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स्वभाव बदलें. सौम्यता लाएँ
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में वे आपके जीवन के सहभागी बनेंगे। अच्छा मित्र वही होता है जो अपने मित्र का कल्याण चाहता है।
व्यक्ति के जीवन पर, उसके स्वभाव पर जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है वह है आदमी का अपना घर और परिवार। घर-परिवार का जैसा माहौल होगा, हमारे बच्चे पर वैसा ही प्रभाव पड़ेगा। हम चाहते हैं कि हमारी संतान एक श्रेष्ठ संतान बने तो माँ, बाप तथा अभिभावकों का भी दायित्व होता है कि वे भी अपने आप में श्रेष्ठ स्वभाव, श्रेष्ठ व्यवहार और श्रेष्ठ जीवन के स्वामी बनें। किसी को संस्कारशील बनाना अपने जीवन में सौ विद्यालयों का निर्माण करने के समान है। किसी भी बच्चे का अच्छी तरह से पालन-पोषण करना किसी भी राष्ट्र पर शासन करने से ज्यादा कठिन है। एक राष्ट्र का संचालन करना शायद आसान होता होगा, लेकिन अच्छे बच्चे का निर्माण करना उससे भी अधिक कठिन होता है।
हम छोटा-सा भी झूठ बोलेंगे तो हमारी संतान भी झूठ बोलना सीखेगी। अगर हम सत्य बोलेंगे तो हमारी संतान भी सत्य बोलने के लिए प्रेरित होगी। हम रचनात्मक कार्य करेंगे तो हमारे बच्चे भी रचनात्मक कार्य करना सीखेंगे। हम किसी की टांग खिंचाई करेंगे तो हमारे बच्चे भी टांग खिंचाई करना सीखेंगे। वस्तुतः जैसा व्यक्ति होता है वैसा ही उसका आने वाला कल हुआ करता है।
किसी समय एक चोर को न्यायाधीश ने दण्ड सुनाना चाहा, सजा सुनानी चाही तो चोर ने कहा, 'ठहरिये, अगर आप मुझे सज़ा देना चाहते हैं तो मैं चाहँगा कि मुझे सज़ा देने से पहले मेरे माँ-बाप को भी सज़ा दी जानी चाहिए।' न्यायाधीश कहता है, ‘चोरी तुमने की और सजा तुम्हारे माँ-बाप को भी मिले, यह कौन-सा न्याय हुआ? चोर ने कहा, 'मेरे माँ-बाप भी चोर रहे; वे जिन्दगी भर चोरियाँ करते रहे और मैंने भी वही सीखा है तो अगर सजा देनी है तो मेरे साथ मेरे माँ-बाप को भी दी जाए ताकि दुनिया जान सके कि माँ-बाप गलत हैं तो संतानें भी गलत बनेंगी।'
कोई भी पिता सिगरेट फूंकता है, तम्बाकू या अन्य किसी भी प्रकार का
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