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________________ सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए उसे अगर नरक में भी भेज दिया जाय तो वह उसे भी स्वर्ग में बदलने की कला जानता है। क्या कभी किसी को वैर का सामना नहीं करना पड़ता ? क्या किसी के क्रोध का उसे मुकाबला नहीं करना पड़ता ? क्या किसी की लाठी और शक्ति का सामना नहीं करना पड़ता ? जरूर करना पड़ता है, लेकिन यदि तुम जीने की कला जानते हो तो कोई तुम्हारे सम्मुख अंगारा बनकर आये और तुम सागर हो जाओ तो वह अंगारा निष्प्रभावी हो जाएगा। नरक तुम पर हावी न हो पायेगा। सम्भव है, तुम्हारा स्वर्ग उसे भी कहीं स्वर्ग बना दे। मैं चाहता हूँ, हर व्यक्ति को जीने की कला मिले। वह धार्मिक और आध्यात्मिक बने, उससे पहले उसे जीने की कला आ जाए। 34 जब तक व्यक्ति के मन में निश्चिंतता, शांति और सहजता नहीं हैं, उसके हृदय में सहज प्रसन्नता और प्रमोद भाव नहीं है तब तक वह धार्मिक कैसे हो पाएगा? वह आध्यात्मिक कैसे हो पाएगा? धर्म और अध्यात्म तो जीवन'शिखर के अगले सोपान हो सकते हैं, पहली सीढ़ी बिल्कुल नहीं। पहली सीढ़ी है व्यक्ति को जीना आये। जन्म तो हो गया है लेकिन मरे नहीं हैं, ऐसी अवस्था में जीवन जीना अपनी चलती-फिरती लाश को ढोना है। दुनिया के किसी भी व्यक्ति के जीवन में अगर तनाव है, मानसिक अवसाद है, अनिद्रा, ईर्ष्या, जलन है, दिन-रात किसी प्रकार का चैन नहीं है तो उसे हम किस प्रकार जीवित मान सकते हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि रोग कुछ है और दवा कुछ और दी जा रही है । देखें आप अपने जीवन को भी । कहीं आप भी तो इन्हीं रोगों से ग्रस्त तो नहीं हैं। कहीं हमारा हृदय, हमारा मन, हमारी आत्मा ऐसी स्थिति में तो नहीं पहुँच गई है कि सूखी मिट्टी की तरह हम दरार-दरार हो चुके हैं और हमारे भीतर इतने घाव लग चुके हैं कि हम बाहर से तो मुस्करा रहे हैं और रात में सोते समय आंसू ढुलका रहे हैं। हम सभी अपने मन को तलाशें । - मैं देखता हूँ कि व्यक्ति ऐसी बोझिल जिंदगी जी रहा है जहाँ वह बाहर से तो बेफिक्र लेकिन भीतर दबावों से भरा हुआ है । बोझा तो ढोना पड़ता है लेकिन उसे क्या कहेंगे जहाँ सामान तो कहीं नहीं ले जाना है फिर भी उसे ढोने की आदत पड़ जाती है। महिलाओं को देखें, उन्हें चांदी का झुमका चाहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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