, उधर बल्ब जला। मनुष्य का ऐसा कोई तय स्वभाव नहीं होता है। अगर व्यक्ति अपने स्वभाव को बदलने का संकल्प ग्रहण कर ले तो दुनिया में ऐसी कौन-सी कठिन वस्तु है जिसे मनुष्य करना चाहे और न कर पाए? । हमारे युग की महानतम खोजों में एक यह भी है कि हम अपने स्वभाव, संस्कार और सोच में परिवर्तन ला सकते हैं। इन्हें बदला जा सकता है। कोई व्यक्ति अपने आप में बुरा है तो इसलिए क्योंकि उसने कभी अच्छा होने का संकल्प ही नहीं लिया। कोई व्यसन कर रहा है तो उसने व्यसनों से छूटने के लिए मनोबल के साथ आत्म-संकल्प न लिया होगा। आदमी संकल्प करे और अपने स्वभाव तथा आदतों को न बदल सके, यह असंभव नहीं है। जब मिट्टी में से फूल खिलाया जा सकता है और गमले में भी पौधे को पैदा किया जा सकता है तो सोचो कि पौधे में हम जो खाद देते हैं, उस खाद में कितनी दुर्गन्ध होती है लेकिन इसके बावजूद अगर उसे रूपांतरण की कीमिया मिल जाती है तो वही दुर्गंधित खाद किसी भी पौधे में खिले हुए फूल की सुवास का कारण बन जाती है। जब गन्दगी सुगंध में परिणत हो सकती है और माटी किसी को जन्म देने का कारण बन सकती है तो आदमी संकल्प कर ले तो क्या वह अपने जीवन में किसी भी तरह का रूपांतरण घटित नहीं कर सकता ? जो व्यक्ति संकल्पशील नहीं होते हैं, वे ही अपने जीवन में गलत राहों पर चलते हैं। वे चलते रहते हैं और मर भी जाते हैं तब भी वे उन गलत राहों से छूट नहीं पाते। कहावत तो यह भी कहती है For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ 67 'ज्यां का जैसा स्वभाव, जासी जीव मूं। . नीम न मीठो होय, सींचो गुड़ घीव सूं।' जिसके जो स्वभाव पड़ गए हैं, वे जाते ही नहीं हैं। जैसे नीम को कोई व्यक्ति गुड़ और घी से भी सींच दे, तब भी नीम तो खारा का खारा ही रहता है। काबा जाओ, काशी जाओ,गंगा में डुबकियाँ लगाओ। दिल का देवालय गंदा, तो फंदा सारा धर्म-कर्म है। चाहे जितनी डुबकियाँ लगाओ और चाहे जितने तीर्थ-धाम कर आओ, पर मन ही अगर गंदा है तो वहाँ जाकर भी तुम अपने जीवन में निर्मलता और पवित्रता का संदेश नहीं ला पाओगे। ऐसा नहीं है कि मरने के बाद उनका स्वभाव छूट जाता होगा। जिन लोगों ने अपने स्वभाव को बदलने के लिए प्रयास ही नहीं किया, वे मर भी जायेंगे, तब भी उसी स्वभाव पर ही अड़े हुए रहेंगे। जब स्वर्ग के दरवाजे पर कोई कबाड़ी पहुँच जाए और स्वर्ग के दरवाजे के भीतर प्रवेश करना चाहे तो संभव है कि देवलोक के चौकीदार उसे भीतर प्रवेश करने से रोक दें और पूछे कि 'तुम्हारे पास ऐसा कौन-सा सर्टिफिकेट है कि तुम स्वर्ग के रास्ते पर आ गए हो।' कबाड़ी कहेगा - 'मैंने जिन्दगी में चाहे जितना कबाड़ा किया हो लेकिन पाँच-दस पैसे का दान भी दिया होगा। मैं उसी के बलबूते पर ही स्वर्ग के राज्य में चला आया हूँ।' चौकीदार अगर सारे बहीखाते देखकर यह कह दे कि 'तुम्हारा तो कहीं कोई जमाखर्च दिख नहीं रहा है। लगता है, तुमने जरूर कहीं कोई कबाड़गिरी करके स्वर्ग के रास्ते को पकड़ लिया होगा।' कबाड़ी ने कहा, 'आपको नहीं पता, आप भीतर जाइए और स्वर्ग के प्रमुख देवता से पूछकर आइए। मैंने जिन्दगी में जरूर कुछ न कुछ किया है, तभी तो मुझे स्वर्ग का रास्ता मिला है।' चौकीदार कबाड़ी की बातों में आ गया और धर्मराज से पूछने के लिए स्वर्ग के साम्राज्य के भीतर गया। वह राजसभा के बीच पहुँचा और कबाड़ी के For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए द्वारा कही गई बात का अनुरोध किया। धर्मराज ने कहा, 'क्या तू उस कबाड़ी को स्वर्ग के दरवाजे पर ही छोड़ आया ? तेजी से जा। मैं जानता हूँ उसे क्योंकि कबाड़ी तो कबाड़ी ही रहेगा। जो जिन्दगी भर कबाड़े के काम करता रहा, वह मरकर कबाड़ा के काम न करे, यह कैसे संभव है ? जा, दौड़कर जा, कहीं वह कुछ और चौपट न कर दे।' चौकीदार दौड़ा, कबाड़ी को ढूँढने के लिए, पर वापस लौटा तो देखकर चौंक पड़ा कि न तो वहाँ पर कबाड़ी था और न ही स्वर्ग के दरवाजे। __कबाड़ी स्वर्ग के दरवाजों तक पहुँच कर भी स्वर्ग के दरवाजों को ही कबाड़ना चाहेगा। जो आदमी जीते जी न सुधर पाया, क्या वह मर कर सुधर पाएगा? जो जीते जी स्वयं को सुधारने के लिए संकल्पशील न हुआ, वह मरकर कभी खुद को सुधारने का संकल्प ले सके, यह मुमकिन नहीं है। आदमी के स्वभाव पर, उसकी प्रकृति तथा उसकी नेचर पर जो चीजें सबसे ज्यादा असर करती हैं, उनमें संगति, घर-परिवार, फिल्में, टी.वी., किताबें प्रमुख हैं। ध्यान रखिए, जीवन तो खेती की तरह है। यदि गलत बोयेंगे तो गलत ही पायेंगे। अच्छा बोयेंगे, अच्छा पायेंगे। स्वभाव और आदत यकायक घर नहीं करते। धीरे-धीरे इनकी जड़ें मजबूत होती हैं। हाथी कितना शक्तिशाली होता है, कितना विशाल होता है। क्या आदमी के लिए संभव है कि वह उसे वश में कर सके ? सैकड़ों घरों और आदमियों को कुचलने के लिए एक अकेला हाथी काफी होता है, पर वही हाथी छोटे-से अंकुश से, जंजीर से नियंत्रित हो जाता है। सिगरेट, शराब, जुआ या क्रोध, मान, माया, प्रपंच ये सब भी हमें वैसे ही वश में कर लेते हैं। वश में भी ऐसे कि हम उनके आगे अपनी नाक रगड़ते और अपनी सूंड नमाते नजर आते हैं। अच्छी आदत डालो भाई, अच्छे संस्कार, अच्छा व्यक्तित्व बनाओ भाई ! आदमी के स्वभाव पर जिस पहले तत्त्व का प्रभाव पड़ता है वह व्यक्ति की अपनी मित्र-मण्डली होती है। व्यक्ति को जैसे मित्र मिलते हैं, व्यक्ति का स्वभाव भी वैसा ही प्रभावित होता है। जैसे हम अपनी बेटी के लिए वर की For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ तलाश और बेटे के लिए कन्या की तलाश बड़ी सजगता से करते हैं, उतनी ही सजगता से हम अपने जीवन में किसी मित्र का भी चयन करें। मित्र व्यक्ति के जीवन को अवश्यमेव प्रभावित करता है। अगर हमारी मित्र-मण्डली गलत है तो हमारा स्वभाव और हमारी प्रवृत्तियाँ गलत हो जायेंगी। हमारी मित्र-मण्डली अगर अच्छी है तो मान कर चलें कि हमारा स्वभाव और हमारी प्रवृतियाँ भी अच्छी होंगी। कोई मुझसे पूछे कि कौन व्यक्ति कैसा है तथा उसे मापने का थर्मामीटर क्या है, तो मैं यही कहूँगा कि किसी भी व्यक्ति को जाँचना और परखना हो तो हम केवल उसकी मित्र-मण्डली को देख लें। जिन्दगी में सबसे पहले मित्र बनाते समय सजगता बरतनी चाहिए। तुम्हारी जिन्दगी में कोई मित्र नहीं है तो कोई गम नहीं, पर यदि मित्र बनाओ तो श्रेष्ठ स्वभाव वाले व्यक्ति को ही अपना मित्र बनाओ। सौ मूर्ख और सौ बेईमान लोगों को मित्र बनाने की बजाए किसी बुद्धिमान व्यक्ति का शत्रु होना श्रेष्ठ है। एक बुद्धिमान शत्रु फिर भी चल जाएगा, मगर बेईमान, मूर्ख और गलत रास्तों पर चलने वाले की मित्रता हमारे लिए आत्मघातक बनेगी। हम अपनी जिन्दगी में यह अफसोस करते हैं कि हमारा बच्चा दुराचारी है; तो मैं कहूँगा कि इसके व्यवस्थापक हम स्वयं हैं ? क्योंकि हमने अपने बच्चे को अच्छे मित्र नहीं दिए। हम अपनी संतानों को अच्छे मित्र दे पाने में कामयाब न हुए। अगर हम पहले चरण में ही लक्ष्मण-रेखा खींच देते तो शायद आज यह नौबत न आती कि हमें प्रायश्चित करना पड़ता तथा आँसू ढुलकाने पड़ते। इसके लिए केवल हमारा बच्चा ही जवाबदेह नहीं है, वरन् हमारी असावधानी भी उतनी ही जवाबदेह है। कहावत है कि काले व्यक्ति के पास अगर कोई गोरा बैठेगा, तो रूप नहीं तो अक्ल तो जरूर उसमें आएगी ही। जिस व्यक्ति के साथ हम बैठेंगे तथा हमें जैसी संगत मिलेगी, वह अपनी रंगत तो आखिर वैसी ही दिखाएगी। कहते हैं कि जम्बुकुमार जब संन्यास लेने का संकल्प ले चुके होते हैं और वैराग्य-वासित होकर वे अपनी आठ पत्नियों को जीवन के प्रशस्त पथ का For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए उपदेश दे रहे होते हैं कि तभी प्रभव नाम का डाकू अपने पाँच सौ चोरों के साथ उसी जम्बु कुमार के राज-महल पर डाका डालने के लिए आता है। जब प्रभव उस घर पर डाका डालने वाला होता है तो देखता है कि जम्बुकुमार जगा हुआ है और उसकी पत्नियाँ भी जगी हुई हैं। प्रभव सोचता है कि कब ये लोग सोएँ और कब हम इनके घर पर डाका डालें ? सब लोग छतों पर बैठे होते हैं। जीवन के पुण्य पथ का उपदेश हो रहा होता है। रात गुजर जाती है, सुबह हो जाती है, लेकिन सुबह हो उससे पहले ही प्रभव आत्म-समर्पण कर देते हैं। ____ जम्बु अपने सामने किसी डाकू को आत्मसमर्पण करते देखकर चौंक पड़ते हैं। तब प्रभव बताते हैं, मैं भी कभी राजकुमार रहा था किन्तु गलत लोगों की संगत में पड़ गया। मेरी मित्र-मण्डली खराब थी। नतीजा यह निकला कि मैं शराबी बना। मैंने चोरी करना सीखा, डाका डालना सीखा और डाकू बन गया ! मेरे पिता अर्थात् राजा ने मुझे देशनिकाला दे दिया और मैं डाके डालकर अपना पेट भरने लगा। लेकिन, जम्बु ! रात भर की तुम्हारी संगत, रात भर तुम्हारे होठों से निकलने वाले अमृत वचनों ने मेरे हृदय को इतना बदल दिया कि तुम्हारे एक-एक शब्द मेरे लिए प्रायश्चित के आँसू का कारण बन गए। मुझे अपने किये पर पश्चाताप हुआ और मैंने आत्मसमर्पण कर दिया। हे जम्बु कुमार, जिस पवित्र पथ पर, जिस वैराग्य-पथ पर तुम बढ़ रहे हो, मेरे कदम भी अब उसी पथ की ओर चलेंगे। मैं भी प्रभु के सान्निध्य में पहुँचकर उसी पथ को स्वीकार करूँगा जिसके तुम स्वामी बन रहे हो।' 'महाजनो येन गतः स पंथाः।' महान् लोग जिस रास्ते से गुजरें, वही रास्ता, रास्ता है, वही पथ, पंथ है। अच्छे मित्र व्यक्ति को अच्छा बनाते हैं और गलत मित्र आदमी को गलत बनाते हैं। इसलिए अपने जीवन में मित्र ज्यादा हैं या कम इसकी चिन्ता न करें। मित्र अच्छे हैं या नहीं, इस बात पर जरूर ध्यान दिया जाना चाहिए। जिन्दगी में पुस्तकें कम हों लेकिन जो हों, वे अच्छी हों। अच्छी पुस्तकें और अच्छे मित्र जीवन में हर कदम पर संकट के सलाहकार बनेंगे। सुख-दुःख For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें. सौम्यता लाएँ __71 में वे आपके जीवन के सहभागी बनेंगे। अच्छा मित्र वही होता है जो अपने मित्र का कल्याण चाहता है। व्यक्ति के जीवन पर, उसके स्वभाव पर जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है वह है आदमी का अपना घर और परिवार। घर-परिवार का जैसा माहौल होगा, हमारे बच्चे पर वैसा ही प्रभाव पड़ेगा। हम चाहते हैं कि हमारी संतान एक श्रेष्ठ संतान बने तो माँ, बाप तथा अभिभावकों का भी दायित्व होता है कि वे भी अपने आप में श्रेष्ठ स्वभाव, श्रेष्ठ व्यवहार और श्रेष्ठ जीवन के स्वामी बनें। किसी को संस्कारशील बनाना अपने जीवन में सौ विद्यालयों का निर्माण करने के समान है। किसी भी बच्चे का अच्छी तरह से पालन-पोषण करना किसी भी राष्ट्र पर शासन करने से ज्यादा कठिन है। एक राष्ट्र का संचालन करना शायद आसान होता होगा, लेकिन अच्छे बच्चे का निर्माण करना उससे भी अधिक कठिन होता है। हम छोटा-सा भी झूठ बोलेंगे तो हमारी संतान भी झूठ बोलना सीखेगी। अगर हम सत्य बोलेंगे तो हमारी संतान भी सत्य बोलने के लिए प्रेरित होगी। हम रचनात्मक कार्य करेंगे तो हमारे बच्चे भी रचनात्मक कार्य करना सीखेंगे। हम किसी की टांग खिंचाई करेंगे तो हमारे बच्चे भी टांग खिंचाई करना सीखेंगे। वस्तुतः जैसा व्यक्ति होता है वैसा ही उसका आने वाला कल हुआ करता है। किसी समय एक चोर को न्यायाधीश ने दण्ड सुनाना चाहा, सजा सुनानी चाही तो चोर ने कहा, 'ठहरिये, अगर आप मुझे सज़ा देना चाहते हैं तो मैं चाहँगा कि मुझे सज़ा देने से पहले मेरे माँ-बाप को भी सज़ा दी जानी चाहिए।' न्यायाधीश कहता है, ‘चोरी तुमने की और सजा तुम्हारे माँ-बाप को भी मिले, यह कौन-सा न्याय हुआ? चोर ने कहा, 'मेरे माँ-बाप भी चोर रहे; वे जिन्दगी भर चोरियाँ करते रहे और मैंने भी वही सीखा है तो अगर सजा देनी है तो मेरे साथ मेरे माँ-बाप को भी दी जाए ताकि दुनिया जान सके कि माँ-बाप गलत हैं तो संतानें भी गलत बनेंगी।' कोई भी पिता सिगरेट फूंकता है, तम्बाकू या अन्य किसी भी प्रकार का For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए व्यसन करता है और सोचे कि संतान ये सब न करे तो वह गलत है। तुम्हें बोलने का अधिकार नहीं है। हम अपनी संतानों को बोलने के अधिकारी तब बनाते हैं जब हम स्वयं नेक रास्ते पर चल रहे हों, वरना बच्चों पर अपना अधिकार जताने का कोई औचित्य नहीं है। अगर हम अपने घर में सबके साथ शालीनता के साथ पेश आते हैं तो हमारा बच्चा भी सबके साथ शालीनता से पेश आएगा। जब मैंने एक बच्ची से पूछा, ‘बेटी, तुम इतनी विनम्र कैसे हो? इतनी मधुर कैसे बोलती हो? तुम्हें देखकर ऐसे लगता है जैसे मेरे पास कोई खिले हुए गुलाब का फूल बैठा है। तुमने इतनी शालीनता कहाँ से सीखी ?' बच्ची ने मुझे जवाब दिया, 'मेरे घर के सारे लोग भी एक दूसरे के साथ इतनी ही शालीनता के साथ पेश आते हैं।' बच्चा तो आखिर वही सीखेगा जैसा कि हमारे घर-परिवार का वातावरण होगा। बच्चे के पाँव से अगर काँच की गिलास फूट जाए, तब हम शायद उसे चाँटा लगा देते हैं पर हमारा बेटा अगर गलत रास्ते पर जाए तो क्या हम अपने बेटे के गाल पर चाँटा लगाने का साहस दिखा पाते हैं ? पति-पत्नी आपस में झगड़ जाते हैं। एक दफा नहीं बल्कि साल में दस दफा झगड़ जाते हैं पर अगर पति गलत रास्तों पर जा रहा है अथवा वह शराब या और कोई गलत व्यसन कर रहा है तो उस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। हम एक साड़ी के लिए लड़ सकते हैं। जब हम अपनी सास के द्वारा कहे गए एक कटु शब्द के लिए अपने पति से झगड़ सकते हैं और अपना घर अलग बनाने की सोच सकते हैं तो क्या हम अपने पति को सुधारने के लिए नहीं लड़ सकते? आखिर वह क्या कर लेगा ? घर से निकाल देगा? घर से निकाल भी दे तो निकल जाएँ । कम से कम गलत पति के साथ जीने से तो अकेले जीना बेहतर है। मुझ सरीखा व्यक्ति तो यही कहेगा कि तुम लड़ पड़ो, पर कम से कम तुम्हारा पति सुधर जाना चाहिए। धर्म की किताबें कहती हैं कि नारी नरक की खान होती है। मैं कहूँगा कि नारी स्वर्ग की पगडंडी होती है अगर नारी अपने बिगड़े हुए पति को सुधार दे। यदि वह उसे नहीं सुधार पाती है तो मैं नहीं जानता कि वह किस नरक की खान होती है। मैंने अपने करीब में लगातार एक For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ ऐसे व्यक्ति को देखा है जिसे जब देखो तब गुस्सा आ जाता था, जब देखो तब वह गाली-गलौज करता रहता था। मैंने कई-कई वर्षों तक उस व्यक्ति को देखा। उस व्यक्ति को समझाने की कोशिश भी की, पर जब वह व्यक्ति न माना तो मैंने पच्चीस मिनट अपने आपके लिए समर्पित कर दिए। उस व्यक्ति के साथ बिताए गए पच्चीस साल का लेखा-जोखा मेरे केवल पच्चीस मिनट में ही पूरा हो गया। मैं बदल गया, मेरी फिजाएँ बदल गईं, मेरे लोग बदल गए, मेरा वातावरण बदल गया। ___ घर-परिवार का वातावरण घर वालों को सुखद भी बनाता है और दु:खद भी। घर का वातावरण घर को स्वर्ग भी बनाता है और नरक भी। कुछ दिन पहले की बात है। एक व्यक्ति के घर पर पुलिस ने दस्तक दी। घंटी बजी तो आदमी रात के दो बजे जगा। उसने पूछा, 'कौन ?' खिड़की में से नीचे झाँक कर देखा तो चौंक पड़ा और सोचने लगा कि मेरे जैसे आदमी के घर में पुलिस का क्या काम ! नीचे जाकर वह उसके सामने पहुँचा। पुलिस ने उसे एक चित्र दिखाया और पूछा कि क्या आप पहचानते हैं कि यह चित्र किसका है?' उसने कहा, 'हाँ, मैं पहचानता हूँ, यह मेरा अपना बेटा है। पुलिस ने बताया कि हम उसे गिरफ्तार करने के लिए आए हैं। उसने पूछा, 'क्यों ? क्या हुआ? आखिर उसने ऐसा क्या किया?' वे बोले, 'तुम्हारे बेटे ने कल इंडिया गेट के सामने कुछ लड़कियों के साथ छेड़खानी की थी।' वह भीतर गया। अपने बेटे को जगाया और पूछा, ‘बाहर पुलिस खड़ी है। सच-सच बताओ कि क्या तुमने इंडिया गेट पर कुछ लड़कियों के साथ छेड़खानी की थी? बच्चे ने शर्म से अपनी आँखें झुका लीं। पिता बाहर आया और उसने कहा कि मेरा बेटा भीतर है। आप उसे गिरफ्तार कर सकते हैं।' पुलिस इंस्पेक्टर चौंक पड़ा। अपने बेटे को बचाने की बजाय पिता अपने पुत्र को गिरफ्तार करवा रहा है। लड़के को गिरफ्तार कर लिया जाता है। जब बेटे को लेकर इंस्पेक्टर सीढ़ियाँ उतरने लगता है तो पिता हाथ के इशारे से इंस्पेक्टर. को वापस बुलाता है। उसे पाँच हजार रुपये थमाते हुए कहता है, 'इंस्पेक्टर साहब ! यह राशि अपने पास रखिए। यह राशि अपने बेटे को छुड़ाने के लिए For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए नहीं दे रहा हूँ वरन् इस बात के लिए दे रहा हूँ कि आप मेरे बेटे की ऐसी पिटाई करना कि जिन्दगी में फिर कभी वह किसी को बुरी नजर से न देख सके । ' 74 जिस घर के संस्कार ऐसे होते हैं वही अपने बच्चों को सुधार पाते हैं । हम अपने बच्चों को बिगड़ने के लिए चाहे सौ-सौ इंतजाम देते होंगे, पर अपने बच्चे को सुधारने के लिए कितने इंतजाम कर रहे हैं, जरूरत इस बात की है। अगर हमारा बच्चा बिगड़ रहा है तो हम उसे बचाएँ नहीं । उसे ऐसी शिक्षा दें कि वह भविष्य में कभी गलत रास्ते पर न जा सके। आदमी के स्वभाव पर, उसके चरित्र पर जिस तीसरे बिन्दु का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है वह है टी. वी. और फिल्में। मैं टी.वी. का विरोधक नहीं हूँ। मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का समर्थक हूँ। जिस तरह से विज्ञान का विकास हो रहा है, मनुष्य को विज्ञान के साथ चलना चाहिए । लेकिन उसे इतना विवेक जरूर होना चाहिए कि उसे टी.वी. पर आने वाले कौन से दृश्य और कौन-से धारावाहिक देखने चाहिए और कौन-से नहीं ? अगर सरकार संस्कृति को बचाना चाहती है, तो अपनी संस्कृति को बचाने के लिए उसे ऐसे कड़े नियम बनाने होंगे कि उसे ऐसे धारावाहिक या फिल्में कतई नहीं दिखायी जानी चाहिए कि जिनसे बच्चों में गलत संस्कार पड़े । जरा कल्पना करें कि सामने दृश्य आ रहा है जिसमें एक अर्ध वस्त्र पहनी हुई महिला नृत्य कर रही है और उसी दृश्य को दादा देख रहा है, दादी देख रही है, बेटा देख रहा है, बेटे की बहू देख रही है, पोता देख रहा है, पोती देख रही है। हम जरा सोचें कि हम घर के जो सदस्य ये दृश्य देख रहे हैं, उन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? तभी कोई गुंडागर्दी का, अपराध का, बलात्कार का दृश्य आता है और दादा, बेटा, पोता उसकी अस्मिता को मिटते हुए, इज्जत को लुटते हुए देख रहे हैं, तो भला उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। फिल्मों ने इंसान को इतना प्रबुद्ध कर दिया है कि हमारा पाँच साल का बच्चा भी भली-भाँति जानता है कि सेक्स क्या होता है, जीवन क्या होता है और पति - पत्नी के सम्बन्ध क्या होते हैं ? For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ 75 व्यक्ति अपने घर और परिवार के वातावरण को ही निर्मल न रख पाए तो वह किसको रख पाएगा? हम किस धर्म और समाज की बात करते हैं? पहले अपने घर की स्थिति तो सुधारें। एक बच्चा जब अट्ठारह साल की उम्र तक आते-आते दो लाख से ज्यादा हिंसा के दृश्य, पचास हजार से ज्यादा बलात्कार, अपराध या सेक्स और उनसे जुड़े दृश्य देख चुका होता है। हम कल्पना करें कि आखिर उस बच्चे पर कैसा प्रभाव पड़ेगा? हम हिन्दी बोलेंगे, वह हिन्दी बोलेगा, हम पंजाबी बोलेंगे, वह पंजाबी बोलेगा। हम अगर घर में लड़ेंगे तो बच्चा लड़ना सीखेगा। हम जैसी फिल्में देखेंगे, हमारे बच्चे भी आखिर वैसे ही बनेंगे। इसलिए हमारे घर पर आने वाले टी.वी. चैनल पर इतना अंकुश जरूर लगना चाहिए जिससे हमारे घर और परिवार का वातावरण गंदा न हो। हम किसी स्थान-विशेष में ठहरे हुए थे कि तभी एक महानुभाव अपने बच्चों के साथ हमसे मिलने के लिए आए। वे पति-पत्नी हमारे पास बैठे हुए थे। बच्चे गाड़ी में थे और तभी उन्होंने कैसेट चालू किया। कैसेट चल रही थी। कैसेट में ऐसे बेहूदे गीत आ रहे थे कि मुझे नाम लेते हुए भी लज्जा आती है। एक गीत बहुत चर्चित हुआ है और वह भी चोली से जुड़ा हुआ। वही गीत बज रहा था। मैं सुनकर दंग रह गया। मैंने उनसे कहा, 'आप ये किस तरह की कैसेट चलाते हैं ?' उनको कोई जवाब देते न सूझा। उन्होंने सफाई देते हुए कहा, 'साहब, वह तो ड्राइवर की कैसेट है। उसने चला दी होगी।' मैंने कहा, 'आप ड्राइवर भी ऐसा रखते हैं जिसका स्तर इतना घटिया है। बारह साल, चौदह साल के भाई-बहन जब ये कैसेट सुनते हैं कि चोली के अंदर क्या है और चोली के बाहर क्या है और हम समझते हैं कि वे भाई-बहन भी पूरी तरह भाई बहन रह पाएँ, क्या यह संभव है ?' - हमें किस तरह के गीत सुनने चाहिए, यह तो सोचें। एक ड्राइवर का स्तर और हमारा स्तर क्या बराबर हो गया ? शायद ड्राइवर अनपढ़ हो, गँवार हो। वह घटिया फिल्में देखता होगा, पर हमारी कार में इस तरह की कैसेट चल जाए और हमें कोई फर्क नहीं पड़े, यही दुःखद आश्चर्य है। For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए हमारा वातावरण बहुत कलुषित हो जाएगा। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को बचा न पायेंगे। हम गिरते चले जायेंगे। आने वाले बीस साल का कल कैसा होगा, नहीं कहा जा सकता। पिछले बीस सालों में दुनिया इतनी बदल चुकी है और इतनी रफ्तार से बदल चुकी है कि आने वाले पाँच साल के बाद की दुनिया कैसी होगी ? यदि उसे देखेंगे तो चकरा जायेंगे । 76 कौन बचाएगा, कौन - सा धर्म बचाएगा, कौन - सी संस्कृति हमें बचा पाएगी ? हम ही बचा पायेंगे अपने घर और परिवार की संस्कृति को । क्या संतों ने ठेका ले रखा है, क्या धर्मों ने ठेका ले रखा है मनुष्यों को सुधारने का ? कब तक वे मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन करते रहेंगे ? अरे, भला जब मनुष्य को ही परवाह नहीं है तो धर्म भी हमारे कल्याण और अकल्याण को कैसे थाम पायेंगे ? आदमी चाहे धर्म के कायदे, कानून, नियम कितने भी पालन क्यों न कर ले, और चाहे वह संत भी क्यों न बन जाए, पर जब तक स्वभाव और संस्कार में परिवर्तन नहीं आता, तब तक जीवन में परिवर्तन नहीं आता और जब तक जीवन में परिवर्तन नहीं आता तब तक आचरण में भी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। हम सोचते हैं कि आचार को बदल कर किसी के स्वभाव को बदल लेंगे, यह नासमझी है। आचार को बदलकर किसी के भीतर को बदल पाना संभव ही नहीं है। हम किसी को भीतर से बदल डालें, आचार और व्यवहार अपने आप बदल जायेंगे । स्वभाव बदला तो व्यवहार बदला, व्यवहार बदला तो आचरण बदला, आचरण बदला तो आदमी का चरित्र और आदतें बदल गईं। केवल संत हो जाने से क्या होता है? मैंने बहुत से संतों को देखा है जो क्रोध करते हैं। मुझे लगता है कि वे करुणा के पात्र हैं। उन्हें संतता को एक बार फिर से समझना होगा। मैंने बहुत से तपस्वियों को देखा है जो आठ दिन का उपवास रखते हैं और गुस्सा करते हैं। देखता हूँ कि सास ने अगर आधा तोला सोना कम दे दिया तो उतने में उनके तेवर चढ़ जाते हैं । काहे की तपस्या है यह? क्या इसको हम For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ तपस्या कहेंगे ? आदमी उपवास करे और पूछने के लिए आए कि साहब कच्चा पानी पी लिया तो क्या दण्ड होगा, पर कितनी बार गुस्सा किया इसके लिए क्या दंड होगा, इस पर कोई ध्यान नहीं देता है। ____धर्म के नियम, कायदे-कानून तो हमने ले लिए हैं। धर्म के जो शाश्वत मूल्य थे, जो स्प्रीच्युल ट्रुथ था, हमने उसको दरकिनार कर दिया। सहजता, सरलता, सत्य, निष्ठा, पवित्रता ये सब तो हमारे जीवन से चले गए, मात्र छोटे-मोटे झोली-डंडों की बातों को लेकर बैठे हैं और आपस में लड़ते-झगड़ते हैं। मैं नहीं समझ पाता हूँ कि हम जिसे धर्म समझ कर धर्म करते हैं या धर्म की उपमा देते हैं, उस धर्म को करके आदमी कितना बदलता होगा? धर्म तो वह है जो आदमी के स्वभाव पर असर दिखाए और उसके स्वभाव को बदल डाले। बन गए महाराज, क्या फर्क पड़ता है और नाम रख लिया शांतिसागर जी ? शांतिसागर जी चल रहे हैं और किसी का पाँव थोड़ी देर के लिए ऊपर आ भी गया तो शांतिसागर जी दो मिनट में अशांतिसागर जी हो जाते हैं। कह देते हैं, 'अंधा है क्या ? देख कर नहीं चल सकता।' ___हमारे भीतर इतनी भी शांति न रही। आदमी को निरपेक्ष रहना चाहिए। उसे थोड़ा तो शांत रहना चाहिए। थोड़ा तो धीरज रखना चाहिए। उसमें कुछ तो सहनशीलता हो। कोई कुछ भी करे, हमें उससे क्या ? शांति तो चित्त में होती है, व्यक्ति के स्वभाव में होती है। हम साधु भी बन जाएँ और अपने स्वभाव को शांत न कर पाएँ तो मैं पूछना चाहूँगा कि साधुता किसे कहते हैं, पहले यह तो समझ लें। साधु बनना जरूरी नहीं है अपितु साधुता को पहले समझना जरूरी है, फिर उसे जीना सीखना है। जिसने साधुता को जीने की मानसिकता बना ली है, वह तो साधु-पुरुष स्वत: ही बन गया। बात-बात पर चिड़चिड़ाना, बात-बात पर विकृत मुखमुद्रा कर लेना, बात-बात पर खीझ जाना, क्या यही हमारी धार्मिकता है ? हमने क्या सामायिक की, कौन-सी समता की आराधना की ? कौन-सी साधुता, कौन-सा श्रावकत्व, For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 78 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए कौन-से धर्मपंथ का अनुसरण किया ? कौन बदलेगा आदमी को ? खुद ही बदल पायेंगे अपने आपको। मुझमें किसी को बदलने की ताकत नहीं है। तुम्ही बदल पाओगे। जिस दिन तुम अपने आपको बदलने का संकल्प कर लोगे, तुम बदल ही जाओगे। कहते हैं कि हिमालय में एक व्यक्ति अपने गुरु की तलाश के लिए पहँचा। वह बर्फ की कंदराओं के बीच पहँच गया। वहाँ जाकर देखा, पूछताछ की तो एक वीतरागी संत की जानकारी मिली। उसने सोचा, पहले पड़तालें तो सही कि गुरु काम का भी है या नहीं। गुरु बनाने जैसा है या नहीं। गया और कहने लगा, ‘महाराज, मैं बहुत दूर से आया हूँ। ठंड के मारे ठिठुर रहा हूँ। अगर थोड़ी-सी आग की व्यवस्था करवा दें तो मेरी ठिठुरन मिट जाए।' संत ने कहा, 'भाई, हम आग को नहीं छूते हैं। हमारे पास आग नहीं है।' उसने कहा, 'महाराज ! बहुत जोर से ठिठुर रहा हूँ, मेरी हड्डी-हड्डी अकड़ी जा रही है। अगर थोड़ी-सी भी आग की व्यवस्था हो जाए तो बड़ी कृपा होगी।' गुरु ने कहा, 'भई मैंने कहा न कि हम लोग आग नहीं रखते हैं।' उसने फिर कहा, 'महाराज, इत्ती-सी आग ! ज्यादा नहीं, एक चिपटी भर आग की भी व्यवस्था हो जाए तो भी शायद मेरा काम निकल जाएगा।' महाराज को ये सब बातें ज्यादती भरी लगीं। उन्हें गुस्सा आ गया। वे कहने लगे, 'तुझे तीन बार मना कर दिया कि हम आग नहीं रखते और एक तू है जो आग पर आग माँगता जा रहा है। अगर ज्यादा किया तो ऐसा अभिशाप दूंगा कि यहीं आग में जलकर मर जाएगा।' आगन्तुक ने कहा, 'महाराज आप तो कहते हैं कि आपके पास आग नहीं है, फिर ये चिनगारियाँ कहाँ से आ रही हैं ? वीतरागी संत चौंके !' बोले, 'कौन-सी चिनगारियाँ ?' वह बोला, 'वे जो आपके भीतर से आ रही हैं।' आदमी केवल वेश-परिवर्तन, नाम-परिवर्तन, स्थान-परिवर्तन करने भर से जीवन में परिवर्तन नहीं कर पाता है। अगर आप लोग हकीकत में मुझे सुनते हैं तो मैं कहना चाहूँगा कि आप जीवन के शाश्वत सत्य और शाश्वत मूल्यों को For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ 79 अपने जीवन में अपनाइए। आप धर्म के भले ही नियम, कायदे-कानून न अपना पाएँ, लेकिन आप अपने जीवन में सहजता, सरलता, प्रामाणिकता, पवित्रता, प्रेम, शांति, करुणा और आनंद जैसे जीवन-मूल्यों को धारण कीजिए। शायद ये ही वे तत्त्व हैं जिनसे आपका स्वभाव और आपके संस्कार बदलते हैं और आप अपने स्वभाव पर विजय प्राप्त करते हैं। आप अपनी ओर से पूरा-पूरा प्रयास कीजिए कि हमेशा औरों के प्रति आपसे अच्छा सलूक हो। आप अपने उग्र स्वभाव पर विजय प्राप्त कीजिए। कहीं ऐसा न हो कि आपका उग्र स्वभाव आपके घर के वातावरण को भी कलुषित कर डाले। दुनिया में कोई उग्रवादी को पसंद नहीं करता। न देश पसंद करता है और न समाज। घर वाले भी उसे पसंद नहीं करते। जब भी हम उग्र स्वभाव से घिरते हैं, माफ करें, अगर हमें भी उस समय कोई उग्रवादी कह दे तो आपको कैसा लगेगा? मनुष्य का उग्र स्वभाव बिल्कुल घातक गेंदबाजी है। जिस पर भी जाकर वह गेंद लगेगी, उससे या तो वह बोल्ड होगा या फिर उसका छक्का लगेगा। दोनों में से एक काम होगा या तो वह आउट हो जाएगा, या फिर वह उग्रता के आधार पर तुम्हारी गेंद को ग्राउंड के बाहर फेंक देगा। __ हम शीतल पेय पिएँ, शीतल पेय पिलाएँ। खुद भी ठंडे मिजाज के साथ जिएँ और औरों के साथ भी ठंडे मिजाज के साथ पेश आएँ। अपने उग्र स्वभाव पर अपना अंकुश रखें। यह भी देख लें कि क्या हमारा स्वभाव उग्र है ? हममें से जितने लोग बैठे हैं, वे जरा एक पल के लिए अपने मन को देखें कि क्या हकीकत में हमारा स्वभाव उग्र है ? हम स्वीकार करें पहले चरण में कि हाँ, हमारा स्वभाव उग्र है। जब तक हम स्वीकार ही नहीं करेंगे, तब तक हम अपने आपको बदल ही कैसे पायेंगे? जब हम स्वीकार कर लेंगे, तभी तो हम सोच सकेंगे कि हम अपनी उग्रता को कैसे छोड़ें? आदमी की आदत ऐसी बन गई है कि जब तक वह दिन में दो, चार अथवा दस दफा उग्रता से न बोल ले, तब तक उसको रोटी खानी भी नहीं सुहाती। मैंने पाया है कि जितने भी लोग उग्र स्वभावी होते हैं, वे दुनिया में For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 80 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए किसी के द्वारा पसंद नहीं किए जाते। मैंने देखा है कि ऐसे व्यक्ति को जो कि उग्र स्वभाव का था, अपनी पत्नी के साथ गाली-गलौज करता या अपने बच्चों को मारता-पीटता रहता था। उसके उग्र स्वभाव के कारण उसके बच्चे भी शायद उसके विपरीत हो गए होंगे। मैंने देखा है कि आदमी का उग्र स्वभाव उसको कितनी हानि पहुँचाता है, लेकिन जब उसी व्यक्ति ने अपना जीवन बदल लिया तो उसके बच्चे उसके लिए कितने फिदा होने लग गए। उसके बच्चे अपने पिता के लिए मरने-मिटने लग गए। तुम्हारा उग्र स्वभाव तुम्हारी नापसंदगी का कारण बना और तुम्हारा शीतल और शांत स्वभाव तुम्हारे बच्चों के भीतर आदर और आस्था को जन्म देने का आधार बना। ___ हमने क्रोध किया और उसके दुष्परिणाम भी देखे। हमने प्रेम किया और उसके शुभ परिणाम भी जानने को मिले। जब जीवन में शुभ परिणाम निकाले जा सकते हैं, तो फिर दुष्परिणामों से क्यों न बचें? हम अपने जीवन को सौम्य और मधुर बनाएँ। अपने उग्र स्वभाव पर आप अंकुश लगाइए। हमेशा औरों के साथ अच्छा सलूक कीजिए। अच्छा व्यवहार कीजिए। यदि आप किसी का बुरा नहीं करते तो यह अच्छी बात है पर अगर आप किसी का भला करते हैं, अच्छे तरीके से पेश आते हैं तो यह आपके जीवन की और अधिक श्रेष्ठता हुई। कोई फूल अगर दुर्गन्धित नहीं है, यह बात अच्छी है पर फूल सुगंधित है तो यह उसकी अपनी विशेषता है। हमेशा औरों के साथ विनम्रता से पेश आएँ। हमेशा औरों के साथ खिले हुए गुलाब के फूल की तरह पेश आएँ। आपकी मधुरता, आपकी विनम्रता आपके जीवन को बहुत बड़ा गौरव प्रदान कर देगी। जो यश आप लाखों रुपये खर्च करके भी उपलब्ध न कर पाते होंगे, वह यश आपकी विनम्रता, आपका सद्व्यवहार और आपका सौम्य स्वभाव आपको प्रदान करेगा। आप सबसे प्रेम-मैत्री रखिए। मैं सबका मित्र हूँ। विश्वमित्र हूँ। सारा विश्व मेरा मित्र है। मुझे नहीं लगता कि धरती पर हमारा कोई दुश्मन होगा। For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ ___81 अगर हमें पता चल जाए कि कोई व्यक्ति हमारा दुश्मन है तो हम अवश्यमेव वहाँ जाते हैं और उसका दिल जीतने की कोशिश करते हैं। हम जायेंगे और उसके आगे अपने आपको इतना विनम्र औश्र मधुर कर देंगे कि उसका दिल पिघल ही जाएगा। अपने पर आँच आई और हम पिघल पड़े तो क्या पिघले? हम ऐसे पिघलें कि किसी और पर आँच आए तो वह भी पिघल जाए। ____ हमारी जिन्दगी में कोई शत्रु बन गया, चिन्ता नहीं, हमारा पुरुषार्थ उसे मित्र बनाने का जरूर होना चाहिए। हम बहुत ही विनम्रता से, शालीनता से. मधुरता से पेश आएँ। सीमित शब्दों में अपनी बात कहें। ज्यादा जरूरत नहीं है माथाकूट करने की। हम सुबह सूर्योदय से पहले जगें। जब भी जगें, अपने हृदय में उत्साह, उमंग और आत्म-विश्वास का संचार करें। सुबह उठकर अपने माता-पिता को पंचांग प्रणाम करें। इससे उनकी दुआएँ मिलेंगी। यही हमारी विनम्रता भी होगी। माँ-बाप को और तो कुछ नहीं चाहिए, केवल हमारी विनम्रता चाहिए। उनके हाथ अपने सिर पर आने दें। हम अपने घर के अन्य सदस्यों का भी दिल से अभिवादन करें और इस तरह से सुबह-सुबह ही घर के वातावरण को सौम्य बना डालें। जैसे कोई आदमी बगीचे में जाकर प्रफुल्लित होता है वैसे ही हमें ऐसा लगेगा जैसे हमारा घर ऐसा ही कोई उद्यान हो चुका है जिसका हर सदस्य गुलाब का, जूही का, चम्पा का और चमेली का फूल है। जब हम भोजन करने के लिए बैठें तो ध्यान रखें कि एक गिलास पानी और तौलिया अपने पास रखकर बैठें। जब भी भोजन करें, पहले अपने हाथों को धो लें, फिर भोजन शुरू करें। ध्यान रखें, जब भी भोजन करें, पहले देखें कि हमारे नाखून अगर बढ़े हुए हैं तो हम भोजन करने की जल्दी न करें। पहले जाकर अपने नाखूनों को काट लें। महिलाएँ भोजन बनाती हैं तो देखें और पहले जाकर अपने नाखून काट लें क्योंकि उनके नाखून में जो मैल है, उसके थोड़े बहुत कण आखिर उसी आटे में जायेंगे या भोजन करते समय हमारे पेट में जायेंगे। हम अपने नाखूनों को हमेशा साफ रखें। हम अपने चेहरे पर भले ही For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 82 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए पाउडर लगाएँ लेकिन अपने होठों पर कोई भी रासायनिक पदार्थ न लगाए क्योंकि उसी तत्त्व की अपने पेट में जाने की संभावना बनी रहती है। जब खाना खा लें, अपने हाथ वहाँ पर धोएँ, जहाँ बैठे हैं। खाना खाने के बाद वहीं पर ही हाथ धोएँ। ऐसा नहीं कि हाथ कहीं और जाकर धोएँ। यह अमर्यादा कहलाती है। हम जब भी खाना खाएँ, अपने होठों को बंद करके खाना खाएँ। यों नहीं कि जो दूसरा आदमी हमको देख रहा है, उस आदमी को नज़र लगे कि खाना क्या खा रहा है बल्कि दाँत ऐसे चल रहे हैं जैसे गाय या बकरी के दाँत चल रहे हैं, छी: छी:। अपने होठों को बंद करके कौर खाइये। होठों को बन्द करके भीतर ही भीतर उसको ढंग से चबाइये और निगलिए। जब खाना खा लें तो हाथ धोकर तौलिए से पौंछे। अपनी थाली को वहाँ पर छोड़कर खड़े न हों। हम अपनी थाली को अगर अपने हाथों से धो सकें तो ठीक है। यदि न धो सकें तो कम-से-कम उसे यथा स्थान पर ले जाकर रखें। जब हम दुकान पर जाएँ तो अपने ग्राहकों से मधुर व्यवहार करें। अपने कर्मचारियों से, अपने गुमाश्तों से इतना मधुर बर्ताव करें कि हमारे कर्मचारी भी हमारी शालीनता और सौम्यता पर गर्व कर सकें। हम अपने ग्राहकों से लड़ाईझगड़ा न करें। यह न सोचें कि एक ग्राहक चला गया तो दूसरा आएगा। अगर हमने कोई माल बेच दिया और वह माल उसको घर जाने पर पसंद न आया और वह उसे वापस ले आया, तो उसे ले लें। भले ही एक पाव चीनी लेकर गया, पर लौटकर सवा दो सौ ग्राम लाया, फिर भी हम उसे रख लें। उसे मना न करें, क्योंकि ऐसा करने से ग्राहक के मन में आपके सौम्य व्यवहार की मोहर लगेगी। हमेशा घर पर समय से लौट आइए। रात को ग्यारह-ग्यारह, बारह-बारह बजे तक घर से बाहर न रहें क्योंकि ऐसा करने से आपकी पत्नी या घर के अन्य सदस्यों के मन में संदेह जगेगा। हम समय पर अपने घर लौट आएँ क्योंकि घर वालों को आपकी प्रतीक्षा है। आखिर, हमारी पत्नी भी है, बच्चे भी हैं, घर के और सदस्य भी हैं। उनको हमारा प्रेम चाहिए। घर वालों के साथ भोजन करें For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ और परिवार के सदस्यों के साथ हिलमिल कर समय बिताएँ । अपने माता-पिता से, अपने बच्चों से, अपनी पत्नी से अवश्य पूछें कि क्या तुम्हें किसी चीज की जरूरत है ? तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं है ? माँ, अगर आपको किसी चीज की जरूरत है तो मुझे बता दें ताकि मैं वह चीज ला कर तुम्हें दे दूँ । आखिर उनकी भी जरूरतें होती हैं। हम सप्ताह में एक बार ही सही, उनको अवश्य पूछें। यदि आप ससुर हैं तो होली अथवा दीपावली किसी भी पर्व पर अपनी बहू को एक साड़ी जरूर दीजिए। उसका लाड़ भी कीजिए ताकि उसके दिल में आपके प्रति जो आदर है, वह और ज्यादा बढ़े। निश्चय ही आपके प्रति उसका आदर और बढ़ेगा। वह जितनी सेवा अभी करती है, उससे अधिक करेगी। उसको लगेगा जैसे हमारे पिता हमारा ख्याल रखते हैं, हमारी सास, हमारी जेठानी भी हमारा ख्याल रखती हैं, वैसे ही हमें भी इनका ख्याल रखना चाहिए। जब हम अपने बच्चों के लिए कोई भी ड्रेस लेकर आएँ तो ध्यान रखें कि आपके जो दूसरे भाई हैं, उनके बच्चों के लिए भी एक-एक ड्रेस जरूर लेकर आएँ। घर-परिवार का वातावरण ऐसे ही खुशनुमा होता है। ध्यान रखिए, जीवन में ऐसे छोटे-छोटे से सूत्र अपना कर आप अनायास ही अपने स्वभाव को दुरुस्त कर लेंगे। यह सच है कि स्वभाव और आदत को बदलना कठिन होता है, 'जांका पड्या स्वभाव जासी जीव सूं, नीम न मीठो होय, सींचो गुड़ घीव सूं।' मरने पर ही स्वभाव छूटता होगा । माफ करें, शायद मरकर भी नहीं बदलता होगा। वह जन्म-जन्मातर तुम्हारा पीछा करता रहेगा । मतलब यह कि तब भी तुम बदल ही न पाओगे। न इस जन्म में, न अगले जन्म में, न किसी और जन्म में। यानी कुत्ता सनातन कुत्ता रहेगा, गधा सौ जनम के बाद भी गधा ही रहेगा। 83 इस बिन्दु पर ठंडे दिमाग से सोचिए । कल किसने देखा है ? आज ही स्वयं को बदल दीजिए। आप चाहें तो अभी बदल सकते हैं । यहीं बदल सकते हैं। जरूरत है तो बदलने की मानसिकता की, संकल्प की। अपने में पड़तालिए कि कौन-सी कमी या मजबूरी है, कौन-सा व्यसन है, कौन-सा बुरा स्वभाव For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए हम पर हावी है ? खुद को बदलने की मानसिकता ही खुद को बदलती है। मैं मुझे बदलूँगा, तुम तुम्हें बदलोगे। स्वयं को बदलने का उत्तरदायित्व स्वयं पर है। हमारा संकल्प मजबूत हो, व्यवहार में उसे लागू करने की जागरूकता हो। ध्यान रखो, ऐसे ही कभी रोहिणिया चोर बदला, डाकू अंगुलिमाल बदला, मंगलसिंह और खडगसिंह बदले, रत्नाकर बदले और चन्डकौशिक भी बदला। जीवन में लगने वाली ठोकर इंसान को बदलती है, समझ हमें बदलती है, संकल्प हमें बदलता है। __आप जहाँ बैठे हैं, दो मिनट के लिए कमर सीधी कीजिए, पलकों को झुकाइये और अपनी बुराई को पहचानिए। उसे पृथ्वी को समर्पित कर दें। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में अपनी बुराइयों को विसर्जित हो जाने दें।... स्वयं को ढीला छोड़ें... पूरी तरह रिलेक्स... फ्री हो जाइये... मुक्त ! For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेम: जीवन का पुण्य पथ मेरे प्रिय आत्मन्, विश्व की एक पुरातन महान् पुस्तक में एक छोटी-सी घटना का उल्लेख है। यहूदी धर्म का एक शिक्षक अपने जीवन की समस्या का समाधान पाने के लिए भगवान जीसस के पास पहुँचा। उसने जीसस से पूछा, 'सच्चा जीवन प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?' जीसस ने जवाब दिया, 'हमें परम पिता परमात्मा से प्रेम करना चाहिए और दूसरे लोगों से भी प्रेम करना चाहिए जैसे हम अपने आपसे करते हैं।' शिक्षक ने पूछा, 'दूसरों से आपका प्रयोजन क्या है ?' जीसस ने कहा, 'ऐसा समझो एक व्यक्ति यरुशलम नगर से यरोहोन नगर की ओर जा रहा था। रास्ते में उसे डाकू मिले। डाकुओं ने उसे लूटा और मारपीट कर घायल भी कर दिया। घायल अवस्था में पड़ा हुआ वह प्रभु का स्मरण करने लगा। तभी उधर से मंदिर का पुजारी निकला। उसने रास्ते में पड़े For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 86 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए हुए घायल व्यक्ति को देखा। लेकिन यह सोचकर कि कौन पुलिस की गिरफ्त में आये, वह आगे निकल गया। तभी चर्च का पादरी वहाँ से गुजरा। पादरी ने भी घायल व्यक्ति को देखा, उसका हालचाल जानना चाहा लेकिन वह भी किसी तरह का सहयोग नहीं दे पाया क्योंकि उसे भी कहीं और प्रवचन देने जाना था। तभी एक दयालु परदेशी उधर से निकला। उसने घायल व्यक्ति को उठाया, उसके घाव धोये, अपने वस्त्र में से एक पट्टी फाड़कर उसके घावों पर बाँधी और अपने खच्चर पर उसे बिठाया, दूसरे गाँव में ले जाकर उसे सराय में ठहराया। उसने सराय के मालिक से कहा, 'मैं आगे की यात्रा करके लौटता हूँ; तब तक तुम इस घायल व्यक्ति की सेवा-टहल करो। इसकी आवश्यक सेवा के लिए मैं तुम्हें पैसे भी दे देता हूँ। अगर कम पड़े तो लौटते वक्त तुम्हारा शेष भुगतान भी कर दूंगा'। जीसस ने अपनी ओर से जिज्ञासा का समाधान करने के लिए आये हुए व्यक्ति से पूछा, 'क्या तुम बता सकते हो कि उस घायल व्यक्ति के प्रति ज्यादा प्रेम किसने दर्शाया ?' शिक्षक ने कहा, 'जिसने उस पर दया दर्शायी।' जीसस ने कहा, 'बस, यही है जीवन जीने का मार्ग। तुम जाओ और उस दयालु परदेशी के उदाहरण बनो।' व्यक्ति को औरों के साथ ठीक वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे कि वह अपने आप से करता है। प्रेम ही संसार का सबसे खूबसूरत भाव है। प्रेम स्वयं ही स्वर्ग का मार्ग और मुक्ति का द्वार है। प्रेम से ही जीवन का प्रारम्भ होता है और प्रेम पर ही जीवन पूर्ण होता है। प्रेम जीवन का परिणाम नहीं है वरन् जब जीवन में प्रेम का निर्झर फूटता है तभी वास्तविक जीवन की शुरूआत होती है। अगर दुनिया में प्रेम न होता तो सारी दुनिया वैर-विरोधों से भरी रहती और तब यह सौ वर्ष तो क्या, एक दिन भी जीने के काबिल न होती। क्या आप ऐसे घर में जाना चाहेंगे जहाँ आपकी मनुहार और सम्मान न हो ? क्या आप किसी ऐसे स्थान पर बैठना चाहेंगे जहाँ आपको फटकार मिलती हो। आँखों में चमक वहीं आती है जहाँ प्रेम मिलता है। जिह्वा तभी मधुर होती है जब उसमें प्रेम का रस घुलता है। हृदय तभी प्रफुल्लित होता है जब हृदय में प्रेम का गुलाब खिलता है। For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ 87 प्रेम ही जीवन की बारहखड़ी का पहला शब्द है। मनुष्य के जीवन में माधुर्य की शुरुआत प्रेम से होती है। प्रेम में ही सत्य की शक्ति निहित है। प्रेम में ही शिवत्व की आभा छिपी हुई है। सच तो यह है कि प्रेम से बढ़कर सौन्दर्य का कोई अस्तित्व नहीं है। व्यक्ति का प्रेम जब औरों के प्रति सम्मान से भर जाता है तो वह श्रद्धा बन जाता है। यही प्रेम जब विकृत होता है तो वैर-विरोध और क्रोध बन जाता है। जब प्रेम श्रद्धा में रूपांतरित होता है तो वह अपने शीश को औरों के पाँव में झुका देता है और जब वही प्रेम वैर-विरोध का रूप धारण कर ले तो उसकी जूती दूसरे के माथे पर भी पड़ सकती है। दुनिया में चलने वाली मैत्री प्रेम का ही विकसित रूप है। करुणा भी प्रेम का ही रूपांतरण है। भक्ति भी प्रेम की ही पराकाष्ठा है। प्रेम ही प्रणाम बनता है, प्रेम ही प्रसाद होता है और प्रेम ही आशीर्वाद बन जाता है। प्रेम जब किसी को सम्मान देना चाहता है तो प्रणाम बन जाता है। जब स्नेह से किसी के माथे पर हाथ रखते हो तो वह आशीर्वाद बन जाता है और जब किसी को प्रेमपूर्वक भोजन समर्पित करते हो तो वह प्रसाद बन जाता है। प्रेम ही आगे बढ़कर अहिंसा को साकार करता है। अगर प्रेम न होता तो अहिंसा किताबों में लिखा जाने वाला सिद्धान्त भर ही होता। वह विश्व-शान्ति का आधार कभी न बन पाती। महावीर ने अहिंसा की और बुद्ध ने करुणा की बात कही जबकि सच्चाई यह है कि इन दोनों में से प्रेम को निकाल दिया जाय तो करुणा करुणा न रहकर किसी पर अहसान बन जायेगी। तब अहिंसा अहिंसा न रहकर केवल अपने स्वार्थ के गलियारे में किसी को ठेस न पहुँचाना मात्र ही अहिंसा रह जाएगी। अहिंसा जीवन की पहली सीढ़ी है, पर अगली सीढ़ी तो प्रेम ही है। किसी के हृदय को ठेस न पहुँचाना जीवन के लिए शुभ बात हो सकती है, पर किसी के दिल को सुख और सुकून पहुँचाना तो प्रेम के दीवानों की ही बात है। ___ आप किसी का अहित नहीं करते यह शुभ धर्म है, पर आप किसी का भला करते हैं तो यह आपके धर्म की पहचान कहलायेगी। किसी फूल में दुर्गंध नहीं है तो यह अच्छी बात है लेकिन फूल में सुगंध है तो यह उसका वैशिष्ट्य For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 88 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए है। दुनिया में अगर अहिंसा को जीवित रखना है तो प्रत्येक व्यक्ति प्रेम के पथ को अपनाये। प्रेम से बढ़कर कोई परिणाम नहीं है। प्रेम से बढ़कर कोई भक्ति या परमात्मा नहीं होता। बाइबिल कहती है Love is God, God is love. प्रेम स्वयं परमात्मा है, परमात्मा स्वयं प्रेमरूप है। भक्ति की किसी भी धारा से अगर प्रेम हटा दिया जाय तो वह परमात्मा का मार्ग न रह पायेगा। वह मार्ग केवल पंडित पुजारियों का होगा। विश्व में शांति-स्थापना के लिए भी व्यक्ति स्वयं को प्रेम के साथ जोड़े। परिवार में शांति के लिए, समाज में मैत्री के लिए, राष्ट्र में विकास के लिए और विश्व-बन्धुत्व की स्थापना के लिए प्रेम की ही नींव चाहिए। कोई आपको नहीं चाहता तो इसका भी यही कारण है कि आपके जीवन में प्रेम नहीं है, आप लोगों से प्रेम करना नहीं जानते। कभी-कभी इसी कारण कोई आपका वैरी-विरोधी बन जाता है। तुम अपनी भाषा में प्रेम का अवलेह दे दो, अपनी नजरों में प्रेम की रोशनी दे दो, अपने व्यवहार और बर्ताव में प्रेम का सुकून दे दो तो इंसान तो क्या, स्वयं प्रकृति के पशु-पक्षी, फूल-पौधे, नदीनाले भी तुमसे मिलने को बेताब हो उठेंगे। मुझसे अगर कोई जीवन का सार, जीवन का संदेश लेना चाहे तो मैं यही कहूँगा 'तुम प्रेम से जियो।' प्रेम सारे आस्रमों का हृदय है, शास्त्रों का रहस्य है, गुणों और व्रतों का सार है। जब किसी को विश्व-शान्ति का नोबल पुरस्कार मिलता है तो क्या वे जानते हैं कि उस पुरस्कार की शुरुआत कैसे हुई? अल्फ्रेड नोबल, जिनके नाम से पुरस्कार स्थापित हुआ, ने डायनामाइट का आविष्कार किया था। एक सुबह जब वह सो कर उठा तो अखबार का शीर्ष समाचार पढ़कर चौंक गया क्योंकि मुख्य समाचार था, ‘अल्फ्रेड नोबल जो मौत का सौदागर था, उसकी मृत्यु।' नोबल चकराया क्योंकि वह तो जीवित था जबकि उसके बारे में ही यह समाचार छपा था। उसने सोचा, कोई दूसरा अल्फ्रेड नोबल रहा होगा लेकिन भूलवश मेरे नाम से यह खबर छप गई होगी। नोबल ने यह सोचकर कि मेरे मरने के बाद अखबार क्या लिखेंगे, लोगों के क्या विचार होंगे, उसने विस्तृत समाचार पढ़े। वह पुन: चौंका क्योंकि उसने लिखा था कि 'अल्फ्रेड नोबल ने डायनामाइट का For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेम : जीवन का पुण्य पथ आविष्कार करके सारी दुनिया में मौत का आतंक फैला दिया है। वह मौत का सौदागर था, वह चल बसा। ' नोबल की आँखों में आँसू भर आये कि क्या दुनिया उसे मौत के सौदागर के रूप में याद करेगी क्या आने वाला कल मुझे धिक्कारेगा ? उसका तो जीवन ही बदल गया। उसके बाद उसने जो भी प्रयास किये, वे विश्व शान्ति और विश्व बंधुत्व के प्रयास थे। उसने अपनी सारी सम्पत्ति और धन अपने किसी भी परिजन को नहीं दिया। उसने बैंक में जमा कर दिया और घोषणा कर दी कि उससे होने वाली आय से प्रतिवर्ष उस व्यक्ति को सम्मानित किया जाय जिसने अपना जीवन विश्व में प्रेम और शांति - सद्भावना स्थापित करने के लिए अर्पित किया हो। तब से लेकर आज तक उस शांति दूत के नाम से नोबल पुरस्कार दिया जाता है। - 89 यह धरती उसे सम्मान नहीं देती जो सिकंदर की तरह विश्व में आतंक फैलाये । यह स्टालिन और हिटलर को भी सम्मान नहीं देती । यह नेपोलियन को भी उतना सम्मान न देगी जितना प्रेम, शांति, करुणा और आनंद की राह दिखाने वाले लोगों को देगी। यह तो उन्हें सम्मान देगी जिन्हें हम राम, रहीम, कृष्ण, कबीर, महावीर, मोहम्मद या गाँधी और मंडेला कहते हैं। कोई तुम्हारी राह में कांटे ही क्यों न बिछा दे, तुम अपने प्रेम से उन्हें फूलों में बदलने की शक्ति रखो। वस्तुतः प्रेम ही वह तत्त्व है जिसमें दीन सुदामा का सत्तू कृष्ण द्वारा स्वीकार किया जाता है। प्रेम से अगर शबरी जूठे बेर भी राम को खिलाती है तो राम बहुत आनंद से उन बेरों को खाते हैं । उस शबरी के प्रेम की पराकाष्ठा तो देखो कि वह एक - एक बेर चखती है ताकि भगवान को कहीं खट्टा बेर न चढ़ जाय । यह भी तो प्रेम ही है कि कृष्ण दुर्योधन के पकवान छोड़कर विदुर के यहाँ साग-भाजी खाते हैं। प्रेम की पराकाष्ठा तो यह है कि विदुर की पत्नी केले के छिलके तो कृष्ण को देती है और केले फेंकती जाती है, लेकिन कृष्ण भी प्रेम के वशीभूत होकर छिलके ही खाते चले जाते हैं । 'सबसे ऊँची प्रेम सगाई, दुर्योधन घर मेवा छांडे, शाक विदुर घर खाई ।' यह तो प्रेम ही है जो लग गया For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए सो लग गया। प्रेम करने जाओ तो नहीं होगा, जिससे हो गया सो हो गया। यह प्रेम का मार्ग ही ऐसा है कि हर किसी को उस मार्ग का पथिक होना ही पड़ता है। अगर आपके जीवन में नीरसता, निराशा या निरासक्ति है तो मैं कहूँगा कि आप प्रेम के पथ पर आयें और प्रेम को गले लगायें। अपने मन की आँखों को प्रेम से आँजें, अपने हृदय के गमले को प्रेम के पौधे से सजायें। आप धर्म-पथ के अनुयायी हैं, आप परिवार के साथ हैं, समाज में रह रहे हैं यह सब ठीक है, लेकिन आपमें प्रेम है या नहीं ? अगर आपके जीवन में प्रेम है तो आप अकेले होकर भी सौ के बराबर हैं और यदि जीवन में प्रेम नहीं है तो दो सौ लोगों के बीच रहकर भी अकेले ही होंगे। महिलाएँ खाना बनाती हैं। मैं उनके लिए कहना चाहूँगा कि महत्त्व इसका नहीं कि आपने कितने प्रकार के व्यंजन क्या-क्या मसाले डालकर बनाये, अपितु मूल्य यह है कि आपने कितने प्यार से, मन लगाकर खाना बनाया? आपके प्यार की रूखी रोटी भी तृप्त कर देगी और बेमन से खिलाये गये मिष्ठान्न भी आपसे मुख मोड़ देंगे। रोटी के पीछे जो प्रेम है, वह मूल्यवान है। ऐसा हुआ : एक चोर को राजा ने फाँसी की सजा सुना दी। रानियों ने सुन रखा था कि मरने वाले व्यक्ति को अगर भोजन करा दिया जाय तो स्वर्ग प्राप्त होता है। पहली रानी ने राजा से अनुरोध किया कि उस चोर की सज़ा एक दिन आगे बढ़ा दी जाय क्योंकि वह उसे भोजन कराना चाहती है। राजा ने रानी की बात मान ली। रानी ने चोर को भोजन के लिए आमंत्रित किया और नाना प्रकार के पकवान परोसे। चोर पकवान खा तो रहा था, लेकिन भयभीत था। उसके मन में फाँसी का फंदा झूल रहा था कि कल तो फाँसी लगेगी ही। आज कितना भी क्यों न खा लूँ, कल तो...! रानी ने भोजन कराया और हजार रुपये भी दिये। वह चला गया। दूसरे दिन दूसरी रानी ने बुलाया। उसने भी खूब आवभगत की, दो हजार रुपये भी दिये, लेकिन चोर तो उदास ही बना रहा। तीसरे दिन तीसरी रानी ने बुलाया, खूब अच्छा खाना बनाया, तीन हजार रुपये भी दिये, लेकिन वह तो मायूस ही For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेम : जीवन का पुण्य पथ रहा क्योंकि उसके दिमाग में फाँसी का फंदा झूल रहा था। राजा के एक रानी और थी। उसे राजा ने महल से निकाल दिया था। वह उपेक्षित-सी गरीबी में जीवन बिताती हुई एक झोंपड़ी में रहती थी। राजा ने उसे उपकृत करने के लिए चोर को उसके यहाँ भी भोजन करने भेज दिया। गरीब रानी ! उसके पास साधारण-सा खाना था और सौगात में देने को कुछ भी नहीं था। चोर ने जब खाना देखा तो चौंक गया। इस रानी की यह हालत ! रानी चोर के पास आई और स्नेह से बोली, 'तुम यह खाना प्यार से खा लो। मेरे पास तुम्हें देने के लिए हजारों रुपये नहीं हैं, पर राजा से मैंने तुम्हारे लिए फाँसी से मुक्ति माँग ली है। यही मैं तुम्हें उपहार में दे रही हूँ, अब तुम्हें प्राण-दण्ड न मिलेगा।' चोर ने कहा, 'माँ, यह तुम क्या कह रही हो ?' 'सच कह रही हूँ राजा ने तुम्हारी फाँसी की सज़ा माफ कर दी है।' ___चोर रोने लगा और रानी के पाँवों में गिरकर बोला, 'माँ, तुमने मुझे वह सौगात दी है, वह उपहार दिया है जिसके लिए मैं जीवन भर तुम्हारा ऋणी रहूँगा। मैं तुम्हारे चरणों की सौगन्ध खाकर कहता हूँ माँ, आज के बाद कभी चोरी नहीं करूँगा।' किसी के प्यार से एक आदमी का जीवन सुधर जाता है। सभी इंसान तो एक जैसे हैं, फिर किस बात का अहं ? कौन बड़ा, कौन छोटा ? धन-सम्पत्ति के कारण शायद फर्क कर सकते हो, लेकिन इंसानियत के नाते तो किसी के बीच कोई फर्क नहीं होना चाहिए। कली को अगर जीतना है तो जीतो मधुर मनुहार से, हिरण को अगर जीतना है तो जीतो मधुर झंकार से', अगर किसी को जीतना है तो उसे तलवार से जीता तो क्या जीता ? अगर जीतना है सबको तो जीतो अपने प्रेम भरे व्यवहार से। प्रेम की विजय ही सबसे बड़ी विजय है। हथियारों से प्राप्त विजय अन्ततः हार में बदल जाती है। हथियारों से जान ली तो जा सकती है, पर किसी को जान दी नहीं जा सकती। प्रेम के बल पर जान नहीं ली जा सकती, पर किसी मरते हुए को जान जरूर दी जा सकती है। तुम अपने जीवन को प्रेम से जोड़ो, अपना पथ प्रेम का पथ बनाओ। For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 92 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए तुम्हारा पहला धर्म प्रेम, पहला शास्त्र प्रेम, पहला आश्रम प्रेम। प्रेम से ही जीवन के विधायक परिणाम मिलेंगे। प्रेम का प्रारम्भ मनुष्य के साथ होता है। पशु-पक्षी, नदी-नाले, प्रकृति, इन सब पर प्रेम का विस्तार होता है। बच्चों से प्रेम करो, दुश्मन के साथ भी प्रेम का व्यवहार करो। मंदिर में जाकर जिस ईश्वर की आराधना करते हो, वही ईश्वर दुश्मन में भी विराजमान है, यह कैसे भूल जाते हो? राम में तो सभी राम देख लेते हैं, लेकिन रावण में भी जो परमात्मा को देख लेता है, वही तो विशिष्ट है। कोई तुम्हें सम्मान दे और तुम भी उसका सम्मान करो तो यह जगत्-व्यवहार हो जाएगा लेकिन तुम्हारा अपमान करने वाले को भी जब तुम सम्मान देते हो तो यह होगा तुम्हारा प्रेम-व्यवहार। ___मैंने तो प्रेम से हर समस्या का समाधान होते हुए देखा है। अगर समाधान न हो सका तो उसमें प्रेम की कमी रहती है। हर इंसान से प्रेम करें, दुनिया में किसी को शत्रु न बनायें। भगवान तो कहते हैं कि व्यक्ति को वीतराग होना चाहिए, राग-द्वेष से मुक्त हो जाना चाहिए। मैंने जब भगवान के मार्ग को भलीभाँति समझा तब सोचा कि अगर राग से मुक्त न भी हो सका, तो भी वीतद्वेष जरूर बनूँगा। मैंने जीवन का दूसरा दृष्टिकोण अपनाया कि कभी किसी से द्वेष नहीं रखुंगा, वैर-विरोध नहीं रखंगा। शस्त्र से तो कोई भी स्वयं को नहीं बदल पाया, किन्तु जिसने भी स्वयं को बदला है, प्रेम से ही बदला है। आप प्रेम करें, अपने प्रेम को छिपाकर न रखें। प्रेम पाप नहीं है। पाप को छिपकर करो तो उसे पाप समझा जा सकता है। प्रेम तो पुण्य पथ है, किसी से भी दुश्मनी मत रखो। ____एक वृद्ध महिला किन्हीं संत का प्रवचन सुन रही थी। भागवत कथा चल रही थी। तभी देखा गया कि जैसे ही परमात्मा का नाम आता है, वृद्ध महिला नमस्कार करती है। इतना ही नहीं, जैसे ही शैतान का भी नाम आता तो वह उसे भी नमस्कार करती। जितनी बार भी परमात्मा या शैतान के नाम आये, वह नमस्कार करती। वह संत जो प्रवचन दे रहे थे, बोलते हुए रुक गये और उस वृद्धा से पूछने लगे, ‘माँ जी, जब परमात्मा का नाम आता है, तब तुम शीश For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेम : जीवन का पुण्य पथ झुकाती हो, यह तो समझ में आता है लेकिन शैतान के नाम पर भी शीश झुकाती हो, यह मैं नहीं समझ पा रहा हूँ।' बुढ़िया ने कहा, 'महाराज, जीवन का अनुभव तो यह बताता है कि पता नहीं, कब किससे क्या काम पड़ जाये, इसलिए दोनों को नमस्कार करती हूँ।' तुम कभी किसी को अपना दुश्मन मत बनाओ। तुलसी या संसार में, भाँति-भाँति के लोग। सबसे मिलकर चालिये, नदी-नाव संयोग। आप बगीचे में जाते हैं। वहाँ तरह-तरह के फूल खिले हैं, उनका सौन्दर्य देखिए, उन्हें डाल से विलग मत कीजिए। उन्हें दुलराइये, पर नोंचिये नहीं। भले ही भगवान के चरणों में पुष्प अर्पित करना हो, तब भी नहीं। जो फूल खुद ही डाल से अलग हो गये हैं, उन्हीं को भगवान को समर्पित कीजिए। भगवान नाराज नहीं होंगे। वे तो आपके प्रेम के भूखे हैं। आपकी छत पर बंदर आ जाते हैं। यदि आप उन्हें केला नहीं खिला सकते तो कम से कम पत्थर तो मत मारिये। गली के कुत्तों को रोटी नहीं दे सकते तो उन्हें लाठी से तो मत मारिये। माना कि आपके किराने की दुकान है। कोई सांड या गाय आपके यहाँ रखे अनाज में मुँह मार देते हैं तो आप उन्हें डराकर भले ही हटा दीजिए, पर डंडे से पीटिये मत। दो मुट्ठी अनाज तो दे नहीं सकते, पर उन्हें मारेंगे जरूर। कृपया ऐसा न कीजिये। यह विवेक की बात है, यह प्रेम से जीने का पथ है। किसी बच्चे के मन में कुत्ता पालने की इच्छा हुई। वह पशुपालक के यहाँ गया। वहाँ बहुत सारे पिल्ले थे। उसने दुकानदार से उनका भाव पूछा। दुकानदार ने बताया, 'पाँच रुपये'। उसने एक तीन टांग वाले पिल्ले की ओर इशारा किया और कहा, 'मुझे वह चाहिए।' दुकानदार ने कहा, 'अरे, वह तो लंगड़ा है। उससे भी अच्छे सुन्दर और स्वस्थ पिल्ले हैं, उन्हें ले लो।' बच्चे ने कहा, 'नहीं, मुझे तो वही चाहिए।' दुकानदार ने सोचा कि इस लंगड़े पिल्ले के जितने भी दाम मिल जायें ठीक हैं। तभी बच्चा बोला, 'अभी मेरे पास चार रुपये हैं, कल पाँच रुपये लेकर आऊँगा तब यह पिल्ला ले जाऊँगा। तुम इसे For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 94 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए किसी दूसरे को मत बेचना । ' दूसरे दिन वह बालक गया और वह पिल्ला खरीद लिया। दुकानदार से रहा न गया। उसने पूछ ही लिया, 'बेटा, तुमने यही पिल्ला क्यों खरीदा ?' तब उस बालक ने अपनी पेंट खोली। दुकानदार विस्मित हो गया क्योंकि उस बच्चे के भी एक ही टाँग थी। वह अभिभूत होकर बोला, 'तुम ही इसका दर्द समझ सकते हो ।' जिसके स्वयं के पाँव नहीं हैं, वही किसी पंगु के दर्द को समझ सकता है। इंसानों से प्रेम का प्रारम्भ होता है जबकि पशु, पक्षी और प्रकृति पर प्रेम का विस्तार होता है और परमात्मा पर जाकर प्रेम पूर्ण होता है। इंसान और प्रकृति दो सोपान हैं लेकिन प्रेम की पूर्णता परमात्मा पर ही होती है। तब वह प्रेम की पराकाष्ठा उपलब्ध करता है। पूछें किसी मीरां से, चैतन्य प्रभु से, कबीर, तुलसी या नानक से कि प्रेम कैसे पूर्ण होता है ? प्रेम चाहता है त्याग और समर्पण। प्रेम तब पूर्ण होता है जब दो, दो नहीं रहते अपितु वे एक हो जाते हैं। ज्यों-ज्यों व्यक्ति का प्रेम परमात्मा के प्रति बढ़ता है, परमात्मा उसके करीब और करीब आता है। किन्हीं मंत्र - पाठों से या ऊँची-ऊँची आवाजों में पुकारने से अल्लाह या भगवान नहीं आता । वह तो प्रेम भरी पुकार से उतर आता है। चूल सुभद्दा नामक एक महान भक्त हुई है। वह भगवान की उपासिका थी तथा उनसे बहुत प्रेम रखती थी। लेकिन उसका विवाह एक नास्तिक के घर में हो गया। भगवान का नाम लेना उस घर में सख्त नापसंद था। चूल सुभद्दा और तो कुछ न कर पाती, लेकिन जब भोजन करती तो कहती, 'हे भगवान्, यह प्रसाद स्वीकारो ।' नहाती तो अपने पाँवों को भगवान के चरण मानकर प्रक्षालन करती और कहती, 'हे भगवान्, मेरी सेवा स्वीकार करो।' उस घर में तो भगवान का नाम लेना ही पाप था। कहीं बाहर जाती तो कहती, 'मैं जहाँ जा रही हूँ, वह तेरा ही मंदिर है प्रभु । तेरी परिक्रमा करने जा रही हूँ ।' प्रतिदिन वह हाथ जोड़ती और मन ही मन भगवान् का अनुग्रह मानती । एक दिन श्वसुर को खीझ आ गई कि रोज-रोज यह कैसा ढोंग करती For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेम : जीवन का पुण्य पथ 95 है ? उसने क्रोध में भरकर कहा, 'कल तुम्हारे भगवान् को बुला लेना। मैं भी देखता हूँ कि इतनी दूर से तुम्हारे भगवान् यहाँ कैसे पहुँचेंगे? अगर वे यहाँ पहुँच गये तो मैं भी तुम्हारे भगवान् का उपासक बन जाऊँगा और अगर न पहुँचे तो कल के बाद तुम कभी पूजा नहीं करोगी तथा भगवान् का नाम नहीं लोगी।' उसने कहा, 'ससुर जी, सचमुच मैं बुला लूँ ?' 'हाँ, हाँ, तुम बुला लो, लेकिन कल की तारीख में आ जाना चाहिए', ससुर जी ने कहा। बहू पहली बार इतनी प्रसन्न हुई थी। वह घर के पीछे आंगन में गई। वहाँ देखा कि जुही के कुछ फूल खिले हुए थे। उसने उन फूलों को चुना, आसमान की ओर नजर उठाई, भगवान् जिस ओर विहार कर रहे थे, उधर आँखें घुमाईं, फूलों को हृदय से लगाया और आसमान की ओर यह कहते हुए, ‘भगवान् आपकी यह शिष्या चूल सुभद्दा इन जुही के फूलों को देकर यह निमंत्रण भेज रही है कि आप मेरे घर पधारें और इस अभागिन को धन्य करें।' कहते हैं कि भगवान मीलों दूर कहीं प्रवचन कर रहे होते हैं कि चूल सुभद्दा का पिता खड़ा होता है और कहता है, ‘भन्ते ! कल भोजन करने के लिए मैं आपको निमंत्रण देता हूँ। आप कल का भोजन मेरे यहाँ स्वीकार करके मुझे धन्य करें। भगवान ने कहा, 'वत्स, कल के लिए तो मैं निमंत्रण स्वीकार कर चुका हूँ।' 'भगवान, आप यह क्या कह रहे हैं ? अभी तो किसी ने भी आपको निमंत्रण नहीं दिया है, अनुनय-विनय भी नहीं किया है और आप कहते हैं कि आपने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।' चूल सुभद्दा के पिता ने विस्मित होकर पूछा। 'क्या तुम्हें हवाओं में जुही के फूलों की सुगंध नहीं आ रही है ? क्या तुम इन फूलों की खुशबू को महसूस नहीं करते हो जो हवाओं में घुली है। मैंने कल तुम्हारी बेटी के यहाँ जाने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है।' भगवान मंद स्मित से बोले। 'भगवान्, आप यह क्या कह रहे हैं ? वे लोग तो नास्तिक हैं। वहाँ आप कैसे जा सकेंगे? आपका अपमान होगा।' For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 96 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए 'चूल सुभद्दा ने मुझे दिल से याद किया है, हृदय से मुझे निमंत्रण दिया है। अपनी श्रद्धा, अपनी भक्ति जुही के फूलों से मुझे भेजकर मुझे आमंत्रित किया है। मुझे जाना ही होगा।' और भगवान तीस किलोमीटर की लम्बी पदयात्रा करके उसके गाँव पहुँचते हैं। चूल सुभद्दा के ससुर को यह देखकर आश्चर्य होता है कि भगवान सचमुच उसके घर आ पहुँचे हैं। चूल सुभद्दा धन्य हो जाती है। उसके यहाँ का भोजन धन्य हो जाता है और नास्तिक आस्तिक के रूप में परिवर्तित हो जाता है। ___ जो भी भगवान को प्रेम भरे हृदय से आमंत्रण देता है, भगवान उसके घर-दहलीज पर जरूर आते हैं। जब सत्यभामा ने संकल्प लिया कि वह श्रीकृष्ण को स्वर्ण से तोल कर ही रहेगी तो अपने अंत:पुर की राजरानियों से कहा कि वे सभी अपने मायके से मिले हुए स्वर्णाभूषण लेकर आ जायें क्योंकि कृष्ण को तोलना है। सत्यभामा राजा की पुत्री थीं। उसके पिता ने उसे बहुत स्वर्ण दिया था। उसे गर्व था कि आज देखेंगी किसके यहाँ से कितना माल मिला है ? श्रीकृष्ण को तराजू के एक पलड़े में बिठा दिया गया और दूसरे पलड़े में स्वर्णाभूषण रखे गये। प्रत्येक रानी आती, अपने गहने रखती, लेकिन श्रीकृष्ण का पलड़ा भारी रहा। सत्यभामा को बहुत गुस्सा आया श्रीकृष्ण पर कि, ‘इन्होंने जरूर कोई माया रची है वरना इतना गहना फिर भी कम कैसे पड़ता ? चिन्ता की कोई बात नहीं, सारी रानियों का गहना इकट्ठा करके तराजू पर चढ़ा दो। मैं भी देखती हूँ कि कृष्ण कितने भारी पड़ते हैं?' यही किया गया, फिर भी कृष्ण को न झुका सके। भगवान को क्या ऐसे ही झुकाया जाता है ? गहनों के बल पर, पैसों के बल पर ? भगवान को तो प्रेम के बल पर, श्रद्धा के बल पर झुकाया जा सकता है। तुम यह न कहो कि मैंने इतना चढ़ाया है। अरे, उसने तो तुम्हें जीवन दिया है। हम भला भगवान को क्या चढ़ा सकते हैं ? सत्यभामा और राजरानियों ने सारे गहने रख दिये लेकिन भगवान को हल्का न किया जा सका। वह हार गई, तभी उसकी नजर एक कोने में सिमटी बैठी हुई रुक्मिणी पर गई। उसने रुक्मिणी को कहा, 'अरे, तू क्यों बैठी है ? तू For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेम : जीवन का पुण्य पथ भी तो तोल ले।' 'मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। मैं भगवान को तोल सकूँ, ऐसा मेरे पास कुछ नहीं है। केवल मेरे कंठ में यह तुलसीदल की माला है', रुक्मिणी ने कातर होकर कहा । लेकिन सत्यभामा ने विपरीत टिप्पणी कर डाली तो रुक्मिणी से न रहा गया। वह खड़ी हुई। पास में ही तुलसी का पौधा था। उस पर से चार पत्तियाँ तोड़ीं, हरेक पर लिखा, 'श्रीकृष्ण शरणं मम' । उन चारों पत्तों से भगवान की शरण स्वीकार करते हुए वह श्रीकृष्ण के पास आई। उनकी परिक्रमा लगाई। उनके चरणों से पत्तों को छुआया, हृदय से लगाया और भक्ति - प्रेम के साथ पलड़े पर रख दिया। आश्चर्य ! श्रीकृष्ण हल्के हो गये, उनका पलड़ा ऊँचा उठ गया। तुलसी के चार पत्ते भारी हो गये । प्रेम, श्रद्धा, भक्ति के चार तुलसी - पत्ते भगवान को झुका देते हैं। तुम कितने भी शक्तिसम्पन्न क्यों न हो, लेकिन किसी के हृदय की भक्ति, श्रद्धा और प्रेम से अधिक शक्तिशाली नहीं हो सकते! भगवान उन्हीं के पास आते हैं जिनके हृदय में प्रेम भरी प्रार्थनाएँ होती हैं। 97 प्रकृति को, भगवान को, सारी मानवता को प्रेम भरे प्रणाम हैं। यह हृदय जिसमें कि वही रहता है, उसका ही नूर बरसता है। हम सब उसी की मूरत हैं। सबसे प्रेम करो। जीवन के कण-कण को आप प्रेम से भर सकते हैं। आपका हर कदम प्रेमपूर्ण हो। मैं समझता हूँ, प्रेम से बढ़कर कोई अन्य प्रार्थना नहीं है, नहीं है, प्रसाद नहीं है। प्रेम ही कभी प्रार्थना हो जाता है, कभी श्रद्धा, प्रसाद और कभी आशीर्वाद हो जाता है। आपके लिए हृदय का बहुत - बहुत अमृत प्रेम ! For Personal & Private Use Only पूजा कभी Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SW मेरे प्रिय आत्मन्, मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा सत्य यह है कि वह जैसा भी है, स्वयं की वजह से ही है। वह अच्छा-बुरा, गुणवान या दुर्बुद्धिशील, सुखी या दुखी, जैसा भी है, अपने ही कारण है। अगर वह बंधन में है तो उसने बँधना ही चाहा और मुक्त होगा तो मुक्त होने का संकल्प उसके भीतर पनप चुका होगा। जैसा भी है, अपने ही कारण है। भले ही हम नियति को दोष दें या समय को, कर्म या परमात्मा को दोष दें, लेकिन जवाबदेह व्यक्ति अपने कंधों का बोझ दूसरों पर नहीं डालता। वह अपने श्रेय और पतन की जिम्मेदारी अपने आप पर लेता है। वातावरण, परिवार भी प्रभावी हो सकता है, शिक्षा और संस्कार भी असर डालते हों, लेकिन इन सबसे ऊपर व्यक्ति का स्वभाव, समझ, सोच और जीने की शैली अधिक प्रभाव डालते हैं। मैं दो ऐसे महानुभावों से मिला जो सगे भाई थे। उनमें से एक शराबी, For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा दुर्व्यसनी, घर में लड़ाई-झगड़ा करने वाला तथा बच्चों को मारपीट करने वाला था। दूसरा भाई सभ्य और सुशील समाज में आदरपूर्ण स्थान रखने वाला था। दोनों भाइयों को देखकर आश्चर्य हुआ कि दोनों में इतना फर्क क्यों है? जब मैं एक भाई से मिला तो पूछा, 'तुम शराब क्यों पीते हो, पत्नी से मारपीट क्यों करते हो, बच्चों के साथ गाली-गलौज क्यों करते हो ?' उसने तपाक से कहा, 'इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? मेरा पिता भी शराब पीता था, माँ को मारता था और हमें गालियाँ देता था। मेरा पिता भी ऐसा था और मैं भी वैसा ही निकल गया तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है?' __मुझे लगा शायद वह ठीक कह रहा है क्योंकि उस व्यक्ति पर वातावरण का तथा आनुवंशिकता का असर आया होगा। फिर मैं दूसरे भाई से मिला और उससे पूछा, ‘भाई, तुम इतने सभ्य, शालीन, सम्मानित जीवन कैसे जी रहे हो जब कि तुम्हारा एक भाई गलत राहों पर चल रहा है?' उसने कहा, 'यह सच है कि मेरे पिता शराब पीते थे, माँ के साथ बदसलूकी करते थे, हम बच्चों से बिना गाली के बात नहीं करते थे, पर जब भी मैं पिता को इस तरह दुर्व्यवहार करते देखता तो मेरी आत्मा रो पड़ती। माँ को मिलने वाली हर गाली को अपने ऊपर लगने वाली समझता। तब बचपन में ही मैंने संकल्प ले लिया था कि जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तब शराब नहीं पिऊँगा, पत्नी के साथ मारपीट नहीं करूँगा और न ही अपने बच्चों के साथ गाली-गलौज करूँगा।' ___एक व्यक्ति को वही वातावरण और संस्कार मिलते हैं, इसके बावजूद कोई बिगड़ जाता है, कोई सुधर जाता है। एक माँ के पाँच बेटों की किस्मत अलग-अलग होती है। कोई शराबी बन रहा है तो अपने ही कारण, कोई सभ्य, सुशील तथा शालीन बन रहा है तो भी अपनी ही वजह से। वह जैसा सोचेगा, वैसे ही बीजों का वपन होगा। जैसे बीज होंगे वैसे ही फसलों को काटने के लिए उसे मजबूर होना पड़ता है। अगर आप चाहते हैं कि जीवन में फसलों को काटते वक्त खेद और प्रायश्चित न हो तो बीजों को बोते वक्त विवेक रखें। ईसा ने बाइबिल में कहा है, 'व्यक्ति जैसा है, वह अतीत में सोचे गये For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए विचारों का परिणाम है।' व्यक्ति के विचार ही शब्द बनते हैं, शब्द ही एक्शन बनते हैं, उसके एक्शन ही आदत बनती है, आदतें ही चरित्र बनती हैं और चरित्र ही व्यवहार और कर्म होता है। विचारों के परिणाम ही जीवन में आते हैं। अगर आप शुभ विचारों से गुजर रहे हैं तो आप स्वर्ग के रास्ते की ओर बढ़ते हैं और यदि अशुभ विचारों से गुजर रहे हैं तो नरक की दहलीज पर खड़े हैं। मरने के बाद क्या स्वर्ग और नरक ? स्वर्ग और नरक तो छाया की तरह साथ ही चलते हैं जैसे दायाँ-बायाँ साथ चलता है। अपने मन को देखें और पहचानें कि कहीं अशुभ, वैर-वैमनस्य, राग-द्वेषजनित विचार साथ तो नहीं चल रहे हैं ? वस्तुत: ये ही नरक का द्वार लिये चलते हैं। इसके विपरीत प्रेम और शांति, मैत्री और करुणा की भावदशाएँ सदा स्वर्ग की यात्रा कराती हैं। मेरे देखे, व्यक्ति दिन भर में पचासों बार स्वर्ग-नरक की यात्रा कर लेता है। तुमने क्रोध किया तो तुम नरक में चले गये, कल तुमने दुश्मन को क्षमा कर दिया तो तुम स्वर्ग की सैर कर आये। इसी तरह व्यक्ति अपनी मानसिकता में स्वर्ग-नरक के बीच पैण्डुलम की तरह डोलता है। आज मैं व्यक्ति को उसके मन और विचारों से रूबरू कराना चाहूँगा कि वह किस तरह उनसे घिरा हुआ है। व्यक्ति संसार में किसी मोह-माया से नहीं घिरा है। वह घिरा है तो अपने ओछे और अच्छे विचारों से ही घिरा हुआ है और उनसे निकलना चाहकर भी नहीं निकल पाता। व्यक्ति को अपने जीवन के हर कदम का ज्ञान है फिर भी ऐसा कुछ है जिसके कारण सारा ज्ञान एक ओर रह जाता है और वह अपने ही घेरे में घिरकर रह जाता है। छोटे-छोटे निमित्त भी उन घेरों को प्रभावित करते हैं। जैसे मकड़ी जाला बुनती है किसी दूसरे जीवजन्तु को फँसाने के लिए, लेकिन धीरे-धीरे वह स्वयं उसमें ऐसी फँस जाती है कि उसके लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं रह जाता। मेरे लिए धर्म की पगडंडी या मार्ग जीवन के प्रति जागना है। तुम धर्म के चाहे जितने विधि-विधान सम्पन्न कर लो, लेकिन क्या इससे तुम्हारे घेरे टूटे हैं ? अगर कोई इन घरों में से निकल सकता है तो केवल तब, जब वह अपने मन के विचारों के घेरों को समझे। एक घटना का उल्लेख करना चाहूँगा जिसका मुझ पर For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा 101 - बहुत प्रभाव पड़ा है। मैं पूर्व में भी इसका उल्लेख कर चुका हूँ, फिर भी वह मुझे बहुत ग्राह्य लगती है। घटना इस प्रकार है। राजर्षि प्रसन्नचन्द्र एक पाँव पर खड़े होकर, हाथ ऊँचे करके उग्र तपस्यारत थे। यम, नियम, आसन और प्राणायाम सब उनके साथ जुड़ गये थे। पहले वे राजा हुआ करते थे, किन्तु अब वे दीक्षा लेकर संन्यासी बन चुके थे। वे ध्यान में मग्न थे। तभी एक अन्य राजा श्रेणिक वहाँ से निकले तो वे सोचने लगे कि जब ये संसार में थे तब अपने आस-पास और दूर देशों के राजाओं को पराजित कर सम्राट् बने और अब संन्यासी होकर अपने भीतर के शत्रुओं को जीत रहे हैं। ऐसे राजर्षि को मेरे कोटि-कोटि नमन हैं। इस प्रकार भावों में मग्न होकर वे वहाँ से आगे बढ़ चले ! ___ठीक उस समय जब राजा श्रेणिक के मन में नमन के भाव उठ रहे थे, तभी एक अद्भुत घटना घटती है। राजा के साथ जो अंगरक्षक सौ कदम दूरी पर चल रहे थे, आपस में बातचीत करने लगे। एक ने कहा, 'देखो, यह महाराज कितने धन्य हैं।' दूसरे ने कहा, 'मुझे तो पाखंडी नजर आते हैं। तुम्हें नहीं मालूम कि इसके राज्य को शत्रुओं ने घेर लिया है, इसके नाबालिग पुत्र को सिंहासन पर बिठाया गया है क्योंकि यह कायर था और राज्य छोड़कर भाग आया। इसके पुत्र की कभी भी हत्या हो सकती है।' वे दोनों बातें करते हुए आगे निकल गये, किन्तु राजर्षि का मन उद्वेलित हो जाता है। वे सोचने लगते हैं, 'क्या मेरे राज्य पर आक्रमण हो रहा है, क्या मेरे पुत्र को शत्रुओं ने घेर लिया है? मेरे रहते हुए ऐसा कदापि नहीं हो सकता।' इस तरह भीतर ही भीतर युद्ध शुरू हो गया। वे कल्पना में ही शत्रु राजा के समक्ष पहुँच गये और आपस में युद्धरत हो गये। उधर राजा श्रेणिक भगवान के पास पहुँचता है और बताता है कि उसने एक महान् संत के दर्शन किये। 'भंते मेरा एक प्रश्न है कि जिस क्षण मैंने उनके दर्शन किये अगर उसी क्षण उनकी मृत्यु हो जाती तो उन्हें कौन-सी गति मिलती ?' भगवान ने कहा, 'अगर उसी क्षण उनकी मृत्यु होती तो उन्हें सातवें नरक जाना पड़ता।' वह चौंक गया क्योंकि उस समय तो वे ध्यानावस्थित थे। भगवान ने आगे कहा, 'राजन्, मन के विचार ऐसे ही होते हैं कि पता ही नहीं चलता कि For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए किस क्षण व्यक्ति नरक में और किस क्षण में स्वर्ग में पहुँच जाता है । ' श्रेणिक ने पुनः पूछा, 'अगर उसके अगले क्षण में उनकी मृत्यु हो जाती तो?' 'छठे नरक' ‘उसके अगले क्षण?' ‘पाँचवें नरक', इस तरह घटते घटते पहले नरक तक आ गये ! फिर पहला देवलोक, दूसरा देवलोक... चौदहवें देवलोक तक बढ़ते गये। तब श्रेणिक ने टिप्पणी की, 'दो मिनट पहले सातवें नरक में और अब चौदहवें देवलोक में । भगवन्, अगर इसी क्षण उनकी मृत्यु हो जाये तो ?' भगवान दो पल मौन रहे। फिर खड़े होकर राजर्षि को प्रणाम किया क्योंकि अब वे मुक्ति के स्वामी हो चुके थे। मात्र पांच मिनट में यह घटना घटती है। दो मिनट पहले वह नरक और दो मिनट बाद स्वर्ग का पथिक बना और उसे मुक्ति तथा निर्वाण का स्वामित्व भी उपलब्ध हुआ । 102 राजा श्रेणिक इस पहेली को समझ न पाये । तब भगवान ने स्पष्ट किया कि तुम्हारे दो अंगरक्षकों की बात सुनकर राजर्षि का मन डगमगाया । वे शत्रु के साथ लड़ाई करने लगे। यह लड़ाई ही उन्हें सातवें नरक में ले गई। मन ही मन वे उससे लड़ते रहे। शत्रु राजा उन पर वार कर रहा था । उन्होंने सोचा कि इसे खत्म करने के लिए तो मेरा तीखा मुकुट ही पर्याप्त है, ऐसा सोचते हुए उनके हाथ सिर की ओर उठ गये । पर यहाँ, 'मुकुट कहाँ ! अरे कौन सम्राट्, किसका बेटा ! अरे, मैं कहाँ से कहाँ चला गया ? ये मेरी मन की धाराएँ कहाँ से कहाँ बह गईं ? मैं तो संत हूँ, मेरा सिर तो मुंडा हुआ है, मैं किससे लड़-झगड़ रहा था। ओह ! मैंने क्या से क्या कर डाला ?' विचारते हुए वे उच्च अवस्था को पहुँच गये। जहाँ से गलत राहें बदलना शुरू होती हैं, वहीं होता है जीवन का सच्चा प्रतिक्रमण। उन्होंने जहाँ-जहाँ अतिक्रमण किया था वहाँ-वहाँ से उन्होंने अपनी चेतना को वापस लौटाना शुरू किया कि हो गये पर्यूषण और शुरू हुआ प्रतिक्रमण कि लौट आई चेतना स्वयं में। जैसे-जैसे चेतना गिरनी शुरू हुई, क की गति भी निम्नतर होती चली गई और ज्यों ही चेतना वापस लौटी और मन की स्थितियाँ उच्च - उच्चतर हुईं कि स्वर्ग की सीढ़ियाँ भी श्रेष्ठ-श्रेष्ठतम होती चली गईं और मात्र चौथे मिनट में निर्वाण की चेतना उपलब्ध हो गई। For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा मैं इस घटना से प्रेरित और प्रभावित हुआ। मेरे जीवन का शास्त्र ऐसी ही घटनाएँ होती हैं जिनमें जीवन के रहस्य छुपे रहते हैं। मैं मन के उस घेरे के प्रति सतत जागरूक रहता हूँ जहाँ से बाहर आने के लिए पुरुषार्थ करते रहना है। कई बार सोचता हूँ कि मौन ही रख लूँ, क्या होगा इतना अधिक बोलने से क्योंकि जब तक व्यक्ति को स्वयं को ही अहसास न हो कि वह अपने ही घेरे में घिरा हुआ है, तब तक वह बाहर निकलने का मार्ग न खोजेगा। अगर ये घेरे टूट सकें तो कहने-बोलने - बताने का कोई अर्थ है । संन्यास लेना तो आसान होता है लेकिन विचारों के, विकारों के, कषायों के घेरे से निकलना बहुत मुश्किल होता है। 103 आत्मबोध और ज्ञान वहीं है जहाँ आदमी घेरे से बाहर निकले। भगवान ने चेतना का यही विज्ञान दिया कि व्यक्ति जिस घेरे में उलझा हुआ है वही लेश्या है। लेश्या पारिभाषिक शब्द है । लेश्या का अर्थ यही है कि व्यक्ति जिससे घिर जाय। व्यक्ति शुभ धाराओं से भी घिर सकता है और अशुभ धाराओं से भी। दो दिन पूर्व एक महानुभाव मुझसे कह रहे थे कि उन्हें तीव्र ज्वर था। उनमें उठने-बैठने की भी ताकत न थी, लेकिन जैसे ही सुबह के साढ़े आठ बजे, वे उठे और प्रवचन-सभा में आ पहुँचे। लोग उनसे बात न करें इसलिए वे थोड़ी दूरी पर शान्त भाव से लेट गये। एक घंटे तक वे प्रवचन सुनते रहे। उन्हें अपनी पीड़ा का अहसास जाता रहा और जब वे उठे तो उन्होंने पाया कि उन्हें ज्वर नहीं था अपितु उनके मन में, शरीर में शांति थी । यह शुभ धारा है। यह शुभ भाव से घिरना हुआ। घेरे तो घेरे ही होते हैं, चाहे शुभ हों या अशुभ। व्यक्ति का मन कैसे काम करता है, इसे समझें । छः पथिक किसी जंगल से गुजर रहे थे । वे चलते रहे। भूख-प्यास से पीड़ित होते हुए भी वे चले जा रहे थे। तभी उन्हें फलों से लदा हुआ आम्रवृक्ष दिखाई दिया। एक पथिक बोला, 'देखो, वह आम्रवृक्ष फलों से लदा हुआ है। मैं शीघ्र ही वहाँ पहुँचकर उसे जड़ मूल से काट दूंगा ताकि सारे फल, सारी लकड़ी और टहनियाँ मेरी हो जाएँगी ।' दूसरे पथिक के मन में विचार उठा, 'मैं उस आम्रवृक्ष को तने से कारूँगा । मुझे सारे फल और लकड़ियाँ तो मिलेंगी For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 104 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए लेकिन जड़ छोड़ दूंगा ताकि वृक्ष फिर से लहलहा जाएगा।' तीसरे के मन में विचार आया, 'मैं जाऊँगा और पेड़ की बड़ी डाली को काटूंगा ताकि लकड़ियाँ भी मिलेंगी और भरपेट आम भी।' चौथे पथिक की विचारधारा ऐसी बही कि वह किसी छोटी-सी शाखा को तोड़ेगा ताकि दस-बीस आम मिल जायें और उसकी क्षुधा मिट जाय। पांचवें राहगीर के मन में आया कि वह जायेगा और उतने ही फल तोड़ेगा जिनसे उसका पेट भर जाय। छठे पथिक ने सोचा, 'अरे इतना विशाल वृक्ष है। जरूर वहाँ कुछ फल टूटे हुए पड़े होंगे। मैं जाऊँगा और दो-चार फलों को बीनकर अपना पेट भर लूँगा।' ये छः राहगीर हैं। हम देख लें कि कौन-कैसा राहगीर है ? ये छहों हमारे ही प्रतीक हैं जिनमें इस तरह की भाव-दशाएँ उठा करती हैं, ऐसे विचार उठा ही करते हैं। एक सोचता है, ‘जाता हूँ जड़ से ही काट दूंगा' और एक सोचता है 'अगर मेरी किस्मत में होगा तो बैठे-बैठे भी मिल जाएगा।' ये वृक्ष कहाँ जाते हैं, यहीं तो खड़े हैं। किसी को काटते भी नहीं, तिस पर सबको तृप्त भी करते हैं, फिर क्या जरूरत हैं, इन्हें नष्ट करने की? लेकिन ऐसा हो कहाँ रहा है ? आज की दुनिया में ऐसी लेश्याओं वाले, ऐसी भावदशा और विचारधाराओं वाले लोग ज्यादा होते हैं जो अन्यों को जड़ से काट देना चाहते हैं। यह मनुष्य की नकारात्मक सोच है। अरे, जो काम सुई से हो सकता है उसके लिए तलवार का उपयोग क्यों करते हों? जो आज दूसरों को कष्ट पहुँचा रहा है, वह क्यों नहीं सोचता कि दूसरा भी उसे कभी कष्ट पहुंचा सकता है ? जितनी पीड़ा तुम्हें हो रही है, उतनी ही पीड़ा उसे भी होगी। जो धर्म के नाम पर पशुओं की बलि देते हैं, वे यह क्यों नहीं सोचते कि अगर हमारे पाँव में काँटा भी गड़ जाए तो कितना कष्ट होता है ? तब उस पशु को कितनी वेदना होगी? तुम्हारे बच्चे को इंजेक्शन लगाना पड़ता है तो तुम दहल जाते हो, लेकिन कटु वाणी बोलते समय, लड़ाई-झगड़ा करते, किसी का शोषण करते, धन ऐंठते और न जाने ऐसे कितने कर्म करते जरा भी ध्यान नहीं रखते कि इनसे दूसरों को कितना कष्ट हो रहा है ? तुम भूल ही जाते हो कि तुम्हारे इस तरह के कार्य अन्यों को कितनी पीड़ा पहुंचा रहे हैं ? For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा 105 जिसके मन में यह भाव हो कि वह किसी को कष्ट क्यों पहुँचाये, पीड़ा क्यों दे, वही शुभ विचारों और शुभ लेश्याओं का स्वामी होता है। वह सोचता है कि यदि दूसरा मुझे कष्ट पहुँचाये तो क्या मुझे अच्छा लगेगा? अगर हम स्वयं किसी के द्वारा कष्ट नहीं चाहते तो कृपया, आप भी किसी को कष्ट मत दीजिए। आज सबकी प्रायः यही प्रवृत्ति हो गई है कि हमारा सुख तो हमारा रहे ही, दूसरों का सुख भी हमारा हो जाय । यह उनका कदाग्रह है कि दूसरे का भी मिल जाये और नहीं मिले तो उसे हड़प लें। मित्र, तुम भी सुख से जिओ तथा और लोग भी सुख से जियें, तभी अहिंसा-धर्म जीवित होगा। भगवान ने छः राहगीरों के रूप में छ: लेश्याएं वर्णित की- कृष्ण, नील, कपोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल लेश्या। ये जो छः किस्म के लोग हैं जो हम में भी होते हैं, वे छः लोग इन छ: लेश्याओं के सूचक हैं। मैं बहुत संक्षेप में इनके बारे में कहूँगा। आप स्वयं देख लें कि आप किस लेश्या से सम्बन्धित व्यक्ति हैं ? यदि हो सके तो स्वयं को उस लेश्या से बाहर लाने का प्रयास करें। उससे अगली लेश्या में जाने का प्रयास करें। लेश्या यानी जो आश्लिष्ट कर ले। जो घेर ले, जो हम पर हावी हो जाए, वह लेश्या है। मन की वह धारा, वह विचार, वह वृत्ति, जो हम पर हावी हो जाए, प्रभावी हो जाए, वह लेश्या है। व्यक्ति को जीवन में जिस पहलू पर सबसे ज्यादा जागरूक रहने की जरूरत है, वह स्वयं की मानसिक धारा ही है। उसी में ही राग-द्वेष के संस्कार पोषित होते हैं। उसी में कषाय का तिलिस्म रचता है। वहीं से तृष्णा के तीर चलते हैं। अज्ञान और मूर्छा का अंधा प्रवाह वहीं पर प्रवाहित है। हम लोग 'त्रिशंकु' की तरह बीच में अटके हैं। भीतर बाहर का द्वैत, भीतर-बाहर के भेद में जी रहे हैं। मनुष्य विवश है अपने भीतर के अंधे प्रवाह के आगे। व्यक्ति जागे, मन की धाराओं के प्रति। अपनी नकारात्मकताओं को हटाए और सकारात्मकताओं को स्वीकारें। नकारात्मकता सदा अशुभ ही होती है, सकारात्मकता शुभ ही होती है। नकारात्मकता यानी अशुभ लेश्या, सकारात्मकता यानी शुभ लेश्या। नकारात्मकता पर विजय प्राप्त करना सबसे बड़ी मनोविजय है। For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए मन को जीतना ही कठिन है। मन को बदलना ही कठिन है। मन को व्यवस्थित करना ही चुनौती है। मन को व्यवस्थित करना स्वयं में ही एक श्रेष्ठ साधना है। मन को व्यवस्थित करना खुद को व्यवस्थित करना है। आखिर, जीवन की हर गतिविधि का प्रेरक मन ही है। आप मन की चौकीदारी कीजिए। उसकी देखभाल कीजिए। उसकी सार-सम्हाल कीजिए। अपने मन की दशा को समझने के लिए हम अपने उन घेरों को समझें जिनसे हम घिरे हुए हैं। जिसकी मानसिकता जितनी क्रूर और निकृष्ट है, उसकी लेश्या उतनी ही निकृष्ट होती है। जिसकी मानसिकता जितनी सरल और सौम्य है, उसकी लेश्या उतनी ही श्रेष्ठ है। लेश्या की श्रेष्ठता के लिए अपनी मानसिकता बेहतर बनाएँ। ___ पहली लेश्या कृष्ण लेश्या है। आप बाहर से काले हों या गोरे लेकिन आपका एक आभामंडल होता है जिसे किरलियॉन फोटोग्राफी द्वारा लिया जा सकता है। पेड़-पौधे, फूल-पत्ती सबका आभामंडल होता है और यह बाहरी तत्त्वों से प्रभावित होता है। स्नेह मिलने पर अनुराग से भर उठता है और दूषित भावों के सम्पर्क से कुम्हला जाता है। वह अनुरोध करता है कि मुझे मत तोड़ो। अगर कोई गर्भपात करवाता है तो गर्भस्थ शिशु भय से सिकुड़ जाता है। जैसे तुम्हारा अंग-भंग किया जाय तो तुम पीड़ा से भर जाते हो और चाहते हो कि तुम्हें न काटा जाय उसी तरह गर्भ का शिशु भी तुमसे अनुरोध करता है कि उसे मत निकालो, उसे मत काटो। व्यक्ति के विचार की ऐसी धाराएँ जिनका रंग काला होता है वे अत्यन्त क्रूर होते हैं। इतने क्रूर कि वे हर क्रूरता की सीमा को लांघ जाते हैं। अभी कुछ वर्ष पूर्व लंदन में एक व्यक्ति पकड़ा गया जिसने एक महिला की हत्या की थी। हत्या ही न की अपितु उसके टुकड़े-टुकड़े करके अपने घर में यहाँ-वहाँ सजा दिये। दुनिया में मनुष्य जैसा क्रूर तो जानवर भी नहीं होता। वह जब अपनी पशुता पर उतर आता है तो पशुओं को भी लज्जित कर देता है। दिल्ली में घटित तंदूर कांड तो आपकी स्मृति में होगा ही जिसमें महिला की हत्या कर तंदूर में डाल दिया गया। जैसे रोटी सेंकते हैं, महिला को भी वैसे ही भून डाला। चंगेज खाँ, तैमूरलंग, नादिरशाह, हिटलर, स्टॉलिन ये सब क्रूरता की मिसाल हैं। For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा 107 कहा जाता है कि जब तैमूरलंग दिल्ली पहुंचा और चांदनी चौक में खड़ा था तो एक बच्चे ने पत्थर उठा कर उस पर फेंक दिया। तैमूरलंग क्रोध से भर गया और अपने सिपाहियों को आज्ञा दी कि यहाँ मार काट मचा दो। पूरा चांदनी चौक हाहाकार कर उठा। एक घंटे के अन्दर पन्द्रह हजार से भी अधिक लोग कत्ल कर दिये गये। वहीं दूसरी ओर राजा रणजीतसिंह चले जा रहे थे कि एक पत्थर आकर उन्हें लगा। राजा के सिपाहियों ने उस व्यक्ति को पकड़ लिया जिसने पत्थर फेंका था। दरबार में उसकी पेशी हुई। वह तो एक बालक था ! राजा ने पूछा, 'तुमने पत्थर क्यों मारा ?' उसने कहा, 'मैं तो आम के वृक्ष पर फल तोड़ने के लिए पत्थर मार रहा था। आपका उधर से निकलना हुआ और वह पत्थर आपको लग गया।' राजा रणजीतसिंह ने उस बालक को दंड देने के बजाय अपने गले से हार निकाला और उसे दे दिया। उन्होंने कहा, 'जब पेड़ को पत्थर मारो तो वह फल देता है तो क्या रणजीतसिंह पत्थर मारने वाले को दंड देगा?' चंगेज खान जब भारत आया तो उसके पास बहुत-सा सैन्य साजोसामान था। वह ऊटी की पहाड़ियों से अपने सैन्य-दल के साथ गुजर रहा था। जब वह कुनूर, नीलगिरी की घाटियों से गुजर रहा था तो एक हाथी का पैर फिसल गया और वह लुढ़कता हुआ खाइयों में जा गिरा। लेकिन उसकी चिंघाड़ इतनी भयंकर थी कि पूरा इलाका दहल गया। चंगेज खाँ ने पूछा, 'यह आवाज किसकी है ?' बताया गया कि हाथी खाई में जा गिरा है और वही चिंघाड़ रहा है। 'अरे, यह तो मेरे खून को जगाने जैसा हो गया।' चंगेज खाँ बोला, 'अरे, तुम एक हाथी और गिराओ।' इतिहास गवाह है कि एक-एक कर सौ हाथी खाई में धकेल दिये गये उनके चीत्कार की, चिंघाड़ की आवाज का आनन्द उठाने के लिए। ऐसे लोग कृष्ण लेश्यायुक्त होते हैं। यह मन की निकृष्टतम स्थिति है। क्रूरता ही कृष्ण लेश्या का लक्षण है। बेहतर होगा कि हम आकाश में उड़ने वाली बुलबुल और कबूतर को गोली का शिकार बनाने के बजाय उनकी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का आनन्द लें। तितलियों का अचार बनाने के बजाय उन्हें फूलों पर मंडराते हुए देखने का For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए लुत्फ़ उठाइये। सागर में तैरती हुई मछलियों को खाने के बजाय उन्हें कलाबाजी खाते हुए तैरने का दृश्य देखिए । वे भी आपसे प्यार की, जीवन की और अभय की अपेक्षा रखती हैं। मानवता को चाहिए कि कत्ल करने के बजाय, क्रूरता दिखाने की बजाय अपनी विचारधारा में निर्मलता लाने का प्रयास करे। औरों की गलतियों के प्रति क्षमा और करुणा की भावना रखना, औरों के प्रति सहयोग और समानता की प्रेम भरी दृष्टि रखना कृष्ण लेश्या पर विजय प्राप्त करने का आधार - सूत्र है । 108 इसके बाद है नील लेश्या । नील लेश्या वाले व्यक्ति का 'ऑटो' नीले रंग का होता है। नील लेश्या का प्रधान लक्षण है- लोलुपता, विषयों के प्रति लोलुपता । उसमें धन, पत्नी, जमीन सभी के प्रति लोलुपता भरी रहती है। हम देखें और पहचानें कि हमारे भीतर कहीं लोलुपता तो नहीं है। गरीब व्यक्ति धन पाने के लिए मेहनत करता है तो उचित है लेकिन अमीर आदमी भी केवल पैसा-पैसा कर रहा है तो जान लीजिए कि वह नील लेश्या से घिरा है । व्यक्ति ने न जाने स्वयं की जीवन-शैली कैसी बना ली है कि सुबह से लेकर रात तक उसका पैसा-पैसा, धन्धा -धन्धा जारी है। माना कि जीवन जीने के लिए, सुखसाधन के लिए धन जरूरी है, पर इतना भी धंधे में क्या लगे रहना कि तुम अन्य किसी भी कर्तव्य के प्रति ध्यान ही न दे पाओ । आखिर तुम्हारे माता-पिता हैं, पत्नी, बच्चे भी हैं, धर्म और समाज भी हैं, उनके प्रति भी आपके दायित्व बनते हैं, उन्हें भी आपकी जरूरत है । जीवन को कुछ ऐसी व्यवस्था दीजिए कि जीवन लोलुपता नहीं अपितु दायित्वों का पुरुषार्थ बने । जब मैं लोलुपता की बात कर रहा हूँ तो ध्यान रखें कि विषयों की लोलुपता भी लोलुपता है । जिह्वा का इतना अधिक उपयोग मत करो कि दिनभर खाते-पीते ही रहें। भोजन अवश्य किया जाए, पर संयमित | बोलो, पर इतना भी नहीं कि जबान दर्जी की कैंची बन जाए। देखो, पर दृष्टि - मोह से बचकर। सुनो, पर किसी की निंदा - आलोचना नहीं । इन्द्रियों का संयमित संतुलित सकारात्मक उपयोग होना चाहिए। पतंगा जब दीपक के प्रति मूर्च्छित होता है तभी उसके पास आता है और जलता है। हिरण भी अपने संगीत - प्रेम के कारण For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा पकड़ा जाता है। आँख पर नियंत्रण न रहा तो आग में जला। कान पर नियंत्रण न रहा तो पकड़ा गया। नाक पर नियंत्रण न रहा तो भंवरा कमल की पंखुड़ियों में कैद हो गया। जिह्वा पर नियंत्रण न रहा तो मछली कांटे में फँस गई। शरीर पर नियंत्रण न रहा तो हाथी हथिनी के पीछे दौड़ता रहा और शिकारी ने हाथी को गड्ढे में गिरा लिया। एक-एक इन्द्रिय की लोलुपता किसी जानवर के लिए आत्मघातक बन सकती है तो हम मनुष्य जो पाँचों ही इन्द्रियों के प्रति लोलुप हैं, उनका क्या हस्र होगा ? तो बिल्ली अपने दाँतों से चूहा भी पकड़ती है और अपने बच्चे भी, लेकिन दोनों को पकड़ने में कितना फर्क है। एक में हिंसा उमड़ती है और दूसरे में वात्सल्य ! मनुष्य मन की स्थिति तो ऐसी हो गई है कि वह भौतिक रूप से समृद्ध हो गया है लेकिन उसके मन और विचारों में अत्यधिक गिरावट आ गई है। जो नारी के प्रति इतनी लोलुपता रखता है कि जहाँ भी वह दिखे उसे भोगने की लालसा जागृत हो जाती है। यह तो लोक-लाज है कि व्यक्ति व्यक्ति को निभा रहा है अन्यथा मनुष्य की गिरावट का कोई अन्त ही नहीं होता । वह अच्छी बातें सुनता जरूर है, लेकिन जैसे ही अपनी विचारधाराओं में घिरता है, अपने घेरे में आता है तो फिर वैसा का वैसा हो जाता है। हज कर आते हो, हरिद्वार में डुबकी भी लगा आते हो, लेकिन मन का पशु जरा भी नहीं बदलता । जब तक मन की पशुता का त्याग न हो, कोई भी गंगा किसी को भी निर्मल नहीं करती। गंगा में शरीर को नहीं बल्कि मन की मलिनता को डुबाने की कोशिश करो। अपने आप पर नियंत्रण करने पर ही कुछ शुद्धि की अवस्था प्राप्त होती है, तब व्यक्ति तीसरे चरण पर अपने कदम रखता है- जो है कपोत लेश्या । 109 अपने मन और चित्त के साथ इन्साफ़ कीजिए और देखिए कि आपकी कौन-सी लेश्या है और क्या आप उस घेरे से बाहर आ सकते हैं ? कपोत लेश्या का रंग है सलेटी या कबूतरी और इसका लक्षण है चिन्ता । दिन-रात जो आर्त्त और रौद्र ध्यान करते हैं, जो हर वक्त चिन्ता में घिरे रहते हैं, वे कपोत लेश्या के अनुचर होते हैं। उनकी लेश्या उन्हें रात-दिन सुलगाती रहती है और वे चाहकर भी अपने घेरे से बाहर नहीं निकल पाते । चिन्ताओं से वह अपनी चिता जला For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 110 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए लेता है। यदि वह चिन्ता पर विजय पा ले तो तन और मन के हजार रोगों पर विजय पाने में सफल हो जाता है। चिन्ता से घिरे हुए व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता। वह अपने होशो-हवाश खो देता है। उसे विवेक भी नहीं रहता कि वह क्या बोल रहा है और क्या कर रहा है ? उसकी निर्णय-क्षमता भी क्षीण हो जाती है। उसे कभी भूतकाल सताता है तो कभी भविष्य की चिन्ताएँ। ___अज्ञानी लोग सातवीं पीढ़ी की चिन्ता करते हैं। नि:स्पृह लोग कल के भोजन की भी चिन्ता नहीं पालते। जो लोग चिन्ता से लड़ना नहीं जानते, उन्हें अकाल-मृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है। मुर्दे को भी मिलत है, लकड़ी कपड़ा आग। . जीवित हो चिन्ता करे, ताको बड़ो अभाग। गरीब को चिन्ता रहती है कि कल रोटी मिलेगी या नहीं, अमीर को चिन्ता रहती है कि मेरे पोते और पड़पोते के लिए नई फैक्ट्री बन पाएगी या नहीं। अशिक्षित को चिन्ता रहती है कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ, अत: मुझे काम मिलेगा या नहीं। शिक्षित को चिन्ता रहती है कि पढ़-लिख जाने के बाद भी नौकरी न मिली तो क्या होगा ? खाली बैठा आदमी ये ही सब सोचेगा। पुरुषार्थ करना तुम्हारा काम है, फल की आकांक्षा करना नहीं। तुम श्रम करो, कर्मयोग करो तो तुम्हारा बेहतर कर्म स्वत: ही तुम्हें शुभ परिणाम देगा। चिन्ता करने से तो तुम्हारी ऊर्जा और उमंग में घुन लग जाएगी। मस्त रहने की आदत डालो। भले ही आग लगे बस्ती में, पर हम तो रहेंगे मस्ती में। हम चिन्ता क्यों करें ? हमारी चिन्ता तो वह करेगा जिसने हमें पैदा किया है। कृपया स्वयं को चिन्ता में डालकर अपने मन को दुःखी मत करो। अपनी मानसिकता को चिन्ता से मुक्त करो । ‘समझौता गमों से कर लो', दर्द से भी समझौता कर लो और खुशमिजाजी का रास्ता चुन लो। जेब में सदा ऐसा ही सिक्का रखो जिसके दोनों ओर खुशी ही खुशी हो। चित पड़े तो भी खुश और पुट हुए तो भी खुश! चौथी लेश्या है - तेजोलेश्या। कृष्ण, नील और कपोत ये तीन अशुभ लेश्याएँ हैं और तेजस्, पद्म, शुक्ल - ये तीन शुभ लेश्याएँ हैं। तेजोलेश्या का For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा 111 आभामण्डल पीले रंग का होता है। सूर्योदय के समय जो रंग होता है, उसी रंग का व्यक्ति का आभामण्डल होता है। जिस व्यक्ति की वाणी, व्यवहार और जीवन में तेजस्विता आ जाती है, वह तेजोलेश्या का परिणाम होता है। 'विवेक' तेजोलेश्या का लक्षण है। जीवन की प्रत्येक गतिविधि और कार्यकलाप में विवेक को संजोना तेजोलेश्या की ओर कदम बढ़ाना है। अंशुभ से शुभ की ओर आना चाहते हैं तो उसका पहला चरण विवेक है। विवेक ही मनुष्य के जीवन का मित्र है, अमृत है और मील का पत्थर भी। जिस तरह अंधेरे में चलने वाले के हाथ में चिराग दे दिया जाय तो वह सफलतापूर्वक रास्ते पार कर लेगा उसी तरह अशुभ लेश्याओं से घिरे हुए व्यक्ति को विवेक का चिराग थमा दिया जाय तो वह हर अशुभ विचारधारा पर स्वयं ही अंकुश लगा लेगा। चलें तो विवेकपूर्वक । ऐसा न हो कि सड़क के किसी गड्ढे में गिर जाएँ या किसी वाहन से टकरा जाएँ या आपके पाँवों के नीचे दबकर कोई कीड़ामकोड़ा मर जाय। चलें तो अपनी नज़र को नौ फुट की दूरी तक रखें ताकि दुर्घटना न हो, किसी पर गलत नज़र न जाय । न ठोकर लगे और न किसी जीवजन्तु की हिंसा हो। बैठें तो विवेकपूर्वक, विवेकपूर्वक भोजन करें, किसी वस्तु को रखें या उठायें तो विवेकपूर्वक। स्वच्छता बनाये रखना भी जीवन का धर्म है। जब कहीं बैठें तो जगह देख लें कि वहाँ कहीं चींटी, धूल या अन्य जीव तो नहीं है। ऐसा न हो कि आप जहाँ असावधानी से बैठ गए, वहीं बिच्छू हो या कोई सुई पड़ी हो। भोजन शुद्ध और सात्विक हो। कुछ भी अनर्गल न खाते चले जाएँ। कहीं ऐसा न हो कि आप बीमार हो जायें। आप सदा-सर्वदा विवेकपूर्वक ही अपने जीवन के कार्यों को सम्पादित करें। दो व्यक्ति सलाह करते हों तो हमें वहाँ बिना बुलाये नहीं जाना चाहिए। राजा भोज के बारे में एक चर्चित घटना है। राजा भोज एक दिन अचानक महल में चला गया। रानी उस समय दासी से बात कर रही थी। राजा को इस दौरान अपने बीच आया हुआ देखकर रानी बोली - ‘आइये मूर्ख।' राजा क्रुद्ध एवं विस्मित होकर लौट पड़ा। भोज को इतना गुस्सा आया हुआ था कि दरबार में जो भी पंडित आते, उन्हें राजा यही कहता - ‘आओ मूर्ख ! आओ।' कालिदास For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए को भी जब यही सुनने को मिला तो कालिदास ने कहा, 'महाराज ! 1. मैं खाता हुआ चलता नहीं, 2. बोलते समय हँसता नहीं, 3. गई बात को सोचता नहीं, 4. अपने द्वारा किये गये उपकार को याद करता नहीं, और 5. दो व्यक्तियों की बात के बीच में जाता नहीं, फिर राजन् ! मैं मूर्ख कैसे हुआ ? मूर्ख बनने के तो ये ही कारण हैं।' राजा की समझ में बात आ गई। क्या आपको भी समझ आ चुकी है ? अगर हाँ, तो मैं समझता हूँ कि आप इस प्रकार की मूर्खता को भविष्य में नहीं दोहरायेंगे । 112 पाँचवीं है - पद्म लेश्या यानी सदाबहार सौम्यता । सहजता, सरलता और सौम्यता ही व्यक्ति के जीवन का अंग हो । जैसे कमल का फूल महकता है वह सरल और सौम्य होता है वैसे ही व्यक्ति को बच्चे के समान निष्कपट, सरल, सहज और सौम्य होना चाहिए। मनुष्य का जीवन बच्चों जैसा होना चाहिए, सरलता और निश्छलता से युक्त । जीवन के विकास के लिए बच्चे को बड़ा होना जरूरी है लेकिन जीवन की ऊँचाइयों को छूने के लिए बच्चे जैसा निष्कपट और सहज, सरल मन होना आवश्यक है। परमात्मा के राज्य में वही प्रवेश पाता है जो बच्चे की तरह सरल और निष्कपट होता है। जो सीधे और सरल होते हैं, वे गलती होने पर तुरंत क्षमा मांग लेते हैं। अगर खींचते रहे तो बात का कभी अंत न हो सकेगा। व्यक्ति का जीवन खुली किताब की तरह होना चाहिए। जो अंदर है वही बाहर हो । शब्द है पद्म । पद्म यानी कमल । कमल की पहली विशेषता है उसका सौन्दर्य । उसकी सौम्यता पर इससे भी बढ़कर उसकी जो विशेषता है, वह उसकी निर्लिप्तता है। वातावरण चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल, उसके बावजूद वह निष्प्रभावित रहे। कहते हैं कि एक बार सुकरात पर गुस्से में बड़बड़ाते हुए उनकी पत्नी ने जूठन का कुंडा उनके सिर पर उड़ेल दिया। सुकरात हँसते हुए कहा - 'बादल गरजने के बाद तो बरसते ही हैं । ' जीवन में चाहिए सरलता, सहजता और सौम्यता । जिनके जीवन में ऐसा है, उनका आभामण्डल गुलाबी रंग का होता है। गुलाबी रंग खुद ही सौम्यता, For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा 113 प्रेम और प्रसन्नता का परिचायक है। आप अपने दिल में गुलाबी रंग का ध्यान धरिये सुबह साँस लें तो गुलाबी साँस लीजिए और अपने आस-पास गुलाब के फूल खिलाइये। आपकी मानसिकता में सहजतया प्रेम-प्रसन्नता के फूल खिलेंगे। अंतिम है शुक्ल लेश्या। इसका रंग है श्वेत अर्थात् पवित्रता और समदर्शिता। सबके प्रति समान दृष्टि-हानि-लाभ, योग-वियोग, जन्म-मरण, जहाँ हर स्थिति में व्यक्ति मन:स्थिति को सहज रखता है, समदर्शी बनाये रखता है, वह स्थिति शुक्ल लेश्या की होती है। क्या बड़ा - क्या छोटा, कौन नौकर/ मालिक, कैसे स्त्री/पुरुष? सबके प्रति जहाँ एक निगाह होती है, समान आदर रहता है, समदृष्टि और जीवनदृष्टि होती है वहाँ शुक्ल लेश्या फलित होती है। यह मन की अत्यन्त ही निर्मलतम और उच्चतम अवस्था है जहाँ व्यक्ति अपने दूषित विचारों के प्रदूषण से स्वयं को मुक्त कर लेता है। क्रूरता मन की निकृष्टतम दशा है, लोलुपता और चिन्ता मन की अवस्थाएँ हैं जो हमें स्वार्थी और तनावग्रस्त बनाती हैं। व्यक्ति के हाथ में है कि वह स्वयं को स्वास्थ्य और शांति प्रदान करे। मन की गिरी हुई अवस्थाएँ ही उसके जीवन का कूड़ा-कर्कट है। जबकि विवेक, सौम्यता और समदर्शिता जीवन को स्वर्ग का सुकून देते हैं। हममें से हर किसी को चाहिए कि वह विवेकपूर्वक जिए। विवेक ही वह शक्ति है जो हमें तमस् से बाहर निकालती है और प्रकाश का रास्ता प्रदान करती है। जीवन में सदाबहार सौम्यता लाएँ। इसी के बलबूते पर हम संसार में स्वर्गिक जीवन जीते हैं और सबके साथ आत्मवत् दृष्टिकोण अपनाते हैं। बेहतर होगा कि हम ऊँच-नीच और गरीब-अमीर का भेद किये बिना सबके प्रति अपना प्रेम लाएँ। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' या ‘सबै भूमि गोपाल की' सबको अपने प्रेम का पात्र बनाएँ। अपनी मानसिकता को क्षुद्र और विकलांग न होने दें। बेहतर नजरिया, बेहतर सोच, बेहतर कार्यशैली - ये ही तो वे सोपान होते हैं जिनसे हमें सफलता की, सार्थकता, श्रेष्ठता की, पूर्णता की मंजिल मिला करती है। For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 114 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए कर्म तेरे अच्छे हैं, तो किस्मत तेरी दासी। नीयत तेरी साफ है, तो घर में मथुरा-काशी॥ सफलता के रास्ते आपके हाथ में है। धैर्य और शान्ति से मनन करें और जीवन को सार्थक दिशा प्रदान करें। अपनी ओर से इतना ही निवेदन है। सबके लिए अमृत प्रेम। For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोचिए सफलता पाइए 'सकारात्मक सोचिए, सफलता पाइए' पूज्य श्री चन्द्रप्रभ की वह अद्भुत अनूठी पुस्तक है जो कि हमें साधारण सोच से ऊपर उठाकर असाधारण सोच का मालिक बनाती है। सकारात्मक सोच श्री चन्द्रप्रभ की मानवता को वह देन है, जो व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन और केरियर को तो बेहतर बनाती ही है, उसके पारिवारिक और सामाजिक परिवेश को भी खुशहाल बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाती है। स्वयं गुरुदेव कहते हैं - मेरी शांति, संतुष्टि और प्रगति का पहला श्रेय सकारात्मक सोच को ही है / यह मंत्र हमें सिखाता है कि हमेशा गिलास को आधा भरा हआ ही देखिए। आपके सामने जब भी विपरीत और तनाव भरा निमित्त आ जाए तो पहले मुस्कुराइए और फिर अपनी सोच और व्यवहार को सकारात्मक ढंग से पेश करने का संकल्प लीजिए। यह पुस्तक आपके अंतर्मन की नकारात्मकताओं को दूर करेगी और आपको सकारात्मकता का सुख और सुकून प्रदान करेगी। निश्चय ही जब भी आपको लगे कि आपको निराशा और हताशा ने, क्रोध अथवा तनाव ने घेर लिया है, आप श्री चन्द्रप्रभ की किसी भी पुस्तक को उठाकर पढ़ लें आपको शांति और समाधान की प्रकाश-किरण तत्काल उपलब्ध हो जाएगी। For Personel Private Use Only