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सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए
सो लग गया। प्रेम करने जाओ तो नहीं होगा, जिससे हो गया सो हो गया। यह प्रेम का मार्ग ही ऐसा है कि हर किसी को उस मार्ग का पथिक होना ही पड़ता है। अगर आपके जीवन में नीरसता, निराशा या निरासक्ति है तो मैं कहूँगा कि आप प्रेम के पथ पर आयें और प्रेम को गले लगायें। अपने मन की आँखों को प्रेम से आँजें, अपने हृदय के गमले को प्रेम के पौधे से सजायें।
आप धर्म-पथ के अनुयायी हैं, आप परिवार के साथ हैं, समाज में रह रहे हैं यह सब ठीक है, लेकिन आपमें प्रेम है या नहीं ? अगर आपके जीवन में प्रेम है तो आप अकेले होकर भी सौ के बराबर हैं और यदि जीवन में प्रेम नहीं है तो दो सौ लोगों के बीच रहकर भी अकेले ही होंगे। महिलाएँ खाना बनाती हैं। मैं उनके लिए कहना चाहूँगा कि महत्त्व इसका नहीं कि आपने कितने प्रकार के व्यंजन क्या-क्या मसाले डालकर बनाये, अपितु मूल्य यह है कि आपने कितने प्यार से, मन लगाकर खाना बनाया? आपके प्यार की रूखी रोटी भी तृप्त कर देगी और बेमन से खिलाये गये मिष्ठान्न भी आपसे मुख मोड़ देंगे। रोटी के पीछे जो प्रेम है, वह मूल्यवान है।
ऐसा हुआ : एक चोर को राजा ने फाँसी की सजा सुना दी। रानियों ने सुन रखा था कि मरने वाले व्यक्ति को अगर भोजन करा दिया जाय तो स्वर्ग प्राप्त होता है। पहली रानी ने राजा से अनुरोध किया कि उस चोर की सज़ा एक दिन आगे बढ़ा दी जाय क्योंकि वह उसे भोजन कराना चाहती है। राजा ने रानी की बात मान ली। रानी ने चोर को भोजन के लिए आमंत्रित किया और नाना प्रकार के पकवान परोसे। चोर पकवान खा तो रहा था, लेकिन भयभीत था। उसके मन में फाँसी का फंदा झूल रहा था कि कल तो फाँसी लगेगी ही। आज कितना भी क्यों न खा लूँ, कल तो...!
रानी ने भोजन कराया और हजार रुपये भी दिये। वह चला गया। दूसरे दिन दूसरी रानी ने बुलाया। उसने भी खूब आवभगत की, दो हजार रुपये भी दिये, लेकिन चोर तो उदास ही बना रहा। तीसरे दिन तीसरी रानी ने बुलाया, खूब अच्छा खाना बनाया, तीन हजार रुपये भी दिये, लेकिन वह तो मायूस ही
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