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आशा के दो दीप जलाएँ
कारण ही मैंने लाठी उठाई लेकिन लाठी उठाते-उठाते मन ने दूसरी दिशा बदल ली। उसने कहा, 'जिस पेड़ के नीचे से तुम गुजर रहे हो, अगर उसी पेड़ की टहनी गिरकर तुम्हारे कंधे या पीठ पर गिर जाती तो क्या तुम उसे पलट कर मारते? क्या तुम पेड़ को वापस गाली देते?'
युवक ने कहा, 'महाराज, वह तो संयोग कहलाता।' 'बेटा, मुझे भी ऐसा ही लगा कि पेड़ से गिरने वाली शाखा को अगर संयोग कहा जा सकता है तो किसी के द्वारा मारी गई लाठी को भी संयोग क्यों नहीं माना जा सकता?'
जीवन में होने वाली हानि को, जीवन में मिलने वाली विपरीत परिस्थिति को, विपरीत निमित्तों को अगर संयोग भर मान लिया जाय तो तुम पाओगे कि घटना घट गई, पर कमल का फूल वैसा का वैसा ही है। यही तो श्रावकत्व है, निर्लिप्तता है। ___चित्त के बोझों को उतारने के लिए हीन-भावना को निकाल फेंकिये। हीन-भावना से ग्रसित होने की बजाय आप अपने भीतर सफल होने का विश्वास अर्जित कीजिये। अपने भीतर सफलता की कामना संजोइये। आप यह न सोचें कि आप में क्षमता नहीं है। असल में आपके अन्दर असीम क्षमता है, आवश्यकता केवल उसके विकास की है। ऐसा कौन-सा कार्य है जिसे हम न कर सकें ? उद्यमशीलता से सब कुछ सम्भव है। स्वयं को हीन-भावना से मुक्त रखें। रूप, रंग, वर्ण, जाति, धन किसी भी कारण से स्वयं को हीन महसूस न करें। हीनता की ग्रंथि और अहंकार की ग्रंथि दोनों समान रूप से घातक हैं।
विकलांगता भी सर्वांगीण विकास में बाधक नहीं बन सकती अगर आपके भीतर अदम्य उत्साह और कुछ कर गुजरने की आकांक्षा है। आज या किसी भी समय में जो शिखर-पुरुष हुए हैं या जिन्होंने कुछ कर दिखाया है, वे अपने जीवन के प्रारम्भिक काल में अत्यन्त संघर्षशील रहे हैं। सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है। लाल बहादुर शास्त्री गरीब किसान परिवार के पुत्र थे जो नदी तैरकर पढ़ने के लिए इलाहाबाद जाया करते थे, वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। अब्राहम लिंकन भी गरीत परिवार से थे किन्तु जीवन में बार-बार असफल
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