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________________ 96 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए 'चूल सुभद्दा ने मुझे दिल से याद किया है, हृदय से मुझे निमंत्रण दिया है। अपनी श्रद्धा, अपनी भक्ति जुही के फूलों से मुझे भेजकर मुझे आमंत्रित किया है। मुझे जाना ही होगा।' और भगवान तीस किलोमीटर की लम्बी पदयात्रा करके उसके गाँव पहुँचते हैं। चूल सुभद्दा के ससुर को यह देखकर आश्चर्य होता है कि भगवान सचमुच उसके घर आ पहुँचे हैं। चूल सुभद्दा धन्य हो जाती है। उसके यहाँ का भोजन धन्य हो जाता है और नास्तिक आस्तिक के रूप में परिवर्तित हो जाता है। ___ जो भी भगवान को प्रेम भरे हृदय से आमंत्रण देता है, भगवान उसके घर-दहलीज पर जरूर आते हैं। जब सत्यभामा ने संकल्प लिया कि वह श्रीकृष्ण को स्वर्ण से तोल कर ही रहेगी तो अपने अंत:पुर की राजरानियों से कहा कि वे सभी अपने मायके से मिले हुए स्वर्णाभूषण लेकर आ जायें क्योंकि कृष्ण को तोलना है। सत्यभामा राजा की पुत्री थीं। उसके पिता ने उसे बहुत स्वर्ण दिया था। उसे गर्व था कि आज देखेंगी किसके यहाँ से कितना माल मिला है ? श्रीकृष्ण को तराजू के एक पलड़े में बिठा दिया गया और दूसरे पलड़े में स्वर्णाभूषण रखे गये। प्रत्येक रानी आती, अपने गहने रखती, लेकिन श्रीकृष्ण का पलड़ा भारी रहा। सत्यभामा को बहुत गुस्सा आया श्रीकृष्ण पर कि, ‘इन्होंने जरूर कोई माया रची है वरना इतना गहना फिर भी कम कैसे पड़ता ? चिन्ता की कोई बात नहीं, सारी रानियों का गहना इकट्ठा करके तराजू पर चढ़ा दो। मैं भी देखती हूँ कि कृष्ण कितने भारी पड़ते हैं?' यही किया गया, फिर भी कृष्ण को न झुका सके। भगवान को क्या ऐसे ही झुकाया जाता है ? गहनों के बल पर, पैसों के बल पर ? भगवान को तो प्रेम के बल पर, श्रद्धा के बल पर झुकाया जा सकता है। तुम यह न कहो कि मैंने इतना चढ़ाया है। अरे, उसने तो तुम्हें जीवन दिया है। हम भला भगवान को क्या चढ़ा सकते हैं ? सत्यभामा और राजरानियों ने सारे गहने रख दिये लेकिन भगवान को हल्का न किया जा सका। वह हार गई, तभी उसकी नजर एक कोने में सिमटी बैठी हुई रुक्मिणी पर गई। उसने रुक्मिणी को कहा, 'अरे, तू क्यों बैठी है ? तू Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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