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________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए ही जल रहा है। चिंता में व्यक्ति गीली लकड़ी की तरह धीरे-धीरे जलता ही रहता है जबकि चिता कम-से-कम एक ही बार में राख तो कर देती है। चिंता लिक्विड ऑक्सीजन में पड़े हुए व्यक्ति की तरह है। ऑक्सीजन मरने नहीं देता और लिक्विड जीने नहीं देता। मैं किसी शहर में मेहमान था। एक व्यक्ति हमारे रहने के स्थान पर ही आकर सोया करता था। उसकी उम्र साठ-पैंसठ के आसपास थी और उसकी पत्नी मर चुकी थी। वह रात में बहकता, 'अरे, तुम तो मर गई किन्तु मेरा जीना हराम कर गई।' चिंता के कारण सोच-सोच कर आदमी घुटता रहता है। नतीजतन न रात में चैन, न दिन में चैन। तुम अतीत-भविष्य की नहीं, आज की समस्याओं के बारे में सोचो ताकि उनका कुछ समाधान निकल सके। जो होना था, वह हो चुका। अनहोनी कभी होती नहीं है, होनी को कभी टाला नहीं जा सकता। जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है। सब कुछ संयोगाधीन है अच्छा होना भी, बुरा होना भी। किसी भी होनी को स्वयं पर हावी मत होने दो अन्यथा तुम चिंता और द्वंद्व के ऊहापोह से घिर उठोगे। यह खतरनाक व्यूह-चक्र है। इससे बचो। होनहार प्रबल होता है, होनहार को हो लेने दिया जाए। जो होना ही है, सो हो ले। एक प्यारी सी घटना है- एक संत हुए। वे अपने युवा शिष्य के साथ चले जा रहे थे। तभी न जाने कहाँ से उनका विरोधी व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और संत की पीठ पर लाठी मार दी। उसने इतनी जोर से मारा कि लाठी उसके हाथ से छूट गई। वह तो घबराया कि अब संत उसे भी लाठी से पीटेंगे। यह सोचते हुए वह उल्टे पांव तेजी से दौड़ गया। तभी संत नीचे झुके। उन्होंने लाठी उठाई और भागते हुए व्यक्ति को आवाज दी, 'अरे भाई, अपनी लाठी तो साथ में ले जाओ।' साथ चलने वाले युवा ने कहा ‘आश्चर्य है, आपको उसने मारा, क्या आपको गुस्सा नहीं आया?' संत ने कहा, 'गुस्सा तो आया और गुस्से के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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