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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
हुए घायल व्यक्ति को देखा। लेकिन यह सोचकर कि कौन पुलिस की गिरफ्त में आये, वह आगे निकल गया। तभी चर्च का पादरी वहाँ से गुजरा। पादरी ने भी घायल व्यक्ति को देखा, उसका हालचाल जानना चाहा लेकिन वह भी किसी तरह का सहयोग नहीं दे पाया क्योंकि उसे भी कहीं और प्रवचन देने जाना था। तभी एक दयालु परदेशी उधर से निकला। उसने घायल व्यक्ति को उठाया, उसके घाव धोये, अपने वस्त्र में से एक पट्टी फाड़कर उसके घावों पर बाँधी
और अपने खच्चर पर उसे बिठाया, दूसरे गाँव में ले जाकर उसे सराय में ठहराया। उसने सराय के मालिक से कहा, 'मैं आगे की यात्रा करके लौटता हूँ; तब तक तुम इस घायल व्यक्ति की सेवा-टहल करो। इसकी आवश्यक सेवा के लिए मैं तुम्हें पैसे भी दे देता हूँ। अगर कम पड़े तो लौटते वक्त तुम्हारा शेष भुगतान भी कर दूंगा'। जीसस ने अपनी ओर से जिज्ञासा का समाधान करने के लिए आये हुए व्यक्ति से पूछा, 'क्या तुम बता सकते हो कि उस घायल व्यक्ति के प्रति ज्यादा प्रेम किसने दर्शाया ?'
शिक्षक ने कहा, 'जिसने उस पर दया दर्शायी।' जीसस ने कहा, 'बस, यही है जीवन जीने का मार्ग। तुम जाओ और उस दयालु परदेशी के उदाहरण बनो।'
व्यक्ति को औरों के साथ ठीक वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे कि वह अपने आप से करता है। प्रेम ही संसार का सबसे खूबसूरत भाव है। प्रेम स्वयं ही स्वर्ग का मार्ग और मुक्ति का द्वार है। प्रेम से ही जीवन का प्रारम्भ होता है और प्रेम पर ही जीवन पूर्ण होता है। प्रेम जीवन का परिणाम नहीं है वरन् जब जीवन में प्रेम का निर्झर फूटता है तभी वास्तविक जीवन की शुरूआत होती है। अगर दुनिया में प्रेम न होता तो सारी दुनिया वैर-विरोधों से भरी रहती और तब यह सौ वर्ष तो क्या, एक दिन भी जीने के काबिल न होती। क्या आप ऐसे घर में जाना चाहेंगे जहाँ आपकी मनुहार और सम्मान न हो ? क्या आप किसी ऐसे स्थान पर बैठना चाहेंगे जहाँ आपको फटकार मिलती हो। आँखों में चमक वहीं आती है जहाँ प्रेम मिलता है। जिह्वा तभी मधुर होती है जब उसमें प्रेम का रस घुलता है। हृदय तभी प्रफुल्लित होता है जब हृदय में प्रेम का गुलाब खिलता है।
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