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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
तुम्हारा पहला धर्म प्रेम, पहला शास्त्र प्रेम, पहला आश्रम प्रेम। प्रेम से ही जीवन के विधायक परिणाम मिलेंगे। प्रेम का प्रारम्भ मनुष्य के साथ होता है। पशु-पक्षी, नदी-नाले, प्रकृति, इन सब पर प्रेम का विस्तार होता है। बच्चों से प्रेम करो, दुश्मन के साथ भी प्रेम का व्यवहार करो। मंदिर में जाकर जिस ईश्वर की आराधना करते हो, वही ईश्वर दुश्मन में भी विराजमान है, यह कैसे भूल जाते हो? राम में तो सभी राम देख लेते हैं, लेकिन रावण में भी जो परमात्मा को देख लेता है, वही तो विशिष्ट है। कोई तुम्हें सम्मान दे और तुम भी उसका सम्मान करो तो यह जगत्-व्यवहार हो जाएगा लेकिन तुम्हारा अपमान करने वाले को भी जब तुम सम्मान देते हो तो यह होगा तुम्हारा प्रेम-व्यवहार। ___मैंने तो प्रेम से हर समस्या का समाधान होते हुए देखा है। अगर समाधान न हो सका तो उसमें प्रेम की कमी रहती है। हर इंसान से प्रेम करें, दुनिया में किसी को शत्रु न बनायें। भगवान तो कहते हैं कि व्यक्ति को वीतराग होना चाहिए, राग-द्वेष से मुक्त हो जाना चाहिए। मैंने जब भगवान के मार्ग को भलीभाँति समझा तब सोचा कि अगर राग से मुक्त न भी हो सका, तो भी वीतद्वेष जरूर बनूँगा। मैंने जीवन का दूसरा दृष्टिकोण अपनाया कि कभी किसी से द्वेष नहीं रखुंगा, वैर-विरोध नहीं रखंगा। शस्त्र से तो कोई भी स्वयं को नहीं बदल पाया, किन्तु जिसने भी स्वयं को बदला है, प्रेम से ही बदला है।
आप प्रेम करें, अपने प्रेम को छिपाकर न रखें। प्रेम पाप नहीं है। पाप को छिपकर करो तो उसे पाप समझा जा सकता है। प्रेम तो पुण्य पथ है, किसी से भी दुश्मनी मत रखो। ____एक वृद्ध महिला किन्हीं संत का प्रवचन सुन रही थी। भागवत कथा चल रही थी। तभी देखा गया कि जैसे ही परमात्मा का नाम आता है, वृद्ध महिला नमस्कार करती है। इतना ही नहीं, जैसे ही शैतान का भी नाम आता तो वह उसे भी नमस्कार करती। जितनी बार भी परमात्मा या शैतान के नाम आये, वह नमस्कार करती। वह संत जो प्रवचन दे रहे थे, बोलते हुए रुक गये और उस वृद्धा से पूछने लगे, ‘माँ जी, जब परमात्मा का नाम आता है, तब तुम शीश
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