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________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए हमारा वातावरण बहुत कलुषित हो जाएगा। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को बचा न पायेंगे। हम गिरते चले जायेंगे। आने वाले बीस साल का कल कैसा होगा, नहीं कहा जा सकता। पिछले बीस सालों में दुनिया इतनी बदल चुकी है और इतनी रफ्तार से बदल चुकी है कि आने वाले पाँच साल के बाद की दुनिया कैसी होगी ? यदि उसे देखेंगे तो चकरा जायेंगे । 76 कौन बचाएगा, कौन - सा धर्म बचाएगा, कौन - सी संस्कृति हमें बचा पाएगी ? हम ही बचा पायेंगे अपने घर और परिवार की संस्कृति को । क्या संतों ने ठेका ले रखा है, क्या धर्मों ने ठेका ले रखा है मनुष्यों को सुधारने का ? कब तक वे मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन करते रहेंगे ? अरे, भला जब मनुष्य को ही परवाह नहीं है तो धर्म भी हमारे कल्याण और अकल्याण को कैसे थाम पायेंगे ? आदमी चाहे धर्म के कायदे, कानून, नियम कितने भी पालन क्यों न कर ले, और चाहे वह संत भी क्यों न बन जाए, पर जब तक स्वभाव और संस्कार में परिवर्तन नहीं आता, तब तक जीवन में परिवर्तन नहीं आता और जब तक जीवन में परिवर्तन नहीं आता तब तक आचरण में भी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। हम सोचते हैं कि आचार को बदल कर किसी के स्वभाव को बदल लेंगे, यह नासमझी है। आचार को बदलकर किसी के भीतर को बदल पाना संभव ही नहीं है। हम किसी को भीतर से बदल डालें, आचार और व्यवहार अपने आप बदल जायेंगे । स्वभाव बदला तो व्यवहार बदला, व्यवहार बदला तो आचरण बदला, आचरण बदला तो आदमी का चरित्र और आदतें बदल गईं। केवल संत हो जाने से क्या होता है? मैंने बहुत से संतों को देखा है जो क्रोध करते हैं। मुझे लगता है कि वे करुणा के पात्र हैं। उन्हें संतता को एक बार फिर से समझना होगा। मैंने बहुत से तपस्वियों को देखा है जो आठ दिन का उपवास रखते हैं और गुस्सा करते हैं। देखता हूँ कि सास ने अगर आधा तोला सोना कम दे दिया तो उतने में उनके तेवर चढ़ जाते हैं । काहे की तपस्या है यह? क्या इसको हम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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