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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
है। दुनिया में अगर अहिंसा को जीवित रखना है तो प्रत्येक व्यक्ति प्रेम के पथ को अपनाये। प्रेम से बढ़कर कोई परिणाम नहीं है। प्रेम से बढ़कर कोई भक्ति या परमात्मा नहीं होता। बाइबिल कहती है Love is God, God is love. प्रेम स्वयं परमात्मा है, परमात्मा स्वयं प्रेमरूप है। भक्ति की किसी भी धारा से अगर प्रेम हटा दिया जाय तो वह परमात्मा का मार्ग न रह पायेगा। वह मार्ग केवल पंडित पुजारियों का होगा। विश्व में शांति-स्थापना के लिए भी व्यक्ति स्वयं को प्रेम के साथ जोड़े। परिवार में शांति के लिए, समाज में मैत्री के लिए, राष्ट्र में विकास के लिए और विश्व-बन्धुत्व की स्थापना के लिए प्रेम की ही नींव चाहिए।
कोई आपको नहीं चाहता तो इसका भी यही कारण है कि आपके जीवन में प्रेम नहीं है, आप लोगों से प्रेम करना नहीं जानते। कभी-कभी इसी कारण कोई आपका वैरी-विरोधी बन जाता है। तुम अपनी भाषा में प्रेम का अवलेह दे दो, अपनी नजरों में प्रेम की रोशनी दे दो, अपने व्यवहार और बर्ताव में प्रेम का सुकून दे दो तो इंसान तो क्या, स्वयं प्रकृति के पशु-पक्षी, फूल-पौधे, नदीनाले भी तुमसे मिलने को बेताब हो उठेंगे। मुझसे अगर कोई जीवन का सार, जीवन का संदेश लेना चाहे तो मैं यही कहूँगा 'तुम प्रेम से जियो।'
प्रेम सारे आस्रमों का हृदय है, शास्त्रों का रहस्य है, गुणों और व्रतों का सार है। जब किसी को विश्व-शान्ति का नोबल पुरस्कार मिलता है तो क्या वे जानते हैं कि उस पुरस्कार की शुरुआत कैसे हुई? अल्फ्रेड नोबल, जिनके नाम से पुरस्कार स्थापित हुआ, ने डायनामाइट का आविष्कार किया था। एक सुबह जब वह सो कर उठा तो अखबार का शीर्ष समाचार पढ़कर चौंक गया क्योंकि मुख्य समाचार था, ‘अल्फ्रेड नोबल जो मौत का सौदागर था, उसकी मृत्यु।' नोबल चकराया क्योंकि वह तो जीवित था जबकि उसके बारे में ही यह समाचार छपा था। उसने सोचा, कोई दूसरा अल्फ्रेड नोबल रहा होगा लेकिन भूलवश मेरे नाम से यह खबर छप गई होगी। नोबल ने यह सोचकर कि मेरे मरने के बाद अखबार क्या लिखेंगे, लोगों के क्या विचार होंगे, उसने विस्तृत समाचार पढ़े। वह पुन: चौंका क्योंकि उसने लिखा था कि 'अल्फ्रेड नोबल ने डायनामाइट का
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