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प्रेम : जीवन का पुण्य पथ
झुकाती हो, यह तो समझ में आता है लेकिन शैतान के नाम पर भी शीश झुकाती हो, यह मैं नहीं समझ पा रहा हूँ।' बुढ़िया ने कहा, 'महाराज, जीवन का अनुभव तो यह बताता है कि पता नहीं, कब किससे क्या काम पड़ जाये, इसलिए दोनों को नमस्कार करती हूँ।' तुम कभी किसी को अपना दुश्मन मत बनाओ।
तुलसी या संसार में, भाँति-भाँति के लोग।
सबसे मिलकर चालिये, नदी-नाव संयोग। आप बगीचे में जाते हैं। वहाँ तरह-तरह के फूल खिले हैं, उनका सौन्दर्य देखिए, उन्हें डाल से विलग मत कीजिए। उन्हें दुलराइये, पर नोंचिये नहीं। भले ही भगवान के चरणों में पुष्प अर्पित करना हो, तब भी नहीं। जो फूल खुद ही डाल से अलग हो गये हैं, उन्हीं को भगवान को समर्पित कीजिए। भगवान नाराज नहीं होंगे। वे तो आपके प्रेम के भूखे हैं। आपकी छत पर बंदर आ जाते हैं। यदि आप उन्हें केला नहीं खिला सकते तो कम से कम पत्थर तो मत मारिये। गली के कुत्तों को रोटी नहीं दे सकते तो उन्हें लाठी से तो मत मारिये। माना कि आपके किराने की दुकान है। कोई सांड या गाय आपके यहाँ रखे अनाज में मुँह मार देते हैं तो आप उन्हें डराकर भले ही हटा दीजिए, पर डंडे से पीटिये मत। दो मुट्ठी अनाज तो दे नहीं सकते, पर उन्हें मारेंगे जरूर। कृपया ऐसा न कीजिये। यह विवेक की बात है, यह प्रेम से जीने का पथ है।
किसी बच्चे के मन में कुत्ता पालने की इच्छा हुई। वह पशुपालक के यहाँ गया। वहाँ बहुत सारे पिल्ले थे। उसने दुकानदार से उनका भाव पूछा। दुकानदार ने बताया, 'पाँच रुपये'। उसने एक तीन टांग वाले पिल्ले की ओर इशारा किया और कहा, 'मुझे वह चाहिए।' दुकानदार ने कहा, 'अरे, वह तो लंगड़ा है। उससे भी अच्छे सुन्दर और स्वस्थ पिल्ले हैं, उन्हें ले लो।' बच्चे ने कहा, 'नहीं, मुझे तो वही चाहिए।' दुकानदार ने सोचा कि इस लंगड़े पिल्ले के जितने भी दाम मिल जायें ठीक हैं। तभी बच्चा बोला, 'अभी मेरे पास चार रुपये हैं, कल पाँच रुपये लेकर आऊँगा तब यह पिल्ला ले जाऊँगा। तुम इसे
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