SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ ___81 अगर हमें पता चल जाए कि कोई व्यक्ति हमारा दुश्मन है तो हम अवश्यमेव वहाँ जाते हैं और उसका दिल जीतने की कोशिश करते हैं। हम जायेंगे और उसके आगे अपने आपको इतना विनम्र औश्र मधुर कर देंगे कि उसका दिल पिघल ही जाएगा। अपने पर आँच आई और हम पिघल पड़े तो क्या पिघले? हम ऐसे पिघलें कि किसी और पर आँच आए तो वह भी पिघल जाए। ____ हमारी जिन्दगी में कोई शत्रु बन गया, चिन्ता नहीं, हमारा पुरुषार्थ उसे मित्र बनाने का जरूर होना चाहिए। हम बहुत ही विनम्रता से, शालीनता से. मधुरता से पेश आएँ। सीमित शब्दों में अपनी बात कहें। ज्यादा जरूरत नहीं है माथाकूट करने की। हम सुबह सूर्योदय से पहले जगें। जब भी जगें, अपने हृदय में उत्साह, उमंग और आत्म-विश्वास का संचार करें। सुबह उठकर अपने माता-पिता को पंचांग प्रणाम करें। इससे उनकी दुआएँ मिलेंगी। यही हमारी विनम्रता भी होगी। माँ-बाप को और तो कुछ नहीं चाहिए, केवल हमारी विनम्रता चाहिए। उनके हाथ अपने सिर पर आने दें। हम अपने घर के अन्य सदस्यों का भी दिल से अभिवादन करें और इस तरह से सुबह-सुबह ही घर के वातावरण को सौम्य बना डालें। जैसे कोई आदमी बगीचे में जाकर प्रफुल्लित होता है वैसे ही हमें ऐसा लगेगा जैसे हमारा घर ऐसा ही कोई उद्यान हो चुका है जिसका हर सदस्य गुलाब का, जूही का, चम्पा का और चमेली का फूल है। जब हम भोजन करने के लिए बैठें तो ध्यान रखें कि एक गिलास पानी और तौलिया अपने पास रखकर बैठें। जब भी भोजन करें, पहले अपने हाथों को धो लें, फिर भोजन शुरू करें। ध्यान रखें, जब भी भोजन करें, पहले देखें कि हमारे नाखून अगर बढ़े हुए हैं तो हम भोजन करने की जल्दी न करें। पहले जाकर अपने नाखूनों को काट लें। महिलाएँ भोजन बनाती हैं तो देखें और पहले जाकर अपने नाखून काट लें क्योंकि उनके नाखून में जो मैल है, उसके थोड़े बहुत कण आखिर उसी आटे में जायेंगे या भोजन करते समय हमारे पेट में जायेंगे। हम अपने नाखूनों को हमेशा साफ रखें। हम अपने चेहरे पर भले ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy