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________________ 12 सकारात्मक सोचिए : सफलता पाइए निहित है तो उसे धर्म की अच्छाई नज़र आने लग जाती है। वह उसे ग्रहण करने को उत्सुक हो जाता है। जब व्यक्ति किसी भी धर्म के पास सकारात्मक होकर पहुँचेगा तो वह उसकी अच्छाइयाँ ज़रूर पा सकेगा और जब नकारात्मक रवैया लेकर उसके पास जाएंगे तो बुराइयाँ ही नज़र आएंगे। मुझे तो हर धर्म का पूजाघर एक जैसा ही लगता है । हर इंसान का रक्त लाल ही है फिर वह हिन्दु हो या मुसलमान, ईसाई हो या पारसी ! इसके बावज़ूद सोच और विचार में फ़र्क़ होने के कारण आदमी-आदमी के ख़ून का प्यासा हो जाता है। हमसे तो वे पशुपक्षी अच्छे हैं जो बिना किसी भेदभाव के यत्र-तत्र - सर्वत्र विचरते रहते हैं । उन्हें तो कहीं कोई फर्क नज़र नहीं आता । गुटरगूं करते हुए कबूतर कभी मंदिर के शिखर पर बैठ जाते हैं तो कभी गिरजा - गुरुद्वारे की छत पर । सूरज तो एक ही है, प्रतिबिम्ब अलग-अलग दिखाई दे सकते हैं। जब संसार से सारी नकारात्मक सोच विदा हो जाएगी तब एक ही धर्म होगा - इंसानियत का, मानवता का धर्म । सोचो, सकारात्मक सोचो - सास-बहू के बीच सकारात्मकता हो, एकदूसरे को स्वीकार करने का भाव हो । पिता-पुत्र के मध्य सकारात्मकता हो । पिता से भी गलती हो सकती है, पुत्र से भी । पिता बड़प्पन दिखाये कि पुत्र की गलतियों को माफ़ कर सके और पुत्र इतनी विनम्रता रखे कि पिता के द्वारा उचित - अनुचित शब्दों को धैर्यपूर्वक सुन सके। अपनी माँ को मैंने कभी गुस्सा करते हुए नहीं देखा। हम बचपन में बहुत शैतानी करते थे और मां को जरा भी चैन नहीं लेने देते थे । फिर भी वह हम पर नाराज नहीं होती थी । एक दिन मैंने माँ से पूछा, 'माँ तुम्हें ज़िंदगी में गुस्सा क्यों नहीं आया ? क्या तुम्हें कभी बड़ों ने डाँटा नहीं ? हम बच्चे जो गलती करते हैं उसका तुम्हें क्या अहसास नहीं हुआ ?' माँ ने कहा, 'बेटा, मुझे जीवन भर एक मंत्र याद रहा है और वही मंत्र मैं तुमसे कह देती हूँ। बेटा, जब बड़े लोग मुझे डाँटते तो मैं सोचती ये बड़े लोग हैं। अगर ये मुझे नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा मुझे गुस्सा नहीं आता था क्योंकि बड़ों को अधिकार है छोटों को उनकी गलती का अहसास कराने का और जब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003875
Book TitleSakaratmak Sochie Safalta Paie
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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