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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
है जो उस हर तत्त्व को शक्ति प्रदान करता है। एक तत्त्व ऐसा होता है जो हर तत्त्व को परिवर्तन देता है।
महावीर ने इन्हीं को धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकाश, काल, पुद्गल और जीव कहा है। इन छः द्रव्यों से ही यह संसार संचालित होता है। कोई कहता है, 'इस संसार को चलाने वाला ईश्वर है', कोई कहेगा कि अल्लाह है। होंगे, जरूर होंगे। वे जरूर इस संसार को चला रहे होंगे मगर उस चालक को हमने अभी तक देखा नहीं है। क्या. हम ऐसी गाड़ी में बैठना चाहेंगे जिसे हम देख न पा रहे हों। लेकिन अपने हाथ में पहनी हुई घड़ी हमें निरन्तर बता रही है कि पहले नौ बजे थे और अब साढ़े नौ और दस बज रहे हैं। समय तो हम सभी के हाथ में है और हम सभी समय के हाथ में हैं। आइंस्टीन ने इस सृष्टि के संचालन में जिन दो चीजों को स्वीकार किया है, उनमें एक 'टाइम' है और दूसरा 'स्पेस'। इसी को ही हम अपनी भाषा में 'समय' और 'आकाश' कहते हैं। टाइम और स्पेस ये दो ही ऐसे तत्त्व हैं जिनसे सम्पूर्ण संसार संचालित हो रहा है।
परिवर्तन ! विज्ञान तो मानता है कि पुद्गल की, मिट्टी की तथा परमाणु की भी कभी मृत्यु नहीं होती, केवल परिवर्तन होता है। जब हम मर जायेंगे, हमारी लाश जला दी जाएगी। हम मरे नहीं अपितु केवल परिवर्तन हो गया। यह जो काया मिट्टी की बनी थी, वह पुन: मिट्टी में समा गई। यही मिट्टी फिर किसी खेत में चली गई। उसी से फिर कोई अनाज पैदा हो गया और वही अनाज फिर हमारे पेट में गया। फिर उससे कुछ तत्त्व बने, फिर एक शरीर का निर्माण हुआ। यह ‘लाइफ साइकिल' जीवन-चक्र यों ही चल रहा है। परिवर्तन होता है। मिट्टी फिर मिट्टी बनती है, मिट्टी फिर शरीर बनती है। यह क्रम यों ही चलता रहता है। इस गतिशील चक्र का नाम ही जीवन है, संसार है। ___केवल परिवर्तन ! सब कुछ यहाँ बदल रहा है अगर हम गरीब हैं तो चिन्ता न करें। यह गरीबी भी बदल जाएगी। अगर हम अमीर हैं तो गरूर न करें क्योंकि अमीरी भी बदल जाएगी। अगर हमारी टांग ठीक है, तो अभिमान मत
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