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स्वयं को दीजिए सार्थक दिशा
दुर्व्यसनी, घर में लड़ाई-झगड़ा करने वाला तथा बच्चों को मारपीट करने वाला था। दूसरा भाई सभ्य और सुशील समाज में आदरपूर्ण स्थान रखने वाला था। दोनों भाइयों को देखकर आश्चर्य हुआ कि दोनों में इतना फर्क क्यों है? जब मैं एक भाई से मिला तो पूछा, 'तुम शराब क्यों पीते हो, पत्नी से मारपीट क्यों करते हो, बच्चों के साथ गाली-गलौज क्यों करते हो ?' उसने तपाक से कहा, 'इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? मेरा पिता भी शराब पीता था, माँ को मारता था और हमें गालियाँ देता था। मेरा पिता भी ऐसा था और मैं भी वैसा ही निकल गया तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है?'
__मुझे लगा शायद वह ठीक कह रहा है क्योंकि उस व्यक्ति पर वातावरण का तथा आनुवंशिकता का असर आया होगा। फिर मैं दूसरे भाई से मिला और उससे पूछा, ‘भाई, तुम इतने सभ्य, शालीन, सम्मानित जीवन कैसे जी रहे हो जब कि तुम्हारा एक भाई गलत राहों पर चल रहा है?' उसने कहा, 'यह सच है कि मेरे पिता शराब पीते थे, माँ के साथ बदसलूकी करते थे, हम बच्चों से बिना गाली के बात नहीं करते थे, पर जब भी मैं पिता को इस तरह दुर्व्यवहार करते देखता तो मेरी आत्मा रो पड़ती। माँ को मिलने वाली हर गाली को अपने ऊपर लगने वाली समझता। तब बचपन में ही मैंने संकल्प ले लिया था कि जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तब शराब नहीं पिऊँगा, पत्नी के साथ मारपीट नहीं करूँगा
और न ही अपने बच्चों के साथ गाली-गलौज करूँगा।' ___एक व्यक्ति को वही वातावरण और संस्कार मिलते हैं, इसके बावजूद कोई बिगड़ जाता है, कोई सुधर जाता है। एक माँ के पाँच बेटों की किस्मत अलग-अलग होती है। कोई शराबी बन रहा है तो अपने ही कारण, कोई सभ्य, सुशील तथा शालीन बन रहा है तो भी अपनी ही वजह से। वह जैसा सोचेगा, वैसे ही बीजों का वपन होगा। जैसे बीज होंगे वैसे ही फसलों को काटने के लिए उसे मजबूर होना पड़ता है। अगर आप चाहते हैं कि जीवन में फसलों को काटते वक्त खेद और प्रायश्चित न हो तो बीजों को बोते वक्त विवेक रखें।
ईसा ने बाइबिल में कहा है, 'व्यक्ति जैसा है, वह अतीत में सोचे गये
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