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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
सिखाया जाता है ?' युवक नदी में उतरने लगा। जैसे ही वह अंतिम सीढ़ी तक पहुँचा, सुकरात ने उसे सिर पर से दबाया और नदी में डुबा दिया। युवक ने बाहर आने की कोशिश की लेकिन सुकरात में ज्यादा ताकत थी। सो उन्होंने युवक को पानी में डुबाये रखा। लेकिन इस बार पुनः युवक ने जोरदार शक्ति लगाई और वह पानी से बाहर निकल ही आया। वह बोला, 'यह क्या बदतमीजी है।' सुकरात ने कहा, 'सफलता का मार्ग जानने का यही तरीका है। मैं पूछना चाहता हूँ कि जब मैंने तुम्हें डुबाया था तो तुम्हें वहाँ किस चीज की आवश्यकता थी? तुम्हें वहाँ किसने बचाया?' युवक ने कहा, 'मुझे हर हाल में साँस की जरूरत थी क्योंकि यदि जरा भी देर हो जाती तो मौत मेरे सामने खड़ी थी। मुझे मेरे जीने की इच्छा ने ही बचाया।' सुकरात ने कहा, 'जब सफलता तुम्हारे श्वास की तरह मूल्यवान हो जाय तभी तुम उसे अर्जित कर सकते हो।'
हममें से जो व्यक्ति अपने सोये हुए पुरुषार्थ और आत्म-विश्वास को जगा सकता है, वही सफल होता है। खतरे भले ही जिन्दगी में आयें, बाधाएँ भले ही सामने खड़ी हों पर वे ही उन्हें पार करते हैं जो उनसे खेलते हैं। जो डरेंगे, वे कहीं नहीं पहुंचेंगे - जो डर गया सो मर गया। डर किस बात का ? जिन्दगी में मौत दो बार नहीं, एक ही बार आती है और मौत वक्त से पहले कभी नहीं आती, फिर उससे डरने का क्या काम ?
कामयाबी का दूसरा सूत्र है : 'उन्नत लक्ष्य।' जीवन में क्या करना है ऐसा लक्ष्य अथवा उद्देश्य प्रारम्भ से ही बन जाना चाहिए। मरना तो अपने आप हो जाता है, जी भी जैसे-तैसे लेते हैं, लेकिन हम क्या साधना चाहते हैं ? उसका लक्ष्य बना लेना चाहिए। तुम यदि व्यवसाय करना चाहते हो, राजनीति में जाना चाहते हो अथवा जो भी करना चाहते हो, जिन्दगी में उसका लक्ष्य अवश्य बनाओ। तुम्हारे सामने लक्ष्य इतना स्पष्ट होना चाहिए कि तुम चाहे सोओ या जागो, रात हो या दिन तुम्हें अपने लक्ष्य का सतत स्मरण रहे। जब तक लक्ष्य पूर्ण न हो जाए, तुम चैन न लो। लक्ष्यहीन व्यक्ति जन्म और मौत के बीच ही अपनी जिन्दगी समाप्त कर देता है और वह किसी भी क्षेत्र का शिखरपुरुष नहीं बन पाता।
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