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स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ
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प्रेम ही जीवन की बारहखड़ी का पहला शब्द है। मनुष्य के जीवन में माधुर्य की शुरुआत प्रेम से होती है। प्रेम में ही सत्य की शक्ति निहित है। प्रेम में ही शिवत्व की आभा छिपी हुई है। सच तो यह है कि प्रेम से बढ़कर सौन्दर्य का कोई अस्तित्व नहीं है। व्यक्ति का प्रेम जब औरों के प्रति सम्मान से भर जाता है तो वह श्रद्धा बन जाता है। यही प्रेम जब विकृत होता है तो वैर-विरोध और क्रोध बन जाता है। जब प्रेम श्रद्धा में रूपांतरित होता है तो वह अपने शीश को
औरों के पाँव में झुका देता है और जब वही प्रेम वैर-विरोध का रूप धारण कर ले तो उसकी जूती दूसरे के माथे पर भी पड़ सकती है।
दुनिया में चलने वाली मैत्री प्रेम का ही विकसित रूप है। करुणा भी प्रेम का ही रूपांतरण है। भक्ति भी प्रेम की ही पराकाष्ठा है। प्रेम ही प्रणाम बनता है, प्रेम ही प्रसाद होता है और प्रेम ही आशीर्वाद बन जाता है। प्रेम जब किसी को सम्मान देना चाहता है तो प्रणाम बन जाता है। जब स्नेह से किसी के माथे पर हाथ रखते हो तो वह आशीर्वाद बन जाता है और जब किसी को प्रेमपूर्वक भोजन समर्पित करते हो तो वह प्रसाद बन जाता है। प्रेम ही आगे बढ़कर अहिंसा को साकार करता है। अगर प्रेम न होता तो अहिंसा किताबों में लिखा जाने वाला सिद्धान्त भर ही होता। वह विश्व-शान्ति का आधार कभी न बन पाती।
महावीर ने अहिंसा की और बुद्ध ने करुणा की बात कही जबकि सच्चाई यह है कि इन दोनों में से प्रेम को निकाल दिया जाय तो करुणा करुणा न रहकर किसी पर अहसान बन जायेगी। तब अहिंसा अहिंसा न रहकर केवल अपने स्वार्थ के गलियारे में किसी को ठेस न पहुँचाना मात्र ही अहिंसा रह जाएगी। अहिंसा जीवन की पहली सीढ़ी है, पर अगली सीढ़ी तो प्रेम ही है। किसी के हृदय को ठेस न पहुँचाना जीवन के लिए शुभ बात हो सकती है, पर किसी के दिल को सुख और सुकून पहुँचाना तो प्रेम के दीवानों की ही बात है।
___ आप किसी का अहित नहीं करते यह शुभ धर्म है, पर आप किसी का भला करते हैं तो यह आपके धर्म की पहचान कहलायेगी। किसी फूल में दुर्गंध नहीं है तो यह अच्छी बात है लेकिन फूल में सुगंध है तो यह उसका वैशिष्ट्य
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