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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
होने पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अंततः वे अमेरिका के राष्ट्रपति -पद पर आसीन हुए। हमारे देश के कवि सूरदास नेत्रहीन होते हुए भी अमर गीतों की रचना कर गये। आज के युग में, संगीतकार राजेन्द्र जैन ने नेत्रहीनता के उपरान्त श्रेष्ठ संगीत का सृजन किया है। डॉ. रघुवंश सहाय हाथों से विकलांग हैं किन्तु उन्होंने श्रेष्ठ साहित्य की रचना की है। तात्पर्य यह कि विकलांगता या निर्धनता किसी के विकास में बाधक नहीं है । बाधा तो यही है कि वह स्वयं को छोटा, नीच, हीन और गरीब मान लेता है। कृपया अपने विश्वास को छोटा मत होने दीजिए । रंग, जाति भले ही हलके हों, पर अपने हृदय को हीन मत होने दीजिए। मन को सुन्दर बनाइए । जीवन को श्रेष्ठ बनाइये । रोजगार कमाना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है जीवन को बेहतर बनाना, व्यक्तित्व को बेहतर बनाना । आखिर एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व अर्जित करना जीवन की सबसे बड़ी कमाई ही है।
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मैं एक घर में मेहमान था, मैंने देखा कि पति तो काला और असुंदर है लेकिन पत्नी अत्यन्त गोरी, रूपवान व सुंदर है। पति इतना कुरूप कि कोई देखे तो शायद पसंद ही न करे, शादी करना तो दूर की बात । पत्नी इंजीनियर और पति डॉक्टर। मैंने उस महिला से पूछा, 'क्या बात है, आप लोगों में इतना फर्क है! क्या आपने अपनी पसंद से ही शादी की है या माता-पिता ने ?' कई बार ऐसा होता है लड़का-लड़की एक-दूसरे को देख नहीं पाते और माँ - बाप ही सम्बन्ध तय कर देते हैं। उसने कहा, 'शादी मैंने अपनी पसंद से ही की है।' मैंने कहा, 'आप तो इतनी सुंदर हैं और वह ?' 'मैंने इस व्यक्ति की सूरत से नहीं सीरत से शादी की है' - बीच में ही बात काटते हुए वह बोली, 'इस व्यक्ति का स्वभाव और प्रकृति इतनी सुंदर है कि मैंने इससे शादी कर ली ।'
शाम को जब डॉक्टर घर पर आया तो मैंने उससे भी पूछा, 'आपका रंग काला है, चेहरे पर चेचक के दाग हैं। क्या आपको अपनी कुरूपता कभी अखरी नहीं?' ‘अखरी, बहुत अखरी । जब मैं छोटा था तब गली के लड़के मुझे कालू-कालू कहकर चिढ़ाते थे। मुझे बहुत गुस्सा आता था और मैं चाहता था कि इन्हें जवाब दूँगा। लेकिन जवाब क्या और कैसे देता? मैंने अपने बचपन
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