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________________ पहला अनुशासन : समय का पालन 63 नहीं आते, मात्र उठावने पर ही समय पर आते हैं। हवाई जहाज में जाएँ, तो हवाई जहाज लेट। बस में चढ़ो तो बस लेट। और तो और, विवाह-समारोह में जाओ तो वह भी लेट। पूजा में जाएँ तो पूजा भी लेट। लोगों को लग चुका है कि कार्यक्रम शुरू होने का दो बजे का समय है तो तीन बजे शुरू होगा। चूंकि अपने यहाँ लेट-लतीफी नहीं चलती, इसलिए लोग अपने यहाँ समय के पाबंद रहते हैं। मेरी समझ से समय का पाबंद होना खुद को व्यवस्थित करने की सबसे सार्थक पहल है। यहाँ सब चीजें लेट-लतीफों में चलती हैं। ऐसा हुआ : एक आदमी जब मरने के लिए गया। लड़ाई हो गई बीवी से तो पति ने गुस्से में कहा, 'अब अगर ज्यादा किया तो मैं मर जाऊँगा।' पत्नी ने कहा, 'उसमें इतना क्या चिल्लाना, मर जाओ ना।' उसने कहा, 'ठीक है तुम्हारी अनुमति है तो जाता हूँ, मर जाता हूँ।' पर समस्या थी कि मरा कैसे जाए? आखिर तय किया कि ट्रेन के नीचे कटकर मरना सरल रहेगा। उसने पत्नी से कहा, 'मैं रवाना होने के लिए तैयार होकर आता हूँ, मगर मेरे लिए थोड़ा टिफिन तैयार कर दे।' वह बोली. 'क्या मतलब ? टिफिन तैयार कर दूं?' पति ने कहा, 'ट्रेन के नीचे आकर मरूँगा, मगर ट्रेन लेट हो गई तो!' मैं मरने जरूर जा रहा हूँ, पर भूखा मरने थोड़े ही जा रहा हूँ। हम लोग पाश्चात्य संस्कृति का बहुत अनुकरण करते हैं, बहुत अनुसरण करते हैं। उसकी हर चीज हम अंगीकार करते चले जा रहे हैं। मैं कहूँगा कि जब इतनी नकल की है तो एक नकल और करो, और वह है उनका समय पर चलने का नियम। जिस तरह से वे लोग समय पर चलते हैं, आप भी समय पर चलिए। दो बजे का समय है तो दो बजे पहुँच जाइए। चाहे सवा दो बजे वहाँ से निकल जाइए। विदेशों से केवल जींस ही पहनना क्यों सीखते हैं ? केवल हेयर स्टाइल क्यों सीखते हैं ? केवल बेल्ट बाँधना ही क्यों सीखते हैं ? उनमें समय पर चलने की जो प्रवृत्ति है उसे अपनाइए। यह जो समय की नजाकत है, उसको भी हर व्यक्ति को अनुसरण कर लेनी चाहिए। शायद हर संत पाश्चात्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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