SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए __15 उलझें। ईर्ष्या में उलझकर अपनी मानसिकता को दूषित न करें। ईर्ष्या खुद को तो जलाती ही है, औरों से भी हमें काटती है। ईर्ष्या हमेशा औरों का नुकसान देखती है क्योंकि औरों की हानि में ही ईर्ष्या को मज़ा आता है। जब कोई छत से जमीन पर औंधे मुँह गिरता है तो ईर्ष्या इतनी खुश होती है मानो उसके लिए कोई सवा लाख की लॉटरी खुल गई हो। इन सबसे ईा को भले ही फायदा हो, पर जैसे ईर्ष्या में पड़कर हम औरों को नुकसान पहुंचाते हैं वैसे ही सावधान ! दूसरे लोग हमें भी उतना ही नुकसान पहुँचायेंगे। हम सबके प्रति सहानुभूति रखें, सम्मान की दृष्टि रखें। सहानुभूति के बदले में सहानुभूति लौटती है और नफरत के बदले नफरत। औरों को सम्मान देकर ही हम अपने सम्मान की व्यवस्था कर सकते हैं। ध्यान रखें, प्रकृति ने 'सम्मान' नाम का जीवन में जो तत्व बनाया है, वह हमेशा अपनी ओर से औरों को देने के लिए ही बनाया है। जो औरों को सम्मान देकर स्वयं को गौरवान्वित समझता है, वह अपनी सोच और नजरिये को अनायास सौम्य बना लेता है। सोच को सदा स्वस्थ और सकारात्मक बनाए रखने के लिए जो आखिरी बात निवेदन करूँगा वह यह है कि न तो कभी किसी की कमी को देखें और न ही अपने दिमाग में व्यर्थ की चिन्ता पालें। कमियों को देखना कमीनापन है और चिन्ता को पालना जीते जी चिता को सजाना है। बुद्धिमान लोग सदा गुणों को मूल्य देते हैं फिर चाहे वे अपने हों या किसी और के। दृष्टि गुणात्मक हो, सोच सकारात्मक हो। चिन्ता की बजाए खुशमिजाजी को मूल्य दीजिए। चिन्ता यानी यह कैसे हुआ या यह कैसे होगा, इस बात की जो उधेड़बुन है, उसी का नाम चिन्ता है। चिन्ता करना अपने पाँव पर कुल्हाड़ी चलाना है। चिन्ता या तो बीते की होती है या अनबीते की। जो बीत चुका, वह खो चुका और खोए का रोना क्या? जो अनबीता है वह अभी तक आया ही नहीं है और जो आया ही नहीं है, उसके बारे में सोचना क्या ! मस्त रहो, मस्त ! हर हाल में मस्त ! ऐसा हुआ। एक बूढ़ा आदमी अपने कंधे पर टमाटर के सूप की हंडी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy