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आशा के दो दीप जलाएँ
करें और जीत न पाएँ ? तनाव ही क्यों, जीवन की हर बाधा को आत्मविश्वास से दूर किया जा सकता है।
अब तक हमने जीवन चाहे जैसा जीया हो पर अगर जीवन की सही समझ आ जाए तो सुबह का भूला सायं को घर लौटा हुआ ही कहलाएगा। समझ के अभाव में हम जीवन भर भटकते हैं और चेहरे पर मुखौटे ओढ़ते हैं ।
सुबह के भूले शाम को लौटे।
गली-गली जीवन भर भटके,
गुजरा सफर ट्रेन में लटके । संगी-साथी थे बहाव में,
हम रह गए धार से कटके/ हर चेहरे पर चढ़े मुखौटे ।।
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आँधी-तूफानों के झोंके, किए प्रयास, रुके कब रोके ।
पर्वत से
दुःख काँधे पर धर, चलते रहे, मगर रो-रो के ।
लोग मिले जैसे कजरौटे ॥
शूल हठीले, पथ रपटीले,
गहरी खाई, ऊँचे टीले । खूब दिये धोखे पर धोखे, फूलों से तन, मन पथरीले ।
काट रही अब याद बकौटे। सुबह के भूले शाम को लौटे ॥
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हमेशा 'रिलेक्सेशन' को महत्त्व दीजिए । तन में भी रिलेक्स और मन में भी रिलेक्स। ऐसा कोई भी काम मत कीजिए जिससे टेंशन होता हो । फिर चाहे वह कितना भी जरूरी क्यों न हो। काम को कभी भी दबाव में मत कीजिए, प्रेम
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