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पहला अनुशासन : समय का पालन
कीजिए। संभव है, कभी ठोकर लग जाए और हम टांग तुड़वा बैठें। अगर टांग नहीं है तो चिन्ता न करें क्योंकि जीवन में कोई न कोई सहारा मिल ही जाएगा। यदि आपके पाँव में जूते नहीं हैं तो अफसोस मत कीजिए क्योंकि दुनिया में कई लोगों के पास तो पाँव ही नहीं हैं। आपके पास पाँव हैं, यह वक्त की मेहरबानी है। जीवन में समय और वक्त का, उसकी प्रकृति और गुणधर्म का बोध रखना अहं, खेद और ग्लानि से बचने का मूल मंत्र है।
हम सब नदिया की धाराएँ हैं। जिसको बोध होता है, वह व्यामोह से उपरत हो जाता है। जिसे बोध नहीं होता, वह उलझता चला जाता है। मेरे पास मेरे पिता बैठे हैं। मुझे भली-भाँति पता है कि वे भी कभी जवान थे। उनसे मैं पूलूंगा कि क्या वे कभी बच्चे भी थे? उनको बुढ़ापे में भी ऐसा लगता है कि वे अब भी जवान हैं। पर उन्हें यह भी लगना चाहिए कि समय परिवर्तनशील है। अगर आज वे बूढ़े नहीं हैं तो वे एक दिन अवश्य ही बूढ़े भी होंगे। मृत्यु के द्वार से भी उन्हें गुजरना पड़ेगा। सबको गुजरना पड़ेगा। उनको भी! मुझको भी ! अपन सब लोगों को भी ! ये स्वागत-द्वार देखते हैं न ! जब लगते हैं तब कितने रंग-रोगन, चकाचक होते हैं, पर समय बीतते-बीतते फीके-फीके रंग हो जाते हैं। सब उड़ रहा है, सब बदल रहा है। 'दिस टू विल पास' यह भी बीत जाएगा।
एक महान सम्राट् ने अपनी ओर से इस बात की घोषणा की थी कि वह दुनिया के सारे शास्त्रों का सार-संदेश पाना चाहता है। उस सम्राट् को निचोड़ के रूप में जो बात मिलती है, वह है, 'दिस टू विल पास।' कभी वह भी सम्राट था। उस सम्राट् को और लोगों के आक्रमण का सामना करना पड़ा। वह फिर फँस चुका। उसे फिर बोध हुआ - 'दिस टू विल पास।' यह भी बीत जाएगा! उसे लगा कि वह कल राजा था, वह समय भी बीत गया। आज यदि वह जंगल में फँस चुका है तो यह भी बीत जाएगा। जब वह वापस अपनी शक्ति को बटोर कर फिर शत्रु-राजाओं पर हमला करता है और उसका फिर राज्याभिषेक होने लगता है। वह फिर सोच बैठता है, 'दिस टू विल पास।' यह भी बीत जाएगा। जब वह न रहा तो क्या यह रह पाएगा ? सभी कुछ तो यहाँ पर बीत रहा है।
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