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स्वभाव बदलें, सौम्यता लाएँ
और परिवार के सदस्यों के साथ हिलमिल कर समय बिताएँ । अपने माता-पिता से, अपने बच्चों से, अपनी पत्नी से अवश्य पूछें कि क्या तुम्हें किसी चीज की जरूरत है ? तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं है ? माँ, अगर आपको किसी चीज की जरूरत है तो मुझे बता दें ताकि मैं वह चीज ला कर तुम्हें दे दूँ । आखिर उनकी भी जरूरतें होती हैं। हम सप्ताह में एक बार ही सही, उनको अवश्य पूछें।
यदि आप ससुर हैं तो होली अथवा दीपावली किसी भी पर्व पर अपनी बहू को एक साड़ी जरूर दीजिए। उसका लाड़ भी कीजिए ताकि उसके दिल में आपके प्रति जो आदर है, वह और ज्यादा बढ़े। निश्चय ही आपके प्रति उसका आदर और बढ़ेगा। वह जितनी सेवा अभी करती है, उससे अधिक करेगी। उसको लगेगा जैसे हमारे पिता हमारा ख्याल रखते हैं, हमारी सास, हमारी जेठानी भी हमारा ख्याल रखती हैं, वैसे ही हमें भी इनका ख्याल रखना चाहिए। जब हम अपने बच्चों के लिए कोई भी ड्रेस लेकर आएँ तो ध्यान रखें कि आपके जो दूसरे भाई हैं, उनके बच्चों के लिए भी एक-एक ड्रेस जरूर लेकर आएँ। घर-परिवार का वातावरण ऐसे ही खुशनुमा होता है। ध्यान रखिए, जीवन में ऐसे छोटे-छोटे से सूत्र अपना कर आप अनायास ही अपने स्वभाव को दुरुस्त कर लेंगे। यह सच है कि स्वभाव और आदत को बदलना कठिन होता है, 'जांका पड्या स्वभाव जासी जीव सूं, नीम न मीठो होय, सींचो गुड़ घीव सूं।' मरने पर ही स्वभाव छूटता होगा । माफ करें, शायद मरकर भी नहीं बदलता होगा। वह जन्म-जन्मातर तुम्हारा पीछा करता रहेगा । मतलब यह कि तब भी तुम बदल ही न पाओगे। न इस जन्म में, न अगले जन्म में, न किसी और जन्म में। यानी कुत्ता सनातन कुत्ता रहेगा, गधा सौ जनम के बाद भी गधा ही रहेगा।
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इस बिन्दु पर ठंडे दिमाग से सोचिए । कल किसने देखा है ? आज ही स्वयं को बदल दीजिए। आप चाहें तो अभी बदल सकते हैं । यहीं बदल सकते हैं। जरूरत है तो बदलने की मानसिकता की, संकल्प की। अपने में पड़तालिए कि कौन-सी कमी या मजबूरी है, कौन-सा व्यसन है, कौन-सा बुरा स्वभाव
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