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________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए व्यसन करता है और सोचे कि संतान ये सब न करे तो वह गलत है। तुम्हें बोलने का अधिकार नहीं है। हम अपनी संतानों को बोलने के अधिकारी तब बनाते हैं जब हम स्वयं नेक रास्ते पर चल रहे हों, वरना बच्चों पर अपना अधिकार जताने का कोई औचित्य नहीं है। अगर हम अपने घर में सबके साथ शालीनता के साथ पेश आते हैं तो हमारा बच्चा भी सबके साथ शालीनता से पेश आएगा। जब मैंने एक बच्ची से पूछा, ‘बेटी, तुम इतनी विनम्र कैसे हो? इतनी मधुर कैसे बोलती हो? तुम्हें देखकर ऐसे लगता है जैसे मेरे पास कोई खिले हुए गुलाब का फूल बैठा है। तुमने इतनी शालीनता कहाँ से सीखी ?' बच्ची ने मुझे जवाब दिया, 'मेरे घर के सारे लोग भी एक दूसरे के साथ इतनी ही शालीनता के साथ पेश आते हैं।' बच्चा तो आखिर वही सीखेगा जैसा कि हमारे घर-परिवार का वातावरण होगा। बच्चे के पाँव से अगर काँच की गिलास फूट जाए, तब हम शायद उसे चाँटा लगा देते हैं पर हमारा बेटा अगर गलत रास्ते पर जाए तो क्या हम अपने बेटे के गाल पर चाँटा लगाने का साहस दिखा पाते हैं ? पति-पत्नी आपस में झगड़ जाते हैं। एक दफा नहीं बल्कि साल में दस दफा झगड़ जाते हैं पर अगर पति गलत रास्तों पर जा रहा है अथवा वह शराब या और कोई गलत व्यसन कर रहा है तो उस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। हम एक साड़ी के लिए लड़ सकते हैं। जब हम अपनी सास के द्वारा कहे गए एक कटु शब्द के लिए अपने पति से झगड़ सकते हैं और अपना घर अलग बनाने की सोच सकते हैं तो क्या हम अपने पति को सुधारने के लिए नहीं लड़ सकते? आखिर वह क्या कर लेगा ? घर से निकाल देगा? घर से निकाल भी दे तो निकल जाएँ । कम से कम गलत पति के साथ जीने से तो अकेले जीना बेहतर है। मुझ सरीखा व्यक्ति तो यही कहेगा कि तुम लड़ पड़ो, पर कम से कम तुम्हारा पति सुधर जाना चाहिए। धर्म की किताबें कहती हैं कि नारी नरक की खान होती है। मैं कहूँगा कि नारी स्वर्ग की पगडंडी होती है अगर नारी अपने बिगड़े हुए पति को सुधार दे। यदि वह उसे नहीं सुधार पाती है तो मैं नहीं जानता कि वह किस नरक की खान होती है। मैंने अपने करीब में लगातार एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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