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________________ स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा 111 आभामण्डल पीले रंग का होता है। सूर्योदय के समय जो रंग होता है, उसी रंग का व्यक्ति का आभामण्डल होता है। जिस व्यक्ति की वाणी, व्यवहार और जीवन में तेजस्विता आ जाती है, वह तेजोलेश्या का परिणाम होता है। 'विवेक' तेजोलेश्या का लक्षण है। जीवन की प्रत्येक गतिविधि और कार्यकलाप में विवेक को संजोना तेजोलेश्या की ओर कदम बढ़ाना है। अंशुभ से शुभ की ओर आना चाहते हैं तो उसका पहला चरण विवेक है। विवेक ही मनुष्य के जीवन का मित्र है, अमृत है और मील का पत्थर भी। जिस तरह अंधेरे में चलने वाले के हाथ में चिराग दे दिया जाय तो वह सफलतापूर्वक रास्ते पार कर लेगा उसी तरह अशुभ लेश्याओं से घिरे हुए व्यक्ति को विवेक का चिराग थमा दिया जाय तो वह हर अशुभ विचारधारा पर स्वयं ही अंकुश लगा लेगा। चलें तो विवेकपूर्वक । ऐसा न हो कि सड़क के किसी गड्ढे में गिर जाएँ या किसी वाहन से टकरा जाएँ या आपके पाँवों के नीचे दबकर कोई कीड़ामकोड़ा मर जाय। चलें तो अपनी नज़र को नौ फुट की दूरी तक रखें ताकि दुर्घटना न हो, किसी पर गलत नज़र न जाय । न ठोकर लगे और न किसी जीवजन्तु की हिंसा हो। बैठें तो विवेकपूर्वक, विवेकपूर्वक भोजन करें, किसी वस्तु को रखें या उठायें तो विवेकपूर्वक। स्वच्छता बनाये रखना भी जीवन का धर्म है। जब कहीं बैठें तो जगह देख लें कि वहाँ कहीं चींटी, धूल या अन्य जीव तो नहीं है। ऐसा न हो कि आप जहाँ असावधानी से बैठ गए, वहीं बिच्छू हो या कोई सुई पड़ी हो। भोजन शुद्ध और सात्विक हो। कुछ भी अनर्गल न खाते चले जाएँ। कहीं ऐसा न हो कि आप बीमार हो जायें। आप सदा-सर्वदा विवेकपूर्वक ही अपने जीवन के कार्यों को सम्पादित करें। दो व्यक्ति सलाह करते हों तो हमें वहाँ बिना बुलाये नहीं जाना चाहिए। राजा भोज के बारे में एक चर्चित घटना है। राजा भोज एक दिन अचानक महल में चला गया। रानी उस समय दासी से बात कर रही थी। राजा को इस दौरान अपने बीच आया हुआ देखकर रानी बोली - ‘आइये मूर्ख।' राजा क्रुद्ध एवं विस्मित होकर लौट पड़ा। भोज को इतना गुस्सा आया हुआ था कि दरबार में जो भी पंडित आते, उन्हें राजा यही कहता - ‘आओ मूर्ख ! आओ।' कालिदास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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